जाड़े से जंग में जवानों को मजबूत बनाती है ये खास ब्रिगेड !

Ladakh: जाड़े से जंग में जवानों को मजबूत बनाती है ये खास ब्रिगेड; इसलिए बेफिक्र रहते हैं सरहद पर तैनात जवान!
देश के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को तिब्बती भाषा में “ऊंचे दर्रों की भूमि” कहा जाता है। लद्दाख में कम से कम 20 दर्रे हैं, जिनमें से 10 ऐसे दर्रे या पास सुपर हाई एल्टीट्यूड एरिया यानी 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं। सर्दियां आते ही भारी बर्फबारी के चलते ये रास्ते बंद हो जाते हैं और इनके उस पार सरहदों की सुरक्षा में तैनात जवानों के लिए सड़क मार्ग से राशन-पानी पहुंचाना मुश्किल हो जाता है।

देश के हाई एल्टीट्यूड इलाके लद्दाख में सर्दियां दस्तक देने के लिए तैयार हैं। हालांकि वहां अभी तक आधिकारिक तौर पर सर्दी शुरू होने का एलान नहीं हुआ है। लेकिन वहां विंटर स्टॉकिंग की शुरुआत हो गई है। सेना के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है, वहां तैनात 50 हजार जवानों के लिए अगले छह महीने तक के लिए रसद का इंतजाम करना, जो इतना आसान नहीं होता है। खासतौर पर उन इलाकों में, जहां तापमान -50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है और सड़क मार्ग से सप्लाई के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। ऐसे में ये जिम्मा वहां तैनात त्रिशूल डिविजन और आर्मी एविएशन ब्रिगेड के हेलीकॉप्टर उठाते हैं।

15 नवंबर से लद्दाख में सर्दियों का एलान
देश के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को तिब्बती भाषा में “ऊंचे दर्रों की भूमि” कहा जाता है। लद्दाख में कम से कम 20 दर्रे हैं, जिनमें से 10 ऐसे दर्रे या पास सुपर हाई एल्टीट्यूड एरिया यानी 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं। इनमें रेजांग-ला 17,057 फीट पर और दुनिया का सबसे ऊंचा मोटरेबल पास उमलिंग-ला 19,300 फीट पर स्थित है। सर्दियां आते ही भारी बर्फबारी के चलते ये रास्ते बंद हो जाते हैं और इनके उस पार सरहदों की सुरक्षा में तैनात जवानों के लिए सड़क मार्ग से राशन-पानी पहुंचाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए उनके लिए रसद का स्टॉक करने तैयारियां पहले से ही शुरू हो जाती हैं। बता दें कि 15 नवंबर से लद्दाख में सर्दियों के आने का एलान कर दिया जाता है और सर्दियों के दौरान महीनों तक यह देश के बाकी हिस्सों से कटा रहता है। सेना को इसके लिए अगले छह महीनों की एडवांस स्टॉक रखना होता है, क्योंकि भारी बर्फबारी के चलते दर्रे बंद हो जाते हैं। सेना को राशन के अलावा गोला-बारूद, हीटिंग एप्लांइसेज (बुखारी या केरो-हीटर) और सर्दियों के कपड़े-जूते, ईंधन और कड़ाके की ठंड से बचाने वाले टेंट तक की स्टॉकिंग करनी होती है। 

