उत्तर प्रदेश : बीजेपी के लिए एक नहीं, कई मोर्चे पर अग्निपरीक्षा !

10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव: बीजेपी के लिए एक नहीं, कई मोर्चे पर अग्निपरीक्षा
यूपी की जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं उनमें से 5 सीटें ऐसी है जिस पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा था. अन्य पांच सीटें भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों के पास थी.

उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है. लोकसभा चुनाव में अगर बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल करने में नाकाम रही है, तो इसमें सबसे बड़ी भूमिका उत्तर प्रदेश की मानी जा रही है.

उत्तर प्रदेश वही राज्य है जहां कभी बीजेपी का वर्चस्व था लेकिन इस लोकसभा चुनाव में यही पार्टी दूसरे स्थान पर खिसक गई. इसके साथ ही पार्टी के भीतर समीक्षा और चिंतन का दौर शुरू हो गया. यूपी में बीजेपी के खराब प्रदर्शन को लेकर कहीं न कहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निशाने पर आ गए. वहीं यूपी के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी काफी एक्टिव हो गए हैं.

माना जा रहा है कि बीजेपी के अंदर ओबीसी नेता काफी चिंतित हैं. 18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे ने ओबीसी वोट को लेकर पार्टी की चिंता बढ़ा दी है. ओबीसी और दलित मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी से खिसक गया है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या बीजेपी 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जीत हासिल करने में कामयाब हो पाएगी. 

इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं कि 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा क्या है. 

BJP के लिए आसान नहीं उपचुनाव

यूपी की जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं उनमें से 5 सीटें ऐसी है जिस पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा था. अन्य पांच सीटें भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों के पास थी. इसका साफ मतलब है कि इस बार का मुकाबला बराबरी का होने वाला है. हालांकि इस बात से भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव के बाद इन सीटों के समीकरण बदल चुके हैं. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की न सिर्फ सीटें घटीं हैं बल्कि वोट शेयर भी गिरकर 41 प्रतिशत रह गया. 

इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव में SC-ST और OBC वोटर भी भारतीय जनता पार्टी से छिटका हुआ नजर आया, जिसके बाद ये माना जा सकता है कि उपचुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं होने वाला है.

10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव: बीजेपी के लिए एक नहीं, कई मोर्चे पर अग्निपरीक्षा

सीएम योगी की छवि

लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद से ही योगी आदित्यनाथ को राज्य में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए घेरा जा रहा है. पिछले कुछ महीनों में योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक विरोधी काफी एक्टिव हो गए हैं. विपक्षी नेताओं ने तो लगातार योगी को निशाने पर लिया ही है. खुद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य संगठन को सरकार से बड़ा बता चुके हैं. इतना ही नहीं, विधायक फतेह बहादुर, विधायक सुशील सिंह और विधायक रमेश चंद्र मिश्र प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठा चुके हैं.

इस बीच कई ऐसे मुद्दे भी चर्चा में रहें हैं जिसमें भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी पार्टियों ने बीजेपी के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है. उदाहरण के तौर पर कांवड़ यात्रा में रेहड़ी और दुकानों पर नाम लगाने वाले नियम को ही ले लीजिये.

इस नियम पर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया है लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस फैसले को पूरे यूपी में लागू करने का आदेश दे दिया था. उनके इस फैसले पर सपा, बसपा समेत तमाम विपक्षी दलों ने निशाना तो साधा ही था, साथ ही बीजेपी की सहयोगी पार्टियों ने भी इस आदेश पर आपत्ति जताते हुए इसे वापस लेने की मांग कर दी थी. 

इसके अलावा हाल ही में बजट 2024 में भी इस बार यूपी को लेकर कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई. जिसके बाद समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने योगी सरकार और केंद्र सरकार को बेरोजगारी के मुद्दे पर जमकर घेरा. अखिलेश ने कहा कि बजट में यूपी का जिक्र तक नहीं किया गया लगता है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार का बदला लिया जा रहा है.

पिछले डेढ़ महीने में केशव प्रसाद मौर्य ने कई अलग- अलग तारीखों पर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की. इन मुलाकातों से सीएम योगी आदित्यनाथ की कुर्सी पर संकट माना जा रहा है. यही मुद्दा दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उठाया था.

केजरीवाल ने कहा था कि अगर बीजेपी ये चुनाव जीत जाती है तो मेरे से लिखवा लो- दो महीने के अंदर उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल देंगे ये लोग. योगी आदित्यनाथ की राजनीति खत्म कर देंगे, उनको भी निपटा देंगे. 

ऐसे में इन 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती सभी सहयोगियों को साथ लेकर चलने की होगी. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले कुछ बैठकों में अपने तरीके से पार्टी कार्यकर्ताओं और नेतृत्व को ये समझाने की कोशिश कर भी रहे हैं कि जो हो चुका है, उसे भूलकर आगे की तैयारी में जुट जाना चाहिए. बीती बातों को तो बदला नहीं जा सकता, लिहाजा आने वाले चुनावों की तैयारी करनी चाहिये. 

