दो कांस्टेबलों की वजह से गई केंद्र सरकार ?

 दो कांस्टेबलों की वजह से गई केंद्र सरकार, गिरवी रखा गया सोना… कहानी देश के 9वें पीएम चंद्रशेखर सिंह की
जनता दल के गठबंधन की सरकार गिरने के बाद नवंबर 1990 में चंद्रशेखर को पीएम बनाया गया. उनकी सरकार को कांग्रेस का समर्थन था.

देश की राजनीति में साल 1991 का समय बेहद उथल-पुथल भरा रहा था. इतिहास के पन्नों में 1991 का साल न सिर्फ चंद्रशेखर सरकार के पतन के लिए याद किया जाता है बल्कि इसी साल पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. इतना ही नहीं इसी साल भारत को भारी आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ा था. 

इस पूरी कहानी की शुरुआत साल 1989 होती है. इस साल के लोकसभा चुनाव की चर्चा आज भी भारत की राजनीति में सबसे ज्यादा की जाती है. तब चुनाव में कांग्रेस 207 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी. हालांकि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. कांग्रेस के बाद दूसरे स्थान पर जनता दल थी, जिसे 85 सीटें मिली थी. इसके बाद बीजेपी और लेफ्ट पार्टियों ने जनता दल को समर्थन दिया और देश में गठबंधन की सरकार बन गयी. उस वक्त विश्वनाथ सिंह को पीएम पद सौंपा गया था.  

हालांकि ये सरकार ज्यादा दिन चल नहीं पाई. एक साल भी नहीं बीता था कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे पर रथयात्रा निकाल जाने पर जब जनता दल ने लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोका तो भारतीय जनता पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया और विश्वनाथ सिंह की सरकार गिर गयी. 

जनता दल के गठबंधन की सरकार गिरने के बाद नवंबर 1990 में चंद्रशेखर को पीएम बनाया गया. उनकी सरकार को कांग्रेस का समर्थन था. कई पुराने न्यूज आर्टिकल में इस बात का भी दावा किया गया है कि चंद्रशेखर ने पहले पीएम बनने से मना कर दिया, लेकिन राजीव गांधी के देश आर्थिक और राजनीतिक हालात पर चिंता जताने और उन्हें दोबारा बोलने पर वो मान गये थे.  

10 नवंबर 1990 को चंद्रशेखर भारत के 9वें प्रधानमंत्री बने. उस वक्त उन्होंने अफसरों को स्पष्ट निर्देश दिया था कि वह हर छोटी-छोटी बात उनके पास लेकर न आया करें. इतना ही नहीं उन्होंने अफसरों को उनकी समझ के आधार पर फैसला लेने की भी छूट दे दी थी.  

साल 1991 

2 मार्च 1991 को, हरियाणा के दो कांस्टेबल प्रेम सिंह और राज सिंह को राजीव गांधी के आवास के बाहर चाय पीता हुआ देखा गया. संदेहास्पद लगने के कारण उन्हें राजीव गांधी के घर के बाहर ‘जासूसी’ करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ किए जाने पर उन्होंने माना कि हरियाणा के पुलिस कांस्टेबल हैं और उन्हें जानकारी इकट्ठा करने के लिए भेजा गया था. 

इस बात का खुलासा होने के बाद कांग्रेस के नेताओं ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया और पीएम चंद्रशेखर पर राजीव गांधी की जासूसी करने का आरोप लगाया गया.

चंद्रशेखर ने अपनी किताब ‘जीवन जैसा जिया’ में पूरी घटना का जिक्र करते हुए लिखा है, ‘जब मुझे पुलिस कांस्टेबल के बारे में पता चला तो मैंने तुरंत इस पूरे मामले के जांच के आदेश दे दिये थे. मैंने हरियाणा के सीएम ओमप्रकाश चौटाला से इस पर कार्रवाई करने के लिए भी कहा. मेरे इस फैसले से कांग्रेस पार्टी के नेता उस वक्त तो संतुष्ट हो गये थे.’  

