लेटरल एंट्री की राजनीति …. लेटरल एंट्री से बड़े अफसरों की भर्ती सही या गलत ?
लेटरल एंट्री से बड़े अफसरों की भर्ती सही या गलत …
एक्सपर्ट बोले- मनमोहन और सैम पित्रोदा इसी से आए, ब्रिटेन-अमेरिका में भी यही सिस्टम
आरक्षण राशन तमाशा फिर से राजनीतिक थाली में परोस दिया गया है क्योंकि हमारे नेता अपना वोट बैंक हासिल करने के लिए लोकलुभावन हो-हल्ला मचाना जारी रखते हैं, जो नौकरशाही में पाश्र्व प्रवेश (लेटरल एंट्री) की एक बड़ी चुनौती बन गया और राजनीतिक तू-तू मैं-मैं…
पूर्व IAS अधिकारी जयप्रकाश, जॉइंट सेक्रेटरी जैसे बड़े सरकारी पदों पर लेटरल एंट्री की तरफदारी करते हैं। दैनिक भास्कर ने उनसे पूछा था कि क्या लेटरल एंट्री कारगर तरीका है? जवाब में वे कहते हैं, ‘देश के बेस्ट लोगों को सरकार जॉइन करनी चाहिए। आप ये डिसाइड नहीं कर सकते कि कौन बेस्ट है, सिर्फ इसलिए कि किसी ने 23 साल की उम्र में एक परीक्षा पास कर ली और सर्विस में आ गया।’
केंद्र सरकार के कहने पर UPSC ने 24 मंत्रालयों में जॉइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी के 45 पदों पर निकाला लेटरल एंट्री का विज्ञापन वापस ले लिया। भर्ती में आरक्षण न होने की वजह से शुरू हुआ विवाद लेटरल एंट्री को लाने की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने तक चला।
इस पूरे विवाद के बीच 5 सवाल है, जिनके जवाब जानने जरूरी हैं।
- अब इन 45 पदों पर कैसे भर्ती होगी या नहीं होगी?
- अगर भर्तियां होंगी तो उसमें आरक्षण कैसे दिया जा सकेगा?
- अगर लेटरल भर्तियां नहीं होंगी तो विकल्प क्या होगा?
- आखिर लेटरल एंट्री लाने का मकसद क्या था, क्या इससे सरकार को कोई फायदा हुआ?
- लेटरल एंट्री का फैसला वापस लेने से क्या बदलेगा?
इन सवालों के जवाब जानने के लिए ….उनसे जाना कि लेटरल एंट्री की शुरुआत कहां से हुई और इसके क्या फायदे और नुकसान हैं।

नेहरू के दौर में भी लेटरल एंट्री से हुई हैं भर्तियां
लेटरल एंट्री कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है। जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते इस तरह से नियुक्तियां हुई हैं। शुरुआत 1948-49 से हुई। अफसरों की कमी दूर करने के लिए खुली भर्तियां शुरू की गईं। पहले बैच में इमरजेंसी रिक्रूटमेंट बोर्ड की सिफारिश पर 82 अफसर अपॉइंट किए गए।
इसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार तक कई नाम हैं, जिन्हें उनकी विशेषज्ञता की वजह से सरकारी पदों पर अपॉइंट किया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, छठे सेंट्रल पे कमीशन की सिफारिश पर मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए जनवरी, 2011 में PMO ने जॉइंट सेक्रेटरी लेवल के 10% पदों पर लेटरल एंट्री करने का प्रस्ताव रखा था।
ये प्रस्ताव प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोगों और शिक्षाविदों के लिए था। इनका सिलेक्शन CV और इंटरव्यू या प्रतियोगी परीक्षा के जरिए होने की बात कही गई थी। 2013 में UPSC ने इसके लिए सहमति दी। हालांकि, मंत्रालयों और विभागों की तरफ से स्पेशलाइज्ड पदों को लेकर बहुत कम जवाब आए और ये प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी।

एक्सपर्ट बोले- इंटरव्यू के बाद अपॉइंटमेंट और मनमर्जी से भर्ती में अंतर
