विकसित देश अमेरिका में ….. EVM से इतनी दूरी क्यों ?
विकसित देश अमेरिका में अब भी क्यों होती है बैलेट पेपर से वोटिंग, EVM से इतनी दूरी क्यों ?
EVM Machine Controversy: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर एलन मस्क के ब्यान के बाद भारत में तमाम बयानबाजी और चर्चाएं हो रही हैं. इस बीच सवाल खड़ा होता है कि विकसित देश कहे जाने वाले अमेरिका में मशीन की बजाय बैलेट पेपर से क्यों वोटिंग होती है. आइए जानते हैं ऐसा क्यों होता है.
भारत हो या अमेरिका, EVM चर्चा में है. देश में सियासी दलों की बयानबाजी जारी है. वहीं,अमेरिका के अरबपति एलन मस्क ने हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर बयान दिया है, जिसके बाद ईवीएम की जगह बैलेट पेपर को इस्तेमाल किए जाने की मांग उठने लगी है. एलन ने X पर लिखा था कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को हैक किए जाने का खतरा रहता है. उन्हें खत्म कर देना चाहिए. इसके बाद से तमाम चर्चाएं हो रही हैं. इस बीच सवाल खड़ा होता है कि विकसित देश कहे जाने वाले अमेरिका में मशीन की बजाय बैलेट पेपर से क्यों वोटिंग होती है.
अमेरिका और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन
एक टेक्नोलॉजी संपन्न देश होने के बाद भी अमेरिका की जनता का पेपर वोटिंग करना पहली नजर में चौंकाने वाली बात लग सकती है. लेकिन उनके ऐसा करने के पीछे भी दो वाजिब वजह बताई जाती है. चुनाव सहायता आयोग (ईएसी) के अध्यक्ष टॉम हिक्स ने TIME के हवाले से कहा है कि कागजी वोटिंग के इस्तेमाल को जारी रखने का प्राथमिक कारण सुरक्षा और मतदाताओं की प्राथमिकता है.
पेपरलेस इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग, जिसे वोटों का जल्द और सटीक मिलान करने की क्षमता के लिए जाना जाता है, की लोकप्रियता में 2000 के दशक के मध्य से अमेरिका और यूरोपीय देशों में काफी हद तक कमी आई है. ये देश अपने चुनावों का ऑडिट करने और वोटों में संभावित छेड़छाड़ का पता लगाने के लिए सबसे सुरक्षित तरीके के रूप में कागज का सहारा लेते हैं.
साल 2000 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में मतगणना की ‘गड़बड़ी’ के बाद सरकार ने अलग से 3 बिलियन डॉलर का बजट बनाया था, जिसका इस्तेमाल कई राज्यों ने डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक (डीआरई) मशीनें खरीदने के लिए किया. इस कदम का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया में मतदाताओं का विश्वास बढ़ाना था, लेकिन इसका उल्टा असर पड़ गया. वोटरों के बीच संदेह बढ़ गया.
इलेक्ट्रॉनिक वोट सिस्टम में खामियां
अमेरिका की इलेक्ट्रॉनिक वोट मशीन की सबसे बड़ी खामी यह बताई जाती है कि इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोट के बैकअप के लिए कोई फिजिकल रिकॉर्ड नहीं है. इसका मतलब यह है कि चुनाव अधिकारी इस बात पर भरोसा करने के लिए मजबूर हैं कि मशीनें हैक या खराब नहीं हो सकती जिससे वोट बदला या खो सकता है.
इलेक्ट्रॉनिक वोट मशीन की गिरती लोकप्रियता की एक बड़ी वजह सोशल मीडिया पर इनकी सुरक्षा कमजोरियों का प्रचार किया जाना भी है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चुनावी मशीनों को लेकर सोशल मीडिया पर गलत सूचना प्रसारित की गई और ट्रंप जैसे नेताओं ने झूठा दावा किया कि मतदान और मिलान मशीनों में हेरफेर किया जा रहा है.
केवल सुरक्षा ही ई-वोटिंग के लिहाज से चिंता का विषय नहीं है. वोटिंग मशीनों की लागत भी राज्यों को चुनावी प्रक्रिया को अपग्रेड करने से रोक रही है. हर राज्य तय करता है कि वे किस प्रणाली और मशीन का उपयोग करेंगे, और अक्सर ऐसा होता है कि मौजूदा बजट बहुत सीमित होते हैं.
जितनी फंडिंग मिली रही है, उस हिसाब से स्थानीय सरकारें धीरे-धीरे चुनावी मशीन को बदल रही हैं, लेकिन कुछ मतदान जिले अभी भी एक दशक से ज्यादा पुराने इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. मशीनों की उम्र के साथ-साथ उनके स्पेयर पार्ट्स का न मिल पाना भी अमेरिका में वोटिंग मशीन के इस्तेमाल के बढ़ने में बाधा बनी हुई है.