RSS-कांग्रेस के मतभेद कितने पुराने?
रामायण भारत में नहीं तो क्या न्यूयार्क में दिखाई जाएगी…
संघ को क्यों लिखना पड़ा पूर्व PM राजीव गांधी को पत्र? पढ़ें RSS-कांग्रेस के मतभेद कितने पुराने?
RSS Vs INC: संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले की हाल की एक टिप्पणी ने संघ और गांधी परिवार के रिश्तों की चर्चा को फिर सरगर्म कर दिया है. इससे जुड़े इतिहास के पन्ने पलटे जा रहे हैं. होसबले ने कहा था कि संघ तो सभी से मिलना चाहता है. कांग्रेस से भी. लेकिन जो मोहब्बत की दुकान चलाते हैं, वो हमसे मिलना ही नहीं चाहते. संघ और कांग्रेस के मतभेद नए नहीं हैं. एक समय ऐसा भी था कांग्रेस नेता भारत में रामायण प्रसारण के खिलाफ खड़े थे.
चिरंजीव राजीव, रामायण भारत में नहीं दिखाई जाएगी तो क्या न्यूयार्क में दिखाई जाएगी? दूरदर्शन पर रामायण के प्रसारण को मंजूरी मिलने में आ रही दिक्कतों के बीच संघ प्रमुख बाला साहब देवरस के भाई भाऊ राव देवरस ने यह पत्र राजीव गांधी को भेजा था. कांग्रेस नेता एच.के. एल.भगत जो बाद में सूचना प्रसारण मंत्री भी बने, इस प्रसारण के खिलाफ थे. उन्हें लगता था कि इससे संघ, विहिप जैसे हिंदू संगठनों को ताकत मिलेगी. आगे वे रामजन्म भूमि आंदोलन के जरिए परेशानियां खड़ी करेंगे. लेकिन राजीव गांधी ने आपत्तियों को दरकिनार करके रामायण के प्रसारण की अनुमति दी थी.
राहुल संघ पर लगातार हमलावर
संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले की हाल की एक टिप्पणी ने संघ और गांधी परिवार के रिश्तों की चर्चा को फिर सरगर्म कर दिया है. इससे जुड़े इतिहास के पन्ने पलटे जा रहे हैं. होसबले ने कहा था कि संघ तो सभी से मिलना चाहता है. कांग्रेस से भी. लेकिन जो मोहब्बत की दुकान चलाते हैं, वो हमसे मिलना ही नहीं चाहते. जाहिर है कि नाम लिए बिना उनका कटाक्ष राहुल गांधी पर था. राहुल गांधी का संघ से बैर इस सीमा तक है कि वे कह चुके हैं कि चाहें उनका गला काट दिया जाए लेकिन वे आर. एस. एस.के दफ्तर नहीं जा सकते हैं. राहुल ने यह बयान अपनी भारत जोड़ों यात्रा के दौरान 18 जनवरी 2023 को तब दिया था जब उनके चचेरे भाई वरुण गांधी के कांग्रेस में शामिल होने की संभावना के संबंध में सवाल किया गया था. सिर्फ यही एक मौका नहीं है.संघ और उसकी विचारधारा को लेकर राहुल लगातार आक्रामक रहे हैं.
नेहरू-गांधी परिवार की संघ से दूरी का लंबा इतिहास
वैसे संघ को लेकर राहुल कुछ नया नहीं कह रहे. उनके परिवार की संघ से असहमति और विरोध का लंबा इतिहास है. पंडित नेहरू ने संघ पर कभी विश्वास नहीं किया. गांधी हत्याकांड के बाद संघ पर पहला प्रतिबंध उन्हीं के कार्यकाल में लगा. इंदिरा गांधी के शासन के समय इमरजेंसी के दौरान भी इसे दोहराया गया. दूसरे प्रतिबंध के दौरान बाला साहब देवरस ने पहली बार 22 अगस्त 1975 और फिर 10 नवंबर 1975 को इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर संघ के प्रति उनका रुख नरम करने की कोशिश की थी. लेकिन इंदिरा गांधी ने इन दोनों ही पत्रों की अनदेखी की थी. उस दौरान संघ ने विनोबा भावे के जरिए भी प्रयास किए थे.
