चरमराती शिक्षा व्यवस्था के बीच आशंकाओं से घिरा देश का भविष्य..!

नीट मामला: चरमराती शिक्षा व्यवस्था के बीच आशंकाओं से घिरा देश का भविष्य..!
CBI की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के छात्रों को नीट का पेपर 35 से 40 लाख रुपये में बेचा गया है।
महानायक अमिताभ बच्चन की फिल्म “बदला” का एक लोकप्रिय डॉयलाग है कि “सच वही है जिसे आप साबित कर सकते हैं”।  

नीट पेपर लीक मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने 22 जुलाई को पांचवी सुनवाई में ये आदेश दिया कि नीट की परीक्षा दोबारा नहीं होगी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जे बी पादरीवाला की बेंच ने यह निर्णय सुनाया है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा-

“परीक्षा में बड़े स्तर पर धांधली होने के पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं”।

आपको बता दें सीबीआई की जांच में ये पता चला है कि पटना और हजारीबाग में पेपर लीक हुआ है और इस धांधली में अब तक 155 छात्रों को फायदा पहुंचाने की पुष्टि की गई है।

खैर, इस पूरे मामले में देखा जाए तो विवाद सिर्फ पेपर लीक होने तक का ही नहीं है बल्कि कुछ सेंटर पर पेपर लेट मिलना, नीट परीक्षा में पहली बार ग्रेस नंबर देना, परीक्षा में एक प्रश्न का गलत उत्तर जांचना, तय समय से पहले परीक्षा परिणाम को घोषित करना, आदि।

50 लाख में बेचे गए थे पेपर

बहरहाल, नीट परीक्षा की नियति तय हो चुकी है और इस पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही अपना फैसला सुना चुकी है। नीट का फाइनल रिजल्ट घोषित हो चुका है। देशभर में काउंसलिंग की तैयारी चल रही है, जिनके नंबर कटऑफ से अधिक हैं, उनके लिए यह उत्साह का विषय है लेकिन जिनके नंबर कटऑफ से थोड़े बहुत कम हैं उनके पास सिस्टम और किस्मत को कोसने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

सीबीआई की जांच और आगे बढ़ी है जिसमें ये खुलासा हुआ है कि पेपर कितने में बेचे गए थे। CBI की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के छात्रों को नीट का पेपर 35 से 40 लाख रुपये में बेचा गया है। वहीं बाहरी छात्रों को 55 से 60 लाख रुपये में बेचा गया है।

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यह मानसिक दबाव बहुत से बच्चों के लिए एंजाइटी और डिप्रेशन का कारण बन रहा है।
क्या होता अगर निर्णय विद्यार्थियों के पक्ष में होता?
तीन तलाक, आर्टिकल 370, राम मंदिर, निजता का अधिकार ये वो कुछ केस हैं जिनके बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देशभर ने सराहा है। कल्पना कीजिए कि नीट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय दिया है, वो न होकर निर्णय कुछ और होता। मान लीजिए सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्णय दिया होता कि “नीट की परीक्षा में धांधली होने के कुछ सबूत मिले हैं, जिसे मद्दे नजर रखते हुए ये कोर्ट इस परीक्षा को दोबारा कराने का आदेश देती है”, फिर परिदृश्य कैसा होता?

दरअसल, इस निर्णय के बाद देश के हर पेपर लीक के मामले में सभी परिक्षार्थियों की सुप्रीम कोर्ट से उम्मीदें और बढ़ जातीं। देश के लगभग सभी दिग्गज लोग इस निर्णय को ऐतिहासिक बता कर सराह रहे होते। नीट में बैठने वाले सभी परीक्षार्थियों को ये भरोसा होता की उनकी कॉपी की मूल्यांकन ईमानदारी से हुई है, पर अफसोस ऐसा नहीं हुआ।

