पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों हैं भारत की छवि बिगाड़ने के जिम्मेदार

संसद में धक्कामुक्की, हल्लागुल्ला….पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों हैं भारत की छवि बिगाड़ने के जिम्मेदार

भारतीय संसद में बीते दो दिनों में जो कुछ भी हुआ, उसे बस दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता है. लोकतंतर की सर्वोच्च पंचायत में जिस तरह पक्ष-विपक्ष के सांसदों के बीच झूमाझटकी हुई और भाजपा के दो सांसद कथित तौर पर घायल भी हुए, वह अच्छा तो कतई नहीं है. एक नागरिक आज माननीय सांसदों का व्यवहार देख कर बस दुखी ही हो सकता है, क्योंकि जो संसद देश को चलाने और विकसित बनाने के ध्येय से बनी थी, वहां केवल हंगामा और एक-दूसरे पर दोषारोपण हो रहा है. संसदीय कार्यवाही को देखकर लगता है कि कुछ स्कूली बच्चों के बीच का संवाद देख रहे हैं. अफसोसनाक बात यह है कि इसमें हरेक दल शामिल हैं, हरेक नेता शामिल है, चाहे वह पक्ष हो या विपक्ष हो, एनडीए हो या विपक्षी दलों का गठबंधन हो. 

संसद के हंगामे से छवि हो रही खराब

हालांकि, दोनों ही पक्ष एक-दूसरे की गलती बता रहे हैं, लेकिन नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर एफआईआर हो गयी है. भारतीय संसद, जो लोकतंत्र का मंदिर माना जाता है, में हाल के वर्षों में धक्कामुक्की और हल्लागुल्ला जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. यह घटनाएं न केवल संसद की गरिमा को ठेस पहुँचाती हैं, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुँचाती हैं. गजब की बात तो यह है कि संसदीय कार्यवाही का सीधा प्रसारण होने के बाद यह घटने के बजाय और बढ़ा ही है यानी माननीय सांसदों को यह भय भी नहीं रहा है कि जब उनके क्षेत्र की जनता उनका व्यवहार देखेगी तो क्या सोचेगी? संसद की  कार्यवाही पर हर मिनट में 2.5 लाख रुपयए यानी एक घंटे में करीब 1.5 करोड़ रुपये का खर्च होता है. संसद सत्र में लंच को छोड़कर 6 घंटे तक सत्र की कार्यवाही होती है, लेकिन अफसोस इसमें काम कितना होता है और हंगामा कितना, यह हम सभी की आंखों के सामने है. 

शीतकालीन सत्र 25 नवंबर 2024 से शुरू हुआ और 20 दिसंबर यानी आज खत्म हुआ. इस बार शीतकालीन सत्र की शुरुआत ही हंगामे और उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने से हुई. संसद के दोनों ही सदनों में लगातार विरोध-प्रदर्शन और हंगामे के कारण किसी मुद्दे पर सकारात्मक चर्चा नहीं हुई, ना ही महत्वपूर्ण विषयों पर कोई सहमति बनी. आखिरी के तीन दिनों में तो जैसा हंगामा हुआ, वह अभूतपूर्व है. पहली बार सदन के द्वार पर धक्कामुक्की और सांसदों के गिरने-पड़ने की घटनाएं आम हुईं. उसके बाद दोनों ही पक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं और इस शोर में भूल जा रहे हैं कि जनता की गाढ़ी कमाई का कितना पैसा वह बर्बाद कर रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश की छवि कितनी बिगाड़ रहे हैं. 

पक्ष-विपक्ष दोनों हैं जिम्मेदार

संसद में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच असहमति और विवाद आम बात है, लेकिन इन असहमतियों को धक्कामुक्की और हल्लागुल्ला में बदलना, सांसदों की अनुशासनहीनता और असंयमित व्यवहार कहां तक जायज है, क्या कोई भी माननीय इन पर सोचते हैं. इस बार के सत्र के आखिरी तीन दिनों का ही जरा जायजा लें तो पता चलेगा कि शायद माननीयों को जनता की कोई परवाह ही नहीं है. बाबासाहेब आंबेडकर पर गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ कहा और वह राज्यसभा में कहा, उनके भाषण के समय विपक्षी दल के सांसद मौजूद थे, लेकिन किसी ने भी तब प्रतिवाद नहीं किया. इसके पूरे 12 घंटे बाद 16 सेकेंड की एक क्लिप को लेकर पूरे देश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए और हंगामा बढ़ा. सवाल यह भी उठता है कि क्लिप पूरी क्यों नहीं दिखायी गयी? सवाल यह भी है कि एक रौ में कही हुई बात में से कुछ सेकेंड की क्लिप काटकर उसको मुद्दा बनाने की ऐसी जरूरत क्या हो गयी, खासकर जो इनता भावनात्मक है.  

