बिन पानी भारत की राजधानी ?
..जब दिल्ली में पानी की किल्लत से अटल भी रह गए थे प्यासे, नहीं दे सके थे भाषण
देश की राजधानी दिल्ली पानी के लिए तरस रही है. एक तरफ लोग गर्मी से तप रहे हैं तो वहीं कई इलाकों में पानी की सप्लाई नहीं हो रही है. पानी के लिए तड़पते दिल्ली वालों की ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं, जिसे देखकर हैरानी होती है. पिछले कई दशकों से कैसे दिल्ली वाले पानी की समस्या से जूझ रहे हैं, लेकिन क्या दिल्ली का हाल हमेशा से ऐसा था पढ़ें इस स्पेशल रिपोर्ट में-
‘दिल्ली के 20 लाख लोग पिछले 18 घंटे से बिना पानी के तड़प रहे हैं. आज नदी की धारा बदल गई है, आज जिंदों को जिंदा रखने के लिए पानी नहीं है. दिल्ली की जनता के सामने एक भयंकर संकट पैदा हो गया है. ये स्थिति आ गई है कि सरकार लोगों को पीने का पानी भी नहीं दे सकती है. अगर सरकार में थोड़ी लज्जा होती तो वो चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाती, लेकिन आज शायद यहां पर चुल्लू भर पानी भी नहीं है, इसलिए मैं ऐसा नहीं कह सकता..
मैंने सवेरे से पानी नहीं पिया है इसलिए मैं ज्यादा भाषण नहीं दे सकता, धन्यवाद..’
आज भी प्यासी है दिल्ली
दिल्ली के कई इलाकों में पानी के टैंकर से लोगों की प्यास बुझाई जा रही है. लोग सुबह से ही टैंकर का इंतजार करते हैं और उसके आते ही पानी के लिए मारामारी मच जाती है. आज ये हाल है कि यहां के वीआईपी इलाकों में भी पानी की किल्लत हो गई है. दिल्ली का लुटियंस जोन जहां तमाम वीआईपी लोग रहते हैं उस इलाके के लिए भी एनडीएमसी ने अलर्ट जारी कर दिया है कि दिन में एक बार ही पानी की सप्लाई की जाएगी. दिल्ली जिसे कभी झीलों का शहर कहा जाता था आखिर आज क्यों वो एक-एक बूंद के लिए तरस रही है.
कैसे खत्म हुआ दिल्ली का पानी?
‘भारत के जलपुरुष’ के नाम से मशहूर जल संरक्षणवादी और पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह बताते हैं मुगलकाल तक दिल्ली पानीदार राजधानी हुआ करती थी, जहां यमुना का पानी था और आरावली के पहाड़ों से पानी आता था. मुगलों ने पानी के लिए बावड़ी, तालाब, कुएं सबकुछ बनावाए, लेकिन ब्रिटिश राज के आते-आते पानी के लिए जो पारंपरिक स्रोत थे वो धीरे-धीरे खत्म होने लगे. उन्होंने पाइप लाइन बिछाईं, बड़े डैम बनाकर वॉटर सप्लाई शुरू की. आज की दिल्ली अपने पानी के लिए दूसरों पर निर्भर है. दूसरे के पानी पर निर्भरता की वजह से दिल्ली आज बेपानी हो गई है.
दिल्ली के लोगों ने अपने पानी के पुराने स्रोतों का इस्तेमाल ही नहीं किया. दिल्ली का जो पुराना जल प्रबंधन था- सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन का आइडियल मॉडल दिल्ली हुआ करता था, लेकिन आज वो नहीं हैं. आज दिल्ली में सेंट्रलाइज मेगा वॉटर सप्लाई सिस्टम है. इसमें कम्यूनिटी का कोई रोल नहीं है. आज पानी को लेकर सबकुछ सरकार के हाथ में है.
पहले कैसे बुझती थी दिल्ली की प्यास?
एक दौर था जब दिल्ली की प्यास बावड़ियों, तालाब, नहर, झीलों और नदियों से बुझ जाती थी. लेकिन आज की तारीख में ये सब कुछ गायब है. दिल्ली में पानी के लिए बावड़ियों का इस्तेमाल सन् 1200 के करीब शुरू हुआ था. कहते हैं दिल्ली में इल्तुतमिश के राज में बावड़ियों का विकास हुआ. उस दौर में दिल्ली वालों की प्यास बुझाने के लिए करीब दो दर्जन से ज्यादा बावड़ियां बनाई गई थीं. दिल्ली के करीब हर इलाके में बावड़ियां बनवाई गई थीं. इतिहासकार बताते हैं ये सिलसिला 1700 तक जारी रहा. शाहजहां ने लाल किले के पास एक बावड़ी बनवाई उसके बाद किसी और बावड़ी के बनने का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है. धीरे-धीरे विकास के साथ ये परंपरा खोती गई.
