क्या बीजेपी तलाशेगी नया नेता?
17 सितंबर 1950: 74 साल के हो गए पीएम मोदी, क्या बीजेपी तलाशेगी नया नेता?
प्रधानमंत्री 2025 में जब 17 सितंबर को अपना 75वां जन्मदिन मना रहे होंगे तो खुद उनके और बीजेपी के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो सकता है.
लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अरविंद केजरीवाल का एक बयान काफी चर्चा में आ गया था जिसमें उन्होंने दावा किया था, “मोदी जी 17 सितंबर 2025 को 75 साल के होने वाले हैं. नरेंद्र मोदी जी ने 2014 में खुद ही ये नियम बनाया था कि बीजेपी के भीतर जो नेता 75 साल के होंगे, उन्हें रिटायर कर दिया जाएगा. इसलिए खुद मोदी जी भी रिटायर हो जाएंगे.”
केजरीवाल के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बीजेपी और मोदी का राजनीतिक उत्तराधिकारी कौन होगा, इसपर भी जमकर चर्चा शुरू हो गई थी. मामला इस हद तक आगे बढ़ गया था अमित शाह और पीएम मोदी दोनों को ही अपना पक्ष रखना पड़ा था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यानी 17 सितंबर को अपना 74वां जन्मदिन मना रहे हैं. इसके साथ ही अलगे साल वह 75 साल के हो जाएंगे. यह आंकड़ा सिर्फ उनके जीवन के एक महत्वपूर्ण पड़ाव का ही नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में उनके प्रभाव और भविष्य को भी दर्शाएगा. यह सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी के लंबे और प्रभावशाली कार्यकाल के बाद बीजेपी और देश की राजनीति में कौन उनकी विरासत को आगे बढ़ाएगा?
क्या वाकई पीएम मोदी ने 75 साल में रिटायर वाली बात कही थी?
इस पूरी कहानी की शुरुआत साल 2014 होती है. इस साल प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने अपना कार्यकाल संभाला था. उस साल लालकृष्ण आडवाणी (86) और मुरली मनोहर जोशी (80) जैसे बड़े नेताओं को संसदीय बोर्ड या कैबिनेट में जगह नहीं दी गई. कैबिनेट की जगह उन्हें मार्गदर्शक मंडल में जगह मिली.
नरेंद्र मोदी के पहले पीएम पद का कार्यभार संभालने के बाद जून 2016 में मध्य प्रदेश कैबिनेट विस्तार किया गया. उस वक्त 75 साल पार बाबूलाल गौर और सरताज सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. ठीक इसी तरह पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, जो कि उस वक्त 80 पार थीं, उन्हें भी किसी तरह की जिम्मेदारी नहीं दी गई.
साल 2019 में भी आडवाणी और जोशी को बीजेपी को टिकट नहीं मिला. उस वक्त आडवाणी की उम्र 91 साल थी और जोशी की उम्र 86 साल थी. इस चुनाव में विपक्ष ने भी इस मुद्दे को जमकर भुनाया था. पार्टी के दो शीर्ष नेताओं को टिकट नहीं दिए जाने के सवाल पर अप्रैल महीने में ‘द वीक’ को दिए इंटरव्यू में अमित शाह ने कहा था, ”पार्टी ने फैसला किया है कि इस चुनाव में 75 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति को टिकट नहीं दिया जाएगा.”
मोदी के चुनावी रणनीतिकार रह चुके प्रशांत किशोर ने भी एक इंटरव्यू में इस बात का जिक्र करते हुए ये कहा था- “ये नियम तो खुद नरेंद्र मोदी जी ने ही बनाया है, तो उन पर है कि वो इस नियम को मानेंगे या नहीं?”
उत्तराधिकारी के तौर पर कौन है जनता की पहली पसंद?
इसी साल फरवरी महीने में इंडिया टुडे-सी वोटर ने प्रधानमंत्री मोदी और उनके रिटायर होने पर बीजेपी में उनके उत्तराधिकारी को लेकर एक सर्वे किया है. सर्वे में गृह मंत्री अमित शाह सबसे आगे हैं, जबकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दूसरे नंबर पर हैं. वहीं इस रेस में तीसरे स्थान पर हैं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी. इस सर्वे में शामिल 16 प्रतिशत लोगों ने बताया कि पीएम मोदी के रिटायर होने के बाद नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. बीजेपी के एक और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह इस सर्वे में चौथे नंबर पर हैं.
मोदी के उत्तराधिकारी के सवाल पर क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?
पटना यूनिवर्सिटी के राजनीति के प्रोफसर आलोक मिश्र ने इस सवाल के जवाब में कहा, “इसका जवाब लोकसभा चुनाव के दौरान ही अमित शाह दे चुके हैं. दरअसल जब 75 साल होने पर रिटायरमेंट के मुद्दे ने तुल पकड़ा था, तब अमित शाह ने अपने एक बयान में साफ कहा था कि इस तरह का कोई नियम हमारे संविधान में नहीं है और पीएम मोदी इस बार ही नहीं बल्कि अगले लोकसभा चुनाव में भी पीएम पद के उम्मीदवार रहेंगे. लेकिन इस बात से भी नहीं इनकार नहीं किया जा सकता कि अगले चेहरे की तलाश, तैयारी और तकरार शुरू हो चुकी है.”
