भ्रष्टाचार के जिस मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को लगा झटका ?

MUDA: भ्रष्टाचार के जिस मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को लगा झटका, उस मुडा केस में कब क्या हुआ?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ गई हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सिद्धारमैया की याचिका खारिज कर दी। सिद्धारमैया ने भूमि आबंटन के संबंध में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामला दर्ज करने की राज्यपाल द्वारा दी गई मंजूरी के खिलाफ याचिका दायर की थी। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुडा मामले में मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी। उच्च न्यायालय के ताजा फैसले के बाद मुख्यमंत्री के खिलाफ मुडा मामले में अब मुकदमा चलाया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह इस बारे में विशेषज्ञों से परामर्श करेंगे कि क्या कानून के तहत ऐसी जांच की अनुमति है या नहीं।

यह मामला कर्नाटक के मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) भूमि आबंटन में कथित अनियमितता से जुड़ा हुआ है। विपक्ष का आरोप है कि मुख्यमंत्री इस भ्रष्टाचार में सीधे संलिप्त हैं और उन्हें इस्तीफा देना चाहिए। उधर मुख्यमंत्री लगातार सारे आरोपों को झूठा बता रहे हैं। आइए टाइमलाइन में जानते हैं कि आखिर मुडा भूमि घोटाला क्या है? इस मामले में किस पर और क्या आरोप लगे हैं? मामले की शुरुआत कैसे हुई? राज्यपाल की तरफ से इस मामले में क्या कार्रवाई की गई? अदालत में क्या हो रहा है? विपक्ष क्या आरोप लगा रहा है? कर्नाटक के सीएम आरोपों पर क्या कह रहे हैं?
 

  • कर्नाटक सीएम सिद्धारमैया, मुडा मामला

    1 जुलाई
    मुडा में कथित गड़बड़ी का मामला जुलाई के शुरुआत में सामने आया था। 1 जुलाई को आईएएस अधिकारी वेंकटचलपति आर के नेतृत्व में जांच के लिए एक सरकारी आदेश जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि प्रथम दृष्टया मुडा के भूखंडों के आवंटन में अनियमितताओं का संदेह है। इसमें कहा गया कि भूखंडों को पात्र लाभार्थियों को देने के बजाय, उन्हें प्रभावशाली लोगों और रियल एस्टेट एजेंटों को आवंटित किए जाने की शिकायतें मिली थीं।

    इसके बाद राज्य के शहरी विकास मंत्री ब्यारती सुरेश ने 1 जुलाई को मैसूर में एक बैठक की और मुडा आयुक्त दिनेश कुमार सहित चार अधिकारियों का तबादला कर दिया। राज्य में कथित घोटाले की खबरें सामने आने के बाद, कर्नाटक के नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक ने दावा किया कि सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को भी नियमों का उल्लंघन करते हुए एक वैकल्पिक साइट दी गई।

    दरअसल, मुडा शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी। 50:50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50% के हकदार होते थे। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी। जिसे 2020 में उस वक्त की भाजपा सरकार ने बंद कर दिया। सरकार द्वारा योजना को बंद करने के बाद भी मुडा ने 50:50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। सारा विवाद इसी से जुड़ा है। आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को इसी के तहत लाभ पहुंचाया गया।

    आरोप है कि मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि  मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। मैसूर के बाहरी इलाके केसारे में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी। आरोप है कि मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी।

    मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पार्वती ने आवेदन किया जिसके आधार पर, मुडा ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित कीं। यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि पार्वती को मुडा द्वारा इन साइटों के आवंटन में अनियमितता बरती गई है। 

  • 3 जुलाई
    कई भाजपा नेताओं ने कथित घोटालों को लेकर मुख्यमंत्री आवास के बाहर प्रदर्शन किया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बी.वाई. विजयेंद्र ने कहा कि इससे मुख्यमंत्री की पोल खुल गई है और उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। भाजपा की तरफ से आरोप लगाए गए कि विजयनगर में जो साइटें आवंटित की गई हैं उनका बाजार मूल्य केसारे में मूल भूमि से काफी अधिक है। विपक्ष ने अब मुआवजे की निष्पक्षता और वैधता पर भी सवाल उठाए।