सर्दियों में हेलीकॉप्टर बन जाता है सेना की लाइफलाइन
लेह स्थित आर्मी एविएशन ब्रिगेड के ब्रिगेडियर गुरदीप सिंह ने अमर उजाला को बताया कि उनकी यह ब्रिगेड 14 कोर यानी फायर एंड फ्यूरी के तहत आती है। सर्दियां आते ही उनकी ब्रिगेड की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। क्योंकि यहां तैनात जवान हाई एल्टीट्यूड एरिया में तैनात है, जिनकी ऊंचाई 21 हजार फीट तक है। ऐसे में उनकी आर्मी एविएशन ब्रिगेड में तैनात हेलीकॉप्टर्स को फॉरवर्ड एरिया में तैनात जवानों की मदद के लिए तैयार किए जाते हैं। सियाचिन या पश्चिमी लद्दाख का इलाका सर्दियों में बंद हो जाता है और ऐसे में वहां तैनात जवानों को राशन, केरोसिन या मेडिकल हेल्प की सुविधा हेलीकॉप्टर्स से दी जाती है। ब्रिगेडियर गुरदीप ने बताया कि सर्दियों में रास्ते बंद होने पर एडवांस विंटर स्टॉकिंग की जाती है, ताकि बॉर्डर पर तैनात जवानों के लिए राशन, मेडिकल सप्लाई या तबियत खराब होने पर उन्हें इवैक्यूएट भी किया जाता है। 

आर्मी एविएशन ब्रिगेड में तैनात लॉजिस्टिक ऑफिसर कैप्टन अंजु यादव ने अमर उजाला को बताया कि विंटर स्टॉकिंग में जहां रसद आदि का भी एडवांस स्टॉक रखना होता है, तो हेलीकॉप्टर के पुर्जे भी एडवांस में मंगवाने होते हैं, यह उनकी जिम्मेदारी है।   वह बताती हैं कि उन्हें दिल्ली में स्थित सेंट्रल एविएशन डिपो और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड से स्पेयर पार्ट्स आते हैं। ताकि कोई भी जहाज स्पेयर पार्ट्स की कमी से न जूझे और एयर ऑपरेशंस लगातार चलते रहें।  

हाई एल्टीट्यूड इलाकों में ऑपरेशंस देखती है आर्मी एविएशन ब्रिगेड
बता दें कि 2020 में गलवान हिंसा के बाद भारतीय सेना ने 2021 में तीन आर्मी एविएशन ब्रिगेड बनाई थीं। इनके से एक ब्रिगेड लेह में स्थित है, जो हाई अल्टीट्यूड इलाकों में ऑपरेशंस देखती है। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी चीन से सटे पूर्वी लद्दाख में इस ब्रिगेड की अहमियत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि यह चीन-पाकिस्तान से सटे बॉर्डर पर तैनात जवानों की लाइफ लाइन है, जो निगरानी से लेकर बीमार जवानों का इवैक्यूएशन करने के अलावा उन्हें राशन और हथियारों की भी सप्लाई करती है। यह ब्रिगेड केवल 14 कोर के तहत आती है, इसलिए इसे इंडिपेंडेंट ब्रिगेड भी कहा जाता है। सूत्रों के मुताबिक इस ब्रिगेड के पास लॉजिस्टिक के लिए एलएएच ध्रुव, एचएएल चीतल और अटैक हेलीकॉप्टर भी हैं, जो राशन सप्लाई के अलावा निगरानी का भी काम करते हैं।    

कई सौ मीट्रिक टन गेहूं और चावल की स्टॉकिंग
वहां तैनात सूत्रों ने अमर उजाला को बताया कि इस बार लद्दाख में भीषण सर्दी पड़ने की उम्मीद है, क्योंकि तापमान में गिरावट शुरू हो गई है। ऐसे में चीन से चल रहे गतिरोध के चलते सीमा पर तैनात जवानों के लिए रसद की स्टॉकिंग करना बड़ा काम है। लद्दाख में तैनात सेना की त्रिशूल डिविजन के तहत दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ), देपसांग, डेमचोक और गलवां घाटी का इलाका आता है। सूत्रों ने बताया कि सर्दियों को देखते हुए इस डिविजन ने लगभग 2 करोड़ लीटर ईंधन स्टोर किया है। इसके अलावा अगले छह महीनों के लिए कई सौ मीट्रिक टन गेहूं और चावल के अलावा कई लाख लीटर खाद्य तेल भी स्टोर किया है। सूत्रों ने बताया कि सर्दियों के मौसम के लिए खरीदे गए गेहूं में विशेष रसायन मिलाए जाते हैं, ताकि गेंहू के स्टॉक को तीन महीनों की बजाय अगले छह महीनों तक इस्तेमाल किया जा सके। 