UPA-2 के दौरान भी लेटरल एंट्री सिस्टम से भर्ती की कोशिश हुई थी। इस पर हमने उस वक्त UPSC में मेंबर रहे अधिकारी से बात की। पहचान उजागर न करने की गुजारिश के साथ वे बताते हैं, ‘पहले प्रावधान था कि अपॉइंटमेंट के लिए टेस्ट और इंटरव्यू होगा। अभी की सरकार ये कर रही है कि हम अपनी मर्जी से 50 लोगों को अपॉइंट कर देंगे। दोनों में बहुत अंतर है।’
‘UPA की सरकार में UPSC ने लेटरल एंट्री की रिकमेंडेशन की थी, लेकिन सरकार ने एक्शन नहीं लिया था। शायद कुछ विवाद या कन्फ्यूजन रहे होंगे।’
क्या पिछली सरकारों में ऐसे उदाहरण हैं, जब लेटरल एंट्री से अपॉइंटमेंट हुआ हो? अधिकारी बताते हैं, ‘इंडिविजुअल लेटरल एंट्री तो हमेशा होती रही है। इंदिरा गांधी ने पुपुल जयकर को कल्चरल एडवाइजर बनाया था। कई उदाहरण हैं, जब स्पेशल पोजीशन देकर, OSD या स्पेशल एडवाइजर कहकर जिम्मेदारी दी गई है।’
‘प्रधानमंत्री कार्यालय में हमेशा प्रेस एडवाइजर रहे हैं। उन्हें खूब पावर दी जाती रही है। मोंटेक सिंह अहलूवालिया और मनमोहन सिंह को उनकी विशेषज्ञता की वजह से लिया गया था। इस तरह की लेटरल एंट्री तो 1947 से मिल जाएगी। सुधींद्र कुलकर्णी अटल जी के लिए भाषण लिखा करते थे, वे ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी थे।’
क्या लेटरल एंट्री या दूसरी भर्तियों के लिए UPSC पर सरकार का दबाव होता है? अधिकारी बताते हैं, ‘UPA की सरकार में कोई दबाव नहीं था। मौजूदा सरकार जिस तरह से काम करती है, जाहिर तौर पर अब दबाव रहता होगा।’

पूर्व IAS अधिकारी बोले- अफसर सोचते हैं, सभी पदों पर उनका कब्जा रहे
लेटरल एंट्री से भर्तियों की सिफारिश 2005 में कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने की थी। आयोग ने 2007 में तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी थी। हमने इस आयोग के मेंबर रहे जय प्रकाश नारायण से बात की।
पूर्व IAS अधिकारी जय प्रकाश नारायण कहते हैं- ‘आयोग की दलील थी कि एक तय लेवल के बाद, मेरा मानना है कि जॉइंट सेक्रेटरी के बाद बहुत एक्सपर्टीज और एक्सपीरिएंस चाहिए। इसलिए इन पदों को ओपन कर दीजिए। देश के सभी सिविल सर्विसेज, एकेडमिक इंस्टीट्यूट, नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन या कंपनियों में कॉम्पिटिशन होने दीजिए।’
‘लोग सिविल सर्विस में 23-24 साल की उम्र में सिलेक्ट होते हैं। लगभग 13-14 लाख कैंडिडेट्स फॉर्म भरते हैं। 6-7 लाख कैंडिडेट्स परीक्षा देते हैं। 1 हजार IAS-IPS और दूसरी सेंट्रल सर्विस में सिलेक्ट होते हैं। यही लोग 60 साल की उम्र तक अधिकारी होते हैं।’
‘एक पद के लिए अधिकारियों के पूल में इतने सारे लोग होते हैं, तो सरकार अपनी पसंद के किसी अधिकारी को चुन सकती है। ऐसे में मेरिट या उपलब्धि की जगह औसत दर्जे के लोग प्रमोट होते हैं। आप समझदार की बजाय ऐसे अधिकारी को चुनते हैं, जो आपकी सुनता है।’
लेटरल एंट्री लागू करने में हुई देरी पर जय प्रकाश कहते हैं, ‘IAS सोचते हैं कि ये उनकी मोनॉपली के लिए चैलेंज है। उन्हें लगता है कि वही सारे पदों पर कब्जा करके रखें। उनकी नेताओं के साथ नजदीकियां होती हैं। नेता भी IAS अधिकारियों पर निर्भर रहते हैं। वो उन्हीं कुछ चुने हुए अधिकारियों के जरिए सरकार चलाते हैं।’

लेटरल एंट्री के जरिए सरकार में बेस्ट टैलेंट आएगा