बाला साहब ठाकरे भी संघ की पैरवी करने वालों में शामिल थे. बेशक इंदिरा ने उस समय संघ की कोशिशों को नज़रंदाज़ किया लेकिन 1977 के चुनाव की घोषणा के बाद उन्होंने संघ से संपर्क किया था. वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी की चर्चित किताब How Prime Ministers Decide में के.एन.गोविंदाचार्य को उद्धृत करते हुए दावा किया गया है कि जेल में बंद बाला साहब देवरस के पास इंदिरा गांधी का संदेश पहुंचा था कि संघ चुनाव से दूर रहे और जनता पार्टी से जनसंघ न जुड़े. देवरस ने जवाब दिया था कि बहुत देर हो चुकी है. अब बीच धारा में जनता पार्टी का साथ छोड़ना मुमकिन नहीं होगा. चुनाव बाद बात करेंगे के जवाब के साथ देवरस ने आगे के लिए रास्ता खोले रखने की गुंजाइश रखी थी.
इंदिरा ने दूर रहते संघ के इस्तेमाल की कोशिश की
1980 में इंदिरा की सत्ता में वापसी हुई थी. क्या दूसरी पारी में संघ को लेकर इंदिरा का रुख बदलने लगा था? How Prime Ministers Decide में नीरजा चौधरी ऐसे ही संकेत देती हैं. नीरजा के अनुसार यद्यपि इंदिरा ने संघ के किसी नेता से सीधे भेंट नहीं की लेकिन उससे दूरी बनाए रखते हुए जब-तब संदेशवाहकों के जरिए उन्होंने संघ से संपर्क साधा. अगर संघ ने इंदिरा के नजदीक पहुंचने की कोशिश की तो इंदिरा ने भी दूर दिखते हुए भी संघ के इस्तेमाल के प्रयास किए. मुसलमानों की कांग्रेस से नाराजगी के बीच इंदिरा हिंदुत्व के रंग को गाढ़ा करना चाहती थीं. इस काम में संघ का मूक समर्थन या फिर तटस्थता भी राजनीतिक नजरिए से उनके लिए फायदेमंद थी.
कन्याकुमारी की एक यात्रा में उनकी विवेकानंद स्मारक के संस्थापक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एकनाथ रानडे से भेंट हुई थी. उनके काम से वे काफी प्रभावित थीं. आगे भी उनसे संपर्क रहा. इमरजेंसी के दौरान जब पी.सी. सेठी और विद्याचरण शुक्ल ने आर. एस. एस.की फंडिंग के नाम पर रानडे को निशाने पर लेने की कोशिश की तो इंदिरा गांधी ने केवल उन्हें रोका ही नहीं अपितु रानडे को इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेशंस का सदस्य नियुक्त कर एक तरह पुरस्कृत किया. गोविंदाचार्य के अनुसार यह संपर्क कड़ी रानडे से आगे मोरोपंत पिंगले से होते बाला साहब देवरस तक पहुंचती थी. यहां तक कि संघ से गहरा जुड़ाव रखने वाले सर्वोदय नेता रमाकांत पाटिल को भी इंदिरा गांधी संपर्क में रखती थीं.
इंदिरा के कहने पर राजीव और भाऊराव की भेंट
बेशक इंदिरा गांधी ने संघ के किसी नेता से सीधे मुलाकात में परहेज किया . लेकिन राजीव गांधी कम से कम चार मौकों पर भाऊ राव देवरस से मिले. भाऊ राव तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब देवरस के भाई थे और संघ की ओर से भाजपा के काम पर निगाह रखते थे.
