सफेदपोशों  का काला खेल !

लालच बुरी बला: सफेदपोशों के भ्रष्टाचार से जब शर्मिंदा हुआ भारत
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, एक आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर है. लेकिन इस रास्ते में सफेदपोश अपराधों का जाल एक बड़ी रुकावट बनकर खड़ा है.
सफेदपोशों  का काला खेल !

दशकों से भारत सफेदपोशों के अपराध और भ्रष्टाचार के घोटालों से जूझ रहा है. इन अपराधों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर असर पड़ता है, जनता का भरोसा कम होता जाता है और दुनियाभर में भारत की छवि खराब होती है.

ये अपराध आम चोर-उचक्कों वाले नहीं हैं, बल्कि इन्हें अक्सर बड़े बिजनेसमेन या ऊंचे पदों पर बैठे लोग करते हैं. वो अपने फायदे के लिए पैसे की हेराफेरी करते हैं, रिश्वत लेते हैं या धोखाधड़ी करके पैसा लूटते हैं. इनमें आमतौर पर हिंसा शामिल नहीं होती.

भारत में सबसे ज्यादा होने वाले सफेदपोश अपराध- धोखाधड़ी, गबन, काला धन जमा करना, इनसाइडर ट्रेडिंग, टैक्स चोरी, नकली करेंसी छापना, साइबर अपराध.

आम अपराधों से ज्यादा खतरनाक?
सफेदपोश अपराध आम अपराधों से ज्यादा खतरनाक होते हैं क्योंकि ये समाज की जड़ों को हिला देते हैं. अमीर और गरीब के बीच की खाई को चौड़ा कर देते हैं. एक लोकतांत्रिक देश के लिए जहां हर किसी को बराबर हक होना चाहिए, ये सफेदपोश अपराध नैतिकता की धज्जियां उड़ा देते हैं.

कई बार ये अपराध इसलिए होते हैं क्योंकि लोग ज्यादा पैसा कमाने की लालच में आ जाते हैं. सरकारी दफ्तरों में कमजोर व्यवस्था का भी इसमें फायदा उठाया जाता है. साथ ही ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के गलत कामों को नजरअंदाज कर दिया जाता है.

21वीं सदी का भारत एक तरफ तो तरक्की की राह पर है, वहीं दूसरी तरफ सफेदपोश अपराधों के दलदल में भी फंसा हुआ है. इस स्पेशल स्टोरी में समझिए कि आखिर देश में इस तरह के अपराध कितने फैले हुए हैं. साथ ही भारत में हुए कुछ बड़े सफेदपोश अपराधों के बारें में जानते हैं.

हर्षद मेहता का शेयर बाजार घोटाला: जब धराशायी हुआ बाजार
ये घोटाला हर्षद मेहता नाम के एक शेयर ब्रोकर ने किया था. उसने बैंकों के भ्रष्ट अधिकारियों से मिलीभगत कर फर्जी चेक बनवाए, बाजार के नियमों का गलत फायदा उठाया और शेयरों की कीमतें बढ़ाने के लिए झूठे दावे किए. कुछ शेयरों की कीमत तो असली दाम से 40 गुना ज्यादा कर दी गई.

हर्षद मेहता ने बैंकों को चूना लगाकर शेयर बाजार में एक बड़ा घोटाला किया था. उसने बैंकों से भारी मात्रा में कर्ज लिया. फिर उस कर्ज के पैसों से उसने शेयर खरीदे. ये शेयर उसने बहुत ऊंची कीमत पर खरीदे. इसका असर ये हुआ कि बाजार में अचानक से बहुत पैसा आ गया जिससे शेयरों की कीमतें तेजी से बढ़ने लगीं. आम लोगों को लगा कि शेयर बाजार आसमान छू रहा है और वो भी शेयर खरीदने लगे.

असल में हर्षद ने जो पैसा लिया था वो तो बैंकों का था. उसने यही कर्ज का पैसा शेयर बाजार में लगा दिया था, जो कि बिल्कुल गैरकानूनी था. ये पूरा मनी लॉन्ड्रिंग (काले धन को सफेद बनाना) का मामला था. जब अप्रैल 1992 में इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ तो भारतीय शेयर बाजार धड़ाम से गिर गया. करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ और कई निवेशक बर्बाद हो गए. हर्षद मेहता के इस घोटाले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया. इस घोटाले में लगभग 5000 करोड़ रुपये का घपला हुआ था. 

इस घोटाले से भारतीय वित्तीय व्यवस्था में मौजूद खामियां भी उजागर हुईं. इसके बाद, शेयर बाजार के लेन-देन के पूरे सिस्टम में सुधार किए गए, जिसमें ऑनलाइन सिस्टम भी शामिल हैं.

