मोटी कमाई के लिए बनाए जा रहे हैं भारत में टोल प्लाजा?

लागत निकालने या मोटी कमाई के लिए बनाए जा रहे हैं भारत में टोल प्लाजा?

भारत में हाईवे पर जो टोल प्लाजा बनाए जाते हैं, वे सरकार के कुछ नियमों के हिसाब से बनाए जाते हैं. इन नियमों को ‘नेशनल हाईवे फी रूल्स 2008’ कहा जाता है.

भारत में नेशनल हाईवे पर बने टोल प्लाजा से अब तक कुल 2.4 लाख करोड़ रुपये का राजस्व एकत्र किया जा चुका है. यह जानकारी हाल ही में लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों से सामने आई है. यह आंकड़ा उन 758 टोल प्लाजा से जुटाया गया है जिनका पूरा डेटा उपलब्ध था. सरकार ने ये भी बताया कि पिछले तीन सालों में 14 टोल प्लाजा बंद हुए हैं.

टोल प्लाजा से होने वाली कमाई के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है. यहां टोल से 32,510 करोड़ रुपये वसूले गए हैं. इसके बाद, राजस्थान और महाराष्ट्र दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं. दिल्ली-NCR में सबसे कम टोल टैक्स वसूला गया. यहां सिर्फ 263 करोड़ रुपये का राजस्व आया. दिल्ली-चेन्नई नेशनल हाईवे NH48 पर सबसे ज्यादा 24,490 करोड़ रुपये का टोल वसूला गया है.

अब ज्यादातर लोग टोल का भुगतान FASTag से कर रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में 98% से ज्यादा टोल पेमेंट फास्टैग के जरिए हुए हैं. फास्टैग एक ऐसा स्टीकर है जिससे आप बिना रुके टोल का भुगतान कर सकते हैं. इससे आपका समय और पैसा दोनों बचते हैं.

आखिर क्यों वसूला जाता है टोल टैक्स?
संसद में पूछे गए सवाल के जवाब में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी ने कहा, टोल टैक्स इसलिए लिया जाता है ताकि लोगों को अच्छी सड़कें मिल सकें और उनकी यात्रा आसान हो सके. इससे सामान की ढुलाई भी आसान होती है. टोल टैक्स में हर साल बदलाव हो सकता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि महंगाई दर कितनी बढ़ी है. अगर महंगाई ज्यादा है, तो टोल टैक्स भी बढ़ सकता है.

लागत निकालने या मोटी कमाई के लिए बनाए जा रहे हैं भारत में टोल प्लाजा?

कैसे तय होता है टोल?
हाईवे पर टोल टैक्स तय करते समय कई बातों का ध्यान रखा जाता है. जैसे: हाईवे पर कितनी लेन हैं, किनारे पक्के हैं या नहीं, यह देखा जाता है. टोल टैक्स हाईवे की लंबाई के हिसाब से भी तय होता है. जितना ज्यादा लंबा हाईवे होगा, उतना ही ज्यादा टोल टैक्स बढ़ेगा. अगर हाईवे पर कोई बड़ा पुल या सुरंग है, तो भी टोल ज्यादा हो सकता है. बड़ी गाड़ियों (जैसे ट्रक, बस) से छोटी गाड़ियों (जैसे कार, बाइक) के मुकाबले ज्यादा टैक्स लिया जाता है. अभी टोल ‘NH Fee Rules’ नाम के नियमों के हिसाब से वसूला जाता है. यह नियम तय करते हैं कि कितना टोल लिया जाएगा और कैसे लिया जाएगा.

क्या सरकार और कंपनियों के बीच कोई समझौता होता है?
जब सरकार किसी कंपनी को हाईवे बनाने का काम देती है, तो उनके बीच एक समझौता होता है. इस समझौते में यह तय होता है कि कंपनी कितने समय तक और कितना टोल वसूल कर सकती है. यह समझौता ‘कंसेशन एग्रीमेंट’ कहलाता है. इसमें टोल टैक्स शुरू करने और खत्म करने की समय सीमा तय होती है. सरकार ने बताया कि इन समझौतों की जानकारी कोई भी व्यक्ति ‘सूचना का अधिकार’ (RTI) के जरिए मांग सकता है.

