वक्फ बोर्ड में ये होंगे 10 सबसे बड़े बदलाव, नए कानून कैसे आम मुसलमानों को करेंगे प्रभावित

वक्फ बोर्ड में ये होंगे 10 सबसे बड़े बदलाव, नए कानून कैसे आम मुसलमानों को करेंगे प्रभावित

केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्ष के जोरदार विरोध के बीच वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 को लोकसभा में पेश कर दिया। केंद्र सरकार का दावा है कि इस संशोधन में वक्फ बोर्ड के कानूनों को आधुनिक, लोकतांत्रिक और गरीब मुसलमानों के हितों के अनुरूप बनाने की कोशिश की गई है। मुस्लिम विद्वान मानते हैं कि वक्फ बोर्ड एक्ट का संशोधन मुस्लिम समुदाय पर दूरगामी असर डालेगा। अभी जो शुरुआती जानकारी मिली है, उसके अनुसार केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड एक्ट में निम्नलिखित प्रमुख बदलाव करने की बात कही है- 

1- नए वक्फ बोर्ड बिल में केंद्रीय और राज्यों के वक्फ बोर्ड में एक पूर्व जज को नियुक्त किये जाने का प्रस्ताव है। इस समय मानवाधिकार आयोग सहित कई बड़ी संस्थाओं के चेयरमैन के रूप में एक रिटायर्ड जज को नियुक्त किया जाता है। अब केंद्रीय वक्फ काउंसिल के मामले में भी इसी मॉडल को अपनाया जाएगा। इससे वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता और बेहतरी आएगी।    

2- केंद्र और राज्य के वक्फ बोर्ड में क्षेत्र का स्थानीय जनप्रतिनिधि (सांसद या विधायक) भी एक सदस्य होगा। वह किसी भी धर्म-समुदाय का हो सकता है। चूंकि जनप्रतिनिधि के तौर पर किसी भी धर्म-समुदाय के व्यक्ति का चुनाव हो सकता है, इस तरह वक्फ बोर्ड में गैर मुसलमानों का प्रवेश होगा। मुसलमानों की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल इसका विरोध कर सकते हैं। 

अभी इस समय पश्चिम बंगाल में मंदिरों का प्रबंधन करने वाली एक समिति का अध्यक्ष एक मुसलमान व्यक्ति को बनाया गया है। हिंदू समुदाय सहित विपक्ष की तमाम दलीलों के बाद भी ममता बनर्जी सरकार ने इसे बरकरार रखा है। केंद्रीय वक्फ बोर्ड में गैर मुसलमानों की नियुक्ति में यह एक आधार बन सकता है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी कहा है कि यह सोच बेहद दकियानूसी बात होगी कि किसी धर्म के हितों के संरक्षण के लिए किसी व्यक्ति को उसी समुदाय का होना आवश्यक है। इससे केंद्र सरकार का रुख समझ में आता है।     

3- केंद्र सरकार ने केंद्रीय वक्फ बोर्ड सहित राज्यों के वक्फ बोर्ड में दो-दो महिलाओं को अनिवार्य रूप से नियुक्त करने का प्रावधान किया है। इससे महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी और उन्हें सशक्त करने में मदद मिलेगी। 

4- वक्फ बोर्ड के कार्यकलाप को बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षित अधिकारियों को शामिल करने की बात कही गई है। इससे वक्फ बोर्ड के कामकाज में बेहतरी आएगी और वक्फ के मामले अनावश्यक रूप से कानूनी पचड़ों में नहीं फंसेंगे। 

5- आधुनिक तकनीकी का उपयोग करके वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की पूरी जानकारी डिजिटल की जाएगी। इससे वक्फ की संपत्तियों को किसी दूसरे के द्वारा कब्जा नहीं किया जा सकेगा। आरोप है कि अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी (दोनों अब मृतक) जैसे अपराधियों ने अपने सत्ता बल और बाहुबल का उपयोग करते हुए वक्फ बोर्ड की बेशकीमती जमीनों को हथिया लिया था। वक्फ की संपत्तियों के डिजिटलीकरण होने से इस तरह के अपराध रुकेंगे।  

