हर कुर्सी मैनेजमेंट के कुछ सबक सिखाती है

साल 2010 की बात है। शुक्रवार का दिन था, शाम के चार बज रहे होंगे। एक बड़े बिजनेस हाउस के अलग-अलग बिजनेस संभालने वाले 20 सीईओ वहां थे। चेयरमैन ने उनके साथ मेरा परिचय करवाया और कहा कि एक कोड ऑफ कंडक्ट तैयार करने की जिम्मेदारी मेरी होगी, यह कोड सारे वर्टिकल्स में लागू होगा और भविष्य में पूरी कंपनी पर लागू होगा।

मेरे द्वारा तैयार किए गए कोड ऑफ कंडक्ट, जिसको चेयरमैन ने खुद सुधारा था, उसकी कॉपी वहां मौजूद सारे सीईओ को सौंपी गई। उनमें से एक सीईओ ने मीटिंग में ही मसौदे का बहुत आलोचनात्मक विश्लेषण करना शुरू कर दिया और चेयरमैन ने मुझे अपनी आंखों से ही निर्देश दिया कि मैं वह फीडबैक नोट कर लूं।

हालांकि इस मुद्दे ने पूरी मीटिंग का समय ले लिया। इसलिए चेयरमैन ने बाकी लोगों से कहा कि सोमवार से पहले वे अपना-अपना फीडबैक ईमेल पर भेज दें। मीटिंग खत्म हो गई। इसके बाद वह मुझसे मिले और कुछ अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के साथ-साथ मीटिंग में सामने आए कुछ गहन ऑब्जर्वेशन भी इसमें जुड़वाए और कहा कि शनिवार की दोपहर तक ड्राफ्ट का प्रिंट तैयार रखूं।

जब मैंने उन्हें कहा कि आपने सभी सीईओ को सोमवार तक का समय दिया, तब उन्होंने बेरुखी से कहा, ‘संजीदा कर्मचारियों ने पहले ही जाहिर कर दिया है कि वे क्या चाहते हैं। मुझे पता है कि बाकी लोग वही मान लेंगे, जो मैं तय करूंगा।

हालांकि इस मीटिंग से उन्हें यह महसूस होगा कि मैं अपने तरीके में लोकतांत्रिक था।’ जब मैंने उनसे पूछा कि ये आइडिया आपने कहां से लिया, तो उन्होंने कहा, ‘डॉ. मनमोहन सिंह’। गुरुवार की शाम को देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एम्स में आखिरी सांस ली।

और वह कितने सही थी। पूर्व विदेश सचिव और परमाणु मामलों के साथ जलवायु परिवर्तन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय विशेष दूत श्याम सरन ने डॉ. सिंह के निधन के बाद शुक्रवार को लिखा, ‘डॉ. सिंह जानबूझकर कई अलग-अलग र्सोसेस से राय लेने में यकीन रखते थे।

वह नीतियों के इर्द-गिर्द आम सहमति बनाने की जरूरत पर जोर देते, लेकिन वही चुनते, जो कायम रहने के लिए पर्याप्त रूप से महत्वपूर्ण होता और जो सबसे अच्छा होता…’ सरन ने आगे लिखा, ‘ऐसे कई अवसर आए, जहां वो (पीएम) मेरी सलाह नहीं मानते और मुझसे अपेक्षा रखते कि जो भी नीति अपनाई गई है (या जो उन्होंने तय किया है), उस पर अमल करूंगा। पर मैंने एक भी बार ऐसा महसूस नहीं किया कि किसी मुद्दे पर उनसे असहमति जाहिर करने पर मुझे कोई कष्ट हो सकता है।’

यह एक लीडर के सबसे महान गुणों में से एक है। मैं हमेशा बिजनेस लीडर्स को सलाह देता हूं कि उनके पास कम से कम कुछ लोग ऐसे होने चाहिए जो इस बात की चिंता न करें कि उनके बॉस क्या सोचते हैं। उन्हें केवल कंपनी की बिजनेस ग्रोथ और बेहतरी की चिंता करनी चाहिए।

यदि इरादे नेक हैं, तो चेयरमैन को मुस्कान के साथ आने वाली हर आलोचना को स्वीकार करना चाहिए। यदि चेयरमैन का विवेक कहता है कि यह अच्छा है तो वह आलोचना को स्वीकार कर सकता है अन्यथा इसे अनदेखा कर सकता है, लेकिन किसी व्यक्ति को जाहिर करने से नहीं रोकना चाहिए। अच्छे बिजनेस लीडर में हमेशा ऐसे गुण होते हैं।

संपादक होने के नाते अपनी विदेश यात्राओं में मुझे डॉ. सिंह को करीब से जानने-समझने का मौका मिला। किसी सवाल से बचना हो तो वह मुस्कुरा देते या जोक करते। और तब मुझे अहसास हुआ कि अच्छा सेंस ऑफ ह्यूमर भी काफी मददगार होता है।

फंडा यह है कि सिर्फ डॉ. मनमोहन सिंह की चेयर ही नहीं, बल्कि राजनीति या कॉर्पोरेट में भी शीर्ष की उन चेयर तक पहुंचने वाले लोगों के पास कुछ विशेष मंत्र होते हैं, जो उन्हें उस पद तक पहुंचाते हैं। अगर आप सीखने के रास्ते पर हैं, तो चंद सबक सीख सकते हैं और अपने कामकाज में जरूरी सबक लागू कर सकते हैं।

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