सबसे अंधेरी रात में दीये जलाने से उम्मीद का मनोविज्ञान जुड़ा !
दिवाली संदेश: अच्छाई हमारी प्रतीक्षा कर रही है… सबसे अंधेरी रात में दीये जलाने से उम्मीद का मनोविज्ञान जुड़ा

हमारे मन में उम्मीदें तब जगती हैं, जब हम मानते हैं कि कुछ अच्छा होना बाकी है। नाउम्मीदी के बीच उम्मीद का जो दरवाजा खुलता है, अंधेरों के बीच जो चिंगारी चमकती है, वही दिवाली का प्रतीक है। भगवान राम द्वारा दुष्ट रावण को हराने के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले दिवाली के त्योहार में हर वर्ष हम दीये जलाते हैं, वातावरण को रोशन करते हैं और मिठाई के साथ खुशियां बांटते हैं। इस दौरान घर की सफाई एक तरह से मन की सफाई का प्रतीक होती है। वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता को कई कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ऐसा लगा, मानो जीवन लगातार उनकी परीक्षा ले रहा था। इसके बावजूद श्रीराम में आगे बढ़ने का साहस और प्रेरणा थी।
आखिर कौन-सी चीज थी, जो उन्हें चुनौतियों के बावजूद प्रेरित करती थी। वह थी-उम्मीद। भगवान श्रीराम की तरह हम सब भी एक के बाद एक चुनौतियों का सामना करते हैं और जीवन की कठिनाइयों पर विजय पाने के लिए निरंतर संघर्ष करते हैं। कई बार ऐसा होता है कि हम अपनी उम्मीदें खोने लगते हैं। लेकिन दिवाली जैसे त्योहार हमें याद दिलाते हैं कि इस लंबी कठिन यात्रा के अंत में अच्छाई हमारी प्रतीक्षा कर रही है। उम्मीद के बारे में तो हम सभी जानते हैं, लेकिन अक्सर भूल जाते हैं कि यह कितनी शक्तिशाली हो सकती है। खुशी, उम्मीद और मन की शांति ही हमें अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरित करती है।
उम्मीद आत्म-सम्मान और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है। आशावादी होने से लक्ष्यों की प्राप्ति में सफलता की संभावना बढ़ जाती है। उम्मीद किसी वांछित लक्ष्य के लिए कार्य करने की हमारी क्षमता में सुधार करती है। जो आशावादी है, वह उच्च लक्ष्य हासिल करने की संभावना रखता है। उम्मीद हमारी केवल कामना करने के बजाय काम करने में मदद कर सकती है। जब हम दीये जलाते हैं और उन्हें अमावस्या की अंधेरी रात भर जलाए रखते हैं, तो हम केवल एक उज्ज्वल भविष्य की ही कामना नहीं कर रहे होते हैं; हम सक्रिय रूप से उस उज्ज्वल भविष्य के लिए रास्ता रोशन कर रहे होते हैं। जब हम आशा की कमी और अकेलापन महसूस करते हैं, तो मदद मांगना बहुत मुश्किल हो सकता है। जब हम आशा करते हैं, तो हम जीत जाते हैं। जब हम इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि हमें लक्ष्य ‘क्यों’ हासिल करना है, तो हमें यह समझने में मदद मिलती है कि ‘कैसे’ काम करना है।
यह भगवान राम के लिए भी सच था, जिन्होंने कई बार मदद मांगी। एक उदाहरण देवी दुर्गा (शक्ति) से मदद मांगने का है, जो सृजन, पोषण और विनाश की देवी हैं। सीता को बचाने के लिए श्रीराम को माता दुर्गा की मदद की जरूरत थी, जिसके लिए 108 नीलकमल की आवश्यकता थी। दुर्भाग्यवश वह केवल 107 नीलकमल ही प्राप्त कर सके। लेकिन उनकी गहरी नीली आंखें नीलकमल के समान थीं, तो आखिरी नीलकमल के बदले वह अपनी आंखें ही देवी को समर्पित करने लगे, लेकिन इससे पहले ही देवी दुर्गा प्रसन्न होकर प्रकट हुईं और उन्होंने श्रीराम को आशीर्वाद दिया, जिससे वह रावण को पराजित कर सके। यह बताता है कि कठिनाइयों का सामना करते वक्त हम भी अधिक कुशल एवं जानकार लोगों से मदद मांग सकते हैं। दीपावली में सबसे महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक पहलू उम्मीद है। यह लोगों में विश्वास और आदतों को बदलने या बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चुनौतियों का सामना करने के बावजूद बुराई पर अच्छाई की जीत सुनिश्चित करना हर व्यक्ति के लिए प्रेरक है। वर्ष की सबसे अंधेरी रात में दीये जलाना यह दर्शाता है कि उम्मीद के महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक प्रभाव होते हैं, जो सकारात्मक कार्रवाई में परिवर्तित होते हैं। परिणामस्वरूप, हम सिर्फ कामना ही नहीं करते; बल्कि बेहतर भविष्य, उन्नत आत्म-सम्मान तथा बेहतर शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी काम करते हैं।