जबलपुर में एक्शन, बाकी जिलों में क्यों नहीं …?

जबलपुर में एक्शन, बाकी जिलों में क्यों नहीं …
स्कूल शिक्षा मंत्री बोले- 5% संस्थानों के कारण पूरा सिस्टम बदनाम, किताबों के ISBN जांचेंगे

जबलपुर जिला प्रशासन ने प्राइवेट स्कूलों पर एक्शन लेते हुए 240 करोड़ रुपए ज्यादा फीस वसूलने और किताबों के 100 करोड़ रुपए के कमीशन का खेल उजागर किया है। यह केवल जबलपुर में ही नहीं हो रहा, बल्कि मध्यप्रदेश के अधिकतर जिलों में ये खेल जारी है।

सवाल है कि जैसा एक्शन जबलपुर में हुआ, वैसा बाकी के 54 जिलों में क्यों नहीं? जबकि स्कूल शिक्षा विभाग ने 1 अप्रैल को सभी जिलों के कलेक्टर्स को कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश सरकार 6 साल पहले कानून बना चुकी है, तो इस कानून पर अमल अब तक क्यों नहीं हुआ?

इस मामले में स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह का कहना है कि 95% स्कूल नियमों से चल रहे हैं। केवल 5% संस्थानों के कारण पूरा सिस्टम बदनाम हो रहा है। मैं पूरे प्रदेश में जांच करा रहा हूं। स्कूल शिक्षा विभाग ने इसके संबंध में अलग-अलग दो आदेश भी जारी कर दिए हैं।

मंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा कि स्कूलों का संचालन और पढ़ाई नियमों के दायरे में होगी। क्योंकि, एक सिस्टम बना हुआ है, जिसके तहत एक्शन लिया जाता है। ……ने स्कूलों की मनमानी पर नकेल लगाने के लिए बने कानून को समझा, शिक्षा मंत्री से बात की।

सरकार ने 30 मई को प्राइवेट स्कूलों की फीस की जानकारी पोर्टल पर अपलोड करने के निर्देश दिए है। 8 जून के बाद भी डेटा अपलोड नहीं होता तो जुर्माना लगाया जाएगा।
सरकार ने 30 मई को प्राइवेट स्कूलों की फीस की जानकारी पोर्टल पर अपलोड करने के निर्देश दिए है। 8 जून के बाद भी डेटा अपलोड नहीं होता तो जुर्माना लगाया जाएगा।

सीएम के सोशल मीडिया पोस्ट के बाद जबलपुर में कार्रवाई

1 अप्रैल को सीएम डॉ. मोहन यादव ने स्कूल संचालकों की मनमानी को लेकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाला था। इसके बाद प्रमुख सचिव की ओर से प्रदेश के सभी 55 जिला कलेक्टरों को स्कूलों द्वारा फीस बढ़ोतरी और दूसरी मनमानी की जांच के लिए कहा गया था।

जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने जिले के 50 नामी स्कूलों की जांच कराई। इसमें 11 बड़े स्कूलों का खेल उजागर हुआ। जबलपुर कलेक्टर के निर्देश पर अलग-अलग थानों में 11 एफआईआर में 50 लोगों को आरोपी बनाया गया। 29 एक से अधिक मामलों में आरोपी बनाए गए हैं।

पुलिस 21 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। इसमें नामी स्कूलों के संचालक, प्रिंसिपल और मैनेजमेंट से जुड़े लोग हैं। पहली बार ऐसे लोगों को जेल जाना पड़ा है। सभी ने हाईकोर्ट में 30 मई को याचिका लगाकर कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने प्रशासन की कार्रवाई पर रोक लगाने से मना कर दिया है।

स्कूल शिक्षा मंत्री से सवाल- जबलपुर जैसा एक्शन अन्य जिलों में क्यों नहीं?