6- वक्फ बोर्ड से संबंधित विवादों के मामले में काउंसिल को छह महीने के अंदर निर्णय देना अनिवार्य होगा। अपील करने के लिए अधिकतम तीन महीने का समय दिया गया है। इस समय केंद्र से लेकर राज्यों तक हजारों केस वक्फ बोर्ड के पास लंबित हैं। इससे उन गरीब लोगों को समय पर न्याय नहीं मिल पाता है, जो अपनी जमीन को वक्फ के कब्जे से मुक्त कराना चाहते हैं, या उस पर अपना कब्जा वापस पाना चाहते हैं। जानकारों का मानना है कि इस तरह का न्याय मांगने वालों में भी सबसे ज्यादा लोग गरीब मुसलमान ही होते हैं। 
 
जिले के कलेक्टर को अधिकार
7- इस बिल के प्रस्तावित बदलाव के अनुसार, अब जिले के कलेक्टर को यह बताने का अधिकार होगा कि कोई प्रॉपर्टी वक्फ बोर्ड की है, या नहीं। जिलाधिकारी किसी जमीन के वक्फ बोर्ड या सरकारी जमीन होने की आधिकारिक जानकारी दे सकेगा। चूंकि, जिलाधिकारी ही जमीनों के मामले में जिले का सबसे बड़ा अधिकारी होता है, और उसके पास संबंधित विभागों के माध्यम से किसी जमीन की असली हैसियत पता रहती है, माना जा रहा है कि इस बदलाव के बाद किसी जमीन को गैरकानूनी तरीके से वक्फ बोर्ड की नहीं बताया जा सकेगा। इससे वक्फ बोर्ड के जमीन से जुड़े विवादों को कम करने और उन्हें समाप्त करने में मदद मिलेगी।   

वक्फ बोर्ड के चेयरमैनों के अधिकारों में कटौती
चूंकि, अब तक कोई जमीन वक्फ बोर्ड की है या नहीं, यह बताने का अंतिम अधिकार वक्फ बोर्ड के चेयरमैन को ही होता है, नए बदलाव के बाद वक्फ बोर्डों के चेयरमैनों के अधिकारों में कटौती होगी। वक्फ बोर्ड के सदस्यों और मुसलमान मतदाताओं की राजनीति करने वाले दलों के द्वारा इसका विरोध किया जा सकता है। 

मुसलमानों के अन्य वर्गों को मिलेगी मजबूती
8- वर्तमान वक्फ बोर्डों के अंदर ही शिया, सुन्नी, बोहरा और अहमदिया समुदायों (सभी मुसलमान समुदाय के उपवर्ग हैं) के लिए प्रावधान करने की बात कही गई है। इससे मुस्लिम समुदाय के उपेक्षित वर्ग भी मजबूत होंगे। लेकिन इससे विभिन्न इस्लामिक वर्गों में विवाद बढ़ सकता है। इसकी शुरुआत बिल को पेश करने के समय ही हो गई है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और सुन्नी जमात ने वक्फ बोर्ड में किसी बदलाव को स्वीकार न करने की बात कही है, जबकि सूफी समुदाय के लोगों ने अभी से बदलाव का स्वागत करना शुरू कर दिया है। यह मतभेद आगे भी बढ़ सकता है।

वक्फ की संपत्ति-लेनदेन का सीएजी ऑडिट
9- अब केंद्र सरकार कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया के माध्यम से वक्फ बोर्ड के सभी लेनदेन का ऑडिट करा सकेगी। इससे वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता आ सकेगी, लेकिन माना जा रहा है कि राजनीतिक कारणों से इसका भी विरोध किया जा सकता है। हालांकि, इस समय भी हिंदुओं के बड़े धार्मिक स्थलों की आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सरकार का तंत्र मौजूद है, लेकिन वक्फ बोर्ड के मामले में अब तक ऐसा नहीं था।   