पूर्व IAS अधिकारी जय प्रकाश नारायण कहते हैं, ‘हो सकता है कि आपको 23-24 साल की उम्र में वो काम करने की इच्छा ना हो, लेकिन कई साल अलग-अलग क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद आप देश के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हों।
‘आप जानते हों कि किस सेक्टर में क्या किया जाना चाहिए। इसके बावजूद अगर काम करने और उसके नतीजे दिखाने का मौका न मिले, तो इसमें देश का नुकसान है।’
‘अगर सरकार ये कहेगी कि 23-24 साल की उम्र में एक एग्जाम के जरिए रिक्रूट हुआ व्यक्ति ही सिर्फ बेस्ट है और दूसरा कोई नहीं, तो ये भी एक तरह का कास्ट सिस्टम है। ये गलत है, हम सभी इसे खारिज करते हैं।’
‘देश में स्पेशलाइज्ड सर्विसेज में लेटरल रिक्रूटमेंट कम है, वहां होना चाहिए, वर्ना वहां मोनॉपली हो जाएगी। अगर सारी पोस्ट्स आपके लिए ही रिजर्व हों, तो आप अच्छा परफॉर्म नहीं करेंगे। अगर रिक्रूटमेंट के वक्त आप अच्छा कर भी रहे हैं, तो भी पोस्टिंग में मोनॉपली होने की वजह से आप आगे अच्छा नहीं करेंगे।’
लेटरल एंट्री से सरकार को फायदे पर वे कहते हैं, ‘इस पर एक सीरियस रिसर्च और स्टडी चाहिए, लेकिन अगर देखें तो जब सैम पित्रोदा आए तो टेलीकॉम बदल गया। नंदन निलेकणी आए, तो आधार अब काम कर रहा है। अगर आधार नहीं होता तो वेलफेयर में जो इतना रिफॉर्म आया, वो नहीं हो पाता।’
‘लेटरल रिक्रूटमेंट को हम सिर्फ सरकार में नौकरी के तौर पर देख रहे हैं, जबकि ये देश के लोगों को बेहतर सेवा देने के लिए है। जिस देश में पब्लिक सर्विसेज पर्याप्त एक्टिव हैं। प्रशासन सिर्फ मिशन मोड में चलता है। सिस्टम का नियमित सुधार नहीं हो रहा है।’
‘हमें बेस्ट लोगों को लाना होगा, जिनमें पैशन हो। ये लोग सैलरी के लिए नहीं आएंगे क्योंकि सीनियर पोजिशन पर प्राइवेट सेक्टर में इनकी सैलरी 4-5 गुना ज्यादा होगी। सैम पित्रोदा या नंदन निलेकणी क्या पैसों के लिए सरकार में आएंगे। कोई भी काबिल शख्स उस पोजिशन पर सिर्फ सैलरी के लिए नहीं आएगा। इस लेवल पर सरकार में आना एक तरह का बलिदान है।’
45 पदों पर भर्ती इसलिए रद्द हुई क्योंकि रिजर्वेशन देना जरूरी था
लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल पीडीटी अचारी बताते हैं, ‘अब तक जो लेटरल एंट्री हुई हैं, उनमें आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। संवैधानिक तौर पर सरकारी पदों पर होने वाली नियुक्ति में आरक्षण जरूरी है।’
‘कभी किसी एक व्यक्ति को उसकी विशेषज्ञता के आधार पर नियुक्त करना अलग बात है, लेकिन यहां UPSC के जरिए 45 पदों पर भर्ती हो रही थी। इन्होंने हर विभाग में एक-एक व्यक्ति की नियुक्ति निकाली थी। एक व्यक्ति की नियुक्ति में रिजर्वेशन हो नहीं पाता। ऐसे में पॉलिटिकल प्रेशर की वजह से सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा।’
‘सरकार का एक सिस्टम होता है। डायरेक्टर और उसके ऊपर की सभी पोस्ट्स IAS के जरिए ही भरी जाती हैं। उसके नीचे की पोस्ट्स के लिए दूसरे रिक्रूटमेंट एग्जाम होते हैं, जिनमें असिस्टेंट और सेक्शन ऑफिसर होते हैं, इनका प्रमोशन होता है।’

लेटरल एंट्री में कोई लिखित परीक्षा न होने के सवाल पर पूर्व IAS जय प्रकाश नारायण कहते हैं, ‘लिखित परीक्षा एक मजाक है। जब आप मिडिल और सीनियर मैनेजमेंट लेवल पर लोगों को चुन रहे हैं, तो उनका इंटरव्यू, साइकोमेट्रिक स्टडी, पिछले रिकॉर्ड्स और विजन एसेसमेंट चाहिए होता है।’