1982 – 84 के बीच की तीन मुलाकातें इंदिरा गांधी के जीवनकाल में हुईं . माना जाता है कि इंदिरा जी के कहने पर ही राजीव , भाऊ राव से मिले. बेहद गोपनीय रखी गई इन मुलाकातों की अरुण नेहरू तक को जानकारी नहीं थी. दोनों के बीच सम्पर्क सूत्र गांधी परिवार के नजदीकी उद्यमी कपिल मोहन थे. उनके भाऊ राव से भी पुराने संबंध थे. पहली मुलाकात सितंबर 1982 में कपिल मोहन के 46 पूसा रोड स्थित बंगले पर हुई. दूसरी बार भी वे वहीं मिले. तीसरी बार परिवार के एक अन्य नजदीकी अनिल बाली के फ्रेंड्स कॉलोनी स्थित आवास पर वे साथ बैठे.
इन सभी अवसरों पर राजीव गांधी के साथ अनिल बाली भी रहते थे. दोनों के मध्य बातचीत और झंडेवालान स्थित संघ मुख्यालय की इससे जुड़ी गतिविधियों पर नजर रखने की जिम्मेदारी अनिल बाली पर थी. आर .के.धवन को भी इस घटनाक्रम से दूर रखा गया. अनिल बाली सुबह 7.45 पर इंदिरा जी के आवास पर पहुंचकर उन्हें संबंधित जानकारी देते थे. धवन के वहां पहुंचने से पूर्व 8.15 बजे बाली वहां से वापस हो लेते थे. नीरजा चौधरी ने माखन लाल फोतेदार के हवाले से लिखा है कि एक मौके पर इंदिरा जी ने उनसे कहा था कि राजीव से कह दो कि डाइनिंग टेबल पर सोनिया के सामने संघ से हो रही बातचीत का जिक्र न करें, क्योंकि सोनिया संघ के बहुत खिलाफ हैं.
भाऊराव और राजीव एक दूसरे से प्रभावित थे
राजीव और भाऊ की मुलाकातें बेहद सौहार्दपूर्ण रहीं. अनिल बाली के मुताबिक भाऊ अनुभव करते थे कि राजीव के साथ हिंदुत्व सुरक्षित रहेगा. गोविंदाचार्य के अनुसार राजीव के साथ पहली भेंट के बाद संघ मुख्यालय लौटे भाऊ राव काफी प्रसन्न थे. उन्होंने कहा कि यह भूमिगत रहने के दौरान जयप्रकाश नारायण से हुई भेंट जैसी सुखद थी. 1984 और 1989 में कांग्रेस के सांसद और भाजपा से जुड़ने के बाद तामिलनाडु और पंजाब गवर्नर रहे बनवारी लाल पुरोहित का दावा है कि राजीव गांधी द्वारा भाऊ राव के चरणस्पर्श के वे साक्षी हैं. यद्यपि प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी की भाऊ राव से भेंट नहीं हुई लेकिन दोनों का संपर्क बना रहा.
पंकज बोहरा के अनुसार, राजीव ने प्रधानमंत्री रहते ही भाऊराव को चॉकलेट रंग की एक कंटेसा कार भेंट की थी. दोनों की आखिरी भेंट 1991 में दस जनपथ में हुई थी. तब राजीव सत्ता में नहीं थे. अनिल बाली के अनुसार बोफोर्स के संकट में फंसे राजीव गांधी के लिए फिक्रमंद भाऊ राव ने 1989 की शुरुआत में उनके जरिए समय से पहले चुनाव कराने का संदेश भेजा था. चुनाव वर्ष के अंत में होने थे और विपक्ष उस समय तक एकजुट नहीं हुआ था. लेकिन राजीव आई. बी. की रिपोर्ट के कारण 300 सीटें हासिल करने के लिए आश्वस्त थे.
बनवारी लाल पुरोहित तो यह भी दावा करते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के लिए राजीव और संघ के बीच समझौता हुआ था. अपने दावे के समर्थन में वे कहते हैं कि कांग्रेस के प्रतिनिधि के तौर पर उन्होंने बाला साहब देवरस और राजीव गांधी के विशेष प्रतिनिधि भानु प्रकाश सिंह की भेंट कराई. इसके फौरन बाद बूटा सिंह और देवरस की मुलाकात में इस समझौते पर मोहर लगी.