सही वितरण का समय, तभी मजबूत होगा बुनियादी ढांचा

मुद्दा: सही वितरण का समय, तभी मजबूत होगा बुनियादी ढांचा
पिछले एक दशक में मोदी सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दी है। अब इसका लाभ हर तबके को मिलना चाहिए।
 
Every section should get benefit of infrastructure development
मानव संसाधन। जग) सरकार के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर विचार करना प्रासंगिक है। भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ गया है, लेकिन हाल के वर्षों में विकास की जो शानदार कहानियां सुनने को मिली हैं, उनमें ग्रामीण, कृषि आबादी की आजीविका के संघर्ष और बेरोजगार युवाओं की बेचैनी को नजर अंदाज कर दिया जाता है। इस बार के लोकसभा चुनाव ने दिखाया कि इन दोनों मुद्दों का क्या महत्व है।
लाखों आम भारतीय, जिनके पास कोई पुश्तैनी संपत्ति या सामाजिक संपर्क नहीं है, कम आय और बढ़ती खाद्य कीमतों से जूझ रहे हैं। यही सच्चाई है। जो लोग इन मुद्दों पर ध्यान देते रहे हैं, उनके लिए ग्रामीण भारत के संकट और युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी कोई नई बात नहीं है।

निराशा और हताशा की खबरें बार-बार आती हैं। हिंदी पट्टी में भर्ती परीक्षाओं में ‘पेपर लीक’ के कारण परीक्षाओं के रद्द होने की घटनाएं इसके कई संकेत देती हैं। भारत कई अरबपतियों के साथ तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक हो सकता है, लेकिन यह बहुत ही असमान समाज है, जहां लाखों लोग सिर्फ जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि देश का जो विकास हुआ है, उसे नजर अंदाज कर दिया जाए। पिछले एक दशक में मोदी सरकार ने ग्रामीण भारत, जहां अब भी अधिकांश भारतीय रहते हैं, की तुलना में बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दी। एक दशक पहले की तुलना में देश में हवाई अड्डों की संख्या दोगुना हो गई, और 10,000 किलोमीटर सड़कें तथा 15 गीगावाट सौर ऊर्जा की क्षमता प्रति वर्ष बढ़ाई गई है। विकास के और भी बहुत से काम किए गए, लेकिन वास्तविकता यह है कि इसका लाभ अभी तक ग्रामीण आबादी, विशेषकर गरीबों तक नहीं पहुंचा है।

पूरे देश में करीब 80 करोड़ लोग सरकार की मुफ्त राशन योजना पर निर्भर हैं। गरीब राज्यों के गांवों में लोग राजमार्गों, नकद हस्तांतरण, सब्सिडी वाली रसोई गैस, नल से जल और मुफ्त राशन तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार द्वारा चलाई जा रही अन्य कल्याणकारी लाभों की प्रशंसा करते नहीं थकते। फिर भी किसानों की शिकायत है कि खेती लगातार घाटे का सौदा होती जा रही है। औसत वार्षिक कृषि वृद्धि आमतौर पर तीन प्रतिशत होती है, जो 2023-24 में केवल 1.4 प्रतिशत थी। इसके अलावा, उच्च खाद्य कीमतें भी हैं। तीन समान किस्तों में प्रति वर्ष 6,000 रुपये की किसान सम्मान निधि मददगार तो है, लेकिन कई किसान बेहतर आय चाहते हैं। बुनियादी ढांचे का विकास अब उतना श्रम-प्रधान नहीं रह गया है और यह पूरी तरह से आजीविका की समस्याओं का समाधान नहीं करता है। जीडीपी बढ़ने के साथ घरेलू कर्ज में वृद्धि और घरेलू बचत में गिरावट आ रही है। लेकिन ग्रामीण संकट और रोजगार के संकट के साथ-साथ लग्जरी कारों, अपार्टमेंटों और अन्य लग्जरी चीजों की मांग भी देश में बढ़ रही हैं।

गांवों और शहरी झुग्गियों में ऐसे लाखों लोग हैं, जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और दिल्ली स्थित मानव विकास संस्थान द्वारा जारी भारत रोजगार रिपोर्ट-2024 में बताया गया है कि ‘वर्ष 2012-22 के दौरान आकस्मिक मजदूरों की मजदूरी में मामूली वृद्धि हुई और नियमित श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी या तो स्थिर रही या घट गई। वर्ष 2019 के बाद स्वरोजगार करने वालों की वास्तविक आय में भी गिरावट आई। कुल मिलाकर, मजदूरी कम बनी हुई है। देश भर में 62 प्रतिशत अकुशल अस्थायी कृषि श्रमिकों और निर्माण क्षेत्र के 70 प्रतिशत ऐसे श्रमिकों को 2022 में निर्धारित दैनिक न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिली।’

वर्ष 2000 से ही सेवा क्षेत्र भारत के विकास का प्रमुख वाहक रहा है। सॉफ्टवेयर, आईटी, आईटी से जुड़ी सेवाएं, व्यवसाय और वित्तीय सेवाओं ने प्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा किए और अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार को बढ़ावा दिया है, लेकिन हर कोई इन उभरते अवसरों का लाभ उठाने में सक्षम नहीं है। निचले पायदान पर, हाशिये पर और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग चाहते हैं कि नई सरकार वास्तविक जीवन के इन मुद्दों पर ध्यान दे। आने वाले महीनों में ये सवाल जोर-शोर से उठेंगे और सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *