सिंगल-यूज प्लास्टिक बैन: क्या कागजी साबित हो रहा है नियम?
सिंगल-यूज प्लास्टिक बैन: क्या कागजी साबित हो रहा है नियम?
प्लास्टिक 19वीं सदी में ही बन गया था, लेकिन इसका असली इस्तेमाल 1970 के दशक में शुरू हुआ. 1950 से अब तक जितना भी प्लास्टिक बना है, उसका आधा तो पिछले 15 सालों में ही बना है.
प्लास्टिक को बार-बार रिसाइकल करने से पर्यावरण को होने वाला नुकसान कम होता है. प्लास्टिक की बोतलें बनाने में जो चीज इस्तेमाल होती है, उससे कपड़े और गाड़ियों के पार्ट्स भी बनाए जा सकते हैं. लेकिन, दुख की बात है कि करीब 90% प्लास्टिक को रिसाइकल ही नहीं किया जाता. यह प्लास्टिक या तो कूड़े के ढेर में पड़ा रहता है या फिर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है.
प्लास्टिक असल में कभी खत्म नहीं होता, वो सिर्फ छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटता रहता है. धूप की गरमी में प्लास्टिक धीरे-धीरे टूटकर बहुत छोटे-छोटे टुकड़े बन जाते हैं जिन्हें ‘माइक्रोप्लास्टिक’ कहते हैं. ये टुकड़े इतने छोटे होते हैं कि आसानी से दिखाई नहीं देते, लेकिन ये हर जगह मौजूद होते हैं.
लोकसभा में कांग्रेस सांसद कुलदीप इंदौरा ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री से सवाल पूछा है कि क्या सरकार ने सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लागू किया है. क्या यह सच है कि इस प्रतिबंध के बावजूद देशभर में ऐसी सिंगल-यूज प्लास्टिक चीजों का व्यापक रूप से उपयोग जारी है? अगर हां, तो प्रतिबंध को लागू करने के लिए सरकार ने क्या-क्या कदम उठाए. इस पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने लिखित जवाब दिया है.
पहले जानिए क्या है सिंगल-यूज प्लास्टिक और इसका इतिहास?
सिंगल-यूज प्लास्टिक ऐसे प्लास्टिक को कहते हैं जो सिर्फ एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है. ये प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक होता है क्योंकि यह सैकड़ों सालों तक नहीं सड़ता. हर साल दुनिया भर में 300 मिलियन टन प्लास्टिक बनता है और उसमें से आधा सिंगल-यूज होता है. पूरी दुनिया में सिर्फ 10% से 13% प्लास्टिक ही रिसाइकल हो पाता है.
प्लास्टिक असल में कई सारे केमिकल को मिलाकर बनाया जाता है. ये 19वीं सदी में ही बन गया था, लेकिन इसका असली इस्तेमाल 1970 के दशक में शुरू हुआ. पहले दूध कांच या कागज के डिब्बों में आता था, लेकिन फिर प्लास्टिक के डिब्बे आने लगे क्योंकि ये हल्के, सस्ते और मजबूत होते थे. 1950 से अब तक जितना भी प्लास्टिक बना है, उसका आधा तो पिछले 15 सालों में ही बना है.
कितना खतरनाक है सिंगल-यूज प्लास्टिक
प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े (माइक्रोप्लास्टिक) और प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल हमारी सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. प्लास्टिक में मौजूद कई केमिकल हमारे शरीर के हार्मोन को प्रभावित करते हैं. इससे हमें कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं. जैसे: हार्मोन में गड़बड़ी, बच्चे पैदा करने में दिक्कत या कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी.
हालांकि सिंगल-यूज़ प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण हमारी सड़कों पर सबसे ज्यादा दिखता है, लेकिन असल में पानी में इसका असर और भी बुरा होता है. जब बारिश होती है, तो जमीन पर पड़ा प्लास्टिक बहकर नालियों और नदियों में चला जाता है. यही कचरा फिर समुद्र में पहुंच जाता है. दुनिया की सिर्फ 10 नदियां ही समुद्र में मिलने वाले 93% प्लास्टिक के लिए जिम्मेदार हैं. इससे समुद्र में बहुत ज्यादा प्लास्टिक जमा हो जाता है.
यह प्लास्टिक समुद्री जानवरों के लिए बहुत खतरनाक है. कई बार समुद्र के किनारे मरी हुई व्हेल मछलियों के पेट में ढेर सारा प्लास्टिक मिला है. शोध से पता चला है कि 90% समुद्री पक्षियों और 100% कछुओं के पेट में प्लास्टिक मिला है. एक अध्ययन में यह भी कहा गया है कि 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा. प्लास्टिक की वजह से हर साल लाखों समुद्री जानवर और पक्षी मर रहे हैं.
क्या भारत में सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध है?
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने संसद में दिए जवाब में बताया, भारत सरकार ने 12 अगस्त 2021 को प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट संशोधन नियम 2021 (Plastic Waste Management Amendment Rules 2021) को अधिसूचित किया था. इसके तहत, 1 जुलाई 2022 से उन सिंगल-यूज प्लास्टिक प्रोडक्ट पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिनका इस्तेमाल बहुत कम होता है और जो जल्दी कचरा बन जाती हैं. ताकि प्लास्टिक का कचरा कम हो और पर्यावरण साफ रहे.
प्लास्टिक को रिसाइकल करना मुश्किल होता है क्योंकि इसमें नया प्लास्टिक और केमिकल मिलाने पड़ते हैं. फिर रिसाइकल किए हुए प्लास्टिक से कुछ ही चीजें ही बनाई जा सकती हैं.
