भारत में किसके स्वागत के लिए गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण हुआ था?
भारत में किसके स्वागत के लिए गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण हुआ था? जो अंग्रेजों की विदाई का प्रतीक बना
Gateway of India History: मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया के लिए 2 दिसम्बर, 1911 की तारीख बहुत खास रही है. यही वो दिन था जब भारत पहुंचे मेहमान दंपति के लिए इसका निर्माण कराया गया था. अपोलो बंदर पर बनाया गया गेटवे ऑफ इंडिया आज मेलजोल का एक प्रसिद्ध स्थान है. आइए जान लेते हैं ब्रिटिश वास्तुकार जॉर्ज विटेट द्वारा डिजाइन किए गए इस स्मारक की कहानी.

गेटवे ऑफ इंडिया आज मुंबई आने वाले हर सैलानी के लिए आकर्षण का केंद्र होता है. इसका निर्माण ब्रिटेन के राजा-रानी जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी के स्वागत किए कराया गया था. वे 2 दिसंबर 1911 को भारत आए थे और यहां आने वाले ब्रिटेन के पहले राजा-रानी बने थे. अपोलो बंदर पर बनाया गया गेटवे ऑफ इंडिया आज मेलजोल का एक प्रसिद्ध स्थान है. आइए जान लेते हैं ब्रिटिश वास्तुकार जॉर्ज विटेट द्वारा डिजाइन किए गए इस स्मारक की कहानी.
साल 1915 में शुरू हुआ था निर्माण26 मीटर ऊंचे गेटवे ऑफ इंडिया की अंतिम डिजाइन को जॉर्ज विटेट ने 31 मार्च 1914 को मंजूरी दी थी. साल 1915 में इसका निर्माण शुरू किया गया. अपोलो बंदर के नाम से जाने जाने वाले इस क्षेत्र का इस्तेमाल मछली पकड़ने के लिए किया जाता था. गेटवे ऑफ इंडिया के निर्माण से पहले इसे बचाने के लिए एक समुद्री दीवार का निर्माण किया गया. साल 1924 में गेटवे ऑफ इंडिया पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ और उसी साल चार दिसंबर को इसे जनता के लिए खोला गया था. इसका उद्घाटन तत्कालीन वायसराय रफस आईजैक (Rufus Isaacs) ने किया था.

ब्रिटेन के राजा-रानी जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी, जिनके स्वागत के लिए गेटवे ऑफ इंडिया बनाया गया था.
ग्वालियर से मंगाए गए थे झरोखेगेटवे ऑफ इंडिया के निर्माण पर तब 21 लाख रुपए खर्च हुए थे. इसे बनाने में पीले बेसाल्ट और कंक्रीट का इस्तेमाल किया गया था. इसके मुख्य गुंबद का डायमीटर (व्यास) 15 मीटर है. इसमें लगाई गईं जालियां ग्वालियर से लाई गई थीं. गेटवे ऑफ इंडिया के दोनों ओर इसके निर्माण की कहानी उकेरी गई है. तैयार होने के बाद इसका इस्तेमाल गुलाम भारत में बड़े अंग्रेज अधिकारियों की अगवानी के लिए किया जाने लगा, इसीलिए इसका नाम गेटवे ऑफ इंडिया पड़ा.
अंग्रेजों की भारत से विदाई का प्रतीक बनाभारत की आजादी के बाद यही गेटवे ऑफ इंडिया अंग्रेजों की विदाई का प्रतीक भी बना. अंग्रेजों की सेना की आखिरी टुकड़ी इसी से होकर अपने देश के लिए रवाना हुई थी. 28 फरवरी 1948 को इसी के जरिए सोमरेस्ट लाइट इंफैंटरी की पहली बटालियन भारत में ब्रिटिश मिलिटरी की उपस्थिति के खात्मे का संकेत देते हुए रवाना हुई थी.

9 जनवरी 2015 को निर्माणाधीन गेटवे ऑफ इंडिया होकर ही महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे.
महात्मा गांधी भी इसी रास्ते लौटे थेस्वाधीनता से पहले गेटवे ऑफ इंडिया कई जाने-माने नेताओं के आवागमन का गवाह भी बना. 9 जनवरी 2015 को निर्माणाधीन गेटवे ऑफ इंडिया होकर ही महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे. इसके एक शताब्दी बाद गेटवे पर एक पट्टिका लगाकर महात्मा गांधी और कस्तूरबा के भारत वापस आने की कहानी लिखी गई.
पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्रआज भी गेटवे ऑफ इंडिया मुंबई में पर्यटकों के आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र है. इसके सामने काफी बड़ा खुला स्थान है. इसमें प्रवेश निशुल्क है पर सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ता है. इस खुले स्थान से पर्यटकों को सामने ही ताज महल पैलेस होटल दिखता है और बंदरगाह पर खड़े जहाज भी दिखाई देते हैं. यहां से सागर में नौका विहार के लिए नावें भी मिलती हैं. गेटवे ऑफ इंडिया कबूतरों की मौजूदगी के लिए भी जाना जाता है.