स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने कहा- ऐसा नहीं है कि सिर्फ जबलपुर में एक्शन हुआ। हर जिले में छोटी-छोटी कार्रवाई हुई है। सरकार के निर्देश थे कि कोविड काल में कोई भी स्कूल फीस नहीं बढ़ाएगा। स्कूलों ने 2022-23 के सत्र में फीस बढ़ाई है। 2018 में नया एक्ट लागू हुआ और इसके नियम बनने में एक साल लग गया था।

सरकार अब समीक्षा कर रही है कि प्रदेश के सभी प्राइवेट स्कूलों का कोविड के पहले और इसके बाद फीस स्ट्रक्चर क्या था? आम तौर पर स्कूलों ने 5 साल फीस नहीं बढ़ाई, लेकिन 2022-23 में एक साथ फीस बढ़ा दी है तो यह आपत्तिजनक है। यदि 10-12% फीस वृद्धि हुई है तो इसकी जांच की जरूरत है।

सिलेबस बदलकर नई किताबें खरीदने की मजबूरी क्यों?

स्कूल संचालक ही तय करते हैं कि उनके यहां किस प्रकाशक की कौन सी पुस्तक पढ़ाई जाएगी। जबलपुर में हुई कार्रवाई में यह उजागर हो चुका है। इस पर शिक्षा मंत्री बोले- कई बार सिलेबस में अनियमितता की जानकारी सामने आती है। कई बार किताबों की प्रिंटिंग के आईएसबीएन कोड के नियमों के उल्लंघन के मामले सामने आते हैं।

मुझे लगता है कि 95% प्राइवेट शिक्षण संस्थान बेहतर काम करते हैं, लेकिन कुछ संस्थाओं के कारण बदनामी होती है। जिनके कारण पूरा सिस्टम बदनाम होता है, उन फोकस किया जा रहा है। यहां चैक-बैलेंस की जरूरत है। सरकार समय-समय पर स्कूलों को सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं ऐसे में यदि पेरेंट्स परेशान होते हैं तो यह उचित नहीं है।

स्कूलों में मनमाने तरीके से फीस वृद्धि क्यों?

स्कूल शिक्षा मंत्री ने कहा कि कई बार स्कूलों में फीस बढ़ जाती है। नियम है कि स्कूल साल में एक बार जिले की कमेटी की अनुशंसा पर सालाना फीस में 10% तक की वृद्धि कर सकते हैं, लेकिन हर साल 10% फीस बढ़ाई जाएगी तो 10 साल में दोगुना हो जाएगी।

इसकी मॉनिटरिंग की आवश्यकता है। चिंता का विषय है कि जो संस्थान 2-3 लाख रुपए फीस लेते हैं, वहां यह चैक करने की जरूरत है कि उस स्कूल में बच्चों को किस तरह की सुविधाएं मिल रही है।

जिस कानून-नियम के तहत जबलपुर में हुई कार्रवाई, उसके बनने की वजह भी जान लीजिए

मप्र पालक महासंघ के महासचिव प्रबोध पंड्या बताते हैं- 2010 में भोपाल के विंध्याचल स्कूल ने अचानक से फीस बढ़ा दी थी। इसे लेकर अभिभावकों ने भारी विरोध किया था। फीस बढ़ाने को लेकर सवाल उठाए थे, लेकिन मैनेजमेंट ने कोई राहत नहीं दी। इसके बाद तत्कालीन कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव से मिले।

कलेक्टर ने एक एसडीएम को इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी। एसडीएम ने दोनों पक्षों को बुलाकर बात की, लेकिन अभिभावकों को राहत नहीं मिली। एसडीएम ने दो टूक कहा कि फीस बढ़ाना स्कूल मैनेजमेंट की मजबूरी है। इस पर पेरेंट्स गुस्सा हो गए और बोर्ड ऑफिस पर चक्काजाम कर दिया।

इस प्रदर्शन से सरकार हरकत में आई। तत्कालीन स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव एसआर मोहंती ने अभिभावकों को बुलाया। भरोसा दिया कि स्कूल शिक्षा विभाग नियम बना रहा है। उन्होंने गाइडलाइन बनाकर अभिभावकों को दे दी।

