भारत से कनाडा तक कैसे पनपा गैंगवार ?

भारत से कनाडा तक कैसे पनपा गैंगवार… गूंजती गोलियों की क्या है A to Z दास्तान?

भारत और कनाडा के बीच की सीमाओं ने कई कहानियों को जन्म दिया है, लेकिन कुछ कहानियां खून से लिखी हुई हैं. यह कहानी है उन युवाओं की, जो अपराध के रास्ते पर चले और कनाडा की धरती पर सबसे खतरनाक संगठनों के रूप में उभरे. यह कोई साधारण गैंगस्टर स्टोरी नहीं है, बल्कि यह उन कारणों और परिस्थितियों का दस्तावेज है, जिनसे ये पंजाबी गैंग्स पनपे और कनाडा की आपराधिक दुनिया के शीर्ष तक पहुंचे.

भारत से कनाडा तक कैसे पनपा गैंगवार... गूंजती गोलियों की क्या है A to Z दास्तान?

कनाडा गैंगवार….

1970 और 80 के दशक के दौरान, जब कई पंजाबी परिवार रोजगार की तलाश में कनाडा पहुंचे, तब उन्होंने अपने लिए एक नई जिंदगी शुरू की. शुरुआती दिनों में, इन प्रवासियों को स्थानीय लोगों से कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. खासकर टोरंटो और वैंकूवर जैसे क्षेत्रों में, जहां पंजाबी समुदाय ने शरणस्थली बनाई, वहीं उन्हें लगातार विरोध और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. उस वक्त युवा पंजाबी वर्ग ने अपनी सुरक्षा और अस्तित्व के लिए एकजुट होना शुरू किया. इन्हीं संघर्षों के बीच से कई ऐसे अपराधी उभरे, जिन्होंने जल्द ही आपराधिक गिरोह बना लिए.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, टोरंटो के पापे एवेन्यू को पंजाबी प्रवासियों की पहली सुरक्षित जगहों में से एक माना जाता था. जब यहां की स्थानीय आबादी ने पंजाबी समुदाय को परेशान करना शुरू किया, तब कुछ युवा इन परेशानियों को खत्म करने की कोशिश में जुट गए. इन युवाओं ने अपने समुदाय को बचाने के लिए हाथ में हथियार उठाए, और यहीं से शुरुआत हुई गैंग्स की. जल्दी ही ये संगठन स्थानीय माफिया और अन्य आपराधिक गिरोहों के साथ टकराने लगे.

पापे एवेन्यू से शुरू हुई यह कहानी जल्द ही ब्रैम्पटन और मिसिसॉगा जैसे शहरों में फैल गई. इन स्थानों पर अपराध के नए चेहरे उभरे, जिन्होंने आपराधिक दुनिया में अपनी जगह बनाई.

बिंदी जोहल और ‘द एलीट’ का तहलका

1990 के दशक के अंत तक, एक नाम सभी की जुबान पर था बिंदी जौहल. बिंडी जौहल ने “द एलीट” नामक आपराधिक संगठन की स्थापना की, जिसने कनाडा के अपराध जगत में तहलका मचा दिया. यह गिरोह इतना ताकतवर हो गया कि इसके ऊपर 30 से ज्यादा हत्याओं का आरोप लगाया गया. जोहल के गिरोह ने कई बड़े अपराध किए, जिसमें डोसांझ भाइयों रॉन और जिमी की हत्या भी शामिल थी.

दोसांझ भाइयों को भी कनाडा के सबसे पहले संगठित इंडो-कैनेडियन अपराधियों में से एक माना जाता था. जोहल और उनके सहयोगियों ने इनके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था. हालांकि, बिंदी जौहल की कहानी भी यहीं खत्म नहीं हुई. 1998 में, उसे उसके करीबी साथी बाल बुटार ने धोखा देकर मार डाला.

ब्रदर्स कीपर्स गैंग का गठन

बिंदी जोहल की मौत के बाद भी इंडो-कैनेडियन अपराध जगत में गतिविधियां जारी रहीं. 2000 के दशक में एक और खतरनाक संगठन उभरा ब्रदर्स कीपर्स गैंग. गविंदर सिंह ग्रेवाल ने इस गैंग की स्थापना की, जो जल्दी ही रेड स्कॉर्पियन्स नामक गिरोह से अलग होकर अपने अपराधी संगठन के रूप में उभरा.

