बस नाम का रह गया महिला आयोग … 25 हजार केस पेंडिंग ?
बस नाम का रह गया महिला आयोग, सुनवाई ठप
अध्यक्ष का दफ्तर 4 साल से बंद; शिकायत देकर लौट जाती हैं महिलाएं, 25 हजार केस पेंडिंग
‘मैं यौन उत्पीड़न का शिकार महिला हूं। राज्य महिला आयोग के पास शिकायत लेकर आई थी। यहां के एक कर्मचारी मेरे साथ जीरो पर कायमी के लिए श्यामला हिल्स थाने गए, लेकिन मेरी शिकायत दर्ज नहीं हुई। आयोग के कर्मचारी ने कहा कि हम लोग केवल इतना ही कर सकते थे। अब हमारे बस की बात नहीं है।’
ये आपबीती गुना की रहने वाली एक महिला की है। पिछले तीन महीने से ये महिला शिकायत दर्ज करवाने के लिए थानों के चक्कर काट रही है, लेकिन शिकायत दर्ज नहीं हो रही। एक आखिरी उम्मीद के तौर पर वह भोपाल स्थित राज्य महिला आयोग के दफ्तर पहुंची थीं, मगर यहां भी मायूसी हाथ लगी।
ये केवल इसी महिला की कहानी नहीं है, बल्कि पिछले 6 साल से राज्य महिला आयोग में ऐसी 25 हजार से ज्यादा शिकायतें पेंडिंग हैं। वजह ये है कि साल 2019 के बाद से महिला आयोग की बेंच ने इन मामलों की सुनवाई ही नहीं की। राज्य महिला आयोग के पुराने अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 2023 में खत्म हो चुका है। एक साल से नए अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति सरकार ने नहीं की है।
कोलकाता रेप और मर्डर केस के बाद एक बार फिर महिला सुरक्षा का मुद्दा उठा है, ऐसे में दैनिक भास्कर ने पता किया कि आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों के न होने से महिलाएं कैसे परेशान हो रही हैं। महिला-बाल विकास मंत्री से भी जाना कि आखिर कब तक राज्य महिला आयोग में नए अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति होगी।
पहले जानिए कि कैसे परेशान हो रहीं महिलाएं
दैनिक भास्कर की टीम जब राज्य महिला आयोग के दफ्तर पहुंची तो यहां एक महिला से मुलाकात हुई। गुना की रहने वाली ये महिला शिकायत करने आई थी। महिला ने बताया कि मैं स्केटिंग ट्रेनर हूं। साल 2022 में एक मोबाइल शॉप चलाती थी।
मेरी दुकान के सामने सरकारी गर्ल्स हॉस्टल था। मैं इसी हॉस्टल का वॉशरूम इस्तेमाल करती थी। हॉस्टल के वार्डन का पति जो एक सरकारी टीचर है, उसने वॉशरूम इस्तेमाल करते वक्त मेरे अश्लील फोटो और वीडियो बनाए। इन्हें वायरल करने की धमकी देकर उसने मेरे साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए।
बदनामी के डर से मैंने किसी से शिकायत नहीं की। वह अक्सर मुझे वीडियो कॉल करता और कपड़े उतारने के लिए मजबूर करता, मना करने पर वीडियो वायरल करने की धमकी देता। उसने इन वीडियो कॉल के स्क्रीन शॉट भी लिए थे।
महिला का आरोप- पुलिस ने मेरे ही खिलाफ शिकायत दर्ज की
महिला ने बताया कि, जब वह मुझे बहुत ज्यादा प्रताड़ित करने लगा तो मैंने उसकी पत्नी से शिकायत की, लेकिन उसने उल्टा मुझे ही गलत ठहराया। इस मामले की शिकायत करने जब मैं थाने पहुंची, तो पुलिस ने मामूली धाराओं में छेड़छाड़ का मामला दर्ज कर लिया। उस टीचर ने मुझ पर केस वापस लेने का दबाव भी बनाया।
मेरे खिलाफ ही वीडियो कॉल पर अश्लील हरकतें और 22 लाख रु. वसूल करने का झूठा केस दर्ज करवा दिया। मैंने इस मामले की शिकायत पुलिस से की। उन्होंने कहा कि सबूत लेकर आओ। मेरे पास उस व्यक्ति के खिलाफ कोई सबूत नहीं है।
आयोग के कर्मचारी के साथ थाने गई, फिर भी FIR नहीं हुई
महिला के मुताबिक पुलिस ने जब शिकायत दर्ज नहीं की तो उसने जिला महिला आयोग से संपर्क किया। जिला आयोग ने मेरी परेशानी सुनकर संबंधित थाने के TI और अधिकारियों को पत्र लिखे, लेकिन उनके पत्रों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। 5 दिन पहले ही मैंने राज्य महिला आयोग को पत्र लिखा, फिर भी FIR दर्ज नहीं हुई।
जिला महिला आयोग ने सलाह दी कि राज्य महिला आयोग के दफ्तर चली जाओ तुरंत FIR हो जाएगी। मैं यहां आई तो आयोग के एक अधिकारी ने मेरे साथ कर्मचारी को श्यामला हिल्स थाने भेजा, ताकि जीरो पर कायमी हो सके। मगर पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की।
आयोग के दफ्तर में 30 कर्मचारी, हर महीने 300 शिकायतें