‘जैसे प्राइवेट सेक्टर में कोई चीफ एग्जीक्यूटिव अपॉइंट होता है, तो उनकी लिखित परीक्षा नहीं होती। उनका डीटेल्ड इंटरव्यू होता है। इंटरव्यू बोर्ड उनका रिकॉर्ड और विजन देखता है।’
45 पदों पर लेटरल एंट्री के विज्ञापन वापस लिए जाने पर जय प्रकाश कहते हैं, ‘आजकल हर चीज में राजनीति आ जाती है। जब भी हिंदू-मुस्लिम या आदिवासी-दलित-OBC की बात आती है, तो किसी भी राजनीतिक दल के लिए उसका विरोध करना मुश्किल हो जाता है। विपक्ष ने उसी का इस्तेमाल किया।’
‘आप कौन हैं मुझे इससे फर्क नहीं पड़ा। मुझे इससे फर्क पड़ता है कि आप शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पर काम कर पा रहे हैं या नहीं। जिन आदिवासी, दलित और OBC लोगों की आप मदद करना चाहते हैं, वही शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था से सबसे ज्यादा वंचित हैं। विविधता जरूर होनी चाहिए, लेकिन लेटरल एंट्री में आरक्षण देना संभव नहीं है।’
लेटरल एंट्री को लेकर अब आगे क्या होगा, इस पर जयप्रकाश कहते हैं, ‘मंत्री ने UPSC को लेकर जो लेटर लिखा है, उसमें वो लेटरल रिक्रूटमेंट से पीछे नहीं हटे हैं। उन्होंने कहा है कि वो सामाजिक न्याय और विविधता को लेकर प्रतिबद्ध हैं और इस विज्ञापन को वापस ले रहे हैं।’
‘सरकार देख रही होगी कि इसे करने का बेस्ट और एक्सेप्टेबल तरीका क्या है। अगर वो सेंट्रल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी बनाते हैं, तो ये संभव है। सरकार को आगे बढ़ना चाहिए, हमें सरकार में टैलेंट चाहिए।’

एक्सपर्ट बोले- प्रशासनिक ढांचा सही करने के बजाय शॉर्टकट लेना ठीक नहीं
लेटरल एंट्री के कानूनी और संवैधानिक पक्षों को समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता से बात की। उन्होंने लेटरल एंट्री को नौकरशाही की क्वालिटी और मेरिट को बढ़ाने के लिए अच्छा कदम बताया।
वे बताते हैं, ‘सबसे पहले ये देखने की जरूरत है कि नौकरशाही में सिविल सर्विसेज से जो बेस्ट टैलेंट जाता है, उसे अपनी मेरिट का एक्सपोजर क्यों नहीं मिलता। हमारी नौकरशाही में दिक्कत क्या है, उसे ठीक किए बगैर बाहर से कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर लेटरल एंट्री का जो सिस्टम है, उसकी वजह से समस्याएं आ रही हैं।’
‘लेटरल एंट्री प्रशासन में ट्रांसपेरेंसी, नया टैलेंट और क्वालिटी बढ़ाने के लिए अच्छा कॉन्सेप्ट है। इसे दूसरी तरह से देखें तो नियमित भर्तियां नहीं हो रही हैं और जिम्मेदारी पूरी करने के लिए आउटसोर्सिंग की जा रही है।’

कांट्रैक्ट पर भर्ती होने वाले अधिकारियों को मिलने वाली पावर पर सवाल उठाते हुए विराग कहते हैं, ‘कॉन्ट्रैक्ट स्टाफ के पास कितनी अथॉरिटी हो सकती है। अगर हम सामान्य तरीके से देखें तो जॉइंट सेक्रेटरी और उसके ऊपर के अधिकारी भारत सरकार माने जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में जब भी कोई एफिडेविट फाइल करना होता है, तो डायरेक्टर्स फाइल करते हैं।’
‘जॉइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टर के पास कई मामलों में प्रशासनिक फैसले लेने की क्षमता होती है। सवाल ये है कि कॉन्ट्रैक्ट स्टाफ के पास उस तरह के फैसले लेने की अथॉरिटी है या नहीं। अगर हम उनको फैसले लेने की अथॉरिटी नहीं दे रहे हैं तो फिर हम उनकी भर्ती क्यों कर रहे हैं।’