जवानों के पसंदीदा भोजन के हिसाब से स्टॉकिंग 
सूत्रों ने बताया कि भारतीय सेना में हर कई राज्यों के लोग तैनात हैं, जो अलग-अलग तरह का भोजन खाते हैं। जैसे भारत के दक्षिणी राज्यों के लोग ज़्यादा चावल खाते हैं, जबकि यूपी, हरियाणा या पंजाब के लोग ज़्यादा गेहूं खाते हैं। ऐसे में सेना भोजन तैयार करने के लिए जरूरी सामान जैसे नमक, चीनी, चाय, कॉफी, हल्दी और मसाले की भी स्टॉकिंग करती है। इसके अलावा सर्दियों के दौरान भी हर हफ्ते ताजी सब्ज़ियां और फ्रोजन मीट भी हवाई मार्ग से लद्दाख भेजा जाता है। सूत्रों ने बताया कि 2015 तक सेना फॉरवर्ड पोस्टों पर मीट की जरूरत पूरी करने के लिए जिंदा पशु की सप्लाई करती थी, लेकिन अब यह सिलसिला बंद हो चुका है और अब फ्रोजन मीट भेजा जाता है। सूत्रों के मुताबिक अभी तक आगामी सर्दियों को देखते हुए 60 फीसदी स्टॉकिंग हो चुकी है और 15 नवंबर तक बाकी स्टॉकिंग भी पूरी हो जाएगी। उन्होंने बताया कि मनाली से लेह को जोड़ने वाली निम्मू-पदुम-दारचा रोड बन तो गई है, लेकिन वहां शिंकु-ला अभी भी बर्फबारी में बंद हो जाता है। लेकिन जैसे ही 4.1 किमी लंबी शिंकु-ला टनल बन जाएगी, तो विंटर स्टॉकिंग के लिए ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ेगी। 

भारतीय सेना के लिए मनोवैज्ञानिक जंग!
भारतीय सेना लेह में तैनात सूत्रों ने बताया कि लद्दाख में हाई से लेकर सुपर हाई एल्टीट्यूड के इलाके शामिल होते हैं और नवंबर के बाद 40 फीट तक ऊंची बर्फबारी होती है। साथ ही, तापमान का शून्य से 30 से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे गिरना एक आम बात है। वहीं ठंडी हवाएं हालात को और बिगाड़ देती हैं। लेकिन इन सबके बावजूद, भारतीय सैनिकों को विंटर वॉरफेयर का अच्छा खासा अनुभव है और वे इसके लिए मनोवैज्ञानिक तौर पर भी तैयार हैं।

