हमारे इतिहास को मिथक बताना बंद कीजिए !

हमारे इतिहास को मिथक बताना बंद कीजिए, ये हमारे पूर्वजों की हैं कहानियां

बात कार्तिकेय 2′ नहीं, ‘Krishna Is Truth’ से शुरू करते हैं. कारण – अक्सर हमारी पौराणिक कहानियों को Mythology कह कर संबोधित किया जाता है. यह गलत है, वे मिथकीय नहीं हैं, पौराणिक हैं. यही कारण है कि हमें अपनी फिल्म की टैगलाइन रखनी पड़ी – ‘कृष्ण सत्य हैं’. हमें ये टैगलाइन रखनी पड़ी, क्योंकि हमारे पूर्वजों को Myth पढ़ाया जाता है. श्रीकृष्ण का जन्म इसी धरती पर हुआ था. जब द्वारका होने के प्रमाण हैं तो कृष्ण भी हैं. जब कृष्ण हैं, तो महाभारत है. महाभारत है तो रामायण भी है. ये हमारा इतिहास है, हमारे पूर्वजों की महान गाथा है.

द्वारका से हटाया गया अतिक्रमण 

जमीन पर इस फिल्म की सफलता क्या रही? यही कि द्वारका बहुत हद तक अतिक्रमण मुक्त हो गया. वहां राज्य सरकार का बुलडोजर गरजा और कई अवैध संरचनाएं ध्वस्त की गईं, करोड़ों की सरकारी जमीनें मुक्त कराई गईं. डेमोग्राफी में असंतुलित परिवर्तन से लेकर धर्मांतरण तक की खबरें आईं, कराची तक से कनेक्शन सामने आया. उन सबकी जड़ में ये अवैध अतिक्रमण थे, जिन्हें हटाया गया. 100 से अधिक अवैध कब्जे ध्वस्त हुए. इससे बड़ी सफलता क्या हो सकती है कि हमारी फिल्म से प्रशासनिक तन्द्रा टूटे और इतनी बड़ी कार्रवाई हो. 

ऐसा नहीं है कि फिल्म के लिए सब कुछ सही ही रहा, हमें काफी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा. छोटी फिल्म थी, तेलुगू में भी रिलीज में दिक्कतें आईं. हिंदी भाषा में तो बड़े रिलीज की हमने योजना ही नहीं बनाई थीं. बड़ी-बड़ी फ़िल्में साथ में रिलीज हो रही थीं. इसके बावजूद दिन प्रतिदिन ‘कार्तिकेय 2’ के शो पर शो बढ़ते चले गए और ऑडिएंस का प्रेम मिलता चला गया.

कार्तिकेय 2 को पुरस्कार

हमने ‘कार्तिकेय 2’ का हिंदी टीजर किसी महानगर में कोई तड़क-भड़क वाला कार्यक्रम कर के नहीं, बल्कि उस वृन्दावन की उस भूमि में लॉन्च किया, जो कभी श्रीकृष्ण की रासलीला का साक्षी था. जहां कभी उनके चरण पड़े थे. इस्कॉन के मंदिर में कार्यक्रम हुआ, जहां साधु-संतों ने मौजूदगी दर्ज कराई. श्रीकृष्ण को लेकर बातें हुईं, चर्चा हुई, साधु-साध्वियों ने अपनी बात रखी. ऐसा करने वाले हम पहले लोग थे. इस फिल्म के निर्माण से लेकर रिलीज तक अक्सर ऐसा लगता था, जैसे कान्हा स्वयं अपनी गाथा दर्शकों तक लेकर आना चाह रहे थे, मैं और हमारी टीम तो सौभाग्यशाली रही कि हम इसका माध्यम बने.

हाल ही में भारत सरकार ने ‘कार्तिकेय 2’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया. इसे सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फिल्म का सम्मान प्राप्त हुआ. मेरे लिए ये दोहरी ख़ुशी का विषय था, क्योंकि ‘द कश्मीर फाइल्स’ को भी नेशनल फिल्म अवॉर्ड प्राप्त हुआ था. उसे ‘राष्ट्रीय एकता के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म’ का सम्मान प्राप्त हुआ, जिसे दिवंगत अभिनेत्री नरगिस दत्त के नाम पर रखा गया है. ‘द कश्मीर फाइल्स’ की सफलता का मुझे एक निर्माता से अधिक एक नागरिक के रूप में अधिक संतोष हुआ. 