एक अंग्रेजी वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 वर्षों यानी 2019 से अब तक कुल 65 पेपर लीक हुए हैं। अगर विगत् दो महीने की परीक्षाओं की बात की जाए तो जितनी भी प्रतियोगी परीक्षाएं हुई हैं, उनमें से लगभग सभी पर कुछ न कुछ धांधली के आरोप लगे हैं। मसलन यूजीसी-नेट (UGC NET), संयुक्त सीएसआईआर-यूजीसी-नेट (CSIR-UGC-NET), नीट-पीजी (NEET-PG), सीयूईटी-यूजी (CUET-UG) और एनसीईटी (NCET)।
सोचकर देखिए कि पिछले दो महीने में पांच परीक्षाएं होनी थी जिनमें से तीन पर सीधे तौर पर पेपर लीक के आशंका जताई गई है। हालांकि, अच्छी खबर ये है कि इनमें से सभी को निर्धारित तिथि के एक से दो दिन पहले आकस्मिक नोटिस जारी करके इस स्थगित किया गया है।

पिछले कई दशकों में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक ही टाइमलाइन में इतनी परीक्षाएं एक साथ टली हों। वर्तमान में यूजीसी-नेट (UGC NET) की परीक्षा 25 और 27 जुलाई के बीच आयोजित की गई, जिसमें कई सेंटर पर नकल करते विद्यार्थियों के विडियो लीक हुए हैं, जिसकी वजह से यूजीसी-नेट (UGC NET) की परीक्षा भी सुर्खियों में चल रहा है।

ऐसे में ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्तमान में प्रतियोगी परीक्षाओं विश्वसनीयता कैसी बच गई है।

क्या सच में नहीं हो सकती नीट की परीक्षा?
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने नीट मामले का निर्णय सुनाते हुए कहा- 
“परीक्षा में बड़े स्तर पर धांधली होने के पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं”।
जाहिर है इससे एक बात तो स्पष्ट है कि धांधली बड़े स्तर पर तो नहीं लेकिन छोटे स्तर पर जरूर हुई है। और वैसे भी अभी CBI की जांच जारी है जिसमें हर दिन कुछ न कुछ चौंका देने वाले खुलासे हो रहे हैं। हालांकि कई विद्यार्थियों ने इस पर रिव्यू पिटिशन डाला है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

अब बड़ा सवाल ये है कि क्या सच में नीट की परीक्षा दोबारा नहीं हो सकती थी? आइए इसका जवाब ढूंढते हैं। सबसे पहली बात, जिस देश में चुनाव में 100 करोड़ से अधिक लोगों का निष्पक्ष तरीके से वोटिंग कराया जाता है, क्या उस देश में ईमानदारी से 23 लाख बच्चों का परीक्षा नहीं कराया जा सकता है।

दूसरी बात इन 23 लाख बच्चों से 1200 से 1700 रुपये की फॉर्म फीस ली जाती है। अगर औसत 1300 रुपये की फॉर्म फीस मानें तो 23 लाख बच्चों से एनटीए लगभग 400 करोड़ रुपये प्राप्त किया है।

आज जिस समय देश में हर 3 में 2 परीक्षाओं पर पेपर लीक के आरोप हैं, वहां नीट की परीक्षा को दोबारा कराकर परीक्षा की साख नहीं बचाया जा सकता था?

बहरहाल आज देश में शिक्षा व्यवस्था की हालत ये हो गई है कि विद्यार्थियों को किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के निष्पक्षता पर यकीन ना के बराबर रह गया है।

इन सब के बाद देश का एक तबका ऐसा भी है जो ये मानता है कि विद्यार्थियों ने फालतू में कोर्ट का समय बर्बाद किया है। सीएसआईआर नेट (CSIR NET), यूजीसी नेट (UGC NET), एनसीईटी(NCET), एनईईटी पीजी(NEET PG) सिर्फ इसलिए टालना पड़ा क्योंकि इन परीक्षाओं को होने से पहले इनके पेपर लीक होने की आशंका थी।

ऐसे में इन परीक्षा को कंडक्ट कराने वाले बॉडी को अंदाजा था कि अगर ये परीक्षा हो गई और पेपर लीक का मामला सामने आया तो मामला और गंभीर हो सकता है, इसलिए इन परीक्षाओं को टालना पड़ा। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि नीट परीक्षा में बच्चों का कोर्ट पहुंचना कितना फायदेमंद रहा है।

अब जरा कल्पना करिए कि बच्चों ने अगर नीट परीक्षा में कोर्ट में पीआईएल नहीं डाला होता तो क्या एक ही टाइमलाइन में इतने परीक्षाओं को टाला गया होता? यहां पर एक सवाल और उठता है कि क्या हमारे देश में जो प्रतियोगी परीक्षाएं होती हैं वो निष्पक्ष होती हैं? 

