100 करोड़ से ज्यादा बच्चों पर मंडरा रहा खतरा ?
इस बड़े खतरे के साये में हैं दुनिया के करोड़ों बच्चे, क्लाइमेट चेंज से मच सकती है बड़ी तबाही
अध्ययन के अनुसार 2050 तक दुनिया में अभी से लगभग अब आठ गुना गर्मी बढ़ सकती है, जिसका मतलब है कि बच्चों को ज्यादा तपती गर्मी झेलनी पड़ेगी.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें आने वाले सालों में बच्चों के लिए बढ़ते पर्यावरणीय खतरों को लेकर गंभीर चिंता जताई गई है. इस रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले दशकों में यानी साल 2050 तक बच्चों को गर्मी की लहरों, बाढ़ और जंगलों में आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा.
रिपोर्ट की मानें तो 2050 वाली पीढ़ी को अभी की तुलना में ज्यादा गर्मी का सामना करना पड़ सकता है. अध्ययन के अनुसार 2050 तक दुनिया में अभी से लगभग अब आठ गुना गर्मी बढ़ सकती है, जिसका मतलब है कि बच्चों को ज्यादा तपती गर्मी झेलनी पड़ेगी. इसके अलावा, बाढ़ का खतरा 2000 के मुकाबले तीन गुना बढ़ सकता है, जो बच्चों को उनके घरों और स्कूलों से विस्थापित कर सकता है.
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार आने वाले सालों में गर्मी के कारण जंगलों में आग का खतरा भी बढ़ेगा और 2050 तक यह खतरा 2000 के मुकाबले दोगुना हो सकता है, जिससे बच्चों की जान और संपत्ति को खतरा हो सकता है. मौसम में बदलाव के कारण बढ़ने वाले गर्मी, बाढ़ का सूखा बच्चों के भविष्य के लिए बहुत बड़ी चुनौतियां पैदा कर सकती है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन उनकी सेहत, सुरक्षा और जीवन स्तर पर गहरा असर डाल सकता है.
100 करोड़ से ज्यादा बच्चों पर मंडरा रहा खतरा
यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट में दुनिया भर के 100 करोड़ से ज्यादा बच्चों को जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते जोखिमों का सामना करने की बात कही गई है. खासकर वे बच्चे जो कम विकसित देशों में रहते हैं, उन्हें इसका सबसे ज्यादा असर हो रहा है.
इसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, चाड और नाइजीरिया जैसे देशों में बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा सबसे ज्यादा है. इन देशों के बच्चे पहले से ही कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं जैसे साफ पानी की कमी, स्वच्छता की समस्या, शिक्षा की कमी, और स्वास्थ्य सेवाओं की अपर्याप्तता. अब इन समस्याओं के साथ जलवायु परिवर्तन के खतरों ने उनके जीवन को और भी ज्यादा जोखिमपूर्ण बना दिया है.
यूनिसेफ की ये रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे का सामना कर रहे इन बच्चों के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है. उन देशों में जहां पहले से ही बच्चों को जरूरी प्रोटीन की मात्रा नहीं मिल पा रही है वहां जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए योजना बनानी होगी, ताकि बच्चों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित किया जा सके.
33 देशों जोखिम भरे देशों की लिस्ट में शामिल
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में वर्तमान में 33 ऐसे देश हैं जहां के बच्चों के लिए आने वाला समय सबसे ज्यादा जोखिम भरा हो सकता है, इन देशों पर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय समस्याएं सबसे ज्यादा प्रभाव डाल सकती है. लेकिन हैरान करने वाली बात है तो है कि लिस्ट में शामिल इन देशों का योगदान दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में बहुत कम है.
लिस्ट में शामिल ये 33 देश जिसमें भारत भी शामिल है एक साथ मिलकर सिर्फ 9 प्रतिशत गैसों का उत्सर्जन कर रहे हैं. इसके बावजूद, इन देशों के बच्चे जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली समस्याओं, जैसे गर्मी की लहरें, बाढ़, सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का सबसे ज्यादा सामना कर रहे हैं.
दूसरी तरफ, ऐसे देश जो सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित करते हैं, यानी जिनका इस समस्या में सबसे ज्यादा हाथ है और वह लगभग 70 फीसदी गैसों के जिम्मेदार हैं. इन देशों में से केवल एक देश को ही बच्चों के लिए अत्यधिक जोखिम वाले देशों में रखा गया है. इसका मतलब यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे ज्यादा नुकसान उन देशों के बच्चों को हो रहा है, जो इस समस्या के लिए ज्यादा जिम्मेदार नहीं हैं.
यह स्थिति यह दिखाती है कि जलवायु परिवर्तन का असर बहुत असमान तरीके से फैल रहा है. वे देश, जो ग्रीन हाउस गैसों के कम उत्सर्जक हैं, उनके बच्चे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, जबकि उच्च उत्सर्जन करने वाले देशों के बच्चों पर यह असर कम है.
लिस्ट में कितने स्थान पर है भारत
चिल्ड्रन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स के अनुसार सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक को 8.7 अंकों के साथ बच्चों के लिए जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े खतरे वाले देश के रूप में स्थान मिला है. इसके बाद नाइजीरिया और चाड को 8.5 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रखा गया है.
भारत की बात करें तो इस देश को 7.4 अंकों के साथ 26वें स्थान पर रखा गया है, जो इसे बच्चों के लिए जलवायु परिवर्तन के जोखिम के मामले में दुनिया के महत्वपूर्ण देशों में शुमार करता है. इसके अलावा भारत के पड़ोसी देशों यानी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश का उच्च जोखिम पाकिस्तान (7.7 अंक) और अफगानिस्तान, बांग्लादेश, इथियोपिया का 7.6 अंक है और इसके साथ इन देशों को 14वें और 15वें स्थान पर रखा गया है.
