महाराष्ट्र चुनाव- 5 साल में 3 सरकार… 7.83 लाख करोड़ रुपए का कर्ज

महाराष्ट्र चुनाव- 5 साल में 3 सरकारों का रिपोर्ट कार्ड:3 बड़े प्रोजेक्ट गंवाए, 7.83 लाख करोड़ रुपए का कर्ज

5 साल, 3 मुख्यमंत्री और 3 अलग-अलग सरकारें। महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद 5 साल सियासी उठापठक चलती रही। पहले NCP और BJP गठबंधन ने सरकार बनाई। देवेंद्र फडणवीस CM और अजित पवार डिप्टी CM बने। दोपहर होते-होते NCP चीफ शरद पवार ने अजित पर बगावत का आरोप लगाया और सरकार को अवैध ठहरा दिया। 3 दिन में ये सरकार गिर गई।

फिर महाराष्ट्र के सियासी इतिहास में पहली बार शिवसेना ने NCP और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। 2 साल 7 महीने और 1 दिन तक सरकार पटरी पर रही। 2022 में शिंदे गुट शिवसेना से अलग हो गया और महाविकास अघाड़ी की सरकार गिर गई।

तीसरी और मौजूदा सरकार शिवसेना से अलग हुए शिंदे गुट, NCP से अलग हुए अजित पवार गुट और BJP के अलायंस में बनी। शिंदे CM, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार डिप्टी CM बने।

महाराष्ट्र में फिर विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। एक फेज में 20 नवंबर को वोटिंग होनी है। अब यहां BJP और कांग्रेस के अलावा दो शिवसेना और दो NCP हैं, जिनके बीच मुकाबला है। साथ ही अलग-अलग सरकारों के काम और विकास के दावे हैं।

 

चुनाव से पहले दैनिक भास्कर की टीम महाराष्ट्र पहुंची और पिछले 5 साल का लेखा-जोखा जाना।

इसमें ये तीन बातें समझ आईं…

1. उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार का कार्यकाल कोविड-19 की चुनौतियों से निपटने में बीता, लेकिन डेवलपमेंट के काम रुके रहे। फिर भी उस वक्त हुए दो अलग-अलग सर्वे में उद्धव ठाकरे ने टॉप 5 CM की लिस्ट में जगह बनाई थी।

2. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार में मेट्रो प्रोजेक्ट ने रफ्तार मिली। महिलाओं के लिए लाडली बहना योजना और मुफ्त यात्रा योजना शुरू हुईं, लेकिन तीन बड़े प्रोजेक्ट राज्य से बाहर चले गए।

3. महाराष्ट्र सरकार 7.83 लाख करोड़ के कर्ज के साथ देश में तमिलनाडु के बाद दूसरे नंबर पर है। हालांकि, राज्य GDP के मामले में अब भी पहले नंबर पर है।

महाराष्ट्र में सियासी पार्टियों की स्थिति दो महागठबंधनों के बीच मुकाबला, 6 बड़ी पार्टियां चुनाव मैदान में

महाराष्ट्र में 6 बड़ी पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं। मुकाबला दो महागठबंधनों के बीच है। पहला- BJP के नेतृत्व वाला महायुति। दूसरा- शिवसेना (उद्धव गुट) के नेतृत्व वाला महाविकास अघाड़ी।

5 साल में महाराष्ट्र में हुई पॉलिटिकल उथल-पुथल के दौरान दो बड़ी पार्टियां शिवसेना और NCP न सिर्फ टूटीं, बल्कि उनके सामने पहचान का संकट खड़ा हो गया। शिवसेना में 21 जून, 2022 को फूट पड़ी। एकनाथ शिंदे ने 40 विधायकों और 10 निर्दलीय विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी।

चुनाव आयोग से शिंदे गुट को पार्टी का सिंबल ‘धनुष-बाण’ मिल गया और उसे असली शिवसेना का दर्जा मिला। वहीं, उद्धव ठाकरे के गुट को नया नाम शिवसेना-UBT और मशाल चुनाव चिह्न मिला।

शिंदे के पार्टी छोड़ने के बाद अजित पवार ने भी 40 विधायकों के साथ शरद पवार का साथ छोड़ा। अजित पवार की NCP को चुनाव आयोग में असली बताया और पारंपरिक सिंबल ‘घड़ी’ दिया। शरद पवार वाली NCP-SP को नया पार्टी सिंबल तुरही मिला।