15 नवंबर से लद्दाख में सर्दियों का एलान
देश के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को तिब्बती भाषा में “ऊंचे दर्रों की भूमि” कहा जाता है। लद्दाख में कम से कम 20 दर्रे हैं, जिनमें से 10 ऐसे दर्रे या पास सुपर हाई एल्टीट्यूड एरिया यानी 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं। इनमें रेजांग-ला 17,057 फीट पर और दुनिया का सबसे ऊंचा मोटरेबल पास उमलिंग-ला 19,300 फीट पर स्थित है। सर्दियां आते ही भारी बर्फबारी के चलते ये रास्ते बंद हो जाते हैं और इनके उस पार सरहदों की सुरक्षा में तैनात जवानों के लिए सड़क मार्ग से राशन-पानी पहुंचाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए उनके लिए रसद का स्टॉक करने तैयारियां पहले से ही शुरू हो जाती हैं। बता दें कि 15 नवंबर से लद्दाख में सर्दियों के आने का एलान कर दिया जाता है और सर्दियों के दौरान महीनों तक यह देश के बाकी हिस्सों से कटा रहता है। सेना को इसके लिए अगले छह महीनों की एडवांस स्टॉक रखना होता है, क्योंकि भारी बर्फबारी के चलते दर्रे बंद हो जाते हैं। सेना को राशन के अलावा गोला-बारूद, हीटिंग एप्लांइसेज (बुखारी या केरो-हीटर) और सर्दियों के कपड़े-जूते, ईंधन और कड़ाके की ठंड से बचाने वाले टेंट तक की स्टॉकिंग करनी होती है। सर्दियों में हेलीकॉप्टर बन जाता है सेना की लाइफलाइन
लेह स्थित आर्मी एविएशन ब्रिगेड के ब्रिगेडियर गुरदीप सिंह ने अमर उजाला को बताया कि उनकी यह ब्रिगेड 14 कोर यानी फायर एंड फ्यूरी के तहत आती है। सर्दियां आते ही उनकी ब्रिगेड की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। क्योंकि यहां तैनात जवान हाई एल्टीट्यूड एरिया में तैनात है, जिनकी ऊंचाई 21 हजार फीट तक है। ऐसे में उनकी आर्मी एविएशन ब्रिगेड में तैनात हेलीकॉप्टर्स को फॉरवर्ड एरिया में तैनात जवानों की मदद के लिए तैयार किए जाते हैं। सियाचिन या पश्चिमी लद्दाख का इलाका सर्दियों में बंद हो जाता है और ऐसे में वहां तैनात जवानों को राशन, केरोसिन या मेडिकल हेल्प की सुविधा हेलीकॉप्टर्स से दी जाती है। ब्रिगेडियर गुरदीप ने बताया कि सर्दियों में रास्ते बंद होने पर एडवांस विंटर स्टॉकिंग की जाती है, ताकि बॉर्डर पर तैनात जवानों के लिए राशन, मेडिकल सप्लाई या तबियत खराब होने पर उन्हें इवैक्यूएट भी किया जाता है। आर्मी एविएशन ब्रिगेड में तैनात लॉजिस्टिक ऑफिसर कैप्टन अंजु यादव ने अमर उजाला को बताया कि विंटर स्टॉकिंग में जहां रसद आदि का भी एडवांस स्टॉक रखना होता है, तो हेलीकॉप्टर के पुर्जे भी एडवांस में मंगवाने होते हैं, यह उनकी जिम्मेदारी है।   वह बताती हैं कि उन्हें दिल्ली में स्थित सेंट्रल एविएशन डिपो और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड से स्पेयर पार्ट्स आते हैं। ताकि कोई भी जहाज स्पेयर पार्ट्स की कमी से न जूझे और एयर ऑपरेशंस लगातार चलते रहें।  

हाई एल्टीट्यूड इलाकों में ऑपरेशंस देखती है आर्मी एविएशन ब्रिगेड
बता दें कि 2020 में गलवान हिंसा के बाद भारतीय सेना ने 2021 में तीन आर्मी एविएशन ब्रिगेड बनाई थीं। इनके से एक ब्रिगेड लेह में स्थित है, जो हाई अल्टीट्यूड इलाकों में ऑपरेशंस देखती है। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी चीन से सटे पूर्वी लद्दाख में इस ब्रिगेड की अहमियत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि यह चीन-पाकिस्तान से सटे बॉर्डर पर तैनात जवानों की लाइफ लाइन है, जो निगरानी से लेकर बीमार जवानों का इवैक्यूएशन करने के अलावा उन्हें राशन और हथियारों की भी सप्लाई करती है। यह ब्रिगेड केवल 14 कोर के तहत आती है, इसलिए इसे इंडिपेंडेंट ब्रिगेड भी कहा जाता है। सूत्रों के मुताबिक इस ब्रिगेड के पास लॉजिस्टिक के लिए एलएएच ध्रुव, एचएएल चीतल और अटैक हेलीकॉप्टर भी हैं, जो राशन सप्लाई के अलावा निगरानी का भी काम करते हैं।    

