जीयो तो ऐसे जीयो, रतन टाटा की तरह
देश के कई उद्योगपति हैं जिनके आलीशान घरों के बारे में जब तब चर्चा होती रहती है। उनके आवासों के विहंगम फ़ोटो भी आते रहते हैं, लेकिन रतन टाटा कहाँ और किस घर में रहते हैं, यह ज्यादातर लोग आज तक नहीं जानते। कौन उनके सगे संबंधी हैं, कौन रिश्तेदार हैं, कोई नहीं जानता।
रतन टाटा की साख इतनी बड़ी थी कि बड़े-बड़े राजनीतिक दल और सरकारें उन्हें आमंत्रित करते थे कि हमारे राज्य में आइए। यहाँ प्लांट लगाइए। याद है जब सिंगूर में नैनो प्लांट का तृणमूल कांग्रेस ने ज़बर्दस्त विरोध किया तो महाराष्ट्र और गुजरात सरकार ने सामने आकर रतन टाटा से निवेदन किया कि आप नैनो प्लांट हमारे राज्य में लगाइए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और टाटा ने तब मोदी के अनुरोध पर अहमदाबाद के पास साणंद में नैनो प्लांट लगाया था। ये वही नैनो कार थी, रतन टाटा को जिसका ख़्याल एक परिवार को बारिश में भीगते हुए देखकर आया था। एक लाख की सबसे कम क़ीमत की कार बनाने की बात तभी रतन टाटा ने ठान ली थी, जिसे करके भी दिखाया।
इतनी बड़ी साख के बावजूद रतन टाटा कभी किसी राजनीतिक विवाद में नहीं आए। यह कभी किसी को नहीं लगा कि वे राजनीतिक रूप से इस पक्ष के साथ हैं या उस पक्ष के ख़िलाफ़ हैं। अपने उद्योग को आगे बढ़ाने और अपने नफ़ा- नुक़सान से पहले देश के बारे में सोचने वाले रतन टाटा ने टाटा ग्रुप की गवर्नेंस को इस हद तक परिपक्व और पक्का बनाया है कि आज उनके न होने पर भी इस बात की कोई उहापोह नहीं है कि इतने बड़े ग्रुप को अब कौन सँभालेगा?
इतनी सारी कंपनियों के सबके अलग- अलग सीईओ हैं और कहीं, किसी कंपनी का प्रशासन या व्यवस्था किसी एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं है। एक पारदर्शी व्यवस्था काम कर रही है और ग्रुप चल रहा है।