व्यापम केस में CBI की जांच सार्वजनिक हो ?

व्यापम केस में CBI की जांच सार्वजनिक हो
अरुण यादव बोले- परिवहन आरक्षकों की नियुक्ति में घोटाला सिद्ध हुआ, हाईकोर्ट के जज करें जांच

हाईकोर्ट जज की निगरानी में हो जांच

पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने कहा- मध्य प्रदेश में सीबीआई के जो अधिकारी जांच करने के लिए आए थे वो ही भ्रष्टाचार में पकड़े गए। इससे यह पता चलता है कि जांच करने वाले अधिकारी कितने सक्षम थे। इसलिए हम लोगों ने मांग की है कि हाई कोर्ट के किसी रिटायर वरिष्ठ जज की निगरानी में जांच करवाई जाए। आप देख सकते हैं कि प्रदेश में किस तरह से पत्रकार की हत्या हो जाती है। आरटीआई एक्टिविस्ट के साथ घटना हो जाती है। आज भी इन सब की जांच सरकार नहीं कर रही है। अगर सरकार जांच करती तो पब्लिक फोरम पर लेकर आती।

12 सालों से इस मुद्दे को उठा रही कांग्रेस

प्रदेश में व्यापम परीक्षाओं के घोटाले का लंबी लिस्ट है। पिछले 10-12 सालों से लगातार कांग्रेस पार्टी के नेता और हमारे मीडिया के प्रभारी केके मिश्रा इस मुद्दे को सरकार और जनता को सामने रखते आए हैं। जब परिवहन की परीक्षा हुई तो गलत नियुक्तियां की गई। जब सरकार सुप्रीम कोर्ट गई तो कोर्ट के निर्देश पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस नियुक्ति को निरस्त किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि मध्य प्रदेश के परीक्षाओं में घोटाला हुआ।

युवाओं का भविष्य बर्बाद हुआ

इसके बाद हाई कोर्ट के निर्देश पर आरक्षक की भर्ती को सरकार को निरस्त करना पड़ा। इससे स्पष्ट होता है कि व्यापम के माध्यम से परीक्षाओं में बड़े-बड़े घोटाले होते रहे हैं। सीबीआई की जांच यहां पर हुई। इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि सीबीआई ने क्या जांच की है। अगर सरकार ने घोटाला नहीं किया है तो सारी चीजें पब्लिक प्लेटफॉर्म पर आनी चाहिए। हम लोग पहले भी मांग करते आए हैं और फिर मांग कर रहे हैं कि इस पूरे महाघोटाले की जांच उच्च न्यायालय के वरिष्ठ जज की निगरानी में की जाए। साथ ही जनता के सामने आना चाहिए कि किस तरह से व्यापम में प्रदेश के लाखों युवाओं का भविष्य प्रदेश की सरकार ने बर्बाद किया है।

कांग्रेस नेताओं ने सीबीआई की कार्यशैली पर कई सवालिया निशान लगाते ये सवाल पूछे हैं

  • क्या कारण है कि प्रदेश के 1 लाख 47 हजार नौजवानों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले जिस घोटाले में प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल के खिलाफ हाईकोर्ट के निर्देश पर FIR हुई। उनके बेटे और ओएसडी, तत्कालीन मुख्यमंत्री के ओएसडी, प्रेमप्रकाश जो CM के सरकारी निवास पर ही रहते थे। वे अग्रिम जमानत पर रिहा हुए इस मामले में मंत्री जेल गए। कई आईएएस, आईपीएस के नाम सामने आए। कई शिक्षा माफियाओं, साल्वर्स सहित व्यापम के अधिकारी-कर्मचारी लंबे समय तक जेल में रहे। तो रिश्वत देने वाले अभ्यर्थियों, उनके अभिभावकों को आज भी ट्रायल कोर्ट से लंबी सजाएं हो रही हैं। यानी परीक्षाओं में घोटाले हुए, जो बिना भ्रष्टाचार के संभव नहीं थे । यदि जांच पारदर्शी थी तो बड़े-बड़े मगरमच्छ आज बाहर क्यों हैं?
  • इतने बड़े घोटाले में प्रदेश के तत्कालीन सीएम और व्यापम की तत्कालीन मुखिया रंजना चौधरी से CBI ने पूछताछ तक क्यों नहीं की गई ?
  • क्या यह गलत है कि CBI जांच दल के नियुक्त पहले मुखिया मप्र में उन्हीं की बैच के आइपीएस सहयोगी के साथ उन्हीं के चार पहिया वाहन में आधी रात को मिलने CM हाउस गये थे ,क्या यह पारदर्शी जांच का पहला अध्याय था? (कांग्रेस ने तब भी यह प्रश्न उठाया था)
  • पीएमटी परीक्षा घोटाले के एक प्रमुख पदाधिकारी यूसी ऊपरीत ने पुलिस को दिये अपने अधिकृत बयान में कहा था “हम हर नये चिकित्सा शिक्षा मंत्री के बनते ही उन्हें 10 करोड़ रुपए पहुंचा देते थे। इतने गंभीर-दस्तावेजी आरोप और घोटाले के वक्त चिकित्सा शिक्षा मंत्री कौन था, CBI ने उनसे पूछताछ क्यों नहीं की?
  • 22 जनवरी 2014 को एसटीएफ ने हाईकोर्ट में एक हलफनामा देते हुए कहा था कि व्यापम में वर्ष 2008 तक के दस्तावेज मौजूद नहीं हैं, हम जांच कैसे करें? मप्र लोक सेवा आयोग में अपने द्वारा आयोजित परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाएं 10 सालों तक और रिजल्ट 20 साल तक सुरक्षित रखा जाता है, यही नियम व्यापम में भी लागू होता है तो व्यापम में दस्तावेज क्यों, कैसे और किसके निर्देश पर नष्ट हुए?

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