कश्मीर में आतंकी हमला इंटेलिजेंस का फेल्योर है दिखाता ?
कश्मीर में राज्य और केंद्र सरकार एक तल पर, है ये सुखद संकेत लेकिन आतंकी कार्रवाइयों पर लगे तुरंत लगाम
कश्मीर के गांदरबल इलाके में आतंकियों ने सात निर्दोषों की हत्या कर दी और कई को घायल कर दिया. गांदरबल के सोनमर्ग इलाके में रविवार यानी 20 अक्टूबर की शाम आतंकवादियों ने सात लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. मरने वालों में पांच लोग गैर-स्थानीय हैं, जिनमें तीन बिहारी मजदूर थे, एक डॉक्टर कश्मीर के थे और मध्य प्रदेश और जम्मू के भी लोग इस हत्याकांड में मार दिए गए. इस हमले को 2019 के बाद का सबसे बड़ा लक्षित हमला माना जाता है. हमले के पीछे आतंकी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन का हाथ बताया जा रहा है, हालांकि पूरा चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से निबट गया, लेकिन उसके तुरंत बाद ही इस तरह का बड़ा और कायराना हमला कहीं न कहीं दिखाता है कि कश्मीर में आतंकी अभी भी समाप्त नहीं हुए हैं. यह इंटेलिजेंस की पूरी नाकामी को भी दर्शाता है.
इंटेलिजेंस और सुरक्षा बलों की बड़ी नाकामी
ये जो वाकया हुआ है, वह उस सुरंग के पास हुआ है, जहां एक रणनीतिक सुरंग बनायी जा रही है. वह लेह से जुड़नेवाली सुरंग है और इसका रणनीतिक महत्त्व बहुत अधिक है. हालांकि, सुरक्षा बलों और इंटेलिजेंस ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि यहां पर हमला हो सकता है और शायद इसीलिए वो गफलत में रहे और यह हमला हुआ. कश्मीर के चुनाव में बहुत डर था, लेकिन उस समय हिंसा नहीं हुई और सरकार ने शपथ-ग्रहण अभी किया ही है कि इतना बड़ा हमला हो गया. यह निश्चित रूप से इंटेलिजेंस और स्थानीय पुलिस की बड़ी नाकामी है. चुनाव में कुछ नहीं हुआ, क्योंकि उस समय सुरक्षा बल बिल्कुल अलर्ट थे, अपनी एड़ियों पर थे. ना तो कोई घटना हुई, न ही लोगों में कोई खौफ था.
पाकिस्तान ने अपने पाले टट्टुओं के माध्यम से खौफ फैलाने की कोशिश भी की, पर चुनाव में वे सफल नहीं रहे. अभी चुनाव के बाद वो फिर से राज्य को दहशतगर्दी के अंधकार में फेंकना चाहते हैं. यह पूरी तरह स्थानीय पुलिस और इंटेलिजेंस का फेल्योर है कि उनको इसकी हवा नहीं लगी. ये जो मजदूर हैं, वे अपने कैंप में थे. वह कैंप भी सीआरपीएफ की कैंप के पास ही था. फिर भी, इस पर हमला हुआ और यह बताता है कि दहशतगर्दों ने बहुत लंबी तैयारी की और इसको अंजाम दिया.
लक्षित है ये हत्याएं
ये हत्याएं टारगेटेड हैं, लक्षित हैं. हालांकि, इसमें एक कश्मीरी डॉक्टर भी मारे गए हैं, लेकिन आप देखिए तो अधिकांशतः मजदूर और उनके अधिकारी ही मृतक हैं. ये साफ तौर पर दिखाता है कि पाकिस्तान बाज नहीं आने वाला है. न ही वह अपने गुर्गों की मार्फत आतंक की खेती बंद करेगा. इस हत्या से एक तो विकास के कामों पर हमला किया गया, बाहरी मजदूरों पर हमला हुआ और तीसरी व सबसे अंतिम बात कि यह भारतीय प्रतिष्ठान यानी स्टेट पर हुआ हमला है. यह अच्छी बात है कि कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की नयी सरकार के सुर सधे हुए हैं और राज्य व केंद्र सरकार एक ही लेवल पर हैं, एक ही पेज पर हैं और एक ही फ्रीक्वेंसी में बात कर रहे हैं. अमूमन पाकिस्तान को वार्ता में लाने की वकालत करनेवाले फारूक अब्दुल्ला ने भी साफ तौर पर कहा है कि जब तक आतंक चलेगा, तब तक बातचीत संभव नहीं है, साथ ही उन्होंने यह भी साफ कहा है कि कश्मीर कभी भी पाकिस्तान नहीं बनेगा. कड़े लहजों में उन्होंने और उमर अब्दुल्ला ने पाकिस्तान को चेतावनी दी है.