  • 4 जुलाई
    विपक्ष के आरोपों के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आवंटन का बचाव करते हुए 4 जुलाई को बयान जारी किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह आवंटन 2021 में भाजपा सरकार के वक्त किया गया था। उन्होंने कहा कि विजयनगर में साइटें इसलिए दी गईं क्योंकि केसारे में देवनूर फेज 3 इलाके में साइटें उपलब्ध ही नहीं थीं। आरोपों के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी जमीन अधिग्रहित कर पार्क बना दिया गया और उन्हें मुआवजे के तौर पर एक प्लॉट दिया गया। आवंटन 2021 में भाजपा के कार्यकाल के दौरान किया गया था। सिद्धारमैया ने कहा, ‘अगर उन्हें लगता है कि यह कानून के खिलाफ है, तो उन्हें बताना चाहिए कि यह कैसे सही है। अगर जमीन की कीमत 62 करोड़ रुपये है, तो उन्हें प्लॉट वापस ले लेना चाहिए और हमें उसी के अनुसार मुआवजा देना चाहिए।’इसके अलावा सिद्धारमैया के कानूनी सलाहकार एएस पोन्नन्ना ने भी पूरे प्रकरण पर सफाई पेश की। पोन्नन्ना ने दावा किया कि विजयनगर में मुआवजे वाली जगह का मूल्य केसारे में मूल जमीन से बहुत कम है। उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अनुसार, पार्वती सरकार से 57 करोड़ रुपये अधिक पाने की हकदार हैं, क्योंकि उन्हें मुआवजे के रूप में मिली भूमि की कीमत महज 15-16 करोड़ रुपये है, जो कि केसारे में उनकी मूल जमीन से बहुत कम है। पोन्नन्ना ने आगे बताया कि मुआवजा स्थल का क्षेत्रफल 38,284 वर्ग फीट है जबकि मूल भूमि 1,48,104 वर्ग फीट की थी। उन्होंने दावा किया कि पार्वती ने देरी से बचने के लिए विजयनगर साइट को चुना, भले ही इसका बाजार मूल्य कम था।

  • 14 जुलाई
    विपक्ष ने इस मुद्दे को जुलाई के दूसरे हफ्ते में और प्रमुखता से उठाया जैसा कि 15 जुलाई से कर्नाटक विधानसभा सत्र की शुरुआत होनी थी। इस बीच 14 जुलाई राज्य सरकार ने मुडा द्वारा जमीन के आवंटन में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया। यह न्यायिक आयोग कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पीएन देसाई की अध्यक्षता में बनाया गया। आयोग को अपनी जांच पूरी करने और सरकार को रिपोर्ट सौंपने के लिए छह महीने का समय दिया गया है।यह मुद्दा तब और चर्चा में आ गया जब 15 जुलाई से कर्नाटक विधानसभा सत्र की शुरुआत हुई। भाजपा और जेडीएस ने सत्र की शुरुआत से ही यह मुद्दा उछाला। विरोध की वो तस्वीरें भी सामने आई जब विपक्षी विधायक रात्रि में धरने पर बैठे रहे और वहीं बिस्तर लगाकर सोये।

  • 18 जुलाई
    इस विवाद के सामने आने के बाद जाने-माने एडवोकेट आरटीआई एक्टिविस्ट टीजे अब्राहम ने 18 जुलाई को मैसूर में लोकायुक्त पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। इसमें कहा गया कि मैसूर के पॉश विजयनगर में 14 स्थलों का आवंटन 5 जनवरी, 2022 को सीएम की पत्नी बीएम पार्वती को किया गया, जो अवैध था और इससे कथित तौर पर राज्य के खजाने को 45 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अपनी शिकायत में अब्राहम ने सीएम सिद्धारमैया, उनके परिवार के सदस्यों और मुडा अधिकारियों का नाम लिया।इसके बाद भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता टीजे अब्राहम ने राज्यपाल के पास शिकायत की। इसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि मुडा घोटाले में अवैध आवंटन से राज्य के खजाने को 45 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। शिकायत में सीएम सिद्धारमैया, उनकी पत्नी, बेटे और मुडा के आयुक्त के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई।

  • 26 जुलाई
    टीजे अब्राहम द्वारा दायर याचिका के आधार पर, कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने 26 जुलाई को मुख्यमंत्री को ‘कारण बताओ नोटिस जारी किया। इस नोटिस में मुख्यमंत्री को निर्देश दिया गया था कि वे सात दिनों के भीतर उनके खिलाफ आरोपों पर अपना जवाब प्रस्तुत करें कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति क्यों नहीं दी जानी चाहिए। 

  • 1 अगस्त
    इसके बाद कैबिनेट की बैठक में राज्यपाल के नोटिस पर चर्चा हुई। हालांकि, सीएम सिद्धारमैया ने अपने ऊपर लगे आरोपों के चलते कैबिनेट की अध्यक्षता से खुद को अलग कर लिया। उधर सिद्धारमैया के मंत्रिमंडल के कई सहयोगियों ने राज्यपाल के कदम की आलोचना की और केंद्र सरकार पर राजभवन का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। कैबिनेट ने 1 अगस्त को राज्यपाल को मुख्यमंत्री को अपना ‘कारण बताओ नोटिस’ वापस लेने की सलाह दी। 

