संसद की लोक लेखा समिति के क्या हैं अधिकार, कैसे करती है काम?

संसद की लोक लेखा समिति के क्या हैं अधिकार, कैसे करती है काम?
PAC संसद की सबसे महत्वपूर्ण समितियों में से एक है. लोक लेखा समिति का काम सरकार के खर्च के लिए संसद से मिले पैसे का हिसाब-किताब देखना है.

भारतीय संसद की पब्लिक अकाउंट्स कमेट (PAC) ने सेक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) की चीफ माधबी पुरी बुच के खिलाफ आरोपों की जांच करने का फैसला किया है. यह समिति इस महीने के अंत में उन्हें पेश होने के लिए समन भेज सकती है.

PAC ने हाल ही में जांच करने वाले विषयों में से एक के रूप में “परफॉर्मेंस रिव्यू ऑफ रेगुलेटरी बॉडीज इस्टैबलिश्ड बाय एक्ट ऑफ पार्लियामेंट” को शामिल किया है. इसके तहत, समिति SEBI प्रमुख के खिलाफ लगे आरोपों की जांच कर सकती है. साथ ही उन्हें, वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालयों के अधिकारियों को समिति के समक्ष पेश होने के लिए बुला सकती है.

दरअसल, कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल के नेतृत्व वाली पीएसी ने 29 अगस्त को अपनी पहली बैठक में सेबी की कार्यप्रणाली और माधबी पुरी बुच के खिलाफ उठाए गए सवालों पर चर्चा की थी. इसके बाद PAC ने ‘परफॉर्मेंस रिव्यू ऑफ रेगुलेटरी बॉडीज’ को अपने 160 विषयों की सूची में शामिल किया. 

2 सितंबर को जारी लोकसभा बुलेटिन में बताया गया है कि पिछली समिति बैठक के बाद इस विषय को ‘स्वतः संज्ञान’ के आधार पर जोड़ा गया है. समिति अधिकारियों को तलब करने के लिए सशक्त है, जो वह आगामी बैठकों में करेगी. सितंबर 10 को होने वाली समिति की अगली बैठक में जल जीवन मिशन के ‘परफॉर्मेंस ऑर्डिट’ पर चर्चा होनी है. मगर, संभावना है कि पीएसी इस महीने और भी कुछ बैठकें आयोजित कर सकती है.

सेबी चीफ पर क्या-क्या आरोप लगे
सबसे ताजा आरोप कांग्रेस ने माधबी पुरी बुच पर लगाया कि पूर्णकालिक सदस्य बनने के बाद उन्होंने अपनी एक प्रॉपर्टी किराए पर दे दी जिसकी सेबी जांच कर रही थी. इस प्रॉपर्टी से उन्हें 2018-19 के वित्तीय वर्ष में 7 लाख रुपये किराया मिला. 2019-20 में उसी प्रॉपर्टी से 36 लाख रुपए किराया मिला. ये अगले साल तक बढ़कर 46 लाख रुपये तक पहुंच गया.

संसद की लोक लेखा समिति के क्या हैं अधिकार, कैसे करती है काम?

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि माधबी पुरी बुच ने कैरोल इन्फो सर्विसेज लिमिटेड नाम की कंपनी को अपनी प्रॉपर्टी दी, जो वॉकहार्ट कंपनी का हिस्सा है. वॉकहार्ट वही कंपनी है जिससे जुड़ी शिकायतों को सेबी डील कर रहा है. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि ये पूरी तरह से करप्शन का मामला है. बुच अभी तक इस कंपनी से 2.16 करोड़ रुपये से ज्यादा किराये के रूप में ले चुकी हैं.

कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि माधबी पुरी ने इस किराये की जानकारी किसे-किसे दी? और क्या ये सही है कि आपने अपनी प्रॉपर्टी एक ऐसी कंपनी को किराये पर दी, जिसके आप केस डील कर रही हों. क्या ये नैतिक और कानूनी रूप से ठीक है?

ICICI बैंक से रिटायरमेंट के बाद भी सैलरी लेने का आरोप
इससे पहले कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि माधबी पुरी ने आईसीआईसीआई बैंक से रिटायरमेंट के बाद वेतन लिया. आरोप लगाया गया कि सेबी चीफ ने ICICI बैंक, ICICI प्रुडेंशियल और सेबी से एक साथ सैलरी ले रही थीं. हालांकि आईसीआईसीआई बैंक ने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. बैंक ने दो टूक कहा है कि सेबी चेयरपर्सन के रिटायरमेंट के बाद उनके सेवानिवृत्ति लाभों के अलावा किसी भी तरह का कोई वेतन या ईएसओपी नहीं दिया.