री नीट न होने से मानसिक दु्ष्प्रभाव?
नीट एक ऐसी परीक्षा है जिसमें अधिकतम उम्र की कोई भी सीमा नहीं है। इस परीक्षा में किसी भी उम्र के लोग हिस्सा ले सकते हैं। यही कारण है कि नीट के परिणाम घोषित होने के बाद ऐसे कई उदाहरण सामने आते हैं जिसमें 7 साल 8 साल तक तैयारी करने वाले अभ्यर्थी भी क्वालीफाई करते हैं।

नीट की परीक्षा में बैठने वाले ज्यादातर विद्यार्थियों का MBBS में दाखिला लेने का सपना होता है। जनरल कैटेगरी के लिए हर साल का औसतन कट ऑफ लगभग 600 नंबर होता है, लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए इस बार अनुमान है कि यह कट ऑफ 650 से भी अधिक जाने वाला है। यह अपने आप में बहुत गंभीर बात है कि सिर्फ एक ही साल में कट ऑफ 50 नंबर का छलांग लगा लेगा। ऐसे में परीक्षा में बैठे हुए मेहनती विद्यार्थियों के लिए यह किसी ट्रॉमा से कम नहीं है।

यह मानसिक दबाव बहुत से बच्चों के लिए एंजाइटी और डिप्रेशन का कारण बन रहा है। जिन छात्रों के अंक 600 से 650 के बीच हैं, उन्हें अच्छे कॉलेज मिलने की संभावना कम हो गई है।

पिछले साल तक इन अंकों पर देश के टॉप कॉलेज मिल जाते थे। जिसकी वजह से कई छात्रों को अगले साल NEET देना पड़ेगा, क्योंकि इस साल उन्हें अच्छे कॉलेज नहीं मिल पा रहे हैं।

जिन छात्रों ने कई सालों से NEET की मेहनत से तैयारी की है और उन्हें इस बार भी सफलता नहीं मिली है, वे मानसिक रूप से टूट सकते हैं। खासकर उन छात्रों के लिए, जिन्होंने कई बार ड्रॉप लेकर तैयारी की है, यह एक बड़ा झटका होगा। इन सभी घटनाक्रम के बाद छात्रों और उनके अभिभावकों का परीक्षा प्रणाली और NTA पर विश्वास कम हो गया है।

आखिर क्या सबक मिलता है?
नीट का मामला इस बात का बहुत बड़ा उदाहरण है कि शिक्षा व्यवस्था किस स्तर पर चरमराई हुई है। नीट की परीक्षा राष्ट्रीय स्तर होती है, यदि इतने ऊँचे स्तर पर इस तरह की चीजें सामने आ रही हैं तो राज्य या निचले स्तर पर क्या स्थिति होगी। बड़ी बात यह है कि इस बार जब मामला इतना तूल पकड़ा है तब जाकर इतनी चीजें सामने आई हैं, अब तक नजानें कितने ऐसे अभ्यर्थी होंगे जिनका भविष्य जानें-अनजाने सिस्टम की भेंट चढ़ गया होगा। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि “हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था सिर्फ डिग्री देने मात्र की संस्था रह गई है”। इसलिए एक सवाल ये भी उठता है कि शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेने के बाद क्या सच में लोग शिक्षा से सीख रहे हैं या सिर्फ शिक्षित लोगों की जनगणना की संख्या का हिस्सा मात्र हैं, सरकारें जिस स्किल इंडिया के सपने दिखा रही है उसे साकार करने के लिए कितनी सक्षम होगी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
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