  • 3 अगस्त
    राज्यपाल के ‘कारण बताओ नोटिस’ नोटिस के उत्तर में मुख्यमंत्री ने 210 पृष्ठों के दस्तावेजों के साथ दिनांक 3 अगस्त को एक विस्तृत उत्तर भी दिया। इसी मामले में 3 अगस्त से भाजपा और जेडीएस से अपनी 10 दिवसीय पदयात्रा की शुरुआत कर दी। दोनों पार्टियों ने बंगलूरू के केनगेरी से अपनी पदयात्रा की शुरुआत की, जो कि बाद में मैसूर में समाप्त हुई। 

  • 13 अगस्त
    राज्यपाल के पास इस मुद्दे से जुड़ी एक और शिकायत मिली। यह शिकायत मैसूर निवासी स्नेहमयी कृष्णा द्वारा दायर की गई। इस शिकायत में स्नेहमयी ने मुख्यमंत्री पर अपने पद का दुरुपयोग करने और मुडा द्वारा भूमि आवंटन के संबंध में कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया।यह मामला लोकायुक्त पुलिस, राज्यपाल से होते हुए अदालत तक भी पहुंच गया। 13 अगस्त को ही मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उनकी पत्नी और अन्य के खिलाफ दायर दो निजी शिकायतों पर सांसदों/विधायकों से जुड़े मामलों की विशेष अदालत ने सुनवाई की। यह शिकायत मैसूर निवासी शेहमयी कृष्णा द्वारा दायर की गई है। विशेष अदालत के न्यायाधीश संतोष गजानन भट ने शिकायत की स्वीकार्यता पर 20 अगस्त, 2024 तक आदेश सुरक्षित रख लिया। इससे पहले सामाजिक कार्यकर्ता टीजे अब्राहम द्वारा दो शिकायतें दायर की गई थीं जिस पर अदलात ने आगे की सुनवाई स्थगित कर दी है।

  • 17 अगस्त
    राज्यपाल ने सीएम के खिलाफ मुडा मामले में मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने अपने आदेश में मंत्रिमंडल की मुकदमा न चलाने वाली सलाह को अस्वीकार कर दिया है। राज्यपाल ने आदेश में कहा कि मुख्यमंत्री पर जो आरोप लगाए गए हैं, उसकी जांच करने के लिए समिति बनाने के लिए सक्षम नहीं है। मुख्यमंत्री की सिफारिश पर गठित मंत्रिमंडल भी सिफारिश करने वाले व्यक्ति के खिलाफ सलाह देने के लिए सक्षम नहीं है। इसके आधार पर राज्यपाल ने वर्तमान मामले में मंत्रिमंडल की सलाह को तर्कहीन और पक्षपातपूर्ण करार दिया और कहा कि इसे प्रामाणिक नहीं माना जा सकता है।राज्यपाल ने अपने आदेश में आगे उल्लेख किया है कि उन्होंने याचिकाओं में आरोपों के समर्थन में सामग्री के साथ याचिका का अध्ययन किया है और बाद में सिद्धारमैया के जवाब और कानूनी राय के साथ राज्य मंत्रिमंडल की सलाह का अध्ययन किया है। राज्यपाल ने कहा कि तथ्यों के एक ही सेट के संबंध में दो-दो तरह के उत्तर मिले हैं और इस परिस्थिति में यह बहुत आवश्यक है कि एक निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए।

    राज्यपाल ने कहा कि वो इस बात से संतुष्ट हैं कि मुख्यमंत्री के खिलाफ टीजे अब्राहम, प्रदीप कुमार एसपी और स्नेहमयी कृष्णा की याचिकाओं में उल्लिखित अपराधों को करने के आरोपों पर मंजूरी दी जा सकती है। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17A और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत याचिकाओं में उल्लिखित कथित अपराधों में शामिल होने के आरोप के कारण अभियोजन की मंजूरी दी है।

  • 12 सितंबर 
    मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राज्यपाल द्वारा दी गई मंजूरी को कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी। न्यायालय ने 12 सितंबर को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा दायर याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। मैराथन सुनवाई के बाद, न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने मामले को फैसले के लिए सुरक्षित रखा था। 

  • 24 सितंबर
    कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कर्नाटक उच्च न्यायालय से झटका लगा। न्यायालय ने सिद्धारमैया की याचिका खारिज कर दी। उन्होंने अपने खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करने के लिए तीन व्यक्तियों को राज्य के राज्यपाल द्वारा दी गई मंजूरी के खिलाफ याचिका दायर की थी। यानी अब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। हालांकि, सिद्धारमैया इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकते हैं। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की प्रतिक्रिया आई है। मुख्यमंत्री ने एक बयान में कहा कि वह जांच करने में संकोच नहीं करेंगे, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि वह इस बारे में विशेषज्ञों से परामर्श करेंगे कि क्या कानून के तहत ऐसी जांच की अनुमति है या नहीं।

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