निर्माण अनुमति की 28 शर्तें, एक भी पालन नहीं कराता नगर निगम

 निर्माण अनुमति की 28 शर्तें, एक भी पालन नहीं कराता नगर निगम
यहां तक कि शहर की 95 प्रतिशत इमारतों को कंप्लीशन सर्टिफिकेट तक जारी नहीं हुए हैं। कुछ गिनी-चुनी इमारतें और टाउनशिप हैं, जिन्हें नगर निगम से कंप्लीशन सर्टिफिकेट दिया गया है। दरअसल, नगर निगम द्वारा मध्यप्रदेश भूमि विकास नियम 2012 के अंतर्गत भवन निर्माण की अनुमति जारी की जाती है। इसमें प्लाट एरिया के हिसाब से फ्लोर एरिया रेशो (एफएआर), मिनिमम ओपन स्पेस (एमओएस) के साथ ही पूरी नापजोख होतीहै।
  1. निर्माण कार्य पूरा होने के 15 दिन में सूचना देने का है नियम
  2. कंप्लीशन सर्टिफिकेट नहीं लेते लोग, नियमों का पालन भी नहीं करते
  3. शहर की 95 प्रतिशत इमारतों को कंप्लीशन सर्टिफिकेट तक जारी नहीं हुए

ग्वालियर। शहर में भले ही स्वतंत्र आवास हों या मल्टी स्टोरी बिल्डिंग, इन्हें अनुमति देते समय 28 तरह की शर्तों का उल्लेख किया जाता है। इनमें निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद 15 दिन में सूचना देने के साथ ही पूर्णता प्रमाणपत्र (कंप्लीशन सर्टिफिकेट) प्राप्त करना शामिल है।

यहां तक कि शहर की 95 प्रतिशत इमारतों को कंप्लीशन सर्टिफिकेट तक जारी नहीं हुए हैं। कुछ गिनी-चुनी इमारतें और टाउनशिप हैं, जिन्हें नगर निगम से कंप्लीशन सर्टिफिकेट दिया गया है। दरअसल, नगर निगम द्वारा मध्यप्रदेश भूमि विकास नियम 2012 के अंतर्गत भवन निर्माण की अनुमति जारी की जाती है। इसमें प्लाट एरिया के हिसाब से फ्लोर एरिया रेशो (एफएआर), मिनिमम ओपन स्पेस (एमओएस) के साथ ही पूरी नापजोख होती है।

कायदे से जो अनुमति में उल्लेख होता है, उसी हिसाब से ग्राउंड फ्लोर से लेकर ऊपरी मंजिलों पर कवरेज रखी जानी चाहिए, लेकिन एक बार मंजूरी हाथ में आने के बाद संपत्ति स्वामी मनमर्जी से निर्माण करता है और निगम के अधिकारी भी अनुमति देने के बाद आंखें बंद किए बैठ जाते हैं।

यही कारण है कि कई बार छोटे साइज के प्लाटों पर भी डिब्बे पर डिब्बे जैसी मंजिलें तैयार हो जाती हैं, तो वहीं बड़े प्लाटों पर जो ओपन स्पेस या पार्किंग छोड़नी चाहिए, वह नहीं छोड़ी जाती। इसका खामियाजा इमारत के रहवासियों के साथ ही आसपास के लोगों को भी उठाना पड़ता है। इस मामले में निगम के वरिष्ठ से लेकर मैदानी स्तर तक के अधिकारी बहानेबाजी करते नजर आते हैं।

कंप्लीशन सर्टिफिकेट नहीं लेते लोग …

  • भवन निर्माण की प्रमुख शर्तों का पालन ही लोग नहीं करते हैं और न ही नगर निगम के अधिकारी इनका पालन सुनिश्चित कराते हैं। ऐसे में जब भवन बनकर तैयार होता है, तो न तो भवन स्वामी कंप्लीशन सर्टिफिकेट लेता है और न ही निगम द्वारा सर्टिफिकेट जारी किया जाता है।
  • यह पूरी प्रक्रिया मिलीभगत के तहत रोक दी जाती है। इसका कारण है कि न तो नक्शे के अनुसार भवन बनता है और न ही उसमें वाटर हार्वेस्टिंग से लेकर अग्निशमन तक की व्यवस्था होती है। निर्माण पूरा होने के बिल्डर खुद ही रजिस्ट्री कर फ्लैट बेच देते हैं और लोग उनमें रहने पहुंच जाते हैं।
ये रहती हैं भवन निर्माण की अनुमति की प्रमुख शर्तें, जिनका नहीं होता पालन
  • भवन निर्माण की अनुमति तीन साल के लिए मान्य होती है। निर्माण कार्य पूर्ण होने के 15 दिन में नगर निगम अधिकारी को सूचना देनी अनिवार्य है। निर्माण पूर्ण होने के बाद भवन को उपयोग में लाने की अनुमति भी प्राप्त करनी होती है। इसके बाद ही इमारत में लोग रह सकते हैं।
  • निर्माण करते समय मौके पर अनुमति के लिए लगाया गया नक्शा भी चस्पा होना चाहिए।
  • भवन निर्माण कार्य निगम के लाइसेंसी सुपरवाइजर, इंजीनियर तथा आर्किटेक्ट की देखरेख में स्वीकृति के अनुरूप करना अनिवार्य है। नियमों का पालन करने की जवाबदारी भी लाइसेंसी इंजीनियर और भवन निर्माता की होगी।
  • किसी भी प्रकार का संशोधन, आंतरिक परिवर्तन और परिवर्धन करने पर निगम से पुन: स्वीकृति लेनी होगी।
  • शर्तों का उल्लंघन करने पर भवन निर्माण अनुमति निलंबित या रिवोक की जा सकेगी।
  • वाटर हार्वेस्टिंग का प्रविधान होना अनिवार्य है। इसका सत्यापन कराने पर ही भवन पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा।
  • भवन में पार्किंग की व्यवस्था की जाएगी।
  • बहुआवासीय भवनों के निर्माण में जल और मल निकासी के लिए सेप्टिक टैंक का निर्माण कर केवल तरल जल, मल का निकास ही निगम की मुख्य ड्रेनेज लाइन से जोड़ने का प्रविधान है।
  • भवन निर्माण के दौरान स्ट्रक्चर के चारों तरफ पर्दे या जालियां लगानी जरूरी हैं। कोई भी निर्माण सामग्री रोड या गली में नहीं रखी जाएगी।
  • भवन में अग्निशमन की व्यवस्था करना जरूरी है। अग्निमशन व्यवस्था कर एनओसी लेने के बाद ही भवन के इस्तेमाल का प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा।
  • भवन स्वामी को निर्माण शुरू करने से पहले नगर निगम के अधिकारी को जानकारी देनी होगी।
  • प्लिंथ लेवल तक निर्माण होने के बाद निरीक्षण के लिए भवन अधिकारी को अनिवार्य रूप से सूचित करना होगा।

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