वक्फनामा बनाकर ही होगा दान, विवादों से मुक्ति
10- अब यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति वक्फ को दान करना चाहता है, तो उसे वक्फनामा बनाकर लिखित तौर पर इसकी घोषणा करनी पड़ेगी। अब तक मौखिक रूप से भी यह कहकर अपनी संपत्ति वक्फ को दान दी जा सकती है। आरोप है कि कई बार गरीब मुसलमानों की संपत्ति को हड़पने के लिए वक्फ बोर्ड के कुछ अधिकारियों के द्वारा यह मौखिक रूप से कह दिया जाता है कि अमुक व्यक्ति ने अपनी संपत्ति वक्फ को दान देने के लिए कह दिया था। इस स्थिति में कोई कागजी सबूत न होने के कारण गरीब मुस्लिम परिवार अपनी ही संपत्ति को वापस पाने के लिए वक्फ बोर्डों और अदालतों की चौखट पर भटकता रहता है। लेकिन यदि लिखित वक्फनामा के जरिए अपनी संपत्ति को वक्फ बोर्डों को दान दी जाएगी तो इस तरह के विवाद हमेशा के लिए समाप्त हो जाएंगे। यही कारण है कि केंद्र सरकार के इस कानूनी बदलाव को मुसलमान समुदाय के हित में और क्रांतिकारी बताया जा रहा है।    

समर्थन में तर्क
इस्लामिक मामलों के जानकार और पसमांदा मुस्लिम अधिकार कार्यकर्ता डॉ. फैयाज अहमद फैजी ने अमर उजाला से कहा कि प्रस्तावित बदलावों को क्रांतिकारी कहा जा सकता है। इससे वक्फ की संपत्तियों के पंजीकरण, सत्यापन, लेनदेन में पारदर्शिता आएगी। इससे गरीब मुसलमानों को वक्फ के विवादों से मुक्ति मिलेगी। 

डॉ. फैयाज अहमद फैजी ने कहा कि अब तक मुसलमानों की हर संस्था पर अशराफ वर्ग यानी विदेशी मूल के मुसलमानों का एक छत्र कब्जा रहा है। लेकिन नए वक्फ बोर्ड बिल के प्रस्तावों में महिलाओं के साथ-साथ पसमांदा वर्ग के मुसलमानों के लिए प्रावधान किए गए हैं। इससे महिलाओं-पसमांदा वर्ग के लोगों की बेहतरी की राह खुलेगी। उन्होंने कहा कि कोई भी कानून अंतिम नहीं होता, उसमें बदलाव और सुधार  की संभावना हमेशा बनी रहती है। ऐसे में कानून का अंतिम मसौदा सामने आए बिना, उसे पढ़े-समझे बिना मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा इसका विरोध सही नहीं है।  

विपक्ष में तर्क- 
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के प्रवक्ता डॉ. एसक्यूआर इलियास ने अमर उजाला से कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि इस सरकार की मंशा पर मुसलमानों को भरोसा नहीं है, इसलिए उसके द्वारा किए जा रहे बदलावों पर आम मुसलमान भरोसा नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि 2013 के वक्फ बोर्ड के बदलावों को समाज के लोगों से बातचीत करने के बाद बनाया गया था, लेकिन इस सरकार ने मुसलमानों की सबसे बड़ी संस्था में बदलाव करने के पहले उन्हीं लोगों से बातचीत नहीं की। यही कारण है कि वे इसका पुरजोर विरोध करेंगे।   

परंपरावादी सोच की बाधा
अपने धार्मिक मामलों में परंपरावादी रुख अपनाने वाले मुसलमानों की यह भी आपत्ति सामने आ सकती है कि उनके धार्मिक मामलों में जनप्रतिनिधियों के द्वारा अब गैर-मुस्लिम लोगों को प्रवेश दिया जा रहा है। इससे एनआरसी और सीएए जैसे कानून विरोधी रास्ते तैयार हो सकते हैं जो सरकार की राह में मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।  

कानून बनाने में मुस्लिमों की भागीदारी क्यों नहीं 
डॉ. मंसूर आलम ने अमर उजाला से कहा कि इस कानून से मुसलमानों की मस्जिदों-मदरसों तक के प्रबंधन में बड़ा असर पड़ सकता है। लेकिन यह साफ नहीं है कि इस कानून को बनाने में किसी मुसलमान की भागीदारी रही है या नहीं। उन्होंने कहा कि यह सरकार का गैरजिम्मेदाराना रवैया है कि वह जिसके लिए कानून बनाती है, उसी को शामिल नहीं करती। उन्होंने कहा कि कानून का मसौदा सामने आने के बाद मुसलमान इस पर अपना रुख तय करेंगे।

