इस हड़ताल के दौरान आपरेशन तक स्थगित कर दिए गए और मरीजों को दवाएं तक नसीब नहीं हुईं। इस हड़ताल का औचित्य इसलिए समझ नहीं आया, क्योंकि कोलकाता की घटना पर देश के कई शहरों के अनेक अस्पतालों के डाक्टर पहले ही हड़ताल कर चुके थे। इससे इन्कार नहीं कि कोलकाता में बहुत ही जघन्य अपराध हुआ और ममता सरकार ने इस भयावह घटना पर हद दर्जे की संवेदनहीनता का परिचय दिया, लेकिन आखिर इसकी सजा मरीजों को क्यों दी जा रही है? उनका तो कोई दोष ही नहीं।

जागरण संपादकीय: हड़ताल नहीं है समाधान, मरीजो को क्यों दी जा रही सजा?
 हड़ताल नहीं है समाधान, मरीजो को क्यों दी जा रही सजा?

यह अच्छा नहीं हुआ कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इसके बाद भी 24 घंटे के लिए हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने डाक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक उपायों पर विचार करने के लिए एक समिति गठित करने का आश्वासन दिया और साथ ही सभी मेडिकल कालेजों और अस्पतालों के प्रमुखों को निर्देश दिया कि यदि किसी डाक्टर या मेडिकल स्टाफ पर किसी तरह का कोई हमला होता है तो छह घंटे के भीतर रिपोर्ट दर्ज कराना आवश्यक होगा। निःसंदेह कोलकाता की घटना और उस पर ममता सरकार की लीपापोती को लेकर समाज के अन्य वर्गों के साथ चिकित्सक बिरादरी को अपना क्षोभ प्रकट करना ही चाहिए, लेकिन मरीजों को उनके हाल पर छोड़कर नहीं।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने आरजी कर मेडिकल कालेज की घटना पर ममता सरकार को फटकार लगाई और मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी। सीबीआइ ने अपना काम शुरू भी कर दिया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को इसे भी अनदेखा नहीं करना चाहिए कि महिलाओं के खिलाफ अपराध और विशेषकर दुष्कर्म सरीखे घिनौने अपराध एक सामाजिक समस्या हैं। तथ्य यह है कि ऐसे घिनौने अपराध का सामना सभी क्षेत्रों की महिलाएं कर रही हैं। निर्भया कांड के बाद महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन अपराध संबंधी कानूनों को कठोर बनाए जाने के बाद भी ऐसे अपराधों पर लगाम नहीं लग पा रही है। कोलकाता की घटना के बाद दुष्कर्म की कई घटनाएं सामने आई हैं। स्पष्ट है कि महिलाओं के प्रति समाज के नजरिये को बदलने की आवश्यकता है और इसमें अन्य वर्गों के साथ डाक्टरों को भी अपनी सक्रियता दिखानी चाहिए। उनकी सक्रियता कहीं अधिक प्रभावी सिद्ध हो सकती है।