डिप्टी सीएम ….. संविधान में इसका जिक्र नहीं ?
डिप्टी सीएम: राजनीतिक इतिहास के अहम मोड़ पर खड़े दो नेताओं को मिली जिम्मेदारी कितनी बड़ी?
उप मुख्यमंत्री या डिप्टी सीएम की पोस्ट असंवैधानिक तो नहीं है, लेकिन संविधान में इसकी कोई व्याख्या भी नहीं है. फिर, राजनीतिक सौदेबाजी में इस पोस्ट को लेकर हमेशा चर्चा होती रही है.
5 दिसंबर 2024, महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ी तारीख बन गई है. भारत के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले मुंबई के ऐतिहासिक आजाद मैदान में जब महाराष्ट्र की नई सरकार की शपथ ले रही थी तो महाराष्ट्र का भी इतिहास कई दिग्गजों को पार करते हुए आगे बढ़ रहा था. तमाम तरह के कयासों, एकनाथ शिंदे की नाराजगी, अजित पवार की धीमी मुस्कान से उपजते संदेह भी इतिहास को आगे बढ़ने से नहीं रोक पाए. देवेंद्र फडणवीस ने बिलकुल वैसी ही वापसी की जैसा वो विधानसभा में ऐलान करके गए थे. लेकिन, महाराष्ट्र की लड़ाई में अगर देवेंद्र फडणवीस को विजय के तौर पर सत्ता मिली है, तो एकनाथ शिंदे और अजित पवार को क्या मिला?
ये सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि शिंदे ने जहां अपनी पार्टी तोड़कर बीजेपी का साथ पकड़ा था तो अजित पवार ने तो पार्टी और परिवार दोनों से बगावत की थी. सिद्धांतों की बात करें तो अतीत को हमेशा वर्तमान के लिए और वर्तमान को भविष्य के लिए खड़े होना चाहिए. आने वाले वक्त इन दोनों ही नेताओं के फैसले को इस तराजू पर जरूर तौलेगा.
लेकिन बात यहां उप-मुख्यमंत्री के पद की भी करनी चाहिए. राज्यों के चुनाव में ये पद कई बार सत्ता संतुलन में पसंघे या फिर सीधे शब्दों में कहें तो संतुष्टि के उत्तोलक का काम करता है. लेकिन, शायद ही इस बात का ध्यान रखा जाता है कि संविधान में इस पद की कोई व्याख्या नहीं की गई है.
इस लेख के जरिए हम डिप्टी सीएम या उप मुख्यमंत्री पद को कसौटी पर कसेंगे और जानेंगे कि संविधान और सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या में कितना खरा है. ये इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि इसी के जरिए दो नेता राजनीतिक इतिहास के अहम मोड़ को पार करने जा रहे हैं.
संविधान में इसका जिक्र नहीं
उप मुख्यमंत्री या डिप्टी सीएम को लेकर संविधान में कुछ भी नहीं कहा गया है. साफ शब्दों में कहें तो भारत के उपराष्ट्रपति की तरह इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है.
इस तरह के पद की शुरुआत कहां से हुई
साल 1947 में सरदार वल्लभ भाई पटेल को आजादी के बाद बनी सरकार में उप प्रधानमंत्री बनाया गया था. इस पद का भी कोई जिक्र संविधान में नहीं है. लेकिन इस फैसले ने राज्यों में डिप्टी सीएम बनाने के रास्तो को खोल दिया था.
कौन करता है नियुक्ति और हटाने का अधिकार किसे
उप-मुख्यमंत्री की नियुक्ति और हटाना पूरी तरह से मुख्यमंत्री पर निर्भर है. मुख्यमंत्री एक से अधिक उपमुख्यमंत्रियों को नियुक्त कर सकते हैं. जैसे महाराष्ट्र में दो उप-मुख्यमंत्री हैं जबकि एक समय आंध्र प्रदेश की सरकार में पांच उप-मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
क्या कोई कार्यकाल भी होता है?
उप-मुख्यमंत्री का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता है, क्योंकि मुख्यमंत्री किसी भी समय पोर्टफोलियो को पुनर्गठित या उप-मुख्यमंत्री को हटा सकते हैं. बिहार के अनुग्रह नारायण सिन्हा स्वतंत्रता के बाद पहले उप-मुख्यमंत्री थे.
उप-मुख्यमंत्री का सरकार में महत्व
जैसा कि हम ऊपर भी बता चुके हैं ये पद आज की राजनीति में गठबंधन को साधने का बड़ा जरिया है. न सिर्फ गठबंधन, जातियों का समीकरण, क्षेत्रीय संतुलन साधने में भी इस पद का इस्तेमाल किया जाता है.
डिप्टी सीएम पद की जरूरत
इस पद को संवैधानिक दर्जा नहीं मिला है.जिससे इसकी भूमिका और कार्यों में स्पष्टता नहीं है.मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त किए जा सकने वाले उपमुख्यमंत्रियों की संख्या पर कोई सीमा नहीं है.ये किसी निश्चित उद्देश्य के बजाए गठबंधन दलों और सहयोगियों का अधिक तुष्टीकरण के लिए इस्तेमाल होता है.