सरकारों का कामकाज… शिवसेना: जो काम सरकारें 5 साल में नहीं कर पाती, हमने ढाई साल में किया

पिछले 5 साल में सरकारों ने क्या काम किया, ये जानने के लिए हम सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं से मिले। सबसे पहले हमारी मुलाकात शिवसेना शिंदे गुट की प्रवक्ता मनीषा कायंदे से हुई। मनीषा महाराष्ट्र विधान परिषद की सदस्य भी हैं।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का दावा है कि उनकी सरकार ने जितने काम किए हैं, वो किसी भी सरकार के पूरे कार्यकाल में किए गए कामों से ज्यादा है। इस पर मनीषा कहती हैं, ‘शिंदे सरकार में मुंबई मेट्रो जैसे रुके हुए प्रोजेक्ट को रफ्तार मिली है। ये पिछली सरकारों में अटक गए थे। मुंबई का इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने के लिए कई कदम उठाए गए।’

शिंदे सरकार की मुफ्त यात्रा योजना को महिलाओं से जबरदस्त समर्थन मिला। इस योजना के तहत 25 साल से ज्यादा उम्र की महिलाएं राज्य परिवहन की बसों में मुफ्त सफर कर सकती हैं।

इस पर मनीषा कहती हैं, ‘पहले ही दिन 11 लाख से ज्यादा महिलाओं ने इसका फायदा उठाया। इससे न सिर्फ उन्हें सुविधा मिली, बल्कि स्टेट ट्रांसपोर्ट को भी घाटे से उबरने में मदद मिली है।‘

मनीषा आगे कहती हैं, ‘किसानों के लिए भी शिंदे सरकार ने कई योजनाएं लागू कीं। इनमें 15 रुपए में फसल बीमा योजना और 12 घंटे लगातार बिजली सप्लाई खास हैं। इसके साथ ही सोलर पंप से भी किसानों को राहत मिली है।‘ उन्होंने आरोप भी लगाया कि 2019 में महाविकास अघाड़ी ने सरकार बनाई, तो 2014 वाली BJP सरकार के शुरू किए काम रोक दिए गए।

BJP: उद्धव सरकार का काम जनता ने देखा, न कोई भर्ती हुई, न किसानों को मदद मिली

BJP प्रवक्ता अजित माधवराव उद्धव सरकार के कार्यकाल पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘मेट्रो प्रोजेक्ट में काफी देरी हो गई। किसानों को न कोई मुआवजा मिला और न ही राज्य सरकार से बाकी किसी तरह की मदद मिली।’

अजित माधवराव कहते हैं, ‘सबसे बड़ी बात ये है कि उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। इस बात से उन लोगों को बहुत चोट पहुंची, जो बालासाहेब ठाकरे के समर्थक थे, क्योंकि कांग्रेस हमेशा से संयुक्त महाराष्ट्र का विरोध करती आई है।’

’इसके बाद सबसे बड़ा विश्वासघात BJP के साथ हुआ। सत्ता में बने रहने और बेटे को मंत्री बनाने के लिए उद्धव ठाकरे ने BJP को धोखा दिया। वे शरद पवार और कांग्रेस के साथ चले गए। नतीजा ये हुआ कि आज शिवसेना कमजोर होती जा रही है।’

शिवसेना-UBT: जनता को साथ लेकर चलना हमारी प्राथमिकता, हमने वही किया

महाविकास अघाड़ी का पक्ष जानने हम शिवसेना-UBT की प्रवक्ता सुषमा अंधारे से मिले। वे कहती हैं, ‘शिवसेना अपने उसूलों पर अडिग है। जनता को साथ लेकर चलना हमारी प्राथमिकता रही है और हमने इसी सोच के साथ काम किया।‘

सुषमा ने दावा किया कि हमारी सरकार ने न सिर्फ कोरोना महामारी के दौरान बल्कि उसके बाद भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। वे बताती हैं, ‘हमने प्रवासियों के संकट को समझा और उनकी सुरक्षा के लिए काम किया। महामारी चरम पर थी, तब हमने सभी के लिए व्यवस्था की। विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने इसकी तारीफ की।’

राज्य में आंदोलनों का जिक्र करते हुए वे कहती हैं, ‘शिवसेना ने हमेशा आंदोलनकारियों की भावनाओं को समझने की कोशिश की।‘