जब कोई नया हाईवे, पुल या सुरंग बनकर तैयार हो जाती है, तो 45 दिन के अंदर वहां टोल वसूलना शुरू हो जाता है. अगर सड़क सरकार ने बनाई है, तो टोल कितने समय तक लिया जाएगा, यह सरकार के नियमों के हिसाब से तय होता है. अगर सड़क किसी प्राइवेट कंपनी ने बनाई है, तो टोल वसूलने का समय सरकार और कंपनी के बीच हुए समझौते में तय होता है.

क्या भविष्य में खत्म हो जाएंगे टोल प्लाजा?
अब सरकार सैटेलाइट सिस्टम के जरिए टोल वसूलने की तैयारी कर रही है. सरकार ‘इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन’ (ETC) नाम की एक नई तकनीक ला रही है. इससे टोल प्लाजा पर बिना रुके ही टोल का भुगतान किया जा सकेगा. यह फास्टैग जैसा ही है, लेकिन इसमें गाड़ी एक सेंकड के लिए भी नहीं रोकनी पड़ेगी.

इसे GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) भी कहा जाता है. अभी यह सिस्टम कहीं भी चालू नहीं है. लेकिन सरकार इस पर काम कर रही है. यह सिस्टम सस्ता होगा क्योंकि इससे टोल प्लाजा पर काम करने वाले लोगों की जरूरत नहीं पड़ेगी.

दो टोल प्लाजा के बीच कितनी दूरी होनी चाहिए?
नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के नियमों के अनुसार, दो टोल प्लाजा के बीच कम से कम 60 किलोमीटर की दूरी होनी चाहिए. यह नियम नेशनल हाईवे फी रूल्स 2008 के तहत लागू होता है. 

‘क्लोज्ड यूजर फी कलेक्शन सिस्टम’ एक ऐसा सिस्टम है जिसमें आप जहां से हाईवे पर चढ़ते हैं और जहां से उतरते हैं, वहां टोल देना होता है. इस सिस्टम में टोल प्लाजा कहीं भी बनाए जा सकते हैं. कुछ स्थितियों में दो टोल प्लाजा के बीच की दूरी 60 किमी से कम हो सकती है. ऐसा तब होता है अगर किसी हाईवे पर कोई बड़ा पुल, बाईपास या सुरंग है, तो उसके लिए अलग से टोल प्लाजा बनाया जा सकता है, भले ही वह दूसरे टोल प्लाजा से 60 किमी से कम दूरी पर ही क्यों न हो. 

चौकड़ी और मड़वा नगर टोल प्लाजा के बीच की दूरी 60 किमी से कम?
सरकार ने बताया, उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में चौकड़ी और मड़वा नगर नाम के दो टोल प्लाजा हैं. इनके बीच की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है. यह दूरी नियमों के मुताबिक है. ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों टोल प्लाजा अलग-अलग प्रोजेक्ट के लिए बनाए गए हैं.

जब कोई नया हाईवे बनता है, तो उसके आसपास के इलाके में भी सुधार होता है, जैसे नई दुकानें खुलती हैं, नए घर बनते हैं आदि. ऐसे पूरे इलाके को प्रोजेक्ट इन्फ्लुएंस लेंथ कहते हैं. चौकड़ी टोल प्लाजा 55 किमी लंबे इलाके के लिए टोल वसूल करता है. जबकि, मड़वा नगर टोल प्लाजा 62.86 किमी लंबे इलाके के लिए टोल वसूल करता है. चौकड़ी और मड़वा नगर टोल प्लाजा जिन इलाकों के लिए टोल वसूल करते हैं, वे अलग-अलग हैं. इसलिए उनके बीच की दूरी 60 किमी से कम होने पर भी कोई समस्या नहीं है.

गाड़ी खरीदते समय रोड टैक्स देने के बाद भी टोल टैक्स क्यों?
PPP मॉडल से टोल टैक्स के ज़रिए सरकार को काफी पैसे मिलते हैं. जब सरकार किसी प्राइवेट कंपनी को सड़क बनाने का काम देती है, तो इसे PPP मॉडल कहते हैं. गाड़ी खरीदते समय आप ‘रोड टैक्स’ देते हैं जो कि सभी सड़कों के इस्तेमाल के लिए होता है. लेकिन ‘टोल टैक्स’ किसी खास सड़क या हाईवे के इस्तेमाल के लिए लिया जाता है. यह टैक्स उस हाईवे के निर्माण और रखरखाव में खर्च किया जाता है.