पेरेंट्स इस गाइडलाइन को लेकर स्कूल प्रबंधन से मिलने पहुंचे तो उसने इसे मानने से ही मना कर दिया। इसे लेकर ग्वालियर हाईकोर्ट में पहली बार याचिका लगाई गई। हाईकोर्ट ने तब सरकार से कानून बनाने की सलाह दी। कहा कि गाइडलाइन से कुछ नहीं होगा।

2017 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री विजय शाह ने अभिभावकों और स्कूल संचालकों की संयुक्त बैठक बुलाई। उसमें स्कूलों को हर साल 15 प्रतिशत फीस बढ़ाने का प्रपोजल रखा, जिसे अभिभावकों ने मानने से मना कर दिया।

इसके बाद दूसरी याचिका डॉ. पीजी नाजपांडे ने जबलपुर हाईकोर्ट में लगाई। जबलपुर हाईकोर्ट ने इस याचिका पर फैसला देते हुए सरकार को तत्काल कानून बनाने का आदेश दिया। सरकार ने 2017 में ड्राफ्ट तैयार कर विधानसभा से पास कराया। 25 जनवरी 2018 को इसका गजट नोटिफिकेशन हुआ।

कानून बनने के बाद पेरेंट्स खुश हो गए, पर स्कूल संचालकों की मनमानी से राहत नहीं मिली। पता चला कि सरकार ने कानून तो बना दिया, लेकिन इसे लागू कैसे किया जाए, इसका नियम बनाना ही भूल गए।

जबलपुर में हुई कार्रवाई के बाद स्कूल शिक्षा विभाग ने जारी किए दो आदेश

जबलपुर में हुई कार्रवाई के बाद सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग ने 30 मई को अलग-अलग समय पर दो आदेश जारी किए। पहले आदेश में सभी जिलों के कलेक्टरों को मध्यप्रदेश निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन) अधिनियम 2018 और नियम 2020 के प्रावधान का पालन सख्ती से पालन करने के लिए कहा साथ ही जिले के सभी विद्यालयों की फीस और अन्य जानकारी पोर्टल पर दर्ज करने के भी निर्देश दिए।

कलेक्टरों से कहा गया कि वे ये सुनिश्चित करें कि सभी प्राइवेट स्कूल 8 जून तक जानकारी पोर्टल पर अपलोड कर दें। साथ ही इसी आदेश में ये भी लिखा कि फर्जी व डुप्लीकेट आईएसबीएन पाठ्य पुस्तकों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है। इसे ठीक करने के लिए 30 जून 2024 तक विशेष अभियान चलाकर जांच कराएं। गड़बड़ी करने वाले प्रकाशक और बुक विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई भी की जाएं।

दूसरा आदेश कुछ ही देर बार जारी किया गया। इसमें जुर्माने के प्रावधान का जिक्र किया गया। आदेश में लिखा कि पोर्टल पर फीस की डिटेल अपलोड करने के लिए स्कूलों के लिए प्रोसेस फीस निर्धारित की गई है। यदि निश्चित समय में स्कूल फीस की डिटेल पोर्टल पर अपलोड नहीं की जाती है, तो प्रोसेस फीस के अलावा पांच गुना पेनाल्टी राशि वसूल की जाए।

जबलपुर में फर्जी ISBN नंबर वाली पुस्तकों पर कार्रवाई के लिए कलेक्टर की पहल

जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने जिले के 11 स्कूलों की जांच में मिले फर्जी आईएसबीएन नंबर के बाद एक अभियान शुरू किया है। उन्होंने जिले के सभी छात्रों-अभिभावकों से अनुरोध किया है कि वे अपनी किताबों के आईएसबीएन को चेक करें।

फर्जी आईएसबीएन नंबर मिलने पर स्कूल के नाम, कक्षा व बुक की फोटो सीधे उनके वॉट्सएप नंबर 7587970500 पर भेजें। छात्र या पेरेंट्स आईएसबीएन नंबर पता करने के लिए इस लिंक https://isbn.gov.in/ का उपयोग कर सकते हैं। ये भारत सरकार की अधिकृत वेबसाइट है।

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