केशव प्रसाद मौर्य के दावे

लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद से ही यूपी बीजेपी में हलचल कोई छुपी बात नहीं रह गई है. इसमें योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक आवाज जो सबसे ज्यादा मुखर रही है वह उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की. 

अब सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच की इस बढ़ती दूरी का विपक्ष फायदा उठाने की फिराक में है. दरअसल यूपी सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर सोमवार को डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से मुलाकात की, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया वायरल हो रही है, जिसके बाद समाजवादी पार्टी के नेता आईपी सिंह ने इस मुलाकात को लेकर बीजेपी पर तंज कसा और कहा कि केशव प्रसाद मौर्य अब सीएम योगी आदित्यनाथ से टक्कर लेने के लिए तैयार हो गए हैं. उन्होंने केशव प्रसाद मौर्य का स्वागत करते हुए कहा कि देखते हैं कि वो बीजेपी छोड़ते या सीएम योगी हटाए जाते हैं. 

यूपी की सियासत में चर्चा को इस बात की भी है कि योगी आदित्यनाथ के मुकाबले केशव प्रसाद मौर्य को मजबूत किया जा सकता है. मौर्य जिस तरीके  से हाल में मुखर थे और फिर अचानक से शांत हो गए, उससे भी इन चर्चाओं को बल मिला है. माना जा रहा है राज्य की सरकार और संगठन में आने वाले समय में भारी बदलाव होंगे, लेकिन वो बदलाव भी विधानसभा उपचुनाव के बाद ही होंगे. 

जिसका मतलब है कि 10 सीटों पर होने वाला उपचुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए एक बड़ी परीक्षा मानी जा रही. यही कारण है कि योगी तमाम विरोध के बाद भी पार्टी को एकजुट करने और 10 सीटों पर जीत हासिल करने की तैयारी में जुटे हुए हैं. 

10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव: बीजेपी के लिए एक नहीं, कई मोर्चे पर अग्निपरीक्षा

जातीय वोटों का समीकरण

1. कटेहरी- पूर्वांचल की इस सीट पर यादव और दलितों का अच्छा प्रभाव है. यह सीट समाजवादी पार्टी नेता लालजी वर्मा के अंबेडकर नगर से लोकसभा चुनाव जीत जाने के बाद खाली हुई है. यहां पर साल 2012 में सपा और साल 2017 में बसपा की जीती हुई थी. वहीं साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट पर सपा ने कड़े मुकाबले में निषाद पार्टी को हराया था. यूपी की कटेहरी सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने 24 प्रतिशत वोट हासिल कर निषाद पार्टी का खेल बिगाड़ दिया था. यह सपा की ‘मजबूत’ सीट है. 

2. करहल- करहल सीट मैनपुरी लोकसभा के अंतर्गत आती है और इस सीट पर पारंपरिक रूप से यादव परिवार ही जीतते रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी इतिहास में यह सीट कभी नहीं जीती है.

करहल सीट समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के इस्तीफा देने से खाली हो गई थी. क्योंकि अखिलेश 18वीं लोकसभा चुनाव में कन्नौज से जीत गए थे. यह सपा की बहुत मजबूत गढ़ माना जाता है,  क्योंकि सपा न पिछले तीन चुनावों में हर बार यह सीट जीती है. इस सीट पर साल 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश 67,500 वोटों के बड़े अंतर से जीते थे. 

3. मिल्कीपुर- समाजवादी पार्टी के नेता अवधेश प्रसाद के इस्तीफे के बाद इस सीट पर उपचुनाव होने वाला है. साल 2012 में मिल्कीपुर में समाजवादी पार्टी और साल 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की थी. वहीं साल 2022 में समाजवादी पार्टी ने कड़े मुकाबले में छह फीसदी के जीत अंतर के साथ बीजेपी को हराकर सीट दोबारा हासिल कर ली. उस चुनाव में बसपा ने 7 प्रतिशत वोट हासिल कर बीजेपी का खेल बिगाड़ दिया था. यह समाजवादी पार्टी की ‘मजबूत’ सीट है. इसमें ब्राह्मणों और दलितों का अच्छा प्रभाव है.

4. मीरापुर- इस सीट पर जाटों और मुसलमानों का अच्छा प्रभाव है. मीरापुर सीट रालोद के चंदन चौहान के सांसद चुने जाने और इस्तीफे के बाद खाली हुआ है. यहां साल 2012 में सपा-बसपा की जीत हुई थी. जबकि साल 2017 यहां बीजेपी ने जीती हासिल की थी. पिछले विधानसभा चुनाव यानी साल 2022 में आरएलडी ने एसपी के साथ गठबंधन कर ये सीट हासिल की थी.

