एक देश, एक टैक्स’ कब लाएगी सरकार ?

‘एक देश, एक टैक्स’ कब लाएगी सरकार, बजट को लेकर व्यापारियों ने रखी ये मांग
राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला ने अमर उजाला से कहा कि अलग-अलग टैक्स दरों से अलग-अलग क्षेत्रों के व्यापारिक उद्देश्यों में भेदभाव होता है। अति आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर शेष सभी वस्तुओं के व्यापार को एक समान कैटेगरी टैक्स दर में लाने से व्यापार में एकरूपता लाने में मदद मिल सकती है।

केंद्र सरकार जुलाई माह में बजट पेश कर सकती है। इसे देखते हुए अलग-अलग वर्गों ने बजट को लेकर अपनी राय रखनी शुरू कर दी है। व्यापारियों की सबसे बड़ी मांग है कि सरकार लंबे समय से कहती रही है कि सभी व्यापारी वर्गों के लिए एक समान दर से टैक्स वसूल किया जाएगा, लेकिन अब तक यह विचार जमीन पर नहीं उतारा जा सका है। अलग-अलग वस्तुओं के व्यापार पर अलग-अलग दरें वसूल की जा रही हैं, जिससे टैक्स वसूलने से लेकर उसके रिफंड पाने तक में व्यापारियों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।      

राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला ने अमर उजाला से कहा कि अलग-अलग टैक्स दरों से अलग-अलग क्षेत्रों के व्यापारिक उद्देश्यों में भेदभाव होता है। अति आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर शेष सभी वस्तुओं के व्यापार को एक समान कैटेगरी टैक्स दर में लाने से व्यापार में एकरूपता लाने में मदद मिल सकती है।

बीच में जीएसटी दरों में न हो बदलाव
कई बार सरकार बीच में जीएसटी की दरों में बदलाव करती है। इससे एक ही वित्तीय वर्ष के टैक्स की गणना करने में अलग-अलग दरों से टैक्स देना पड़ता है। इससे व्यापारियों को परेशानी होती है। कई बार टैक्स की गणना करने वाले वित्तीय सलाहकार भी बदलती दरों की गणना करने में असुविधा महसूस करते हैं। सरकार को केवल बजट पेश करते समय ही किसी टैक्स दर में बदलाव करना चाहिए, जिससे एक वित्तीय वर्ष में एक ही प्रकार से टैक्स देना संभव हो सके। 

रिफंड की समयबद्ध वापसी नहीं
व्यापारियों को टैक्स जमा करने के बाद केंद्र सरकार से रिफंड भी मिलता है। लेकिन व्यापारियों की शिकायत है कि यह रिफंड मिलने में कई बार साल-साल भर का समय लग जाता है। जबकि एक व्यापारी को टैक्स के रूप में करोड़ों रुपये की राशि जमा करनी पड़ती है। जब तक यह पैसा सरकार के पास जमा रहता है, व्यापारियों को उसके ब्याज का भुगतान करना पड़ता है। यदि यह रिफंड सही समय पर मिल जाए, तो व्यापारी इसी पैसे को व्यापार में लगाकर ज्यादा लाभ कमा सकता है। सरकार को यह पैसा एक सीमित समय में वापस कराने का प्रतिबंधकारी नियम लागू करना चाहिए।   

फैक्टरी बंद तो बिजली का फिक्स चार्ज क्यों
गांधीनगर में कपड़ों के व्यापार से जुड़े रजत अग्रवाल ने कहा कि बिजली कंपनियां व्यापारिक गतिविधियों से जुड़ी फैक्ट्री-कंपनी से हर महीने बिजली का फिक्स चार्ज वसूल करती हैं। लेकिन कई बार कंपनियां कुछ समय के लिए या स्थाई तौर पर बंद हो जाती हैं, लेकिन इन कंपनी मालिकों को कंपनी बंद रहने के दौरान भी फिक्स चार्ज चुकाना पड़ता है। जैसे डंठ के कपड़ों का निर्माण एक खास समय में होता है, बाद में ये कंपनियां चार से छह महीने तक के लिए बंद रहती हैं। लेकिन इस दौरान भी उन्हें हर महीने फिक्स चार्ज के रूप में भारी पैसा चुकाना पड़ता है। केंद्र सरकार को ऐसा नियम लाना चाहिए, जिससे कंपनियां केवल उसी समय का फिक्स चार्ज वसूल सकें जब कंपनी कार्य कर रही हो।     

धरने-प्रदर्शन में सड़कों को प्रतिबंधित करने पर लगे रोक
भगीरथ पैलेस में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के व्यापार से जुड़े संजीत कुमार सोनी ने कहा कि लोकतांत्रिक देश में असंतुष्ट वर्ग के द्वारा धरना-प्रदर्शन करना उनका अधिकार माना जाता है। लेकिन इस धरने-प्रदर्शन में व्यापारियों के साथ-साथ देश और सरकार का हजारों करोड़ रुपये का नुकसान होता है।

व्यापारियों की मांग है कि धरने-प्रदर्शन के दौरान सड़कों को बंद करने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। सरकार को असंतुष्ट वर्ग के द्वारा प्रदर्शन करने और उनसे बातचीत का ऐसा लोकतांत्रिक तरीका उपयोग करना चाहिए, जिससे असंतुष्ट वर्ग की बातें भी रखी जा सकें और उनसे किसी का नुकसान भी न हो। 2020-21 में दिल्ली और आसपास की एरिया में हुए किसानों के धरना-प्रदर्शन से अकेले दिल्ली-एनसीआर की एरिया के व्यापारियों का करीब तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ। इससे सरकार को भारी टैक्स का नुकसान हुआ और आम लोगों को परेशानी का सामना भी करना पड़ा।

केंद्र सरकार को ऐसा तंत्र विकसित करने पर जोर देना चाहिए, जिससे असंतुष्ट किसान वर्ग लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात भी रख सकते और व्यापारियों-देश का नुकसान भी न होता।  व्यापारियों की मांग है कि सरकार बजट बनाते समय इन बिंदुओं पर विचार करे और इसका समाधान प्रस्तुत करे।

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