पौराणिक कथाओं में काफी मेहनत 

मैं हर रात ये सोच कर सोने जाता था कि ईश्वर ने इस महान राष्ट्र के लिए कुछ योगदान मेरे हिस्से भी लिख रखा था, वो साकार हुआ. कश्मीरी पंडितों की व्यथा को पर्दे पर उतारने और इसे दर्शकों द्वारा हाथों हाथ लिए जाने के बाद जो संतुष्टि का भाव मेरे मन में आया, उसे मैं शब्दों का रूप नहीं दे सकता. ये मेरी फिल्म रही ही नहीं, ये जनता की फिल्म बन गई. वहीं ‘कार्तिकेय 2’ के सुपरहिट होने के बाद इसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना पौराणिक कथाओं से संबंधित फ़िल्में बनाने की इच्छा रखने वाले हर एक व्यक्ति को उत्साहित करेगा. इस फिल्म को हिन्दीभाषी दर्शकों ने भी खूब पसंद किया, निखिल सिद्धार्थ जैसे प्रतिभावान अभिनेता भी दर्शकों के इस वर्ग तक पहुँचने चाहिए थे, इस फिल्म ने ये काम कर दिया.

अधिकतर पौराणिक कहानियां लोगों को पता हैं. रामायण में क्या हुआ था, महाभारत में क्या हुआ था – आम हिन्दू सब कुछ जानते हैं. श्रीराम कौन हैं या श्रीकृष्ण कौन हैं, ये उन्हें बताने की आवश्यकता नहीं. ऐसे में पौराणिक कथाओं से जुड़ी कहानियों को नया रूप देकर पर्दे पर उकेरना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है. इसका पहला कारण, लोगों को कथाएं पता हैं. दूसरा कारण, आप अधिक क्रिएटिव लिबर्टी नहीं ले सकते, क्योंकि हमें अपनी आस्था का सम्मान भी करना है. तीसरा कारण, आप इसमें आइटम सॉन्ग या देह-प्रदर्शन वाले दृश्य नहीं डाल सकते. 

एक फिल्म में होती है सबकी मेहनत 

ये कहानियाँ इस देश की, मेरी, हमारी – सबकी आस्था का विषय होती हैं. ऐसे में सारा जोर इस पर होता है कि आप कितने नए तरीके से चीजों को पेश कर रहे हैं. एक फिल्म में आपको अभिनेता-अभिनेत्री दिखते हैं, वो खूब मेहनत करते हैं. उनके अलावा कई लोग ऐसे होते हैं जो दिखाई नहीं देते लेकिन उनके बिना फिल्म संभव नहीं हो पाती. निर्देशक, कैमरामैन, टेक्नीशियन, लेखक, सेट तैयार करने वाले लोग, कॉन्स्यूम डिजाइनर, संगीत निर्देशक – एक फिल्म में सबकी मेहनत लगी होती है.

यहां मैं ‘कार्तिकेय 2’ के बैकग्राउंड स्कोर का जिक्र करना चाहूँगा. हमने सांस्कृतिक संगीत का इस्तेमाल किया है. सिर्फ एक गाना ही ऐसा है जो सामान्य सिनेमाई गाना जैसा है. बाकी सारे संस्कृत श्लोकों का प्रयोग किया. BGM इसकी हाइलाइट है. संस्कृत एक सुंदर भाषा है, हमारी संस्कृति के उत्थान के लिए इसे भी जीवित रहना होगा. संस्कृत के श्लोक संगीत के साथ पार्श्व ध्वनि का रूप लेते हैं जो कभी मन मोह लेते हैं, कभी रोम-रोम खड़े कर देते हैं तो कभी गर्व से छाती चौड़ी कर देते हैं. 