उन्होंने कहा, “इस लोकसभा चुनाव में भी अमित शाह और योगी आदित्यनाथ का नाम अगले पीएम चेहरे के लिए लिया जा रहा था. इसके अलावा एक सर्वे भी हुआ था, जिसमें दावा किया गया था कि जनता योगी आदित्यनाथ और अमित शाह को अपने अगले पीएम के रूप में देखना चाहती है. प्रोफेसर आगे कहते हैं अमित शाह में भले ही प्रबंधन की शक्तियां हैं लेकिन जनता की नजर में शाह कहीं खरे नहीं उतरते. यही कारण है कि शाह इस ताक में हैं कि मौका मिलते ही योगी आदित्यनाथ को हटाया जा सके.”
वहीं वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने कहा, “फरवरी महीने में जनता के बीच जो सर्वे किया गया था, उसमें 29 प्रतिशत लोगों ने अमित शाह को मोदी जी का उत्तराधिकारी माना था और 26 प्रतिशत लोगों ने योगी आदित्यनाथ को. मुझे भी यही लगता है कि ये दोनों ही इस रेस में सबसे आगे हैं. कहा भी जाता है कि भारतीय जनता पार्टी का ये मोदी-शाह युग है, जैसे एक समय में कहा जाता था श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे तो उनके साथ दीन दयाल उपाध्याय थे. दीन दयाल उपाध्याय जी के साथ अटल बिहारी बाजपेयी थे. अटल बिहारी बाजपेयी के साथ आडवाणी जी थे. उसके बाद जब नरेंद्र मोदी आए तो मोदी-शाह चलने लगा है. मगर योगी आदित्यनाथ ने अपना कमाल की छवि बनाई है. क्योंकि वह देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री हैं.”
हर्षवर्धन त्रिपाठी कहते हैं, “यहां दूसरा पहलू ये भी है कि अभी योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं, उनका दूसरा कार्यकाल चल रहा है. लेकिन अमित शाह नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात से चले आ रहे हैं. राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बना दी. बेहतरीन ऑर्गनाइजेशनल स्ट्रक्चर उन्होंने तैयार कर दिया है. कमाल की बात ये है कि चुनाव प्रचार के समय से देखें तो शायद अमित शाह को इस बात का एहसास है और वो लीडर बनने के लिए कोशिश भी कर रहे हैं. आप सदन में उनका भाषण देख लीजिये, आप चुनाव प्रचार के दौरान उनकी रैलियां देख लीजिये. उन्होंने इस चुनाव प्रचार के दौरान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में खुद ही इन कमांड किया. तो मुझे लगता है कि शायद उनको भी ये पता है कि अब ये चर्चा होने लगी है कि मोदी का उत्तराधिकारी कौन होगा.”
वहीं बीजेपी पर नज़र रखने वाले एक स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार इस सवाल के जवाब में कहते हैं, ”भारत के जिन वोटर्स के बीच बीजेपी पॉपुलर है यानी जो वोटर्स इस पार्टी को पसंद करते हैं और वोट देते हैं, उनकी नजर नें मोदी के बाद योगी ही हैं. योगी की अपील न सिर्फ उत्तरप्रदेश में बल्कि दूसरे राज्यों में शाह की तुलना में ज्यादा है. योगी सिर्फ बीजेपी या यूपी तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि नाथ संप्रदाय के अहम गोरखधाम मठ के महंत होने की वजह से देश के अलग-अलग हिस्सों में भी उनकी लोकप्रियता है.”
पीएम मोदी के राजनीतिक सफर की शुरुआत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात के वडनगर नामक एक छोटे से गांव में हुआ था. उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़कर राजनीति में कदम रखा. वे संघ के प्रचारक बने और इसके माध्यम से अपनी राजनीतिक समझ को विकसित किया. साल 1980 के दशक में वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए. उन्होंने पार्टी के विभिन्न पदों पर काम किया और अपने नेतृत्व के गुणों को साबित किया.
2001 में नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पद संभाला. इस पद पर रहते हुए उन्होंने राज्य के विकास के लिए कई योजनाएं बनाई और लागू कीं. साल 2014 में, भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया. उनकी नेतृत्व क्षमता और विकास के प्रति प्रतिबद्धता की वजह से उन्हें भारी बहुमत मिला और वे भारत के 14वें प्रधानमंत्री बने.
साल 2019 में, मोदी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता संभाली, और उनकी सरकार ने कई बड़े सुधार किए, जैसे जीएसटी लागू करना और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को हटाना. नरेंद्र मोदी आज भी भारतीय राजनीति का प्रमुख चेहरा हैं और देश के विकास की दिशा में काम कर रहे हैं. उनकी यात्रा ने उन्हें एक मजबूत नेता और प्रभावशाली व्यक्तित्व बना दिया है.