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वक्फ बोर्ड के पास रेलवे व रक्षा विभाग के बाद सबसे ज्यादा संपत्ति; असीम शक्तियां, इसमें बदलाव कितना जरूरी
सरकार ने तर्क दिया है कि वक्फ बोर्डों से जुड़े कानून में प्रस्तावित बदलावों का उद्देश्य इसकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाना है। इस कदम का उद्देश्य पूरे भारत में राज्य बोर्डों की ओर से नियंत्रित 8.7 लाख से अधिक संपत्तियों के विनियमन और निगरानी में भ्रष्टाचार के मामलों का समाधान करना है।

Waqf: Waqf Board has the most property after Railways and Defence; Unlimited powers, Why change required

सरकार ने वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करने के लिए एक विधेयक पेश किया है। सरकार ने तर्क दिया है कि वक्फ बोर्डों में प्रस्तावित बदलावों का उद्देश्य इनमें पारदर्शिता लाना है। इस कदम का उद्देश्य पूरे भारत में राज्य बोर्डों की ओर से नियंत्रित 8.7 लाख से अधिक संपत्तियों के विनियमन और निगरानी में भ्रष्टाचार के मामलों का समाधान करना है। वक्फ बोर्ड देश की वह संस्था है जिसके पास देश में रेलवे और रक्षा विभाग के बाद सबसे ज्यादा जमीन है। इनकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है।

आइए जानते हैं कि वक्फ क्या है, इसमें कौन-कौन सी संपत्तियां शामिल हैं, इन संपत्तियों के प्रबंधन से जुड़ी क्या चुनौतियां हैं और इसमें बदलाव क्यों जरूरी है।

वक्फ क्या है और इसमें कौन सी संपत्तियां शामिल हैं? 
वक्फ का मतलब इस्लामी कानून के तहत धार्मिक उद्देश्यों के लिए प्रयोग होने वाली संपत्तियों से है। एक बार वक्फ के रूप में नामित होने के बाद, वक्फ की संपत्ति का स्वामित्व अल्लाह को हस्तांतरित कर दिया जाता है, जिसके बाद इसके मालिकाना हक में बदलाव नहीं किया जा सकता। इन संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ या सक्षम प्राधिकारी की ओर से नियुक्त मुतव्वाली द्वारा किया जाता है। वक्फ बोर्ड कथित तौर पर रेलवे और रक्षा विभाग के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा भूमिधारक है। वक्फ बोर्ड पूरे भारत में 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियों का नियंत्रण करता है, जिनका अनुमानित मूल्य 1.2 लाख करोड़ रुपये है। उत्तर प्रदेश और बिहार में दो शिया वक्फ बोर्डों सहित 32 वक्फ बोर्ड हैं। राज्य वक्फ बोर्डों का नियंत्रण लगभग 200 लोगों के हाथों में है।

वक्फ से जुड़ी चुनौतियां क्या हैं? 

एक बार संपत्ति वक्फ घोषित हो जाने के बाद, यह हमेशा के लिए बनी रहती है। वक्फ में संपत्ति का मालिकाना हक नहीं बदले जाने के प्रावधान के कारण विवाद और सपंत्तियों पर दावे बढ़ते जा रहे हैं। बेट द्वारका में दो द्वीपों से जुड़ा विवाद भी कुछ ऐसा ही है। इन विवादों ने अदालतों को भी उलझन में डाल दिया है। बेंगलुरु ईदगाह मैदान को 1850 के दशक से वक्फ संपत्ति होने का दावा किया गया था। इस मामले में विवाद अब भी जारी है। सूरत नगर निगम भवन, मुगल काल के दौरान ‘सराय’ के रूप में इस्तेमाल होता था इस पर भी वक्फ ने दावा किया था। कोलकाता का टॉलीगंज क्लब, रॉयल कलकत्ता गोल्फ क्लब और बेंगलुरु का आईटीसी विंडसर होटल सभी वक्फ जमीन होने के दावे किए जा रहे हैं। वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण भी एक चुनौती है। सितंबर 2022 में तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं द्वारा बसाए गए पूरे तिरुचेंदुरई गांव पर स्वामित्व का दावा कर दिया था।

