खाद्य सुरक्षा की चर्चाओं में भारत, संकट में आती है सबको याद ?
मुद्दा: खाद्य सुरक्षा की चर्चाओं में भारत, संकट में आती है सबको याद
भूख, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा की स्थिति निरंतर अपना विश्वव्यापी वर्चस्व बढ़ा रही है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) 2023 की रिपोर्ट कहती है कि विश्व के अनेक क्षेत्रों में भूख की स्थिति विकट रूप ले चुकी है। कोविड-19 महामारी, जलवायु संकट और कई देशों में छिड़े युद्धों को इसका मुख्य कारण बताया गया है। इसकी पुष्टि खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट भी करती है, जिसके अनुसार वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर लगभग 82.8 करोड़ लोग भूख से पीड़ित थे, जो दुनिया की लगभग 9.2 प्रतिशत आबादी के बराबर है। इसी रिपोर्ट के अनुसार, यह संख्या 2015 से निरंतर बढ़ रही है, जिसका मुख्य कारण वैश्विक संकटों के चलते खाद्य प्रणालियों की अस्थिरता है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से एसडीजी-2 द्वारा निर्धारित लक्ष्य के अनुसार, वर्ष 2030 तक विश्व को शून्य भूख (जीरो हंगर) स्थिति में होना चाहिए। लेकिन इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि शून्य भूख का लक्ष्य एक मृग मरीचिका-सा ही प्रतीत होता है। अनुमान है कि 2030 तक दुनिया में 67 करोड़ लोग भूख से बिलबिला रहे होंगे।
भुखमरी के साथ कुपोषण भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक नई रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2023 में पांच साल से कम आयु के लगभग 14 करोड़ 90 लाख बच्चे अविकसित और चार करोड़ 50 लाख कमजोर थे। वैश्विक स्तर पर दो अरब से अधिक लोग सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से ग्रस्त हैं। कुपोषण का दूसरा रूप है मोटापा। वर्ष 2020 में विश्व भर में पांच वर्ष से कम आयु के तीन करोड़ 90 लाख से अधिक बच्चे मोटापे से ग्रस्त थे।
लगभग एक अरब चालीस करोड़ लोगों का घर, हमारा भारत वैश्विक खाद्य सुरक्षा चर्चाओं में एक कुशल खिलाड़ी की भूमिका में रहता है। कहीं किसी क्षेत्र में कोई खाद्यान्न संकट आता है, तो विश्व भारत से खाद्य आपूर्ति की आस लगाए रहता है। लेकिन खाद्योत्पादन में अग्रणी भारत भूख और कुपोषण से सर्वथा मुक्त नहीं है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 के अनुसार, भारत 212 देशों में से 107वें स्थान पर है, जो भूख के गंभीर होने का सूचक है। एफएओ की ‘विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण स्थिति 2023’ रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग सात करोड़ 40 लाख लोग खाद्य असुरक्षा का सामना करते हैं, और 18 करोड़ 92 लाख लोग, जो कुल आबादी का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा हैं, अल्पपोषण से प्रभावित हैं। भारत में बाल कुपोषण भी एक चिंता का विषय है। रिपोर्ट के अनुसार, पांच वर्ष से कम आयु के 35.5 प्रतिशत बच्चे अविकसित, 19.3 प्रतिशत कमजोर और 32.1 प्रतिशत कम वजन वाले हैं।
हमारा देश कई खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का सामना करता है। आर्थिक असमानताएं, क्षेत्रीय असमानताएं और अपर्याप्त वितरण प्रणालियां तो मुख्य कारण हैं ही, अब जलवायु परिवर्तन का भी प्रवेश हो गया है। भारत अनाज उत्पादन के मोर्चे पर आत्मनिर्भर ही नहीं, निर्यातक देश भी है, जो विश्व के करोड़ों लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा का आधार है। लेकिन अपने सभी नागरिकों को पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने के मामले में इसे चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को सब्सिडी वाले खाद्यान्न वितरित कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) लगभग 67 प्रतिशत आबादी को खाद्यान्न उपलब्ध कराती है। भारत सरकार की दुनिया जिस बात के लिए सराहना करती है, वह है कोविड-19 काल से लेकर निरंतर देश के एक बड़े वर्ग को मुफ्त खाद्यान्न आपूर्ति। इसके अतिरिक्त स्कूलों में मध्याह्न भोजन के माध्यम से देश में प्रतिदिन लगभग 10 करोड़ बच्चों को पौष्टिक भोजन दिया जाता है।
भूख और कुपोषण से निपटने के लिए सबसे प्रभावी रणनीति है पारिस्थितिकी-केंद्रित सतत कृषि पद्धतियों का विकास। कृषि पद्धतियां ऐसी हों, जिनका संबंध वानिकी से हो और जो मिट्टी, जल व जैव विविधता का संरक्षण सुनिश्चित करती हों। कुपोषण की समस्या के स्थायी निवारण के लिए ऐसा कृषि प्रबंधन हो, जिसमें शारीरिक और मानसिक विकास के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व खाद्य पदार्थों के माध्यम से लोगों को मिलते रहें। खाद्यान्नों के उचित वितरण के लिए ठोस नीतियों पर आधारित एक उत्तरदायी व्यवस्था विकसित होनी चाहिए।