चलिए, ये तो कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों की बात हुई, लेकिन सत्तापक्ष ने इसके बाद क्या किया? अगले दिन वे प्रदर्शन करने लगे और उस धक्कामुक्की में जब प्रभात सारंगी और मुकेश राजपूत को चोट लगी और वे तथाकथित तौर पर घायल हो गए, तो भी आइसीयू में ही प्रधानमंत्री मोदी से बात करने के लिए उठ खड़े कैसे हुए. उनको लगी चोट की गंभीरता कितनी थी, यह उनके बाद के वीडियो से तो कतई पता नहीं चल रही थी. सारंगी को घेरे हुए डॉक्टर मुस्कुरा रहे थे, तो आज यानी 20 दिसंबर को जो प्रदर्शन सत्तापक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ कर रहे थे, उसमें सबके चेहरे खिले हुए और हंसते-मुस्कुराते थे. इन सब से किसी मुद्दे की गंभीरता कम होती है. आप जब किसी पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं, तो उस अनुरूप कार्रवाई की जरूरत भी है. राहुल गांधी पर आपने एफआईआर करा दी, लेकिन अधिकांश जनों को पता है कि उसमें कुछ होगा ही नहीं. राहुल गांधी पर पहले भी ने जाने कितने मसले चल रहे हैं. देश की जनता को इसका जवाब तो मिलना चाहिए कि हमारे माननीय आखिर संसदीय कार्यवाही को लेकर कितना गंभीर हैं. 

संसद में अनुशासन के लिए सख्त नियम बनें

इन घटनाओं का एक प्रमुख कारण है कि माननीयों को संसद में इम्यूनिटी मिली है, वे जानते हैं कि वे कुछ भी कर लें, संसदीय विशेषाधिकार की वजह से बच ही जाएंगे. संसद में अनुशासन बनाए रखने के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता है. आज के दौर में सांसद अपने क्षेत्र से, अपनी जमीन से कट चुके हैं, इसलिए वे संसद के अंदर भी जैसे चुनाव प्रचार करते नजर आते हैं. ऊपर से ठोस मुद्दों की जगह लगातार भावनात्मक और देश को पीछे धकेलने वाले मसले बढ़ते जा रहे हैं. संसद में धक्कामुक्की और हल्लागुल्ला जैसी घटनाएं लोकतंत्र की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं. यह घटनाएं संसद की कार्यवाही को बाधित करती हैं और महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा को प्रभावित करती हैं. इन घटनाओं से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचता है, अन्य देशों के सामने भारत की छवि एक अस्थिर और असंयमित लोकतंत्र के रूप में प्रस्तुत होती है. 

जनता भले ही कुछ न कहे, लेकिन संसद में इस प्रकार की घटनाओं से जनता का विश्वास भी कमजोर होता है. लोग अपने प्रतिनिधियों से अनुशासन और संयम की उम्मीद करते हैं, और जब वे ऐसा व्यवहार करते हैं, तो जनता का विश्वास टूटता है. संसद में अनुशासन बनाए रखने के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता है. सांसदों को अनुशासनहीनता के लिए सख्त सजा दी जानी चाहिए.  राजनीतिक दलों के बीच संवाद और समझौते को बढ़ावा देना चाहिए ताकि असहमति को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया जा सके, फिलहाल तो ऐसा लगता है कि चर्चा नाम का शब्द ही अब किसी भी दल के शब्दकोष में नहीं है, दोनों पक्ष जैसे युद्धरत हैं. आखिर, पहले भी इसी देश की संसद में एक से बढ़कर एक राजनैतिक विरोधी साथ मौजूद होते थे. धक्कामुक्की और चोट लगने की घटनाएं तो कभी नहीं हुईं. 

पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों ही इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं. हमें इन घटनाओं को रोकने के लिए सख्त नियमों, राजनीतिक संवाद और मीडिया की जिम्मेदारी को बढ़ावा देना चाहिए ताकि संसद की गरिमा और लोकतंत्र की स्थिरता बनी रहे.

माननीय सांसद देश को शर्मसार न करें और खुद भी सोचें कि वह कितनी जिम्मेदारी के पद पर हैं और तदनुसार काम करें, यह उम्मीद आज के माहौल में दूर की कौड़ी लगती तो है, लेकिन उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि …… न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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