अब किंग क्यों बन रहे किंगमेकर? प्रतापगढ़ की सियासत राजघरानों के इर्द-गिर्द घूमती रही है.

राजघरानों के ही इर्द-गिर्द घूमती रही प्रतापगढ़ की सियासत, अब किंग क्यों बन रहे किंगमेकर?
प्रतापगढ़ लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई है, इससे पहले इस इलाके का बड़ा हिस्सा फूलपुर लोकसभा सीट के तहत आता था. यहां 16 लोकसभा चुनाव में 11 बार राज परिवार से जुड़े सदस्य जीतने में सफल रहे. आजादी के बाद 1957 में कांग्रेस के मुनीश्वर दत्त उपाध्याय जीतकर संसद पहुंचे.
राजघरानों के ही इर्द-गिर्द घूमती रही प्रतापगढ़ की सियासत, अब किंग क्यों बन रहे किंगमेकर?

प्रतापगढ़ की सियासत राजघरानों के इर्द-गिर्द घूमती रही है.

प्रतापगढ़ की सियासत राजघरानों और सवर्ण समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. राजघरानों से यदि सीट बाहर गई तो ठाकुर और ब्राह्मण समुदाय का ही कब्जा रहा. यहां की राजनीति में सिर्फ दो बार गैर सवर्ण यहां से सांसद बन सका. प्रतापगढ़ सीट पर अब तक हुए 16 चुनावों में 11 बार राजघरानों का ही कब्जा रहा और सबसे ज्यादा सांसद ठाकुर समाज से हुए हैं, लेकिन पहली बार है जब न कोई राज परिवार से चुनाव लड़ रहा और न ही कोई ठाकुर समाज से मैदान में है. इस तरह से प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर पहली बार ‘किंग’ किंग मेकर की भूमिका में नजर आ रहे हैं.

हालांकि, प्रतापगढ़ सीट से बीजेपी प्रत्याशी संगम लाल गुप्ता ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि मैं तेली समाज से आता हूं. राजाओं के गढ़ में किसी तेली को सांसद नहीं बनने देना चाहते हैं. क्या क्षत्रिय ही यहां से सांसद बनेगा? इससे पहले केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कुंडा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘अब राजा किसी रानी के पेट से पैदा नहीं होता हैं बल्कि ईवीएम से पैदा होता है. इन दोनों बयान का कौशांबी सीट पर ही प्रभाव नहीं पड़ा बल्कि प्रतापगढ़ का भी सियासी समीकरण बदला हुआ नजर आ रहा है.

प्रतापगढ़ में किस पार्टी का रहा दबदबा?

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई है, इससे पहले इस इलाका का बड़ा हिस्सा फूलपुर लोकसभा सीट के तहत आता था. प्रतापगढ़ सीट बनने के बाद से अभी तक 16 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, जिसमें 9 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है, जबकि एक बार सपा और दो बार बीजेपी जीती है. इसके अलावा अपना दल, जनसंघ और जनता दल ने एक-एक बार जीत हासिल की है. इस तरह प्रतापगढ़ सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन मोदी लहर में यह सीट पहले अपना दल (एस) के खाते में गई और बीजेपी का कब्जा है.

प्रतापगढ़ में राजघराने का वर्चस्व रहा

प्रतापगढ़ सीट पर 16 लोकसभा चुनाव में 11 बार राज परिवार से जुड़े सदस्य जीतने में सफल रहे थे. इससे यहां की सियासत में राजघरानों-रियासतों की भूमिका को समझा जा सकता है. कालाकांकर राजघराने के राजा दिनेश सिंह चार बार सांसद बने, जबकि उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह तीन बार सांसद चुनी गईं. प्रतापगढ़ राजघराने के अजीत प्रताप सिंह दो बार और उनके बेटे अभय प्रताप सिंह एक बार लोकसभा चुनाव जीते. अजीत प्रताप सिंह पहली बार जनसंघ के टिकट पर जीते और उसके बाद कांग्रेस के टिकट पर, जबकि अभय प्रताप सिंह ने 1991 में जनता दल से जीत हासिल की थी. जामो रियासत से जुड़े अक्षय प्रताप सिंह को प्रतापगढ़ सीट से एक बार ही जीत मिली.