वक्फ और उससे जुड़ा कानून कैसे अस्तित्व में आया? 
भारत में वक्फ की अवधारणा दिल्ली सल्तनत से शुरू होती है, जिसमें सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम गौर (मुहम्मद गोरी) की ओर से कई गांवों को मुल्तान की जामा मस्जिद को देने जैसे शुरुआती उदाहरण शामिल हैं। 1923 के मुसलमान वक्फ अधिनियम के जरिए पहली बार इसे कानूनी जामा पहनाने की कोशिश की गई। स्वतंत्र भारत में, वक्फ अधिनियम पहली बार 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया। इसे 1995 में एक नए वक्फ अधिनियम से बदला गया, जिसने वक्फ बोर्डों को अधिक शक्ति दे दी। इस बदलाव से वक्फ के अधिकारों में वृद्धि के साथ अतिक्रमण और संपत्तियों के अवैध पट्टे व बिक्री की शिकायतें भी बढ़ीं। 2013 में भी अधिनियम में संशोधन किया गया। उस समय वक्फ बोर्डों को मुस्लिम दान के नाम पर संपत्तियों का दावा करने के लिए असीमित शक्तियां प्रदान की गईं। संशोधनों ने वक्फ संपत्तियों की बिक्री को असंभव बना दिया, क्योंकि न तो मुतव्वाली (संरक्षक) और न ही वक्फ बोर्ड प्रबंधन के पास वक्फ संपत्ति बेचने का अधिकार होता है।

वक्फ की शक्तियों पर अंकुश लगाने की मांग क्यों की जाती है? 
वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 40 वक्फ बोर्डों को यह तय करने की शक्ति देती है कि क्या कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है। ऐसी शिकायतें हैं कि भ्रष्ट वक्फ नौकरशाही की मदद से संपत्तियों को हड़पने के लिए इस शक्ति का दुरुपयोग किया जाता है। मुतव्वलियों की नियुक्ति के संबंध में बोर्डों को दी गई शक्तियों के दुरुपयोग के भी आरोप लगे हैं और प्रबंधकों की नियुक्ति पर भी सवाल उठे हैं। विधेयक में विवादास्पद धारा को पूरी तरह से निरस्त करने और ये शक्तियां कलेक्टर को देने का प्रस्ताव है। दिलचस्प बात यह है कि मुस्लिम कानून का पालन करने वाले देशों में भी इतना ताकतवर वक्फ नहीं है।

1923 से 2013 तक वक्फ की परिभाषा कैसे बदली है? 
1923 के बाद वक्फ की परिभाषा में मुख्य परिवर्तन 2013 में किया गया। उस समय इसकी परिभाषा में सम्मिलित ‘इस्लाम को स्वीकार करने वाले व्यक्ति द्वारा स्थायी समर्पण’ को ‘किसी भी व्यक्ति द्वारा स्थायी समर्पण’ से बदल दिया गया। माना जा रहा है कि इस संशोधन ने किसी भी व्यक्ति द्वारा वक्फ बोर्डों को संपत्ति समर्पित करने के दरवाजे खोल दिए हैं।

कैसे बढ़ा वक्फ से जुड़े मुकदमों और शिकायतों का अंबार? 
बीते वर्षों से वक्फ से जुड़े विवाद बढ़े हैं। वक्फ नौकरशाही की अक्षमता के कारण कड़ी आलोचना हुई है। वक्फ की प्रशासनिक खामियों के कारण अतिक्रमण, कुप्रबंधन, स्वामित्व विवाद और पंजीकरण व सर्वेक्षण में देरी जैसे विवाद सामने आए हैं। न्यायाधिकरणों में 40,951 ऐसे मामले लंबित हैं जो वक्फ प्रणाली का हिस्सा हैं। यह समस्या न्यायाधिकरणों के फैसलों पर न्यायिक निगरानी की सुविधा नहीं होने से जटिल हो जाती है, क्योंकि न्यायाधिकरणों में विशेष रूप से वक्फ नौकरशाही के सदस्य ही शामिल होते हैं। 2013 के बाद से यह कानून सार्वजनिक जांच के दायरे में है। मुस्लिम बुद्धिजीवियों, महिलाओं और बोहरा व ओबीसी मुसलमानों की विभिन्न संप्रदायों से भी शिकायतें आ रही हैं।

