बेतुके नियम, भ्रष्टाचार और नौकरशाही के आगे पस्त हो रही है चीन को पीछे छोड़ने की रणनीति ?
बेतुके नियम, भ्रष्टाचार और नौकरशाही के आगे पस्त हो रही है चीन को पीछे छोड़ने की रणनीति
भारत को ‘चीन प्लस वन’ रणनीति में “सीमित सफलता” मिली है, जो इस बात को दर्शाता है कि भारत अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है.
नीति आयोग की हाल ही में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार संघर्ष और ‘चीन प्लस वन’ रणनीति के चलते भारत को व्यापार के नए अवसर मिल रहे हैं. ‘चीन प्लस वन’ रणनीति का मतलब है कि कंपनियां चीन के अलावा अन्य देशों में भी अपना उत्पादन और आपूर्ति शृंखला बढ़ा रही हैं, ताकि वे चीन पर निर्भरता कम कर सकें और जोखिम को कम कर सकें.
हालांकि भारत को इस रणनीति का फायदा उठाने में अभी तक पूरी सफलता नहीं मिली है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत को सीमित सफलता मिली है क्योंकि यहां कुछ जटिल नियम, भ्रष्टाचार, नौकरशाही में रुकावटें और उच्च श्रम लागत जैसी कई चुनौतियां हैं, जिसके कारण विदेशी कंपनियां भारत में निवेश करने में संकोच करती हैं और अन्य देशों, जैसे वियतनाम और मलेशिया, को प्राथमिकता देती हैं जो सस्ते श्रम और आसान व्यापार प्रक्रियाओं के कारण आकर्षक हैं.
यानी, भारत के पास अवसर तो हैं, लेकिन इन चुनौतियों को हल करने की जरूरत है ताकि वह चीन की जगह ले सके और वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सके. ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि भारत में आखिर क्यों पस्त नहीं हो रही
भारत को “सीमित सफलता” क्यों मिल रही है?
नीति आयोग की हाल ही में जारी ट्रेड वॉच रिपोर्ट में भारत को ‘चीन प्लस वन’ रणनीति से ज्यादा लाभ न मिलने के कारणों पर प्रकाश डाला गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को ‘चीन प्लस वन’ रणनीति में “सीमित सफलता” मिली है, जो इस बात को दर्शाता है कि भारत अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है. इसका मुख्य कारण भारत की जटिल नौकरशाही, बेतुके नियम, भ्रष्टाचार और नीतिगत असंगतताएं हैं.
1. पहला कारण है प्रतिस्पर्धात्मक नुकसान. वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया और मलेशिया जैसे देशों ने सस्ते श्रम, सरल कर कानूनों, और कम टैरिफ के माध्यम से चीन से बाहर जाने वाली कंपनियों को आकर्षित किया है. इन देशों ने न सिर्फ अपनी विनिर्माण लागत को घटाया है, बल्कि विदेशी निवेशकों के लिए अनुकूल नीतियां भी लागू की हैं. वहीं दूसरी तरफ भारत में, निवेशकों के लिए व्यवसाय करने की प्रक्रिया काफी कठिन और महंगी होती है.
2. दूसरा बड़ा कारण है नियामक चुनौतियां और नौकरशाही की बाधाएं. दरअसल भारत में व्यापार और निवेश की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन जटिल नियमों, नौकरशाही की दवाब और अप्रत्याशित प्रशासनिक निर्णयों के कारण विदेशी कंपनियों को निराशा का सामना करना पड़ता है. व्यापारिक फैसलों में अस्थिरता, कर नीतियों में बदलाव, और भूमि अधिग्रहण में देरी जैसी समस्याएं भारत को प्रतिस्पर्धा में पीछे छोड़ देती हैं. उदाहरण के लिए, देश को भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है, क्योंकि यह औद्योगिक परियोजनाओं में देरी का मुख्य कारण बनती है.
3. इसके अलावा, भारत की मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर धीमी गति भी एक महत्वपूर्ण समस्या है. जबकि वियतनाम और मलेशिया जैसे देश FTA पर हस्ताक्षर करने में हमेशा ही सक्रिय रहे हैं, भारत की धीमी गति ने उसे वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने से रोक दिया है. FTA के माध्यम से, देशों को सस्ती दरों पर सामान और सेवाएं व्यापार करने का मौका मिलता है, जो भारत के व्यापारिक दृष्टिकोण से बेहद जरूरी है.
भ्रष्टाचार का असर
भारत में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है, जो विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने से रोकती है. जब कोई कंपनी भारत में व्यापार करती है, तो उसे कभी-कभी भ्रष्ट अधिकारियों या कर्मचारियों से जूझना पड़ता है. इसका मतलब है कि व्यापार में लेन-देन करने के लिए उन्हें ज्यादा पैसे या अनैतिक रास्ते अपनाने पड़ सकते हैं. इससे व्यापार करने की लागत बढ़ जाती है और नीतियां ठीक से लागू नहीं हो पाती, क्योंकि भ्रष्टाचार से जुड़े लोग अक्सर नियमों को तोड़ते हैं.