6 मार्च 1991 को कांग्रेस सरकार ने राजीव गांधी की सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन करने और पर जासूसी करने का आरोप लगाते हुए संसद का बहिष्कार किया. चंद्रशेखर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. कांग्रेस का समर्थन वापस लेने से चंद्रशेखर की सरकार अल्पमत में आ गई और सरकार बनने के 4 महीने बाद ही यानी 6 मार्च 1991 को चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे उनकी सरकार का पतन हो गया. 

हालांकि, इस सियासी घटनाक्रम के बाद देश में फिर लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान किया गया और नई सरकार बनने तक चंद्रशेखर को कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर कामकाज देखना पड़ा. इस तरह से वो करीब 8 महीनों के लिए देश के प्रधानमंत्री रहें.

राजीव गांधी की हत्या

चंद्रशेखर सरकार के गिरने के ढाई महीने बाद 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या कर दी गई. हत्या के वक्त राजीव तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली को संबोधित करने पहुंचे थे. मंच पर पहुंचने से पहले ही लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के आत्मघाती हमलावर ने विस्फोटक उपकरण से हमला किया और उसमें राजीव गांधी की मौत हो गई. 

आर्थिक संकट का सामना

चंद्रशेखर सरकार के पतन के वक्त भारत गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था. विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका था, उस वक्त भारत पूरी तरह दिवालिया होने के कगार पर था. इस संकट को संभालने के लिए सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक के जरिए लगभग 67 टन सोना अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और बैंक ऑफ इंग्लैंड के पास गिरवी रखा. इससे प्राप्त विदेशी मुद्रा ने देश को आवश्यक आयात करने और आर्थिक स्थिरता हासिल करने में मदद की. 

क्यों दिवालिया होने के कगार पर था भारत 

दरअसल 1980 के दशक में भारत ने बड़े पैमाने पर विदेशी लोन लिया था, जिसे चुकाने में कठिनाई हो रही थी. साथ ही उस वक्त भारत का देश राजकोषीय घाटा भी उच्च स्तर पर था, जिससे अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त दबाव पड़ा. 

इस बीच साल 1990 से 91 में खाड़ी युद्ध के कारण दुनियाभर में तेल की कीमतें बढ़ा दी गई थी, जिसका असर भारत पर भी पड़ा और देश का आयात बिल बढ़ गया. इसने विदेशी मुद्रा भंडार को और भी कम कर दिया.

चंद्रशेखर की सरकार गिरने के बाद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ कुछ और दिनों के आयात को पूरा करने तक की बचा था. उस वक्त देश की स्थिति बेहद गंभीर थी और देश को तत्काल विदेशी मुद्रा की आवश्यकता थी.

ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक से लोने लेने के लिए अपने सोने के भंडार को गिरवी रखने का फैसला लिया था. मई और जून 1991 में यानी दो महीने के दौरान लगभग 67 टन सोना विदेशों में भेजा गया. 

कौन थे चंद्रशेखर 

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की इब्राहिमपट्टी गांव में जन्में चंद्रशेखर किसान परिवार से आते थे. उन्होंने अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई सतीश चंद्र पीजी कॉलेज से की थी. इसके बाद साल 1950 में उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से मास्टर किया. चंद्रशेखर को हमेशा से ही क्रांतिकारी विचारों और गर्म स्वभाव के कारण जाना जाता था. 

वह समाजवाद के मजबूत स्तंभ आचार्य नरेंद्र देव के शिष्य थे. छात्र जीवन में ही वो समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए थे. स्टूडेंट पॉलिटिक्स में उनकी पहचान एक फायरब्रांड नेता तौर पर थी. चंद्रशेखर ने अपना राजनीतिक करियर राम मनोहर लोहिया के साथ शुरू किया था. चंद्रशेखर बलिया से ही  8 बार सांसद रहे थे. 

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