NCP-SP: जो प्रोजेक्ट हमारी सरकार ने शुरू किए, वे भी नहीं बचा सके

महाविकास अघाड़ी अभी सरकार में नहीं है, लेकिन 2019 के चुनावों के बाद करीब ढाई साल सत्ता में रह चुकी है। अपनी सरकार के कामकाज पर NCP-SP के राष्ट्रीय प्रवक्ता क्लाईड क्रास्टो से मिले। वे कहते हैं, ‘हमारा ढाई साल के कार्यकाल में ही कोविड-19 आया। उस वक्त हम लोगों की समस्याएं दूर कर रहे थे, तब हमें गद्दारी भी देखनी पड़ी।‘

‘हमें हटाकर जो लोग सत्ता में आए, उन्होंने हमारी मेहनत खत्म करने का काम किया। हम जिस इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम कर रहे थे, उसे भी उन्होंने अपनी उपलब्धियों के तौर पर पेश किया। हमारी योजनाओं का श्रेय लेने की कोशिश की। उनकी उपलब्धियां तो सिर्फ इतनी है कि हमारे शुरू किए कई बड़े प्रोजेक्ट अब गुजरात जा रहे हैं।‘

हाल ही में शिंदे सरकार ने मुंबई को टोल फ्री कर दिया है। इस पर क्लाईड क्रास्टो कहते हैं, ‘अगर उन्हें टोल माफ करना ही था, तो चुनाव के ठीक पहले क्यों किया। ये चुनावी स्टंट लगता है।‘

समाजवादी पार्टी: महाविकास अघाड़ी और महायुति दोनों ने निराश​ किया​​​​​​

महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेता अबू आजमी ने भी विधानसभा चुनाव में गठबंधन से सीटों की मांग की है। वे कहते हैं, ‘मौजूदा महायुति और महाविकास अघाड़ी सरकारें किसी भी तरह से संतोषजनक नहीं रही हैं।’

‘मुसलमानों के साथ अन्याय पर कांग्रेस चुप बैठी है। पार्टी सत्ता में थी, तब कांग्रेस ने मुसलमानों को 5% और मराठा समुदाय को 16% आरक्षण देने का वादा किया था, जो पूरा नहीं हुआ। कोर्ट ने भी उन्हें आरक्षण देने की मंजूरी दी, लेकिन कांग्रेस इसे लागू नहीं कर सकी। सत्ता में होने के बावजूद किसी पार्टी ने मुस्लिमों के लिए खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं की।’

अबू ने सीट बंटवारे पर कहा, ‘हम लगातार अपने क्षेत्र से निकलकर पार्टी के लिए काम करते हैं, लेकिन आखिरी समय में सीटें किसी और को दे दी जाती हैं। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है, उनका राजनीतिक करियर प्रभावित होता है।’

सियासी अस्थिरता और निवेश पर असर

महाराष्ट्र में बदलती राजनीति और सरकारों का असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। 2022-23 के आर्थिक सर्वे में 35,870 करोड़ रुपए के निवेश के साथ गुजरात और कर्नाटक से बहुत पीछे है। 2021 में 2.77 लाख करोड़ रुपए के निवेश के साथ महाराष्ट्र ने दोनों राज्यों को पीछे छोड़ दिया था। 2021 और 2022 में महाराष्ट्र का नेतृत्व अलग-अलग सरकारों ने किया।

हालांकि, अप्रैल 2000 और सितंबर 2022 के बीच भारत की FDI में 28.5% शेयर के साथ महाराष्ट्र का योगदान सबसे ज्यादा है।

शिवसेना-UBT की प्रवक्ता सुषमा अंधारे का मानना है, ‘राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का सीधा असर निवेश और उद्योगों पर पड़ा है। वे बताती हैं, ‘5 साल में अगर सरकारें बदलती रहेंगी, तो किसी भी निवेशक का भरोसा डगमगाएगा।”

‘पिछले कुछ साल में महाराष्ट्र में बड़े निवेशकों ने यहां से बाहर जाने का फैसला लिया है। एक स्थिर सरकार की जरूरत है, ताकि फिर से भरोसा कायम हो।‘

अब एक्सपर्ट की बात… शिंदे राउडी इसीलिए कम नंबर के बाद भी CM, उद्धव कोविड की वजह से पिछड़े