लागत निकालने या मोटी कमाई के लिए बनाए जा रहे हैं भारत में टोल प्लाजा?

चीन में टोल से होने वाली कमाई 2020 में घटी
चीन भी भारत की तरह एक विकासशील देश है. यहां भी हाईवे पर टोल टैक्स वसूल किया जाता है. statista की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2019 तक चीन सरकार को टोल से अच्छी कमाई होती रही और यह बढ़कर 593.8 अरब युआन हो गई. 2019 में टोल से सबसे ज्यादा कमाई हुई थी. लेकिन 2020 में यह कमाई घट गई और 486.8 अरब युआन रह गई. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 2020 में टोल से होने वाली कमाई पिछले साल से 18% कम हो गई. इस गिरावट के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि कोरोना महामारी के कारण यात्राओं में कमी या फिर सरकार की ओर से टोल टैक्स में कुछ बदलाव. 

2020 में चीन के कुल सड़क मार्ग में टोल रोड का हिस्सा 3.45 फीसदी था. यह आंकड़ा 2014 से 2020 तक 3.4 फीसदी और 3.6 फीसदी के बीच बना रहा, जिससे पता चलता है कि टोल रोड का विस्तार कुल सड़क नेटवर्क के विस्तार के साथ लगभग समान गति से हुआ है. यह जानकारी चीन के परिवहन मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों पर आधारित है. यहां, कोई एक कंपनी पूरे  टोल रोड सिस्टम को कंट्रोल नहीं करती, बल्कि ज्यादातर टोल रोड स्थानीय सरकार की कंपनियों के पास ही  होते हैं. गुआंग्डोंग प्रांत में सबसे ज्यादा सरकार की कमाई होती है क्योंकि वहां सबसे ज्यादा एक्सप्रेसवे हैं.

जापान के टोल रोड दुनिया में सबसे अच्छे?
जापान में टोल रोड चलाने का तरीका बड़ा दिलचस्प है. यह सरकार और प्राइवेट कंपनियों के बीच एक साझेदारी की तरह है. सरकार की एक एजेंसी है जिसके पास सारी टोल रोड हैं. यह एजेंसी पुराने कर्ज चुकाती है और प्राइवेट कंपनियों को टोल रोड किराये पर देती है. 

प्राइवेट कंपनियां टोल वसूलती हैं, टोल रोड चलाती हैं और नई सड़कें बनाती हैं. जब ये कंपनियां नई सड़कें बनाती हैं, तो वो सड़कें सरकार की एजेंसी की हो जाती हैं. प्राइवेट कंपनियां एजेंसी को किराया भी देती हैं. इस तरह, जापान के लोगों को दोनों तरह के फायदे मिलते हैं. प्राइवेट कंपनियां टोल रोड अच्छी तरह से चलाती हैं और सरकार यह सुनिश्चित करती है कि टोल रोड पर हमेशा काम होता रहे और नई सड़कें बनती रहें.

ऑस्ट्रेलिया में कैसी है टोल व्यवस्था
ऑस्ट्रेलिया में टोल प्लाजा मुख्य रूप से सिडनी, ब्रिस्बेन और टूवूम्बा में हैं. मेलबर्न का टोल प्लाजा वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में है. ऑस्ट्रेलिया में सभी टोल रोड इलेक्ट्रॉनिक हैं.  टोल चुकाने के लिए LinkT या E-Toll जैसे टोल पास का इस्तेमाल करना होता है. अगर किसी के पास टोल नहीं है, तो गाड़ी के मालिक पर जुर्माना लगाया जाता है. ज्यादातर टोल रोड पर टोल प्लाजा होते हैं जहां टोल चुकाते हैं. लेकिन Westlink M7 नाम की एक टोल रोड ऐसी भी है जहां जितनी दूर तक सड़क का इस्तेमाल करते हैं, उसी हिसाब से टोल देना होता है. हालांकि, यहां भी टोल चुकाने का तरीका इलेक्ट्रॉनिक ही है.

ऑस्ट्रेलिया में टोल कितना लगेगा, यह कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे कि किस सड़क पर जा रहे हैं, कितनी दूर जा रहे हैं, किस समय जा रहे हैं और गाड़ी कौन सी है. कुछ टोल रोड पर एक ही रेट होता है, चाहे कितनी भी दूर जाएं. 

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