अपील प्रक्रिया में खामियां चिंता का विषय क्यों?
अपील प्रक्रिया में खामियां भी एक बड़ी चिंता का विषय हैं। उदाहरण के लिए, बोर्ड के फैसले के खिलाफ अपील ट्रिब्यूनल के पास होती है, लेकिन ट्रिब्यूनल के पास मामलों के निपटारे के लिए कोई समयसीमा नहीं होती है। ट्रिब्यूनल का निर्णय अंतिम है, और उच्च न्यायालयों में रिट क्षेत्राधिकार को छोड़कर अपील के लिए कोई प्रावधान नहीं है। इसके अलावा, कुछ राज्यों में न्यायाधिकरण नहीं हैं, जिससे वक्फ नौकरशाही का फैसला ही अंतिम हो जाता है। एकल वक्फ बोर्ड वाले राज्यों में, मुसलमानों के बीच अल्पसंख्यक संप्रदायों, जैसे बोहरा और शिया, ओबीसी मुस्लिमों, पसमांदाओं के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता भी महसूस की जा रही है। कुछ मामलों में महिलाओं और अनाथों को विरासत के अधिकारों से वंचित करने के लिए ‘वक्फ-अल-औलाद’ प्रावधान का दुरुपयोग किया गया है, जानकारों के मुताबिक यह भी चिंता का विषय है। इस खामी के भी नए कानून में दूर करने की बात कही गई है।

वक्फ व्यवस्था पर सच्चर कमेटी और अन्य पैनलों ने क्या कहा?
सच्चर समिति की 2006 की रिपोर्ट ने अन्य बातों के अलावा, विनियमन, अभिलेखों के कुशल प्रबंधन, वक्फ प्रबंधन में गैर-मुस्लिम तकनीकी विशेषज्ञता को शामिल करने और वक्फ को वित्तीय लेखा जांच के तहत लाने की भी सिफारिश की गई है। इसी तरह, मार्च 2008 में राज्यसभा में प्रस्तुत वक्फ पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट ने वक्फ बोर्डों की संरचना में सुधार करने, राज्य वक्फ बोर्डों के लिए सीईओ के रूप में एक वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति का प्रस्ताव करने, वक्फ संपत्तियों के अनधिकृत हस्तांतरण के लिए कड़ी कार्रवाई, भ्रष्ट मुतव्वालियों के लिए कड़ी सजा और कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों की ओर से हस्तक्षेप की गुंजाइश बनाने की सिफारिश की गई। वक्फ बोर्डों के कम्प्यूटरीकरण और केंद्रीय वक्फ परिषद में शिया समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने का भी सुझाव दिया गया है।

वक्फ कानून में संशोधनों के पीछे का उद्देश्य क्या है? 
सरकार का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का आधुनिकीकरण करना, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना, केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्डों में उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना, मुकदमेबाजी को कम करना, राजस्व विभाग के साथ प्रभावी समन्वय स्थापित करना और न्यायाधिकरण के फैसलों पर न्यायिक निरीक्षण प्रदान करना है।

वक्फ में प्रस्तावित बदलाव पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का क्या रुख है? 
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बिल को पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप बताया है और जन आंदोलन शुरू करने की धमकी दी है। हालांकि सूफी दरगाहों का प्रतिनिधित्व करने वाली शीर्ष संस्था ऑल इंडिया सूफी सज्जादनशीं काउंसिल ने सरकार के प्रस्ताव का स्वागत करते हुए आरोप लगाया है कि वक्फ बोर्ड तानाशाही तरीके से काम करते हैं।

लोग वक्फ बोर्ड में संशोधनों का विरोध क्यों कर रहे हैं? 
वक्फ बोर्ड में प्रस्तावित संशोधनों का समाजवादी पार्टी और एआईएमआईएम ने कड़ा विरोध किया है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार की आलोचना करते हुए उस पर वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता छीनने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। उनका दावा है कि भाजपा ने हमेशा वक्फ बोर्डों और संपत्तियों का विरोध किया है।

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