ब्रदर्स कीपर्स और रेड स्कॉर्पियन्स के बीच भीषण गैंगवार हुई, जिसमें कई अपराधियों और निर्दोष लोगों की जानें गईं. वैंकूवर और इसके आसपास के इलाकों में इस गैंग की शक्ति बढ़ती चली गई.

गैंगस्टर गोल्डी बरार और लॉरेंस बिश्नोई का आतंक

हाल के समय में, जब पंजाब से लेकर कनाडा तक गैंगवार की खबरें फैलने लगीं, तो दो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में आए गोल्डी बरार और लॉरेंस बिश्नोई.

गोल्डी बरार, जो कनाडा में स्थित है, पर कई हत्याओं और अपराधों के आरोप लगे हैं. उसका सबसे चर्चित मामला पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या है, जिसके पीछे लॉरेंस बिश्नोई का भी हाथ बताया जाता है.

लॉरेंस बिश्नोई इस वक्त गुजरात की जेल में है, कनाडा से लेकर भारत तक नेटवर्क चलाता है. उसके गैंग ने सलमान खान जैसे बॉलीवुड स्टार को भी धमकी दी. हाल ही में हुई एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या में भी इसी गैंग का नाम सामने आया.

गैंगवार और मौत का सिलसिला

1990 के दशक से लेकर आज तक कनाडा में वैंकूवर, ब्रैम्पटन और मिसिसॉगा जैसे शहरों में गैंगवार के चलते करीब 165 लोगों की मौत हो चुकी है. इन गैंगवारों में अधिकतर युवा पंजाबी शामिल हैं, जिन्होंने या तो सुरक्षा के नाम पर या फिर पैसे आदि की लालसा में अपराध का रास्ता चुना.

पंजाबी माफिया का असली चेहरा

शुरुआत में जब पंजाबी माफिया का गठन हुआ था, तब इसका मकसद समुदाय की सुरक्षा और अस्तित्व की लड़ाई था. लेकिन धीरे-धीरे यह माफिया इतना शक्तिशाली हो गया कि इसका असर कनाडा की आपराधिक दुनिया में भी दिखने लगा. इन गिरोहों ने ड्रग्स, हत्याएं, और कई अन्य आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दिया.

संगेरा क्राइम गैंग जैसे संगठन, जिन्हें वैंकूवर गैंगवार के दौरान 2009 में 100 से ज्यादा गोलीबारी का आरोप झेलना पड़ा, ने भी इस आपराधिक साम्राज्य की ताकत को दिखाया. पुलिस ने कई बार इन गैंग्स पर नकेल कसने की कोशिश की, लेकिन ये गैंग आज भी पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाए हैं.

बाइंडर बिंदी जोहल और उसके बाद का दौर

पंजाबी आपराधिक गैंग्स का विस्तार 1990 के दशक में शुरू हुआ, जब बाइंडर बिंदी जोहल को पहली बार प्रमुखता मिली. बिंडी ने वैंकूवर में स्थापित एक संगठित अपराध नेटवर्क की अगुवाई की और यह पूरे इंडो-कैनेडियन आपराधिक संस्कृति का एक प्रतीक बन गया. बिंदी के प्रभाव ने उस समय के अन्य आपराधिक नेताओं, जैसे दोसांझ ब्रदर्स, रॉबी कंडोला और रंजीत चीमा जैसे लोगों के साथ संघर्ष की स्थिति पैदा की.

जोहल की अगुवाई में इन गिरोहों ने ड्रग्स की तस्करी, जबरन वसूली और हिंसक गतिविधियों के जरिए आपराधिक साम्राज्य खड़ा किया. बाइंडर जोहल की हत्या 1998 में उसकी ही संगठित अपराधी सहयोगी बल बुटार के निर्देश पर की गई. बल बुटार बाद में खुद भी हमलों का शिकार हुआ, लेकिन बच गया. इसके बाद, पंजाबी-केनेडियन गैंग्स में हिंसा का एक नया दौर शुरू हुआ.

पोस्ट-जोहल एरा और नए गैंग्स का उदय

बिंदी जोहल की हत्या के बाद, कई नए गैंग्स का उदय हुआ, जिनमें से एक प्रमुख था संगेरा क्राइम गैंग. उधम सिंह संगेरा के नेतृत्व में इस गैंग को वैंकूवर पुलिस द्वारा 2009 में वैंकूवर के गैंग युद्ध के दौरान 100 से अधिक गोलीबारी की घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया गया. वैंकूवर पुलिस की विशेष यूनिट ने इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की, लेकिन फिर भी इस गैंग का असर आज भी देखा जाता है.