सियासी दावों को जानने के बाद हमने सीनियर जर्नलिस्ट संदीप सोनवलकर से मुलाकात की। उनसे दोनों सरकारों का रिपोर्ट कार्ड समझने की कोशिश की। संदीप ने शिंदे को राउडी बताया और कहा कि उन्हें पता है कि सरकार के लिए पैसा कहां से लाना है। यही वजह है कि आज कम नंबर के बाद भी BJP के साथ हैं और मुख्यमंत्री हैं।

संदीप कहते हैं, ‘शिंदे सरकार में ज्यादा डेवलपमेंट देखने को मिला है क्योंकि उन्हें केंद्र से मदद मिली। वहीं ठाकरे को अपने कार्यकाल में कोविड-19 को संभालने के अलावा सरकार बचाने और सहयोगियों को संभालने में ज्यादा वक्त बिताना पड़ा। लिहाजा उनके कार्यकाल में विकास की रफ्तार धीमी रही।‘

संदीप कहते हैं, ‘महाराष्ट्र में पिछले पांच साल का वक्त ऐतिहासिक और सियासी प्रयोगों से भरा रहा। 2019 का विधानसभा चुनाव BJP और शिवसेना ने साथ मिलकर लड़ा, लेकिन सरकार बनाने के वक्त मुख्यमंत्री पद की लड़ाई में फंस गए। इससे उबरने के लिए BJP ने अचानक अजित पवार के साथ सरकार बनाने की कोशिश की, लेकिन ये टिक नहीं सकी।‘

‘इसके बाद उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर सरकार बनाई, जो ढाई साल चली। प्रशासनिक अनुभव की कमी के बावजूद ठाकरे सरकार कोविड-19 की चुनौतियों से निपटने में कामयाब रही। हालांकि, जैसे ही राज्य कोविड-19 से उबरने लगा, सरकार में हुई बगावत ने नया राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया।‘

महायुति सरकार के कामकाज को लेकर संदीप कहते हैं, ‘महाराष्ट्र में महायुति की सरकार बनी, जिसमें सबसे कम विधायकों वाली पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री बना दिया गया। सबसे बड़ी पार्टी BJP सरकार में पीछे रह गई। इस अलायंस में अजित पवार की NCP भी शामिल हो गई, जिससे राजनीतिक समझौतों की जटिलता और बढ़ी।’

‘शिंदे को जमीनी स्तर पर काम करने का अनुभव है, जिससे वे तेजी से फैसले ले पाए। उनके पास केंद्र सरकार का समर्थन है। पहले की सरकारों में शुरू हुए प्रोजेक्ट अब पूरे हो रहे हैं।‘

पिछले 5 साल में महाराष्ट्र में कई बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट गुजरात चले गए। इस पर संदीप कहते हैं, ‘कई कंपनियां सियासी और सामाजिक स्थिरता के लिए गुजरात को तवज्जो देने लगी हैं।‘

एक्सपर्ट बोले- ‘टॉप CM’ रहे उद्धव, लेकिन डेवलपमेंट में शिंदे आगे सीनियर जर्नलिस्ट जितेंद्र दीक्षित मानते हैं, ‘जनता की उम्मीदों पर कोई भी सरकार पूरी तरह खड़ी नहीं हुई, चाहे वो ठाकरे सरकार हो या शिंदे सरकार। राज्य में ठाकरे सरकार थी, तब उसके सामने कोविड-19 जैसी बड़ी चुनौती थी। हम कह सकते हैं कि सरकार कई योजनाओं पर अमल करना चाहती थी, लेकिन कोविड जैसी त्रासदी ने उन पर ब्रेक लगा दिया।’

जितेंद्र दीक्षित कहते हैं, ’कोविड के दौरान ठाकरे फेसबुक के जरिए लोगों को संबोधित करते थे, तब वे सभी धर्मों और कम्युनिटी के लोगों को भरोसा दिलाते थे कि सरकार सबके लिए है। इसलिए ये कहना मुश्किल है कि एक सरकार पूरी तरह अच्छी थी या बुरी।’

शिंदे सरकार को लेकर जिंतेंद्र ने कहा, ’शिंदे सरकार के कार्यकाल में कानून-व्यवस्था के कई मामले सामने आए। विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया। कई जगहों पर साम्प्रदायिक झड़पें हुईं। बदलापुर जैसे मामलों में पुलिस थानों में गोलीबारी भी देखने को मिली। इसे लेकर शिंदे सरकार को कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर घेरा गया। दूसरी तरफ शिंदे सरकार में डेवलपमेंट के भी काम हुए हैं।

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