5. गाजियाबाद- यहां जाटों और वैश्यों का अच्छा प्रभाव है. इस सीट पर सपा ने आखिरी बार साल 2004 में जीत हासिल की है. इस्तीफे से पहले यहां भाजपा के नेता विधायक थे. अतुल गर्ग ने गाजियाबाद से लोकसभा का चुनाव जीता जिसके बाद ये सीट खाली हुई है. इस सीट पर साल 2012 में यह बसपा और साल 2017 में बीजेपी ने जीती थी. वहीं पिछले विधानसभा चुनाव यानी साल 2022 में भारतीय जनता पार्टी ने 1 लाख से ज्यादा वोटों के भारी अंतर से सीट बरकरार रखी थी. यह बीजेपी की ‘मजबूत’ सीट है. 

6. मझावां- मझावां भारतीय जनता पार्टी की मजबूत सीट है. इसमें यादव, मौर्य, निषाद, दलित, ब्राह्मणों का अच्छा प्रभाव है. यहां उपचुनाव होने का कारण  निषाद पार्टी के विनोद कुमार बिंद का भदोही सीट से लोकसभा चुनाव जीतना और इस्तीफा देना है. मझावां सीट साल 2012 में बहुजन समाज पार्टी और साल 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने जीती थी. साल 2022 में भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी निषाद ने समाजवादी पार्टी को हराकर ये सीट जीती. 

7. सीसामऊ- यहां मुसलमानों, ब्राह्मणों, दलितों का अच्छा प्रभाव है. यह सीट कानपुर लोकसभा के अंतर्गत आती है. समाजवादी पार्टी विधायक इरफान सोलंकी के दोषी साबित होने के यूपी की सीसामऊ सीट खाली हुई है. इसे सीट को समाजवादी पार्टी की ‘बहुत मजबूत सीट’ मानी जाती है क्योंकि पिछले तीन विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने यहां जीत हासिल की है. 

8. खैर- यह बीजेपी की ‘मजबूत’ सीट है. इसमें जाटों, ब्राह्मणों, दलितों और मुसलमानों का अच्छा प्रभाव है. फिलहाल विधानसभा की ये सीट बीजेपी के अनूप सिंह के हाथरस से लोकसभा चुनाव जीतने के कारण खाली है. उन्होंने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. 

यहां साल 2012 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी और 2017 में बीजेपी ने जीत हुई थी. वहीं साल 2022 में, भारतीय जनता पार्टी ने कड़े मुकाबले में 30 फीसदी के आसान जीत अंतर के साथ बहुजन समाज पार्टी को हराकर सीट बरकरार रखी थी. 

9. फूलपुर- इस सीट पर यहां यादवों और दलितों का अच्छा प्रभाव है. ये सीट प्रवीण पटेल के सांसद चुने जाने के बाद ये खाली थी. साल 2012 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी और 2017 में बीजेपी को जीती मिली थी. वहीं साल 2022 में भारतीय जनता पार्टी ने कड़े मुकाबले में एक फीसदी के जीत अंतर के साथ एसपी को हराकर सीट बरकरार रखी. यहां यादवों और दलितों का अच्छा प्रभाव है.

10. कुंदरकी- यह समाजवादी पार्टी की बहुत मजबूत सीट है. सपा यहां 2012, 2017 और 2022 में जीती है.2022 में एसपी ने बीजेपी को 16 फीसदी के जीत अंतर से हराकर सीट बरकरार रखी. 

इस जाति के नेता परेशान

भारतीय जनता पार्टी के कुर्मी, मौर्य, राजभर और पासी समाज के नेता परेशान दिखाई दे रहे हैं. लोकसभ चुनाव के नतीजे से पता चलता है कि राज्य का ये वर्ग बीजेपी से ख़ासा दूर हुआ है. ये वर्ग साल 2014 से भारतीय जनता पार्टी के साथ थे और साल 2022 य़ानी पिछले विधानसभा चुनाव तक एकजुट तरीक़े से बीजेपी के जीत में अहम भूमिका निभाता रहा.

लेकिन अब ये वर्ग दूर हो रहा है. बीजेपी और इन नेताओं के सामने चुनौती है कि कैसे इस वर्ग को वापस लाया जाए. बीजेपी ने ओबीसी विभाग की बैठक बुलाकर नेताओं से कहा है कि वो अपने समाज को फिर से पार्टी के साथ जोड़ें. लेकिन ये रास्ता इतना आसान नहीं है.

10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की वजह

उत्तर प्रदेश की मझवां, गाजियाबाद, मीरापुर, करहल, फूलपुर, कुंदरकी, कटेहरी, मिल्कीपुर, और खैर विधानसभा सीटों के विधायक ने लोकसभा चुनाव जीतने के बाद इस्तीफा दे दिया. जिसके कारण इन सीटों पर उपचुनाव होना है. वहीं कानपुर की सीसामऊ सीट के विधायक इरफान सोलंकी को 2 साल पुराने आगजनी के मामले में 7 साल की सजा सुनाई गई जिसके बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई.

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