राज्य महिला आयोग का दफ्तर भोपाल के श्यामला हिल्स पर है। यहां लगभग 30 कर्मचारी काम करते हैं। आयोग के एक कर्मचारी ने बताया कि हर महीने करीब 300 से शिकायतें आती हैं, यानी सालाना 3 हजार से ज्यादा शिकायतें। जो शिकायतें आयोग से जुड़ी नहीं होतीं, उन्हें खारिज कर दिया जाता है।
बाकी शिकायतों को निपटाने की एक प्रक्रिया होती है। इन्हें संबंधित विभागों को भेजा जाता है और उनसे जांच रिपोर्ट मांगी जाती है। इन शिकायतों की एक फाइल तैयार कर रखी जाती है। हालांकि ज्यादातर फाइलें ऐसे ही पड़ी हुई हैं, क्योंकि विभाग जांच रिपोर्ट ही नहीं भेजते।
जो बचे हुए मामले हैं उन पर अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के बाद ही कार्रवाई हो सकती है। एक अधिकारी ने कहा कि अध्यक्ष न होने से आयोग का दायरा सीमित हो गया है।
इन पॉइंट्स से समझिए आयोग का गठन न होने से क्या असर पड़ रहा
आयोग के अधिकारी का कहना है कि बिना अध्यक्ष के हमारी ताकत सीमित है। पिछले कुछ सालों में आयोग में सिविल न्यायालय नहीं लग रहा है। इसे लगाने का अधिकार अध्यक्ष को होता है। अब पीड़ितों की सुनवाई नहीं हो रही है। इसी वजह से 25 हजार से ज्यादा मामले पेंडिंग हैं।
- कोर्ट और अध्यक्ष के पास ताकत होती है कि वे किसी भी अधिकारी को तलब कर सकते हैं। दोनों पक्षों को साथ बुलाकर सुनवाई कर सकते हैं। लेकिन, इन सब का अधिकार हमें नहीं है।
- सबसे ज्यादा मामले ऐसे आते हैं, जिनमें स्थानीय पुलिस और थाना महिलाओं की शिकायतें सुनते ही नहीं। FIR दर्ज नहीं करते या समझौता करने का दबाव बनाते हैं।
- पहले जब ऐसे मामले आयोग की बेंच के पास आते थे तो त्वरित सुनवाई शुरू हो जाती थी। FIR भी दर्ज हो जाती थी।
- आयोग के अधिकार सीमित होने के कारण बहुत से मामलों में थानों में समझौता हो जाता है। हमारे पास दूसरे पक्ष को बुलाने का अधिकार नहीं है।
- आयोग बहुत से गंभीर मामलों में या मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर स्वत: संज्ञान लेता था। अभी इस तरह से कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
अब जानिए क्यों खाली पड़ा है आयोग के अध्यक्ष का पद
साल 2016 में तत्कालीन शिवराज सरकार ने लता वानखेड़े को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। उन्होंने अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा किया। 19 जनवरी 2019 को उनका कार्यकाल खत्म हो गया। साल 2018 में मप्र में कांग्रेस की सरकार बनी और तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक साल तक आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की।
साल 2020 में मप्र के सियासी समीकरण बदले। कांग्रेस की सरकार गिर गई। सरकार गिरने से पांच दिन पहले तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने शोभा ओझा को राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया। इसके साथ ही सदस्यों की भी नियुक्ति की। कमलनाथ सरकार गिरने के बाद शिवराज सिंह फिर मुख्यमंत्री बने।
सरकार ने आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियां रद्द कर दी। वजह बताई गई कि कमलनाथ सरकार अल्पमत में थी, इसलिए ये नियुक्तियां अवैध हैं। सरकार के इस फैसले के खिलाफ तत्कालीन अध्यक्ष शोभा ओझा और सदस्यों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
कोर्ट ने नियुक्तियां रद्द करने पर रोक लगा दी। पूर्व अध्यक्ष शोभा ओझा कहती हैं, ‘जब हम लोग दफ्तर पहुंचे, तो हमारे केबिन में ताला लगा हुआ था। हमने हॉल में बैठकर काम शुरू किया तो कर्मचारियों पर छुट्टी लेने का दबाव बनाया गया। इन हालात में मैंने 2022 में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। मामला अब भी कोर्ट में जारी है।’
मंत्री बोलीं- आयोग में अध्यक्ष ही नहीं तो केस तो पेंडिंग होंगे ही
भास्कर ने इस मामले को लेकर महिला बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया से बात की। उन्होंने कहा, ‘आयोग की अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति न होने से केस तो पेंडिंग होंगे ही। इस बात की हमें भी चिंता है कि इतने सालों तक आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो सकी। पूर्व अध्यक्ष शोभा ओझा का जो मामला कोर्ट में लंबित है अब उससे भी कोई परेशानी नहीं है। उनका तीन साल का कार्यकाल वैसे भी पूरा हो चुका है।’