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लेटरल एंट्री की राजनीति : सिर्फ कोटा से उत्कृष्टता नहीं मिलेगी
आरक्षण राशन तमाशा फिर से राजनीतिक थाली में परोस दिया गया है क्योंकि हमारे नेता अपना वोट बैंक हासिल करने के लिए लोकलुभावन हो-हल्ला मचाना जारी रखते हैं, जो नौकरशाही में पाश्र्व प्रवेश (लेटरल एंट्री) की एक बड़ी चुनौती बन गया और राजनीतिक तू-तू मैं-मैं…
इससे पार्टी को अहसास हो गया कि आरक्षण अपने आप में चुनावी दृष्टि से अति संवेदनशील मुद्दा है, इसलिए उसने अपना रुख बदल लिया। दिलचस्प बात यह है कि जब कांग्रेस के राहुल गांधी आरक्षण को छोटा करने और सरकारी नौकरियों में एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. आरक्षण को छीनने के लिए एक ‘राष्ट्र-विरोधी कदम’ के रूप में लेटरल एंट्री की आलोचना कर रहे हैं, तो वह यह आसानी से भूल गए कि उनकी यू.पी.ए. सरकार ने ही लेटरल एंट्री की अवधारणा विकसित की थी और 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (ए.आर.सी.) स्थापित किया था। वास्तव में, इसका सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे, जो ‘बाहरी विशेषज्ञ’ थे। इसी तरह इंफोसिस के पूर्व प्रमुख नंदन नीलेकणि भी हैं, जिन्होंने आधार की अगुवाई की। इसके अलावा, सिंह के कार्यकाल के दौरान ऊर्जा मंत्रालय ने नामांकन के आधार पर एक प्रमुख औद्योगिक घराने की पृष्ठभूमि वाले एक वरिष्ठ अधिकारी को नियुक्त किया।
छठे वेतन आयोग 2013, नीति आयोग 2017 ने भी इसे दोहराया, जिसमें मध्यम और वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर अधिकारियों को 3 साल के अनुबंध पर शामिल करने का समर्थन किया गया, जिसे बढ़ाकर 5 साल किया जा सकता था, जो तब तक केवल आई.ए.एस. और केंद्रीय सिविल सेवाओं के नौकरशाह ही करते थे। 2019 में 6,077 संयुक्त सचिव आवेदनों में से 9 को 9 मंत्रालयों में नियुक्त किया गया, इसके बाद 2021, 2023 में तीन दौर की नियुक्ति की गई। हाल ही में, सरकार ने राज्यसभा को बताया कि पिछले 5 वर्षों में 63 लेटरल एंट्री नियुक्तियां की गई हैं। वर्तमान में, 57 लेटरल एंट्री केंद्रीय मंत्रालयों में तैनात हैं।
निस्संदेह, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में नए विकासशील क्षेत्रों और हाइब्रिड प्रौद्योगिकियों में प्रौद्योगिकी के बढ़ते हस्तक्षेप के कारण सरकारी कार्यकलापों में क्षमताओं को समृद्ध करने के लिए नए विचारों, ऊर्जा और डोमेन विशेषज्ञता के साथ बाहरी लोगों को शामिल करने की आवश्यकता है, ताकि शासन के जटिल कार्यों को तेजी से पूरा किया जा सके और वितरण तंत्र को तेज और कुशल बनाया जा सके। साथ ही वांछित परिणामों के लिए सरकार में सर्वश्रेष्ठ निजी क्षेत्र की संस्कृति को शामिल किया जा सके। अफसोस, समस्या तब होती है जब बौने नेताओं द्वारा संचालित हमारी क्षुद्र राजनीति सामाजिक न्याय और समानता की अनिवार्यताओं के खिलाफ संकीर्ण रूप से परिभाषित आरक्षण शर्तों में ‘विशेषज्ञता’ और ‘योग्यता’ को समान मानती है। नतीजतन, कुछ भी करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि इसे एस.टी., एस.सी., ओ.बी.सी. के हितों के खिलाफ माना जाएगा।