जब कंपनियां भारत में निवेश करने की सोचती हैं, तो यह अनिश्चितता और भ्रष्टाचार उन्हें डराता है. वे सोचती हैं कि क्या वे बिना किसी परेशानी के अपने व्यवसाय को चला पाएंगे या नहीं. हालांकि भारत सरकार ने भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जैसे “मॉडल रूल” (model rules) और “आंतरिक सुधार”, फिर भी भ्रष्टाचार की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है.
इसका नतीजा यह होता है कि निवेशक भारत में निवेश करने से हिचकिचाते हैं, क्योंकि उन्हें नहीं पता कि उन्हें कब और कहां भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ेगा.
क्या होता है मॉडल रूल्स
मॉडल रूल्स वे दिशा-निर्देश होते हैं, जिन्हें सरकार अलग अलग प्रक्रियाओं और नीतियों के लिए तैयार करती है ताकि हर जगह एक समान तरीके से काम किया जा सके. इनका मुख्य उद्देश्य सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाना होता है. जब सरकार किसी विशिष्ट क्षेत्र, जैसे भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने या सरकारी कर्मचारियों के लिए नियम बनाने की कोशिश करती है, तो वह मॉडल रूल्स बनाती है.
भारत में, ये नियम सरकारी प्रक्रियाओं को सरल और स्पष्ट बनाते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी प्रक्रिया या कार्य गैरकानूनी तरीके से प्रभावित न हो. उदाहरण के लिए, अगर कोई राज्य सरकार अपने अधिकारियों के लिए नया नियम बनाना चाहती है, तो वह पहले मॉडल रूल्स को देख सकती है ताकि वह सुनिश्चित कर सके कि सभी जगह समान तरीके से नियम लागू हों.
इसका उद्देश्य यह होता है कि सभी सरकारी कार्यक्रमों में समानता बनी रहे और लोगों का विश्वास सरकारी कामकाज में बढ़े, ताकि कोई भी व्यक्ति यह महसूस न करे कि उसे भेदभाव या भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ रहा है.
सुरक्षा और भू-राजनीतिक अस्थिरता
भारत के लिए एक और चुनौती भू-राजनीतिक तनाव है. अमेरिका-चीन व्यापार संघर्ष ने भारत को एक तटस्थ विकल्प के रूप में उभरने का अवसर प्रदान किया है, लेकिन साथ ही यह व्यापार रणनीतियों को जटिल भी बनाता है. वैश्विक व्यापार में भारत की सीमित हिस्सेदारी (लगभग 1% से भी कम) और अमेरिका-चीन व्यापार विवाद के कारण भारत को अपनी नीति में समायोजन करना पड़ा है. इसके अलावा, भारत और पड़ोसी देशों के बीच भू-राजनीतिक तनाव और सीमाओं पर अस्थिरता से भारत की वैश्विक व्यापार रणनीतियां प्रभावित होती हैं.
भारत के लिए अवसर
चीन प्लस वन रणनीति के तहत भारत के पास बहुत से अवसर हैं, खासकर उसके विशाल घरेलू बाजार और युवा जनसंख्या के कारण. भारत की जनसंख्या लगभग 1.3 बिलियन है, जो बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार प्रदान करती है. साथ ही, बढ़ती हुई श्रमिक शक्ति भी भारत की एक बड़ी ताकत है, जो उत्पादन के लिए जरूरी कामकाजी क्षमता देती है.
इसके अलावा, भारत में श्रमिक लागत चीन के मुकाबले लगभग 47% कम है. इसका मतलब है कि कंपनियां, जो चीन से बाहर अपनी उत्पादन श्रृंखला बदलना चाहती हैं, उनके लिए भारत एक सस्ता और आकर्षक विकल्प बन सकता है.
भारत में बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए कई योजनाएं बनाई जा रही हैं. जैसे कि राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) जो विनिर्माण (उत्पादन) की लागत को घटाने और माल ढुलाई (लॉजिस्टिक्स) में सुधार करने पर काम कर रही है. अगर इन सुधारों को सही तरीके से लागू किया जाए, तो भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सुधार हो सकता है. इसके अलावा, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) जैसी योजनाएं भी निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए आकर्षित कर सकती हैं.
इस तरह से, भारत के पास न केवल सस्ते श्रमिक और बड़ी जनसंख्या का लाभ है, बल्कि इसके बुनियादी ढांचे में सुधार और सरकारी प्रोत्साहनों से भी निवेश आकर्षित हो सकता है.
आगे की राह
भारत के पास चीन को पीछे छोड़ने की क्षमता है, लेकिन इसके लिए कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे. सबसे पहले, भारत को अपनी व्यावसायिक वातावरण और नौकरशाही में सुधार करना होगा. नियमों को सरल बनाना, पारदर्शिता बढ़ाना, और भ्रष्टाचार पर सख्ती से काबू पाना जरूरी है. इसके साथ ही, मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर तेजी से बातचीत करनी होगी, ताकि भारत को वैश्विक व्यापार में अधिक हिस्सेदारी मिल सके.
दूसरे, औद्योगिक विकास के लिए नीतिगत सुधार की जरूरत है. विशेष रूप से, क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए समर्पित विनिर्माण केंद्रों और औद्योगिक क्लस्टरों को बढ़ावा देना होगा. इसके साथ ही, कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए ध्यान केंद्रित करना होगा, ताकि भारत की कार्यबल उच्च तकनीक विनिर्माण के लिए तैयार हो सके.