ब्रदर्स कीपर्स और रेड स्कॉर्पियन्स

पिछले एक दशक में, ब्रदर्स कीपर्स गैंग का तेजी से विकास हुआ है. इस गैंग की स्थापना गविंदर सिंह ग्रेवाल ने की थी. इसके ज्यादातर सदस्य और नेता पहले रेड स्कॉर्पियन्स गैंग का हिस्सा थे, लेकिन बाद में उन्होंने खुद का गैंग बना लिया. ब्रदर्स कीपर्स गैंग ने ब्रिटिश कोलंबिया के कई शहरों में रेड स्कॉर्पियन्स के बचे हुए सदस्यों को निशाना बनाया.

पंजाबी माफिया और सहयोगी गैंग्स

पंजाबी माफिया, जो शुरू में एक उदार गैंग के रूप में देखा जाता था, अब समय के साथ अधिक राष्ट्रवादी और उग्र हो गया है. यह माफिया विभिन्न छोटे-बड़े गिरोहों का एक ढीला संघ है, जो कभी सहयोग करते हैं, तो कभी एक-दूसरे के साथ संघर्ष में रहते हैं. इनमें प्रमुख समूहों के नाम जैसे दोसांझ, जोहल, अडीवाल, चीमा, बुटार, धाक, दुहरे शामिल हैं. ये सभी अभी भी वैंकूवर में सक्रिय हैं और इंडो-कैनेडियन अपराध के इतिहास का हिस्सा बने हुए हैं.

लॉरेंस बिश्नोई और गोल्डी बराड़

पिछले कुछ वर्षों में पंजाब और कनाडा के आपराधिक नेटवर्क में लॉरेंस बिश्नोई का नाम प्रमुखता से सामने आया है. बिश्नोई का गिरोह पंजाब, दिल्ली और मुंबई में अपना दबदबा बनाए रखने की कोशिश कर रहा है. बिश्नोई के प्रमुख सहयोगी गोल्डी बराड़ ने कनाडा से अपने आपराधिक संचालन को फैलाया है. सिद्धू मूसेवाला की हत्या का आरोप भी इसी गिरोह पर है.

गोल्डी बराड़ ने सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया पर सिद्धू मूसे वाला की हत्या की जिम्मेदारी ली थी. यह हत्या पंजाब में लंबे समय से चल रहे गैंग युद्धों का एक नतीजा थी, जिसमें मूसेवाला को बिश्नोई के साथी विक्रमजीत सिंह मिड्डूखेड़ा और गुरलाल बराड़ की हत्या से जोड़ा गया था.

संपत नेहरा, लॉरेंस बिश्नोई गैंग का एक कुख्यात शूटर और करीबी सहयोगी रहा, जिसका नाम काला हिरण शिकार मामले में अभिनेता सलमान खान की हत्या की साजिश से जुड़ा है. लॉरेंस बिश्नोई का समाज काले हिरण को पवित्र मानता है, लॉरेंस ने सलमान खान के खिलाफ लंबे समय से आक्रोश जताया है, क्योंकि उन्हें 1998 में काले हिरण के शिकार के मामले में दोषी ठहराया गया था. लॉरेंस ने सलमान खान को मारने की धमकी दी थी, और इसी साजिश के तहत संपत नेहरा को भेजा गया था.

नेहरा ने 2018 में मुंबई जाकर सलमान खान की रेकी की थी. नेहरा को बाद में हरियाणा में पकड़ा गया, जिसके बाद यह खुलासा हुआ कि बिश्नोई गैंग ने सलमान खान को मारने के लिए साजिश रची थी.

सिंगर्स पर हमले और एक्सटॉर्शन कल्चर

पंजाबी म्यूज़िक इंडस्ट्री भी इन गैंग्स के निशाने पर रही है. परमिश वर्मा और करन औजला जैसे गायक इस हिंसा का शिकार बने हैं. परमिश वर्मा पर 2018 में हमला हुआ. गैंग उनसे वसूली करना चाहता था.

इन गिरोहों ने पंजाबी समाज और उसके विभिन्न हिस्सों को प्रभावित किया है. इनमें संगठित अपराध, व्यक्तिगत दुश्मनी और गैंग की ताकत दिखाने की होड़ शामिल है, जो समय के साथ और जटिल होती जा रही है.

 

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