कृषि के बाद श्रम कानून टालने की तैयारी ….. कानून लागू करने की समय-सीमा बढ़ी, अगली तारीख अभी तय नहीं; इसमें कंपनियों के लिए नियुक्ति-बर्खास्तगी आसान
कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद केंद्र सरकार अब नए श्रम कानूनों को टालने की तैयारी में है। श्रम मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि नए श्रम कानूनों को लागू करने की समय सीमा चार बार बढ़ाई जा चुकी है। पहले तीन बार जब समय सीमा बढ़ाई गई, तब कानून लागू करने की अगली तारीख तय की जाती रही, लेकिन अब चौथी बार समय सीमा बढ़ाते हुए मंत्रालय ने इसकी अगली तारीख तय नहीं की है।
एक अधिकारी ने बताया कि अगले तीन-चार महीने में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। उसके बाद ही कानूनों को लागू करने पर विचार किया जा सकता है। केंद्र ने श्रम कानूनों को लेकर 2019 और 2020 में विधेयक पारित किए थे। 10 ट्रेड यूनियन इसके विरोध में हैं। यूनियनों को उन प्रावधानों पर आपत्ति है, जिनमें कर्मचारी को नियुक्त करने और बर्खास्त करने के नियम कंपनियों के लिए आसान किए गए हैं।
कानून पर सरकार और कॉर्पोरेट जगत की अलग-अलग परेशानी
सूत्र बता रहे हैं कि कृषि कानूनों को लेकर फैसला बदलने के बाद ही सरकार ने श्रम कानूनों को टालने का मन बनाया है। श्रम कानूनों को लेकर कामगार वर्ग में विरोध उभरता देख सरकार सियासी नजरिए से पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव तक कोई नया रिस्क नहीं लेना चाहती। दूसरी ओर, कॉर्पोरेट जगत नए कानून लागू नहीं किए जाने को लेकर नाराज है।
बेंगलुरु में साेसाइटी जनरल जीएससी प्रा. लि. के अर्थशास्त्री कुणाल कुंडु का कहना है कि श्रम कानूनों को लागू करने में देरी अर्थव्यवस्था के लिए झटका साबित होगी। केंद्र सरकार ने नए कानून देश में कारोबार के लिए अच्छा माहौल बनाने और निवेश बढ़ाने के इरादे से बनाए हैं। अगर वे लंबे समय तक टलते रहेंगे तो यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह होगा, क्योंकि कोविड की वजह से कारोबारी जगत काफी दबाव में है। इसलिए कानून में किए गए सुधार जल्द लागू होने चाहिए।
10 राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों में ही नियम बने, अन्य राज्यों में नहीं
केंद्र सरकार दो साल पहले ही औद्याेगिक संबंधाें, वेतन, सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल सुरक्षा से संबंधित नियमों का मसौदा सार्वजनिक कर चुकी है। इसके आधार पर अब तक सिर्फ 10 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने नियम बनाए हैं। जबकि, इस समय 17 राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों में भाजपा या उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं। ज्यादातर राज्याें की सरकारों ने ट्रेड यूनियनों के विरोध को देखते हुए इस पूरे मसले को ठंडे बस्ते में डाल रखा है।