ग्वालियर-चंबल में सबसे ज्यादा मिलावट !
ग्वालियर-चंबल में सबसे ज्यादा मिलावट, यहां पांच साल में फूड लैब शुरू नहीं कर पाई सरकार
लैब के अटकने के पीछे महज ढाई करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत न होना है। दरअसल में इस राशि से एयर कंडीशनर और जनरेटर सिस्टम लगना है, राशि स्वीकृत न होने के कारण यह नहीं लग पाए, इसलिए भवन तैयार होने के बाद भी उसमें लैब शुरू नहीं हो सकी है। खाद्य पदार्थों की मिलावट की जांच के लिए ग्वालियर अंचल के जिलों को भोपाल की लैब के भरोसे हीरहनापडरहाहै।
- जनरेटर सिस्टम में फंसकर रह गई लैब, ढाई करोड़ की स्वीकृति में अटका काम
- पांच साल पहले हुआ फूड लैबोरेटरी का शिलान्यास
- 90 फीसदी बनकर तैयार हो गई है लैब
खुद कांग्रेस में रहने के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसका भूमिपूजन तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री तुलसीराम सिलावट के साथ किया था। अब सिंधिया भाजपा सरकार में केंद्रीय मंत्री और सिलावट वर्तमान राज्य सरकार में मंत्री हैं, बावजूद इसके फूड लैब अटकी पड़ी है।
लैब के अटकने के पीछे महज ढाई करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत न होना है। दरअसल में इस राशि से एयर कंडीशनर और जनरेटर सिस्टम लगना है, लेकिन राशि स्वीकृत न होने के कारण यह नहीं लग पाए, इसलिए भवन तैयार होने के बाद भी उसमें लैब शुरू नहीं हो सकी है। ऐसे में खाद्य पदार्थों की मिलावट की जांच के लिए ग्वालियर अंचल के जिलों को भोपाल की लैब के भरोसे ही रहना पड़ रहा है।
क्या नुकसान..:
ग्वालियर चंबल अंचल में मिलावट बड़े पैमाने पर की जा रही है, अब आगामी दिनों में रक्षाबंधन का त्योहार भी आ रहा है। वर्तमान में वर्षा के समय में भी खानपान को लेकर सतर्कता बरतने की जरूरत होती है। ऐसे में सभी सैंपल भोपाल भेजने पड़ते हैं, वहां पूरे प्रदेश का लोड होने से रिपोर्ट देर से आती है और इस कारण कार्रवाई से लेकर जुर्माने तक की प्रक्रिया सुस्त होती है। इसका सीधा लाभ मिलावटखोरों को मिलता है।
वर्ष 2019 में हुआ था भूमि पूजन
वर्ष 2019 में हुआ था भूमिपूजन फूड एण्ड ड्रग लैब का भूमिपूजन वर्ष 2019 में हुआ था। लैब वर्ष 2022 तक तैयार होना थी। समय सीमा खत्म होने के दो साल बाद भी लैब शुरू होने का इंतजार किया जा रहा है। निर्माण एजेंसी हाउसिंग बोर्ड के अफसर एयर कंडीशनर और जनरेटर सिस्टम के लिए राशि की मांग कर चुके हैं।
इसके लिए उन्होंने कई बार पत्राचार किए, लेकिन राशि अब तक मंजूर नहीं हो सकी। इतना ही नहीं पहले दो करोड़ रुपये की लागत इन सिस्टम को लगाने में आ रही थी, लेकिन राशि स्वीकृत होने में देरी के चलते लागत राशि ढाई करोड़ पहुंच गई है।