बैंक ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि सेबी चीफ माधबी पुरी ने 31 अक्टूबर 2013 से रिटायरमेंट ऑप्शन चुना था. नौकरी के दौरान उन्हें बैंक के तय किए गए नियमों के अनुसार ही सैलरी, बोनस, ESOP और रिटायरमेंट बेनेफिट्स दिए गए. रिटायरमेंट होने के बाद कोई एक्स्ट्रा बेनेफिट नहीं दिया गया. इससे पहले बीतें दिनों अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग (Hindenburg) ने सेबी चीफ माधबी पर गंभीर आरोप लगाए थे. इन्हीं सब आरोपों के चलते संसद की लोक लेखा समिति (PAC) सेबी चीफ को समन भेज सकती है. 

क्या है लोक लेखा समिति का इतिहास
लोक लेखा समिति की स्थापना पहली बार 1921 में मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के बाद की गई थी. अंग्रेजों के शासन में समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्यकारी परिषद के वित्त सदस्य (अब वित्त मंत्रालय) हुआ करते थे. यह स्थिति 1949 तक जारी रही. अंतरिम सरकार के दिनों के दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते थे और बाद में 1947 में आजादी के बाद वित्त मंत्री अध्यक्ष बन गए.

26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान के लागू होने के साथ ही लोक लेखा समिति में एक बड़ा बदलाव हुआ. ये समिति एक संसदीय समिति बन गई जो स्पीकर के नियंत्रण में कार्य करती है, जिसका अध्यक्ष स्पीकर की ओर से लोकसभा के सदस्यों में से गैर-आधिकारिक व्यक्ति के रूप में नियुक्त किया जाता है. 

PAC में कितने सदस्य शामिल
लोक लेखा समिति लोकसभा में कार्यवाही और व्यवसाय के नियमों के नियम 308 के तहत हर साल गठित की जाती है. इस समिति में अधिकतम 22 सदस्य होते हैं, जिनमें से 15 सदस्य लोकसभा से चुने जाते हैं और 7 सदस्य राज्यसभा से होते हैं. 1954-55 से पहले लोक लेखा समिति में केवल 15 सदस्य होते थे, जो लोकसभा से चुने जाते थे. लेकिन 1954-55 से राज्यसभा से 7 सदस्यों को भी इस समिति में शामिल किया जाने लगा.

1966-67 तक समिति का अध्यक्ष हमेशा सत्ताधारी पार्टी का वरिष्ठ सदस्य होता था, जिसे स्पीकर की ओर से नियुक्त किया जाता था. लेकिन 1967 में पहली बार लोकसभा में विपक्ष के एक सदस्य को समिति का अध्यक्ष बनाया गया. यह प्रथा आज भी जारी है. लोक लेखा समिति के सदस्यों का कार्यकाल एक साल होता है. मंत्री इस समिति के सदस्य नहीं बन सकते. 

मौजूदा लोक लेखा समिति (PAC) में कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल के अलावा प्रमुख सदस्यों में भारतीय जनता पार्टी के रविशंकर प्रसाद, निशिकांत दुबे, अनुराग ठाकुर, जगदंबिका पाल, तेजस्वी सूर्या और सुधांशु त्रिवेदी शामिल हैं. वहीं डीएमके के टीआर बालू और टी शिवा हैं. कांग्रेस से शक्तिसिंह गोहिल, अमर सिंह, जय प्रकाश, सी एम रमेश, अपराजिता सारंगी, अशोक चावन और तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगता रॉय और सुखेंदु शेखर राय शामिल हैं.

संसद की लोक लेखा समिति के क्या हैं अधिकार, कैसे करती है काम?

लोक लेखा समिति के काम और जिम्मेदारियां
PAC संसद की सबसे महत्वपूर्ण समितियों में से एक है, जिसे सरकार के राजस्व और खर्चे का लेखा-परीक्षण करने का काम सौंपा गया है. लोक लेखा समिति का काम सरकार के खर्च के लिए संसद से मिले पैसे का हिसाब-किताब देखना है. इसमें सरकार का सालाना खर्च का हिसाब और संसद के सामने रखे गए दूसरे हिसाब शामिल हैं. 

जब समिति भारत सरकार के व्यय खातों और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट की जांच करती है, तो उसे ये बातें सुनिश्चित करनी होती हैं कि जो पैसा खर्च किया गया है वह कानूनी रूप से खर्च करने योग्य होना चाहिए. अगर पैसा किसी और काम के लिए इस्तेमाल किया गया है, तो नियमों के हिसाब से किया गया हो. सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों और योजनाओं का हिसाब-किताब भी देखना होता है. जब राष्ट्रपति के निर्देश पर सीएजी किसी कंपनी की हिसाब-किताब की जांच करती है तो उनकी रिपोर्ट पर भी समिति विचार करती है.

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