कई सौ मीट्रिक टन गेहूं और चावल की स्टॉकिंग
वहां तैनात सूत्रों ने अमर उजाला को बताया कि इस बार लद्दाख में भीषण सर्दी पड़ने की उम्मीद है, क्योंकि तापमान में गिरावट शुरू हो गई है। ऐसे में चीन से चल रहे गतिरोध के चलते सीमा पर तैनात जवानों के लिए रसद की स्टॉकिंग करना बड़ा काम है। लद्दाख में तैनात सेना की त्रिशूल डिविजन के तहत दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ), देपसांग, डेमचोक और गलवां घाटी का इलाका आता है। सूत्रों ने बताया कि सर्दियों को देखते हुए इस डिविजन ने लगभग 2 करोड़ लीटर ईंधन स्टोर किया है। इसके अलावा अगले छह महीनों के लिए कई सौ मीट्रिक टन गेहूं और चावल के अलावा कई लाख लीटर खाद्य तेल भी स्टोर किया है। सूत्रों ने बताया कि सर्दियों के मौसम के लिए खरीदे गए गेहूं में विशेष रसायन मिलाए जाते हैं, ताकि गेंहू के स्टॉक को तीन महीनों की बजाय अगले छह महीनों तक इस्तेमाल किया जा सके। 

जवानों के पसंदीदा भोजन के हिसाब से स्टॉकिंग 
सूत्रों ने बताया कि भारतीय सेना में हर कई राज्यों के लोग तैनात हैं, जो अलग-अलग तरह का भोजन खाते हैं। जैसे भारत के दक्षिणी राज्यों के लोग ज़्यादा चावल खाते हैं, जबकि यूपी, हरियाणा या पंजाब के लोग ज़्यादा गेहूं खाते हैं। ऐसे में सेना भोजन तैयार करने के लिए जरूरी सामान जैसे नमक, चीनी, चाय, कॉफी, हल्दी और मसाले की भी स्टॉकिंग करती है। इसके अलावा सर्दियों के दौरान भी हर हफ्ते ताजी सब्ज़ियां और फ्रोजन मीट भी हवाई मार्ग से लद्दाख भेजा जाता है। सूत्रों ने बताया कि 2015 तक सेना फॉरवर्ड पोस्टों पर मीट की जरूरत पूरी करने के लिए जिंदा पशु की सप्लाई करती थी, लेकिन अब यह सिलसिला बंद हो चुका है और अब फ्रोजन मीट भेजा जाता है। सूत्रों के मुताबिक अभी तक आगामी सर्दियों को देखते हुए 60 फीसदी स्टॉकिंग हो चुकी है और 15 नवंबर तक बाकी स्टॉकिंग भी पूरी हो जाएगी। उन्होंने बताया कि मनाली से लेह को जोड़ने वाली निम्मू-पदुम-दारचा रोड बन तो गई है, लेकिन वहां शिंकु-ला अभी भी बर्फबारी में बंद हो जाता है। लेकिन जैसे ही 4.1 किमी लंबी शिंकु-ला टनल बन जाएगी, तो विंटर स्टॉकिंग के लिए ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ेगी। 

भारतीय सेना के लिए मनोवैज्ञानिक जंग!
भारतीय सेना लेह में तैनात सूत्रों ने बताया कि लद्दाख में हाई से लेकर सुपर हाई एल्टीट्यूड के इलाके शामिल होते हैं और नवंबर के बाद 40 फीट तक ऊंची बर्फबारी होती है। साथ ही, तापमान का शून्य से 30 से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे गिरना एक आम बात है। वहीं ठंडी हवाएं हालात को और बिगाड़ देती हैं। लेकिन इन सबके बावजूद, भारतीय सैनिकों को विंटर वॉरफेयर का अच्छा खासा अनुभव है और वे इसके लिए मनोवैज्ञानिक तौर पर भी तैयार हैं।

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