दिल्ली का प्रदूषण: केवल दोषारोपण नहीं, ठोस उपाय भी ढूंढने होंगे ?
दिल्ली का प्रदूषण: केवल दोषारोपण नहीं, ठोस उपाय भी ढूंढने होंगे
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर बढ़ चुका है और यह पहली बार नहीं हो रहा है। हर साल की यही कहानी है। विडंबना है कि न तो सरकारी स्तर पर इसे कंट्रोल करने के कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं और न ही हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में पराली का कोई विकल्प खोजा जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अब दिल्ली में सुबह की सैर छोड़ दी है, क्योंकि उनके डॉक्टर ने उन्हें ऐसा करने से मना किया है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर बढ़ चुका है और यह पहली बार नहीं हो रहा है। हर साल की यही कहानी है। विडंबना है कि न तो सरकारी स्तर पर इसे कंट्रोल करने के कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं और न ही हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में पराली का कोई विकल्प खोजा जा रहा है, जिसके जलने को दिल्ली में प्रदूषण का प्रमुख कारण माना जाता है।
विशेषकर अक्तूबर में जैसे ही सर्दी की शुरुआत होती है, दिल्ली में धुएं और ठंड का एक ऐसा कॉकटेल बनता है, जो हवा को जहरीला बनाता चला जाता है। एक्यूआई जो 50 अंक होना चाहिए, वो दिल्ली में 300 से ऊपर निकल गया है, यानी दिल्ली की हवा सांस लेने लायक नहीं है। यह जानलेवा होती जा रही है।
केवल दिल्ली नहीं, आसपास के उप नगरीय क्षेत्र जैसे उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद, हरियाणा का फरीदाबाद व गुड़गांव और राजस्थान के भिवाड़ी में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।
यदि पिछले कुछ सालों में सरकारी प्रयासों को देखा जाए तो केवल कागजों पर प्रदूषण नियंत्रण की योजना बनाने और नेताओं की बयानबाजी से आगे कुछ नहीं हुआ है। पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं। एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ते हैं। कुछ महीने यूं ही निकल जाते हैं और फिर सर्दी खत्म होते सब भूल जाते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण हुआ भी था या नहीं।
शायद यही कारण है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने पिछले दिनों हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने को लेकर बनाए कानून को न केवल नाकाफी बताया, बल्कि नाराजगी भी जताई।
प्रदूषण के कारण हर साल होती हैं लाखों मौतें
केवल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली नहीं, यदि पूरे देश में प्रदूषण के प्रभाव को देखा जाए तो 20 लाख मौतें हर वर्ष देश में होती हैं। विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 30 सबसे अधिक प्रदूषित शहर भारत में हैं, जहां पीएम 2.5 की सालाना सघनता सबसे अधिक है।
प्रदूषण के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 36 प्रतिशत परिवारों के एक या अधिक सदस्य गले की खराश, खांसी और सांस लेने की कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। 27 प्रतिशत लोगों को नाक बहाने या बंद होने की समस्या है। यह सूरत-ए-हाल केवल नई दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में है।
पिछले कुछ वर्षों में बढ़ते प्रदूषण के कारण एयर प्यूरीफायर जैसे उपकरणों की बिक्री भी बेइंतहां बढ़ी है। एयर प्यूरीफायर को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं, लेकिन आज भी यह उपकरण लेना एक मध्यम वर्गीय परिवार के लिए लेना कठिन है। प्रदूषण न केवल हमारी जिंदगियों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि आर्थिक रूप से भी गहरी चोट पहुंचा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तो डॉक्टर की सलाह पर सुबह की सैर पर नहीं जाएंगे, लेकिन आम आदमी जिसे रोज सुबह काम पर निकलना होता है, बच्चों को स्कूल जाना होता है, उसके आगे क्या उपाय हैं? उसे केवल हताशा और निराशा में रहना है।
आम आदमी का बस यही सवाल होता है कि क्या पराली का जलना बंद होगा? क्या सरकार बयानबाजी से आगे निकलेगी? क्या नेता एक-दूसरे को कोसना बंद करेंगे? प्रदूषण से छुटकारा कब मिलेगा? अक्तूबर से मार्च के महीने कैसे बीतेंगे?
अब तो समय आ गया है कि केवल दोषारोपण न हो, कोर्ट नाराजगी न जताए। दिल्ली की हवा को साफ करने पर युद्धस्तर पर काम हो। पक्ष-विपक्ष एक टेबल पर बैठे हैं, ताकि आम आदमी घर से निकले तो साफ हवा ले सके।
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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए ……उत्तरदाई नहीं है….