सत्यम घोटाला: फर्जी हिसाब की कहानी
साल 2010 तक ये भारत का सबसे बड़ा कॉर्पोरेट घोटाला था. सत्यम कंप्यूटर्स एक भारतीय आईटी कंपनी थी. इस कंपनी के मालिक और डायरेक्टरों ने मिलकर कंपनी के खातों में हेराफेरी की. उन्होंने कागजों पर ज्यादा मुनाफा दिखाया, शेयरों की कीमतें बढ़ा दीं और कंपनी के ही पैसों को चोरी कर लिया. ये चोरी किया हुआ पैसा ज्यादातर उन्होंने जमीन खरीदने में लगा दिया. कंपनी के असली आंकड़ों को छिपाकर फर्जी हिसाब बनाए.

असल में वह निवेशकों और शेयरधारकों को गुमराह करना चाहते थे. वह चाहते थे कि कंपनी की हालत बहुत अच्छी दिखे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग शेयर खरीदें. इसका नुकसान ये हुआ कि जब घोटाले की पोल खुली तो तहलका मच गया. शेयर का दाम तेजी से नीचे गिरा और निवेशकों को भारी नुकसान हुआ. इतना ही नहीं, इस घोटाले को साल 2009 की मंदी का एक बड़ा कारण भी माना जाता है. 

2008 के आखिर में हैदराबाद में जमीनों के दाम गिरने से ये पूरा घोटाला सामने आने लगा. 7 जनवरी 2009 को सत्यम कंप्यूटर्स के चेयरमैन ने इस्तीफा दे दिया. उन्होंने यह भी कबूल किया कि कंपनी के खातों में करीब 7000 करोड़ रुपये का हेरफेर किया गया था. इस खबर से पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया. फरवरी 2009 में सीबीआई ने इस मामले को अपने हाथ में ले लिया और साल भर में कई चार्जशीट दाखिल कीं. 10 अप्रैल 2015 को चेयरमैन रामलिंग राजू को 10 अन्य लोगों के साथ दोषी ठहराया गया.

शारदा चिट फंड घोटाला: झूठे वादों का बड़ा जाल
शारदा ग्रुप का ये चिटफंड घोटाला भारत के बड़े वित्तीय और कथित तौर पर राजनीतिक घोटालों में से एक है. ये असल में एक पोंजी स्कीम थी जिसे शारदा ग्रुप चलाती थी. इस ग्रुप में 200 से ज्यादा छोटी-छोटी कंपनियां शामिल थीं. ये ग्रुप लोगों को ऊंचा ब्याज देने का झांसा देकर उनसे जमा कराया हुआ पैसा वापस नहीं लौटा पाया. असल में ये एक पोंजी स्कीम थी यानी पुराने निवेशकों को नए लोगों के पैसों से भुगतान किया जाता था. 

कुछ समय तक तो शारदा ग्रुप लोगों को ब्याज देता रहा, जिससे लोगों को भरोसा हो गया. उन्होंने 17 लाख से भी ज्यादा लोगों से करीब 200-300 अरब रुपये जमा करा लिए. मगर अप्रैल 2013 में अचानक से ये कंपनी दिवालिया हो गई और लोगों का जमा किया हुआ पैसा डूब गया. इस घोटाले के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने जांच करवाई. चूंकि शारदा ग्रुप और ज्यादातर निवेशक पश्चिम बंगाल से ही थे. इसलिए वहां की सरकार ने एक जांच आयोग बनाया. साथ ही सरकार ने गरीब निवेशकों को कुछ राहत देने के लिए 5 अरब रुपये का फंड भी बनाया.    

इस घोटाले में कई बड़े लोगों को भी गिरफ्तार किया गया. इनमें पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के दो सांसद कुणाल घोष और श्रींजॉय बोस, पश्चिम बंगाल के पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP) रजत मजूमदार, एक बड़े फुटबॉल क्लब के अधिकारी देवाब्रता सरकार और तृणमूल कांग्रेस सरकार में खेल और परिवहन मंत्री मदन मित्रा शामिल थे. 

2G स्पेक्ट्रम घोटाला
ये घोटाला भारत के सबसे बड़े भ्रष्टाचार मामलों में से एक है. ये साल 2008 में टेलीकॉम लाइसेंस और स्पेक्ट्रम देने की प्रक्रिया से जुड़ा है. असल मसला ये था कि लाइसेंस देने का तरीका मनमाना और गुप्त रखा गया, जिसकी वजह से सरकार को भारी नुकसान हुआ और कुछ खास टेलीकॉम कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया.

CAG (कैग) के अनुसार, गलत दाम और गलत तरीके से स्पेक्ट्रम देने की वजह से सरकार को करीब 28 बिलियन डॉलर का घाटा हुआ. इस मामले की जांच सीबीआई ने की. जांच में कई बड़े लोग पकड़े गए, जिनमें उस वक्त के टेलीकॉम मिनिस्टर ए. राजा भी शामिल थे. यह मामला दिखाता है कि कैसे नेताओं का भ्रष्टाचार, गलत नीतियों और फायदे पहुंचाने के चक्कर में नियमों को तोड़ा गया. इससे न सिर्फ अर्थव्यवस्था, बल्कि पूरे देश की शासन व्यवस्था पर भी धब्बा लगा.