प्लास्टिक प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन गया है. यह हमारी मिट्टी, पानी और हवा को प्रदूषित कर रहा है. इससे जानवरों को भी नुकसान हो रहा है. प्लास्टिक को जलाने से हानिकारक गैसें निकलती हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक हैं. इन्हीं सब कारणों से सरकार ने सिंगल-यूज प्लास्टिक पर बैन लगाया है.
प्लास्टिक की थैलियों पर भी पाबंदी!
31 दिसंबर 2022 से 120 माइक्रोन से पतली प्लास्टिक की थैलियों को बनाना, लाना, रखना, बेचना और इस्तेमाल करना मना है. 30 सितंबर 2021 से 60 ग्राम प्रति वर्ग मीटर से कम वजन वाली नॉन-वोवन प्लास्टिक कैरी बैग भी बंद हो गई हैं. गुटखा, तंबाकू और पान मसाला के प्लास्टिक पाउच पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है. कई राज्यों ने अपने यहां भी प्लास्टिक की थैलियों और कुछ सिंगल-यूज़ प्लास्टिक चीजों पर पाबंदी लगाई है.
क्या सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लागू हो रहा है?
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वो प्लास्टिक बैन को सख्ती से लागू करें. इसके लिए उन्हें नियमित रूप से जांच अभियान चलाने को कहा गया है, खासकर फल-सब्जी मंडियों, थोक बाजारों, फूल वालों और प्लास्टिक बैग बनाने वाली फैक्ट्रियों में.
जहां भी नियमों का उल्लंघन होता है, वहां अधिकारी कार्रवाई करते हैं. प्लास्टिक की चीजों को जब्त किया जाता है और जुर्माना लगाया जाता है. प्लास्टिक के ऑप्शन के रूप में बिकने वाली चीजों पर भी नजर रखी जा रही है, जैसे कि प्लास्टिक की परत वाली पेपर प्लेट, क्योंकि ये भी बैन हैं.
जुलाई 2022 से पूरे भारत में प्लास्टिक बैन को लागू करने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं. इन अभियानों के दौरान अब तक 60,367 जगहों पर जांच की गई है, 19.77 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है और 1963.6 टन प्लास्टिक जब्त किया गया है.
प्लास्टिक बैन पर नजर रखने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म
सिंगल-यूज प्लास्टिक पर बैन को सही तरीके से लागू करने और प्लास्टिक कचरे को मैनेज करने के लिए सरकार ने कुछ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाए हैं. ये प्लेटफॉर्म हैं: नेशनल डैशबोर्ड, CPCB मॉनिटरिंग मॉड्यूल, CPCB शिकायत निवारण ऐप.
नेशनल डैशबोर्ड प्लास्टिक बैन को लागू करने के लिए बनाई गई योजना पर नजर रखता है. CPCB मॉनिटरिंग मॉड्यूल सिंगल-यूज प्लास्टिक को खत्म करने के लिए बनाए गए नियमों का पालन हो रहा है या नहीं, इस पर नजर रखता है. CPCB शिकायत निवारण ऐप के जरिए लोग प्लास्टिक बैन से जुड़ी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं.
क्या है प्लास्टिक का ऑप्शन?
सरकार ने बताया कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 26-27 सितंबर 2022 को चेन्नई में ‘नेशनल एक्सपो ऑन इको अल्टरनेटिव्स टू सिंगल यूज प्लास्टिक्स एंड स्टार्ट-अप कॉन्फ्रेंस 2022’ का आयोजन किया था. इस प्रदर्शनी में लगभग 150 संस्थाओं ने भाग लिया जो प्लास्टिक के पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों के अनुसंधान, विकास, निर्माण और बिक्री में लगी हैं. यहां कई नए और अनोखे उत्पाद दिखाए गए. जैसे: कैरी बैग, कपड़े, जूते, स्वास्थ्य उत्पाद, सैनिटरी पैड, कटलरी.
ये सभी प्रोडक्ट अलग-अलग चीजों से बने थे. जैसे: केले के पत्ते, फाइबर, चावल की भूसी, कृषि उत्पाद, सुपारी के पत्ते, नारियल की जटा, मिट्टी, ताड़ के पत्ते, कपड़ा, जूट. ये प्रोडक्ट पूरे भारत के निर्माताओं, स्वयं सहायता समूहों और स्टार्ट-अप कंपनियों ने बनाए थे.
इस प्रदर्शनी का उद्देश्य प्लास्टिक के विकल्पों के बारे में जागरूकता फैलाना और लोगों को उनके इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करना था. यह प्रदर्शनी प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने और पर्यावरण की रक्षा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था.
सरकार ने प्लास्टिक के ऑप्शन ढूंढने के लिए क्या तरीके आजमाएं?
प्लास्टिक के ऑप्शन खोजने और प्लास्टिक कचरे को मैनेज करने के नए तरीके ढूंढने के लिए सरकार ने ‘हैकथॉन’ का आयोजन किया है. हैकथॉन में लोग नए-नए आइडिया और समाधान ढूंढते हैं. पर्यावरण मंत्रालय, एमएसएमई मंत्रालय, आवास और शहरी कार्य मंत्रालय और सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) ने मिलकर हैकाथॉन का आयोजिन किया.
प्लास्टिक बैन की वजह से लोग प्लास्टिक की जगह दूसरी चीजों का इस्तेमाल करने के बारे में सोचने लगे हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए, भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने एक नया मानक IS 18267 जारी किया है. यह मानक कृषि उप-उत्पादों (Agri By-Products) से बने खाद्य परोसने वाले बर्तनों के लिए है.