अयोध्या में हार भाजपा के लिए गहरी चोट !
जनता से दूरी, अति आत्मविश्वास…और खिसक गई जमीन, अयोध्या में हार भाजपा के लिए गहरी चोट
अयोध्या की हार को एक सामान्य सीट की हार के रूप में नहीं देखा जा रहा है। इसे भाजपा के प्रतीकों के प्रयोग की विफलता के रूप में देखा जा रहा है। हार के और भी कई कारण गिनाए जा रहे हैं, जिसमें स्थानीय मुद्दों पर सांसद लल्लू सिंह की निष्क्रियता और संविधान संशोधन को लेकर दिया गया उनका बयान प्रमुख है।
लोकसभा चुनाव में फैजाबाद (अयोध्या) सीट की हार भाजपा को बहुत गहरे तक चोट दे गई है। इसे एक सामान्य सीट की हार के रूप में नहीं देखा जा रहा है। इसे भाजपा के प्रतीकों के प्रयोग की विफलता के रूप में देखा जा रहा है। हार के और भी कई कारण गिनाए जा रहे हैं, जिसमें स्थानीय मुद्दों पर सांसद लल्लू सिंह की निष्क्रियता और संविधान संशोधन को लेकर दिया गया उनका बयान प्रमुख है।
दरअसल, भाजपा 2024 का चुनाव ही अयोध्या में राममंदिर के निर्माण को केंद्र में रखकर लड़ रही थी। दलितों को साधने के लिए एयरपोर्ट का नामकरण महर्षि वाल्मीकि के नाम पर किया गया। प्रदेश व केंद्र सरकार ने अयोध्या में तमाम विकास के काम कराए। राममंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा भी चुनाव से ठीक पहले हुई। इसके बावजूद भाजपा फैजाबाद की सीट ही हार गई। लोग हैरान हैं कि आखिर भाजपा फैजाबाद सीट पर कैसे हार गई?
भाजपा ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। यहां वर्ष 2014 में भाजपा को 48.08 फीसदी और सपा को 20.43 फीसदी वोट मिले थे। वर्ष 2019 में भाजपा 48.66 फीसदी और सपा 42.66 फीसदी पर पहुंच गई। इस बार भाजपा की कुल मतों में हिस्सेदारी करीब 4.85 फीसदी वोट की गिरावट के साथ 43.81 फीसदी पर सिमट गई। वहीं, सपा का वोट शेयर 5.95 फीसदी की बढोतरी के साथ 48.59 फीसदी पर पहुंच गया।
संविधान संशोधन की बात ने दलितों व पिछड़ों को भड़काया
भाजपा सांसद लल्लू सिंह ने बीच चुनाव में कहा कि सरकार तो 272 सीट पर ही बन जाती है। लेकिन, संविधान बदलने या संशोधन करने के लिए दो तिहाई सीटों की जरूरत होती है। लल्लू के इस बयान को इंडिया गठबंधन के नेता ले उड़े। अयोध्या ही नहीं, पूरे देश में इसे संविधान बदलने की साजिश के तौर पर पेश कर दलित व पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को लामबंद करने का प्रयास किया। भाजपा राममंदिर की भावना में इस प्रभाव को नजरअंदाज करती रही। हार के तमाम कारणों में यह एक बड़ी वजह बना।
सपा की रणनीति समझ ही नहीं पाई
इंडिया गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में अयोध्या फतह के लिए बड़ा प्रयोग किया। फैजाबाद (अयोध्या) लोकसभा सीट सामान्य सीट है। यहां आमतौर पर हर लोकसभा चुनाव में अगड़े और पिछड़े के बीच समीकरण साधा जाता रहा है। पिछली बार भाजपा से लल्लू सिंह थे, तो सपा ने आनंदसेन यादव को प्रत्याशी बनाया था। बाजी भाजपा के हाथ लगी थी। इस बार सपा ने रणनीति बदली। हमेशा की तरह पिछड़े और सामान्य जाति के उम्मीदवार उतारने के बजाय दलित उम्मीदवार उतारा। वह भी पासी बिरादरी का। -इस सीट पर पासी बिरादरी का करीब डेढ़ लाख वोटबैंक हैं।
इतना ही नहीं इस लोकसभा क्षेत्र में कुर्मी और निषाद भी भरपूर हैं। पासी की तरह ही ये दोनों जातियां भी भाजपा की कोर वोटबैंक मानी जाती रही हैं। ऐसे में सपा ने अगल-बगल की सीटों पर भी सियासी समीकरण साधे। बस्ती और अंबेडकरनगर में कुर्मी उम्मीदवार उतारा, तो सुल्तानपुर में निषाद बिरादरी का उम्मीदवार उतार कर इन जातियों को भी गोलबंद किया। नतीजा रहा कि 1957 के बाद पहली बार फैजाबाद सीट पर अनुसूचित जाति का सांसद बना। दो बार के भाजपा सांसद लल्लू सिंह सपा के मिल्कीपुर विधायक अवधेश प्रसाद से 55 हजार वोटों से हार गए।
अति आत्मविश्वास में रही भाजपा
फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में आने वाली पांच विधानसभा सीटों में से भाजपा का चार पर कब्जा है। सिर्फ मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद विधायक थे। भाजपा राममंदिर उद्धाटन और वहां बन रहे कॉरिडोर को लेकर उत्साहित थी। पार्टी कार्यकर्ता भी अति आत्मविश्वास में रहे।
जिन्होंने विकास का दंश झेला, उन पर नहीं दिया ध्यान
भाजपा ने अयोध्या में ढेर सारे विकास कार्य कराए। वह अयोध्या ही नहीं, समूचे देश में राममंदिर उद्धाटन और वहां हुए कार्यों को सियासी पतवार के रूप में देख रही थी। पर, अंदरखाने कुछ और ही चल रहा था। अयोध्या के स्थानीय लोगों में एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी था, जो विकास के नाम पर उजाड़े जाने से खिन्न था।
वे मान रहे थे कि इस विकास की कीमत उन्हें चुकानी पड़ रही है। स्थानीय व्यापारी बार-बार अधिग्रहण और मुआवजे का मुद्दा उठा रहे थे। वे जगह-जगह पर बैरिकेडिंग, पुलिस बंदोबस्त, रूट डायवर्जन और वीआईपी कल्चर से भी खिन्न थे। स्थानीय सांसद उनकी समस्या सुलझाने के लिए कहीं नजर नहीं आए।