द इंडिया हाउस फिल्म 

एक दृष्टिहीन प्रोफेसर/वैज्ञानिक के रूप में अनुपम खेर का ये किरदार फिल्म की हाइलाइट बन गया. उन्हें मैं अपनी फिल्मों के लिए लकी चार्म भी मानता हूँ. वो ‘द कश्मीर फाइल्स’ में भी थे, वो ‘टाइगर नागेश्वर राव’ में भी थे. वो मेरी आने वाली फिल्म ‘द इंडिया हाउस’ में भी होंगे. ‘द इंडिया हाउस’ तो क्रांतिकारियों पर आधारित फिल्म है, उसमें वो ‘द इंडियन सोशलिस्ट’ नामक अख़बार के संस्थापक और कई क्रांतिकारियों को तैयार करने वाले श्यामजी कृष्ण वर्मा का चुनौतीपूर्ण किरदार निभा रहे हैं. उन्हें चुनौतीपूर्ण किरदार पसंद भी हैं. 

आपको ये भी बता दूँ कि ‘कार्तिकेय 2’ में उनके किरदार को दृष्टिहीन बनाने का विचार भी उनका ही था. उनका मानना था कि इससे लोग उनकी बातों पर अधिक ध्यान देंगे. इस कारण कई बदलाव करने पड़े, लेकिन जो निकल कर आया वो आज हमारे सामने है. आज भी यूपी-बिहार जैसे इलाकों से मेरे पास घूम-घूम कर ये क्लिप मेरे पास आती रहती हैं, लोग कहते हैं कि क्या Picturisation है. 

‘कार्तिकेय 2’ में कई नई चीजें भी हैं. जैसे, इस फिल्म के बाद लोगों ने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू किया कि आभीरा समूह क्या था, ये कौन लोग थे. आपको जान कर सुखद आश्चर्य होगा कि इसका न केवल महाभारत, बल्कि ग्रीक-रोमन दस्तावेजों में भी जिक्र है. समुद्र में डूबी द्वारका के रहस्य हमें आकर्षित करते हैं. ‘कार्तिकेय 2’ की सफलता इसी में है कि अधिक से अधिक फ़िल्में हमारी पौराणिक कहानियों पर बनें. आप हॉलीवुड को देखिए, उन्होंने बाइबिल पर आधारित न जानें कितनी फ़िल्में बना दी हैं. हमारे पास तो भंडार है पूरा का पूरा.

समाज को बेहतर चीजें दिखाने की जिम्मेदारी  

‘कार्तिकेय 2’ भारतवर्ष का प्रतिनिधित्व करता है. इसमें आपको मथुरा की गलियां दिखेंगी, अरब सागर में डूबी द्वारका दिखेगी, हिमाचल प्रदेश के पहाड़ दिखेंगे, थार का रेगिस्तान दिखेगा और भारत के दक्षिणी हिस्से की भाषा में फिल्म बनी है तो वो क्षेत्र तो दिखेगा ही. यही तो भारत है, यही तो हमें दिखाना है. क्या नहीं है इस देश में, आप निकल कर देखिए तो, दिखाइए तो. मैं सिनेमा देख कर सिनेमा बनाने में यकीन नहीं रखता हूँ, जो आम जनजीवन में है, जो हमारे आसपास है – उससे प्रेरित होकर सिनेमा बनना चाहिए. AC रूम में बैठ कर नहीं, इस देश की आत्मा को समझ कर फ़िल्में बनाई जानी चाहिए. जब निर्देशक चंदू मोंडेती मेरे पास ‘कार्तिकेय 2’ की स्क्रिप्ट लेकर आए थे, तभी मैंने फैसला ले लिया था कि मैं इस प्रोजेक्ट में सिर्फ उतरूँगा ही नहीं बल्कि ये हमारा ड्रीम प्रोजेक्ट होगा. 

लगातार 2 बार नेशनल अवॉर्ड मिलने से हमारी जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. आगे आने वाली फिल्मों को लेकर हमें और अधिक सजग रहना होगा, अधिक ऊर्जा लगानी होगी, अधिक मेहनत करनी होगी. ‘द इंडिया हाउस’ की शूटिंग चालू है. निखिल सिद्धार्थ एक बार फिर हमारे साथ हैं. हमने अध्यात्म दिखाया था, अब हम क्रांति दिखा रहे हैं. भारत की स्वतंत्रता के लिए कई ने बलिदान दिया था, देश किसी एक या दो व्यक्ति के कारण आज़ाद नहीं हुआ. ये एक सामूहिक संघर्ष था जो पीढ़ियों चला. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि  ….न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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