दो युद्ध और नैतिकता के तर्क ?

दो युद्ध और नैतिकता के तर्क
पुतिन का राष्ट्रवाद हो या फिर खुद को पीड़ित दिखाने का यूक्रेनी भाव, हरदम लड़ते रहने की इस्राइली नियति हो या फलस्तीनियों के ऐतिहासिक कष्ट, युद्धों का विश्लेषण नैतिकता के नजरिये से करने में समस्या है, क्योंकि वैचारिक सुविधावाद मिसाइल हमलों में भी नैतिकता ढूंढ सकता है।
 
यूक्रेन ने रूस को आसानी से जीत हासिल करने की राष्ट्रवादी संतुष्टि से वंचित कर दिया। यूक्रेनी राष्ट्रपति अपनी युवकोचित सहजता और खुद को पीड़ित दर्शाने वाले भाव के साथ इस सदी के ऐसे स्वतंत्रता-सेनानी बन गए हैं, जो सबसे मदद की गुहार लगाते दिखते हैं। इस युद्ध के जल्दी खत्म होने के कोई लक्षण नहीं दिखते।

अब से करीब एक महीने बाद दक्षिणी इस्राइल में हमास द्वारा किए गए नरसंहार और बंधक बनाने की घटना को एक साल पूरे हो जाएंगे। गाजा एक ऐसे समूह के खिलाफ युद्ध का अपरिहार्य युद्धक्षेत्र बन गया है, जिसने गरीबी से त्रस्त इलाके की पूरी आबादी को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया है। इस युद्ध ने जो मानवीय संकट पैदा किया है, वह बहुत बड़ा है और आम फलस्तीनी उनके अधिकारों की कसम खाने वालों के पापों की कीमत जान देकर चुका रहे हैं।

ज्यादा प्रभावी सौदेबाज होने के नाते, हमास ने इस्राइली जनता की राय बदलने के लिए बंधकों के शवों को छोड़ दिया है और वह इसमें सफल भी हो रहा है। असल में हमास सैन्य शक्ति से युद्ध नहीं जीत सकता। इसलिए, वह दुनिया भर में प्रदर्शनों और उदारवादी संवेदनशीलता को प्रभावित करके, तथा वैश्विक जनमत में इस्राइल को अलग-थलग करके अपने द्वारा शुरू किए गए युद्ध को जीतने की उम्मीद कर रहा है।

हर युद्ध के बाद एक नैतिक संघर्ष होता है, जिसमें पीड़ित और हमलावर की छवि एक-दूसरे से बदल जाती है। यह सब देखने वालों के नैतिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। यूक्रेन के मामले में नैतिकता अब भी विवाद का विषय है, क्योंकि उदारवादी जहां तानाशाहों के अतिरिक्त क्षेत्रीय आतंक के खिलाफ उग्र यूक्रेन की दृढ़ता की सराहना करते हैं, वहीं रूढ़िवादी इसे एक ऐसे देश की अनुचित वीरता बता कर खारिज करते हैं, जो ऐतिहासिक रूप से रूस से जुड़ा रहा है। विवाद इसी नैतिकता से जुड़ा है। दुनिया के अधिकांश देशों के अनुसार, यूक्रेन की पीड़ा को उदार लोकतंत्र से जुड़े देशों द्वारा साझा किया जाना चाहिए। यूक्रेन उचित ही उदारवादियों के लिए चिंता का कारण है, क्योंकि वह एक ऐसे शासन के खिलाफ खड़ा है, जिसके लिए राष्ट्रवाद और पुराने गौरव की शब्दावली में मौजूदा रक्तपिपासा न्यायोचित है और खोए हुए अतीत को बहाल करने की एक शर्त भी है।

कुछ रूढ़िवादियों का मानना है कि कीव को हथियार देने से मना करके और उसके नेता को पीड़ित होने का नाटक करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच देने से रोक कर यूक्रेन युद्ध रोका जा सकता है। वे तर्क देते हैं कि विवेक को विचारधारा के अधीन नहीं किया जा सकता। आज की विभाजित नैतिकता में, पीड़ा को मापने के लिए अलग-अलग तरीकों की आवश्यकता होती है। सड़कों के आक्रोश और क्रांतिकारी परिसरों से उभरने वाली कहानी में, जो उदारवादियों द्वारा वर्षों से सुनाई जा रही समान कहानी का ही एक संस्करण है, फलस्तीनियों की पीड़ा दिखती है, जिसे पिछले वर्ष सात अक्तूबर को हमास द्वारा किए गए नरसंहार ने एक अपरिहार्य भयावहता में बदल दिया। युद्ध की इस उदार आलोचना में, नेतन्याहू को बमबारी रोक देनी चाहिए, इससे पहले कि इस्राइल फिलाडेल्फिया कॉरिडोर को काट दे, जो गाजा और मिस्र के बीच हमास की आपूर्ति लाइन है। बंधकों का शव के रूप में घर लौटना इस्राइल को युद्ध की निरर्थकता के बारे में अंतिम चेतावनी होनी चाहिए। लेकिन नैतिकता के इस तर्क में यह बात गायब है कि इस्राइल को भी राजनीतिक या रणनीतिक सुविधा से परे मृत बंधकों और अभी भी कैद में मौजूद दर्जनों लोगों के लिए आश्वासन मिलना चाहिए। असल में विभाजित नैतिकता में मानवता भी विवाद का विषय है।

उदारवादियों में पुतिनवाद को लेकर अब भी कोई आम सहमति नहीं है। रूस का नेता बेशक अब तक नेतन्याहू नहीं बन पाया है। लेकिन अगर पुतिनवाद पुरानी यादों पर आधारित नकली राष्ट्रवाद द्वारा कायम है, तो इसकी वजह यह है कि इसे रूस से परे उन वैचारिक ताकतों का समर्थन मिला है, जो अमेरिकी प्रभुत्व वाली दुनिया में प्रतिवाद की जरूरत महसूस करते हैं। यूक्रेन के लोगों की पीड़ा फलस्तीनी संघर्ष जितनी मार्मिक या विरोध-योग्य नहीं है, हालांकि पुतिन का रूस जिस सोवियत कल्पना से चिपका हुआ है, वह किसी भी उदारवादी तर्क से उस पैशाचिक ढंग से कम नहीं हो सकती है, जिसके सहारे वामपंथी इस्राइल की उत्पत्ति की कहानी बताते हैं। फिर भी, वैचारिक सुविधावाद मिसाइलों के गिराने में भी नैतिकता ढूंढ सकता है। यह ऐसा है, जैसे पीड़ा की तीव्रता इस बात से निर्धारित होती है कि उदार विवेक पीड़ित को किस तरह से परिभाषित करता है। कुछ भी हो, इस्राइल जीत नहीं सकता। लेकिन, रूस मामूली चोटों को सह सकता है।

नैतिकता का विज्ञान ही ऐसा है, जो गाजा और यूक्रेन में युद्धों को समाप्त करने के आह्वान को असमान बनाता है। धारणा की लड़ाई हमास जीत रहा है, क्योंकि वे केवल सात अक्तूबर के अपराधी नहीं हैं, जो दावा करते हैं कि इस्राइल विस्थापन के इतिहास पर थोपा गया सबसे बड़ा झूठ है। इसके अतिरिक्त, उदारवादी यह नहीं देखते कि अपने अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए युद्ध की स्थायी स्थिति में रहना इस्राइल की मजबूरी है। नैतिकता विचारधारा के अंतिम अवशेषों में फंसी हुई है, और दो युद्धों के हमारे अध्ययन से इसकी स्वतंत्रता स्थगित होती प्रतीत होती है।     

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