उप-मुख्यमंत्री की भूमिका और कार्यों की स्पष्ट परिभाषा बनाई जानी चाहिए. मुख्यमंत्री के फैसले से नियुक्त किए जा सकने वाले उपमुख्यमंत्रियों की संख्या पर एक सीमा होनी चाहिए, जिससे इस पद से जुड़ी जटिलताओं को सरल बनाया जा सके.
उप-प्रधानमंत्रियों का इतिहास
-यह संघ मंत्रिमंडल का दूसरा सबसे उच्च रैंकिंग मंत्री होता है,जो संवैधानिक पद नहीं है.
-स्वतंत्र भारत के पहले और सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल थे.
-1947 से अब तक भारत में 7 उपप्रधानमंत्री रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने खींच रखी है एक बहुत महीन लकीर
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल ने एक याचिका की सुनवाई में कहा है कि उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति संवैधानिक रूप से गलत नहीं है, भले ही यह पद संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं है. न्यायालय ने एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय दिया, जिसमें उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति को असंवैधानिक बताया गया था. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उप-मुख्यमंत्री वास्तव में एक मंत्री होते हैं और उनका पद केवल एक लेबल है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उपमुख्यमंत्रियों को अन्य मंत्रियों की तरह ही वेतन और भत्ते मिलते हैं और उनकी स्थिति केवल थोड़ी अधिक वरिष्ठता के साथ होती है.
यह सच है कि यदि किसी को उप-मुख्यमंत्री का पद दिया जाता है, तो वह सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए मुख्यमंत्री द्वारा संचालित मंत्रियों की परिषद में एक मंत्री ही रहता है. उपमुख्यमंत्रियों को अन्य मंत्रियों की तुलना में अधिक वेतन या भत्ते नहीं मिलते हैं. हो सकता है कि उन्हें आधिकारिक सर्कलों में थोड़े अधिक वरिष्ठता के रूप में माना जाए: तत्कालीन CJI चंद्रचूड़याचिका ने खिलाफ क्या दी थी दलील
याचिकाकर्ता ‘पब्लिक पॉलिटिकल पार्टी’ ने तर्क दिया था कि उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति धार्मिक और जातीय आधार पर की जाती है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है. हालांकि, न्यायालय ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति में कोई संवैधानिक उल्लंघन नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी व्यक्ति को उप-मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है, तो उसे छह महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना होगा. वर्तमान में, भारत के 14 राज्यों में 26 उप-मुख्यमंत्री हैं, जिनमें आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक पांच उप-मुख्यमंत्री शामिल हैं. यह निर्णय राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक संतुलन बनाए रखने और वरिष्ठ नेताओं को महत्व देने के लिए उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति की प्रथा को मान्यता देता है.
अब संविधान के नजरिए से समझते हैं डिप्टी पीएम और डिप्टी सीएम की पोस्ट
संविधान के अनुच्छेद 74 में कहा गया है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रियों की परिषद होगी, जो राष्ट्रपति को सहायता और सलाह प्रदान करेगी. अनुच्छेद 75 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी प्रधानमंत्री की सलाह पर होगी. मंत्रियों की कुल संख्या, जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या का 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए.
प्रधानमंत्री के कर्तव्य
संविधान के भाग पांच का अंत अनुच्छेद 78 पर होता है, जो प्रधानमंत्री के कर्तव्यों को सूचीबद्ध करता है. इसमें राष्ट्रपति को मंत्रियों की परिषद द्वारा लिए गए सभी निर्णयों की जानकारी देने का प्रावधान है.
राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों की भूमिका
भाग छह के अध्याय दो में राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों की जिम्मेदारी के बारे में बताया गया है.अनुच्छेद 163 में कहा गया है कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रियों की परिषद राज्यपाल को अपनी कार्यों में सहायता और सलाह देगी.
अनुच्छेद 164 में लिखा है कि हर राज्य का मुख्यमंत्री संबंधित राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा और अन्य मंत्री भी मुख्यमंत्री की सलाह पर ही नियुक्त किए जाएंगे यह अनुच्छेद यह भी बताता है कि मंत्री “राज्यपाल की इच्छा” के मुताबिक काम करेंगे.
91वें संविधान संशोधन अधिनियम का असर
संविधान (91वां संशोधन) अधिनियम, 2003 ने अनुच्छेद 164 में एक प्रावधान जोड़ा, जिसके मुताबिक मंत्रियों की संख्या विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या का 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए और इसमें मुख्यमंत्री सहित संख्या 12 से कम नहीं होनी चाहिए.
मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी
भाग छह का अध्याय दो अनुच्छेद 167 पर समाप्त होता है, जो मुख्यमंत्री की जिम्मेदारियों को सूचीबद्ध करता है. इसमें राज्य मामलों से संबंधित सभी निर्णयों की जानकारी राज्यपाल को देना शामिल है.
संविधान में उपप्रधानमंत्री या उप-मुख्यमंत्री जैसे पदों का कोई उल्लेख नहीं है. यह स्थिति राजनीतिक दलों ने अपने फायदे के लिए बनाई है.
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