सबसे सुरक्षित देश
इस इंडेक्स में यूरोपीय देश लिकटेंस्टीन को 2.2 अंक के साथ बच्चों के लिए जलवायु परिवर्तन से सबसे सुरक्षित देश माना गया है, और यह देश इस लिस्ट में सबसे आखिरी, यानी 153 वें स्थान पर है.
यूनिसेफ के बारे में कितना जानते हैं आप
यूनिसेफ (United Nations International Children’s Emergency Fund) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो बच्चों और माताओं के अधिकारों की रक्षा और उनकी भलाई के लिए काम करता है. यह संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा है और इसकी स्थापना 1946 में हुई थी, खासतौर पर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया भर में बच्चों को हो रही तकलीफों को ध्यान में रखते हुए. यूनिसेफ का उद्देश्य दुनिया के बच्चों के जीवन की स्थिति में सुधार करना है, जैसे कि उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, सुरक्षा और उनके अधिकारों का संरक्षण.
यूनिसेफ बच्चों के लिए जरूरी बुनियादी सेवाएं, जैसे स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, साफ पानी, पोषण, और शिक्षा, प्रदान करता है. इसके अलावा, यह बच्चों के खिलाफ हिंसा, शोषण और भेदभाव को खत्म करने के लिए भी काम करता है. संगठन विशेष रूप से उन देशों में सक्रिय है जहां गरीबी, युद्ध, या अन्य आपातकालीन परिस्थितियां बच्चों के जीवन को प्रभावित कर रही हैं.
यूनिसेफ दुनिया भर में बच्चों के अधिकारों के लिए अभियान चलाता है और सरकारों तथा अन्य संगठनों के साथ मिलकर नीति परिवर्तन और बच्चों के लिए बेहतर सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए काम करता है.
दुनिया के कुछ देश जो सबसे कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करते हैं
नाइूरू- नाइूरू, जो दुनिया का सबसे छोटा द्वीप राष्ट्र है, का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बेहद कम है. यह देश छोटे आकार का और बहुत कम आबादी वाला है, जिसकी वजह से इसका कुल उत्सर्जन बहुत कम रहता है.
तुवालू- तुवालू, एक और द्वीपीय देश है, जिसका ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बहुत कम है. तुवालू का मुख्य कारण इसका छोटा आकार और सीमित औद्योगिकीकरण है.
भूटान- भूटान में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बेहद कम है. इसका कारण ज्यादा जंगल और वन क्षेत्र हैं, जो कार्बन डाइऑक्साइड को सोखते हैं.
माली- माली, एक पश्चिम अफ्रीकी देश, जिसमें बहुत कम औद्योगीकरण है, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम है.
क्यूबा- क्यूबा का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम है, क्योंकि इसके पास औद्योगिकीकरण की दर बहुत कम है और इसके ऊर्जा स्रोत स्वच्छ हैं.
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100 करोड़ बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा:भारत समेत 33 देशों के बच्चों का स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा खतरे में, यूनिसेफ ने चिंता जताई
दुनिया में करीब 100 करोड़ बच्चों पर जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के प्रभाव का खतरा है। UNICEF की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत 33 देशों के बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा पर संकट मंडरा रहा है। क्लाइमेट चेंज और प्रदूषण के चलते दुनियाभर में बच्चे जलवायु परिवर्तन के किसी ने किसी प्रभाव से जूझ रहे हैं। वहीं भारत, नाइजीरिया, फिलीपींस और अफ्रीका समेत 33 देशों के बच्चे एक साथ तीन या चार प्रभावों का सामना कर रहे हैं। इन प्रभावों में हीटवेव, बाढ़, चक्रवात, बीमारी, सूखा और वायु प्रदूषण शामिल हैं।
UNICEF ने इस स्थिति को भयानक बताया है। इस रिपोर्ट को जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण के प्रभाव, गरीबी, बच्चों को स्वच्छ पानी की पहुंच, स्वास्थ्य और शिक्षा की पहुंच को देखते हुए तैयार किया गया है। रिपोर्ट के लेखकों में से एक निक रीस ने बताया कि दुनिया में बच्चे कहां और कैसे जलवायु परिवर्तन की चपेट में आ रहे हैं, उनकी तस्वीरें अकल्पनीय रूप से भयानक हैं।
हाई रिस्क वाले टॉप-10 देशों में ग्लोबल इमिशन सिर्फ 0.5%
इन सबसे समय रहते निपटने की जरूरत है। इस रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु संकट के प्रभाव ‘गहन रूप से असामान्य’ थे। आने वाले दिनों में इसके और भी खराब होने की आशंका है। रीस के मुताबिक, दुनिया के टॉप 10 देश जो सबसे ज्यादा हाई-रिस्क में हैं, वे केवल 0.5% ग्लोबल इमिशन के लिए जिम्मेदार हैं।
30 करोड़ बच्चे वायु प्रदूषण वाले इलाके में रहते हैं
रिपोर्ट में पाया गया कि 92 करोड़ बच्चे पानी की कमी, 82 करोड़ हीटवेव और 60 करोड़ बच्चे वेक्टर जनित बीमारियों जैसे मलेरिया और डेंगू बुखार के संपर्क से जूझ रहे हैं। UNICEF रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में करीब 30 करोड़ बच्चे अत्यधिक वायु प्रदूषण वाले इलाकों में रहते हैं।