‘नीली दिल्ली प्यासी दिल्ली’ के लेखक आदित्य अवस्थी अपनी किताब में लिखते हैं- महरौली को बावड़ियों का शहर कहा जा सकता है क्योंकि यहां करीब 4 बावड़ियां हैं. इन्हें राजों की बैन, गंधक की बावड़ी, कुतुबशाह की बावड़ी और औरंगजेब की बावड़ी के नाम से जाना जाता है. दिल्ली में कई ऐसी बावड़ियां हैं जिनको बने हुए 800 साल से ज्यादा हो गया. दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस से थोड़ी ही दूर उग्रसेन की बावड़ी है. हालांकि वक्त के साथ-साथ इसका पानी सूखता गया. वहीं दिल्ली की मशहूर खारी बावड़ी अब सिर्फ थोक बाजार बनकर रह गई है.
बावड़ियों का इस्तेमाल सिर्फ पानी के लिए ही नहीं बल्कि गर्मी से बचने के लिए भी किया जाता था. कई बावड़ियों के साथ सराय भी बनाई जाती थीं. मुगल काल में जब सुरक्षा की वजह से लोग काफिले में यात्राएं करते थे, तब दिन में यात्रा की जाती थी और रात में लोग आराम करते थे उस दौर में लोग बावड़ियों को ही अपना विश्राम स्थान बनाते थे. बावड़ियों के आसपास जमीन के अंदर बनाए गए बरामदों और कमरों में दिन की गर्मी से बचने लिए लोग रहते थे. दिल्ली के ऐतिहासिक मकबरों और मस्जिदों में भी कई बावड़ियां बनाई गईं. उस दौर में जल संरक्षण के लिए बावड़ियों निर्माण किया जाता था. ये बरसाती पानी का संचय करने के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती थीं.
कहां गए दिल्ली के तालाब
सेंटर फॉर यूथ कल्चर लॉ एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में करीब 1,001 तालाबों का सर्वेक्षण किया गया थे. जिसमें 302 जल निकायों पर अतिक्रमण कर लिया गया था. तो वहीं 100 सीवेज और कचरे से दूषित हो चुके थे और 345 पूरी तरह से सूखे गए थे. 2023 में जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक 216 वाटर बॉडीज इस्तेमाल के योग्य ही नहीं बची हैं. दिल्ली के तालाब मानसून के दौरान भर जाते थे, जिससे भूजल रिचार्ज होता था.
वहीं दिल्ली में 17 छोटी नदियां भी हुआ करती थीं, लेकिन आज की तारीख में ये नदियां गायब हो गई हैं. समस्या की शुरुआत तब से हुई जब जल संरचनाओं को बंद कर यहां ऊंची-ऊंची इमारतें और शॉपिंग मॉल्स बनाए जाने लगे. आज दिल्ली के शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में पानी का संकट है. एक वक्त ऐसा था जब टैंक और तालाब में पानी का संग्रह किया जाता था. दिल्ली की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए यमुना किनारे जल संरचनाएं बनाई गई थीं. इससे भूजल रिचार्ज होता था. ये आज भी संभव है इसके लिए ज्यादा पैसों की भी जरूरत नहीं होगी.
राजेंद्र सिंह बताते हैं दिल्ली में पानी की दो तरह की दिक्कत है एक बाढ़ की और दूसरी सूखे की. 50 सालों से दिल्ली इस परेशानी का सामना कर रही है. पहले दिल्ली में बावड़ी, ताल और पोखर हुआ करते थे. आज दिल्ली की बावड़ियां बिना पानी के हैं. दिल्ली में पानी का जो दोहन हो रहा है. उससे पूरा सिस्टम बिगड़ता जा रहा है.
इनवायरमेंट जर्नलिस्ट जूही बताती हैं प्राकृतिक संसाधनों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. साथ ही क्लाइमेट चेंज और अनियमित वर्षा और गर्मी के कारण भविष्य में यह समस्या और भी बढ़ सकती है. इसलिए हमें पानी के बेहतर प्रबंधन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है. अब लोगों को पानी के इस्तेमाल का तरीका सीखना होगा. दिल्ली में धीरे-धीरे पानी की समस्या बढ़ती ही जाएगी. इसलिए इसे संभालकर रखना होगा, वर्ना हालात और भी भयावह होंगे.