प्रतापगढ़ में सिर्फ दो बार ओबीसी सांसद चुने गए

आजादी के बाद 1957 में बनी प्रतापगढ़ की सीट पर पहली बार कांग्रेस के मुनीश्वर दत्त उपाध्याय जीतकर संसद पहुंचे. हालांकि दूसरे ही चुनाव 1962 में जनसंघ से अजीत प्रताप सिंह ने जीत हासिल की. इसके बाद 1971 में कांग्रेस के नेता राजा दिनेश सिंह यहां के सांसद बने. आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में प्रतापगढ़ सीट पर जनता पार्टी के रूपनाथ सिंह यादव मैदान में उतरे और राजा दिनेश सिंह को मात देने में सफल रहे. प्रतापगढ़ सीट पहली बार कोई ओबीसी सांसद चुना गया था, लेकिन उसके बाद 2019 में करीब 42 साल के बाद ओबीसी समाज से आने वाले बीजेपी से संगम लाल गुप्ता सांसद बने.

प्रतापगढ़ में ठाकुरों का दबदबा

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से अभी तक हुए 16 चुनाव में दो बार ब्राह्मण समुदाय से आने वाले मुनीश्वर दत्त उपाध्याय सांसद बने, जबकि 12 बार ठाकुर समुदाय से सांसद रहे. 1962 और 1967 अजीत प्रताप सिंह जीते. इसके बाद 1971 में राजा दिनेश सिंह यहां के सांसद बने और वो लगातार दो बार इस सीट पर जीतकर विदेश मंत्री बने. 1980 में अजीत सिंह जीतने में सफल रहे, लेकिन 1984 में कांग्रेस ने फिर से दिनेश सिंह को मैदान में उतारा तो वो लगातार दो बार जीत हासिल की. 1991 में जनता दल से राजा अभय प्रताप सिंह सांसद बने.1996 में राजकुमारी रत्ना सिंह प्रतापगढ़ की पहली महिला सांसद बनीं. 1998 में बीजेपी से राम विलास वेदांती यहां कमल खिलाने में कामयाब रहीं. 1999 में राजकुमारी रत्ना सिंह जीतीं, लेकिन 2004 में सपा के अक्षय प्रताप सिंह ने यहां की सीट पर जीत दर्ज की और 2009 के चुनाव में कांग्रेस की रत्ना सिंह जीतने में कामयाब रहीं. 2014 में कुंवर हरिबंश सिंह सांसद चुने गए. इस तरह प्रतापगढ़ सीट से 12 बार ठाकुर समुदाय से लोकसभा सांसद चुने गए.

प्रतापगढ़ का बदला सियासी मिजाज

पूर्वी उत्तर प्रदेश में सई नदी के बीच प्रतापगढ़ का सियासी मिजाज बदल गया. दलित, ब्राह्मण और ओबीसी मतदाता बहुल वाली प्रतापगढ़ सीट की राजनीति सियासी प्रयोगों और बदलावों के दौर से गुजर रही है. पहली बार है कि प्रतापगढ़ सीट पर न ही कोई राजा चुनावी मैदान में उतरा है और न ही ठाकुर समुदाय से कोई प्रत्याशी है. बीजेपी ने 2019 में संगम लाल गुप्ता को उतारकर प्रतापगढ़ सीट पर ठाकुर और राजा घराने के वर्चस्व को तोड़ने में कामयाब रही थी. तेली समुदाय से आने वाले संगम लाल गुप्ता 2019 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राज कुमारी रत्ना सिंह और जनसत्ता दल के अक्षय प्रताप सिंह के मात देने में कामयाब रहे थे.