जैसा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एस.सी., एस.टी. उप-कोटा पर रेखांकित किया है कि योग्यता को समानता और समावेशिता के सामाजिक सामान के संदर्भ में समझा जाना चाहिए, न कि संपन्न और वंचितों या योग्यता और वितरण न्याय के बीच संघर्ष के रूप में। नीतिगत दृष्टि से कोटा पर अत्यधिक जोर शासन को प्रभावित कर सकता है। इससे भी बुरी बात यह है कि नौकरशाह भी सरकार चलाने में निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को स्थान देने में अनिच्छुक हैं। सत्ता और भ्रष्टाचार बाबुओं की सनकी नियंत्रण मानसिकता के माध्यम से प्रवाहित होते हैं। इसके अलावा, लगातार बढ़ते आरक्षण का समर्थन नहीं किया जा सकता। मुझे गलत मत समझिए, निश्चित रूप से सामाजिक न्याय वांछनीय है और समान अवसर और बेहतर जीवन स्तर प्रदान करने के सरकार के मौलिक मिशन के साथ-साथ एक प्रशंसनीय लक्ष्य है। फिर भी, गरीबी के दलदल से उन्हें ऊपर उठाने में भारत की 7 दशकों की ऊब यह दर्शाती है कि असंख्य वर्गों, जातियों, उपजातियों और वंचितों को आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई भी कानून गरीबों की स्थिति में सुधार नहीं कर पाया है, भले ही कुछ लोगों को नौकरी मिल गई हो।
इसके अलावा यह पता लगाने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है कि कोटा के बाद आरक्षण पाने वालों का मनोबल बढ़ाने के लिए उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए कोई प्रयास किया जाता है या नहीं। कोटा लोगों के उत्थान के लिए एकमात्र रामबाण उपाय नहीं है। इसके अलावा इस बहाने से प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा देना खतरनाक है, कि इससे वंचितों का उत्थान होगा। लेटरल एंट्री सकारात्मक कार्रवाई का साधन नहीं है और कभी नहीं थी। यह विशेषज्ञों के लिए शासन में भाग लेने का एक साधन है जो अन्यथा सरकार में शामिल होने पर विचार नहीं करेंगे।
सच है, लेटरल एंट्रीकत्र्ता प्रणालीगत बीमारियों और कमियों के लिए कोई जादुई इलाज नहीं हैं और अधिक मौलिक पुनर्गठन के लिए एक मामला बनाया जा सकता है जो विशिष्ट अवधि के लिए अच्छी तरह से परिभाषित उद्देश्यों के लिए विशेषज्ञता और विशेषज्ञता के अंतराल को भरने में मदद कर सकता है। यू.एस., यू.के. जैसे विकसित देश नियमित रूप से सरकार के बाहर से विशेषज्ञों को नियुक्त करते हैं। हमारे नेताओं को पहचानने की जरूरत है कि असमानताएं मौजूद हैं और उन्हें ठीक किया जाना चाहिए। नौकरियों में सिर्फ कोटा होने से उत्कृष्टता नहीं मिलेगी। इस दिशा में, उन्हें योग्य बनाने के लिए अभिनव तरीके विकसित करने की जरूरत है, ताकि वे सामान्य श्रेणी के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो सकें। समय की मांग है कि सभी को समान अवसर प्रदान किए जाएं। हमें ऐसी व्यवस्था की ज़रूरत है जो न तो पीड़ितों को दंडित करे और न ही विजेताओं को पुरस्कृत। आरक्षण के सार्वभौमिकरण का मतलब होगा उत्कृष्टता और मानकों को अलविदा… जो किसी भी आधुनिक राष्ट्र के लिए ‘जरूरी’ हैं, जो आगे बढऩा चाहता है।
समय आ गया है कि केंद्र-राज्य सरकारें आरक्षण नीति पर पुनर्विचार करें और आरक्षण के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकें। अन्यथा हम अक्षमता और सामान्यता के जाल में फंस सकते हैं। आरक्षण पर बार-बार जोर देने से नुकसान हो सकता है और शायद इससे दरारें और बढ़ेंगी।-पूनम आई. कौशिश