2010 का कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला
कॉमनवेल्थ गेम्स हर चार साल में होने वाला एक इंटरनेशनल इवेंट है. साल 2010 में भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स कराने का मौका मिला. ये फैसला कॉमनवेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के वोटिंग सिस्टम से हुआ था. उस वक्त ऑर्गेनाइजेशन कमेटी के चेयरमैन सुरेश कलमाडी थे.

ये कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला भारत के सबसे बड़े घोटालों में से एक था. ये घोटाला तो हर्षद मेहता घोटाले से भी बड़ा निकला. इसमें करीब 7000 करोड़ रुपये का गोलमाल हुआ और इसका मास्टरमाइंड सुरेश कलमाडी को माना गया. घोटाले की वजह से पूरे देश को शर्मिंदगी उठानी पड़ी. जो खेल करवाए गए वो बहुत ही घटिया किस्म के थे. इस्तेमाल होने वाला सामान भी खराब क्वालिटी का था. इतना ही नहीं खेलों से पहले जो पैसा इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए मंजूर हुआ था, उसका ज्यादातर हिस्सा इस्तेमाल ही नहीं किया गया. ऊपर से सामान सप्लाई करने वाली कंपनियों ने तो भारी रेट बताकर घटिया चीजें पहुंचा दी थी.  

विदेशों से जब खिलाड़ी आए तो उन्हें अपने रहने की जगह पर गंदगी, खराब शौचालय आदि देखकर बहुत खराब लगा. इससे भारत की दुनियाभर में फजीहत हुई. वहीं सुरेश कलमाडी जैसे बड़े अफसरों का घोटाले में शामिल होना भारत सरकार की छवि को और खराब कर गया. कलमाडी तब कांग्रेस पार्टी में थे, उन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उन्हें जेल जाना पड़ा था. हालांकि बाद में जमानत पर बाहर आ गए.

इनसाइडर ट्रेडिंग घोटाला: व्हाट्सएप लीक मामला
ये मामला श्रुति वोरा नाम की एक महिला से जुड़ा है जो एक स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी एंटिक स्टॉक ब्रोकिंग लिमिटेड में इंस्टीट्यूशनल सेल्स डिपार्टमेंट में काम करती थीं. श्रुति ने कई कंपनियों के बारे में गुप्त जानकारी (इनसाइडर जानकारी) व्हॉट्सऐप ग्रुप्स में फैलाई. ये कंपनियां थीं विप्रो, अंबुजा सीमेंट, माइंडट्री, बजाज ऑटो जैसी जानी-मानी कंपनियां. 

सेबी ने इस मामले की जांच की. जांच के दौरान उन्होंने 26 कंपनियों के दफ्तरों से 190 मोबाइल फोन, दस्तावेज और दूसरी चीजें जब्त कीं. ये कंपनियां उस मार्केट चैटर व्हॉट्सऐप ग्रुप की सदस्य थीं. सेबी ने श्रुति वोरा पर जुर्माना लगाया क्योंकि उन्होंने इन कंपनियों के आने वाले फाइनेंशियल परफॉरमेंस के बारे में गुप्त जानकारी व्हॉट्सऐप पर शेयर की. इतना ही नहीं, दूसरे ब्रोकरेज फर्मों के एनालिस्ट पार्थिव दलाल और नीरज कुमार अग्रवाल पर भी जुर्माना लगाया गया. 

नीरव मोदी- पंजाब नेशनल बैंक घोटाला
ये भारत के बैंकिंग इतिहास का सबसे बड़ा घोटालों में से एक है. बात ये है कि मुंबई की पंजाब नेशनल बैंक ने 12000 करोड़ रुपये का फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) जारी कर दिया था. इस वजह से बैंक को इतनी बड़ी रकम का नुकसान हुआ. 

इस घोटाले का मास्टरमाइंड ज्वैलर और डिजाइनर नीरव मोदी बताया जाता है. नीरव मोदी के अलावा उनकी पत्नी एमी मोदी, भाई निशाल मोदी और मामा मेहुल चौकसी के साथ-साथ PNB के कुछ अधिकारी और कर्मचारी भी इस घोटाले में शामिल थे. सीबीआई ने इन सभी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है. 

नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए थे. घोटाले के सामने आने से पहले ही नीरव मोदी भारत छोड़कर चला गया था और बाद में मार्च 2019 में लंदन में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उसे वापस भारत लाने के लिए प्रत्यर्पण की कार्यवाही शुरू की गई थी. फरवरी 2018 से ही नीरव मोदी इंटरपोल की वांटेड लिस्ट में है. उस पर साजिश रचने, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और काले धन को सफेद करने जैसे कई आरोप हैं.

धोखाधड़ी में शामिल कुछ धन वापस पाने के लिए भारतीय अधिकारियों ने नीरव मोदी और उसकी कंपनियों की संपत्ति को जब्त कर लिया और उनकी नीलामी कर दी.

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