बीजेपी ने एक बार फिर से संगम लाल गुप्ता को उतारा है, जिनके खिलाफ सपा ने एसपी सिंह पटेल और बसपा से प्रथमेश मिश्रा मैदान में है. एसपी सिंह पटेल की कोशिश कुर्मी, यादव, मुस्लिम और ओबीसी वोट बैंक के सहारे जीत दर्ज करने की है, तो संगम लाल गुप्ता पूरी तरह से मोदी-योगी के सहारे अपनी जीत की उम्मीद लगाए हुए हैं. बसपा के उतरे प्रथमेश मिश्रा ब्राह्मण और दलित समीकरण के सहारे अपनी जीत की आस लगाए हुए हैं. संगम लाल गुप्ता के बयान से बदले प्रतापगढ़ के सियासी समीकरण में ठाकुर वोटर निर्णायक भूमिका में नजर आ रहे हैं.

प्रतापगढ़ की सियासत के धुरी

प्रतापगढ़ के सियासत की धुरी राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी, कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह और राज कुमारी रत्ना सिंहमानी जाती हैं. इसके अलावा राम सिंह और डॉ. एसके पटेल जैसे कुर्मी विधायक भी अपनी एक अलग सियासी अहमियत रखते हैं. अनुप्रिया पटेल का कुर्मियों के बीच दबदबा रहा है, लेकिन डॉ. एसपी सिंह पटेल के उतरने के बाद कुर्मी समुदाय उनके पीछे लामबंद नजर आ रहा है. प्रमोद तिवारी प्रतापगढ़ में ब्राह्मण चेहरे माने जाते हैं, तो राजा भैया से लेकर रत्ना सिंह और मोती सिंह की ठाकुर समुदाय के बीच पकड़ मानी जाती है. प्रमोद तिवारी का रामपुर खास विधानसभा सीट पर एकछत्र राज है, जहां ब्राह्मण से लेकर मुस्लिम और दलित तक उनके साथ खड़ा नजर आता है. इसके अलावा प्रतापगढ़ सदर, विश्वनाथ गंज और रानीगंज के ब्राह्मणों में भी ठीक-ठाक पहचान है. कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन होने से प्रमोद तिवारी पूरी मशक्कत के साथ एसपी सिंह पटेल को जिताने की कवायद में लगे हैं.

प्रतापगढ़ में जातीय समीकरण

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर सबसे बड़ी संख्या दलित मतदाताओं की है. माना जाता है कि करीब 18 फीसदी दलित है, तो 16 फीसदी कुर्मी, 17 फीसदी मुस्लिम और 12 फीसदी यादव, 13 फीसदी ब्राह्मण हैं. इसके अलावा 11 फीसदी के करीब ठाकुर वोटर हैं, जबकि 13 फीसदी अन्य समुदाय के वोट हैं, जिनमें मौर्य, पाल और वैश्य समुदाय सहित अन्य बिरादरी हैं. जातीय समीकरण के लिहाज से प्रतापगढ़ सीट पर सपा का पलड़ा भारी नजर आ रहा है, लेकिन बीजेपी के संगम लाल गुप्ता पीएम मोदी के नाम और अनुप्रिया पटेल के भरोसे जीत की आस लगाए हैं. बसपा दलित-ब्राह्मण समीकरण बना रही है, लेकिन बीजेपी और सपा के बीच सीधी लड़ाई होने के चलते पिछड़ी नजर आ रही है.

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं- रामपुर खास, विश्वनाथगंज, प्रतापगढ़ सदर, पट्टी और रानीगंज. मौजूदा समय में रामपुर खास कांग्रेस के पास, विश्वनाथगंज अपना दल के पास, जबकि पट्टी और रानीगंज सपा के पास हैं. प्रतापगढ़ सदर सीट बीजेपी के पास है. इस तरह सपा और कांग्रेस के साथ आने पर भी एसके पटेल भारी पड़ते नजर आ रहे हैं. प्रतापगढ़ संसदीय सीट पर ठाकुर और कुर्मी मतदाताओं के साथ-साथ ब्राह्मण मतदाता काफी निर्णायक भूमिका में हैं. राजा भैया के समर्थकों ने अगर कौशांबी की तरह प्रतापगढ़ सीट पर भी सपा का साथ दिया, तो फिर बीजेपी के लिए यह सीट बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा.

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