यूपी के हर क्षेत्र में 4 से लेकर 8 सीटों तक का उसे नुकसान उठाना पड़ा है !

हर क्षेत्र में मिली चोट, इसलिए यूपी में कम हुए भाजपा के वोट; हर प्रांत में 4 से 8 सीट का नुकसान
भाजपा के लिहाज से छह प्रांत में बंटे यूपी के हर क्षेत्र में 4 से लेकर 8 सीटों तक का उसे नुकसान उठाना पड़ा है।

प्रदेश के हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का लक्ष्य लेकर लोकसभा चुनाव मैदान में उतरी भाजपा को इस बार हर क्षेत्र में बड़ा झटका लगा है। भाजपा के लिहाज से छह प्रांत में बंटे यूपी के हर क्षेत्र में 4 से लेकर 8 सीटों तक का उसे नुकसान उठाना पड़ा है। वह भी तब जब चुनावी जंग में कूदने से पहले जातीय संतुलन साधने के नाम पर क्षेत्रीय और जिला संगठनों में व्यापक बदलाव किए गए थे। पर, इस बार के चुनाव में न तो ये बदलाव काम आए और न ही क्षेत्रीय व जिलाध्यक्ष बनाए गए चेहरों की जाति का असर ही दिखा।

लोकसभा चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि 2019 की तुलना में इस बार सभी छह प्रांतों में भाजपा की सीटें घटी हैं। जीती हुई सीटों के लिहाज से सबसे अधिक 8 सीटों का नुकसान काशी प्रांत में हुआ है। जबकि दूसरे नंबर पर संयुक्त रूप से अवध और कानपुर क्षेत्र रहे। इन दोनों क्षेत्रों में भाजपा को इस बार 6-6 सीटों का नुकसान हुआ है। जबकि गोरक्ष क्षेत्र में 4 और ब्रज क्षेत्र में 5 सीटें गंवानी पड़ी है। इस प्रकार 2019 की तुलना में एनडीए को कुल 30 सीटों का नुकसान पहुंचा है।

यह परिणाम इसलिए भी सबको चौंका रहा है, क्योंकि पिछली बार से अधिक दिनों तक चुनावी तैयारियां हुईं। जनता से संपर्क को लेकर तमाम तरह के अभियान चलाए गए। जमीनी स्तर पर काम करने वाली बूथ कमेटी, प्रमुख जैसे संगठन और कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी करने के बहुत दावे किए गए। राज्य और केंद्र सरकार ने गरीब कल्याण की तमाम योजनाओं को लागू कर एक बड़ा लाभार्थी वर्ग तैयार किया। क्षेत्र और जिला संगठनों में व्यापक बदलाव किए गए। 

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जनता में किस बात को लेकर इतनी नाराजगी घर कर गई कि जो गैर यादव पिछड़ी और गैर जाटव दलित जातियां पिछले एक दशक से भाजपा के साथ खड़ी थीं, वे इस चुनाव में विपक्ष के पाले में आ गईं। जिस भाजपा ने 2019 में इन जातियों की ही बदौलत 62 सीटों पर अपना भगवा परचम फहराया था, उसे इस बार विपक्ष ने इन जातियों के ही सहारे 33 सीटों पर लाकर पटक दिया। सहयोगी दलों को मिला दिया जाए तो भी आंकड़ा 36 तक ही पहुंचा

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