चुनौती है बहुत बड़ी, उमर अब्दुल्ला के लिए
यह हमला उमर अब्दुल्ला के लिए बहुत शर्मिंदा करनेवाला है. वह दो सीटों से लड़े थे और जिस सीट को जीत के बाद उन्होंने कायम रखने का फैसला किया था, वह गांदरबल उनकी ही विधानसभा का इलाका है और वहीं यह हत्याकांड हुआ है. तो, यह उनके लिए बहुत शर्मिंदगी की बात है. हालांकि, यह बहुत अच्छी बात है कि उन्होंने इस बार न तो सेक्योरिटी फोर्सेज पर मामला उछाला, न ही पाकिस्तान से बात करने की वकालत की. दोनों पिता-पुत्र ने इसकी निंदा कड़े शब्दों में की है, इसलिए यह इस अंधेरे में चमकती लकीर रोशनी की है. सरकार ने आश्वासन दिया है कि किसी को छोड़ा नहीं जाएगा और सेना बहुत बड़े इलाकों में कॉम्बिंग कर रही है. सरकार जल्द से यह काम करे, वरना मजदूरों में खौफ का माहौल बनाएगा. उनके मोराल और उत्साह को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि सारे अपराधियों को खोज कर जल्द से जल्द उनको सजा दी जाए.
गृह मंत्रालय ने भी कहा है कि वह इसे हल्के में नहीं ले रहे हैं. यह बहुत स्पष्ट संकेत है पाकिस्तान को और संभव है कि कोई बड़ी कार्रवाई हो जाए. सरकार शायद जम्मू-कश्मीर में चुनाव खत्म होने का ही इंतजार कर रही थी और इस बार कहीं से कोई अलग आवाज नहीं आ रही है, जो बहुत ही अलग तरह के संकेत हैं. पहले कश्मीर के राजनीतिक दल अलग राह पकड़ते थे, पाकिस्तान का पक्ष लेते थे, लेकिन ये पहली बार है कि स्टेट और सेंटर दोनों ही बिल्कुल एक सिनर्जी में काम कर रहे हैं. यह हमारे देश के लिए अत्यंत आवश्यक हैं.
पाकिस्तान नहीं आ रहा बाज
हमारा पड़ोसी देश बड़े पैमान पर अपने बजट को खर्च करता है कि आपके यहां कुछ गलत कर सके. वह आपके युवा को ड्रग्स के जाल में फंसाना चाहता है, आतंकी घटनाओं को अंजाम देता है, कभी ड्रोन से ड्रग्स तो कभी असलहे फेंक जाता है, जो आपकी इकोनॉमी को अस्थिर करना चाहता है. कश्मीर का जो टेरेन यानी भौगोलिक स्थिति है, वह भी एक समस्या है. पीरपंजाल में गुफाएं हैं, कई जगहों पर आप फेंसिंग नहीं कर सकते हैं, तो घुसपैठ या आतंकी घटनाओं को शून्य करना तो बहुत मुश्किल है, हां उस पर काबू पा सकते हैं, कम कर सकते हैं. जहां तक उमर अब्दुल्ला के इसको आतंकी हमला (टेररिस्ट अटैक) ना कहकर उग्रवादी (मिलिटैंट) हमला कहने का सवाल है, तो वह दरअसल इस बात का द्योतक है कि अगर वे आतंकी हमला कहते तो तत्काल कुछ बड़ा कहने का दबाव राज्य और केंद्र दोनों ही जगह बढ़ता. शायद इसीलिए वह बचना चाहते हैं कि शुरुआत में ही ऐसा कुछ न करना पड़े कि पाकिस्तान के खिलाफ जाकर आतंकी शिविरों पर हमला करना पड़े या सीमापार कार्रवाई करनी हो.
हालांकि, सच उनको भी पता है, क्योंकि जिस संगठन ने इसकी जिम्मेदारी ली है, वह लश्कर का ही संगठन है. पाकिस्तान स्थित लश्कर का ही छद्म रूप है टीआरएफ. सुरक्षा बल जैसे ही इसका पूरा पता लगाएंगे, वैसे ही सरकार जितने टेरर लांच पैड हैं, उन पर तो कार्रवाई करेगी. अब तो हमें अंदर जाने की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि हमारे पास ऐसे हथियार हैं, जो दूर से ही मार कर सकते हैं. हथियार की कमी नहीं है, राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए और केंद्र को अपनी जिम्मेदारी लेनी ही होगी, क्योंकि कश्मीर में तो अभी भी लॉ एंड ऑर्डर, पुलिस इनके ही जिम्मे है.
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