अगली पीढ़ी को शिक्षित करने के लिए नए पन्ने पलटने होंगे
मैं 1980 के दशक के उत्तरार्ध में “पै फ्रेंड्स लाइब्रेरी’ के शुरुआती मेंबर्स में से एक था। ठाणे में डोंबिवली, जहां मैं रहता था, उस छोटे-से उपनगरीय इलाके में ये लाइब्रेरी थी। इसकी तमाम सर्विस के अलावा एक नई सर्विस शुरू हुई, जहां रीडर्स खुद के स्वामित्व वाली किताबें पढ़ने के बाद, उन्हें देकर बदले में नई किताबें ले सकते थे।
इसके संस्थापक पुण्डलिक पै का मुख्य उद्देश्य लोगों में पढ़ने की आदत विकसित करना था। हालांकि मुझे नहीं पता कि ऐसी रीडिंग हैबिट ने डोंबिवली को महाराष्ट्र का सबसे साक्षर उपनगरीय इलाका बनाने में योगदान दिया या नहीं, पर डोम्बिली पढ़ने-लिखने में आगे था।
इस छोटे-से आइडिया को पिछले हफ्ते विश्व मराठी सम्मेलन में नए पंख लग गए, जब पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में पहली बार आयोजित इस साहित्यिक उत्सव में महज तीन दिन में 30 हजार से ज्यादा किताबों का आदान-प्रदान हुआ। जैसे अगर कोई पांच किताबें लाया है, तो वह स्टॉल से मुफ्त में पांच भिन्न किताबें ले सकता है, बस उसे हर किताब की 10 रु. हैंडलिंग फीस देनी होगी।
चूंकि ये मराठी सम्मेलन था, ऐसे में सिर्फ मराठी किताबों की अदला-बदली की ही अनुमति थी। अगर आप उत्साही पाठक हैं, तो जानते होंगे कि उन पुस्तकों को अलग करना असंभव है, जिन्होंने जीवन के सबक दिए, इसलिए आप वर्षों तक इन्हें सहेजते हैं।
ठीक उसी समय, दिल के किसी कोने में ये ख्याल भी आता है कि इन किताबों को आपके बच्चे या नई पीढ़ी को पढ़ना चाहिए। पर सुधी पाठक खोजना मुश्किल काम होता है और स्क्रीन से चिपकी आबादी के लिए कोई किताब नहीं दे सकता।
ऐसे में किताबें पढ़ने वाले, जब नई किताब के बदले अपनी पुरानी किताब एक्सचेंज करते हैं, तो अपनी किताब को सुरक्षित हाथों में देखकर उन्हें संतुष्टि मिलती है। और वे जानते हैं कि ऐसे प्रतिबद्ध लाइब्रेरी उनकी किताब भी किसी दूसरे उत्साही पाठक को ही देगी।
पैने 1987 में डोंबिवली में केवल 100 किताबों के साथ, 200 वर्ग फुट की जगह में इस यात्रा की शुुरुआत की थी और आज उनके संग्रह में विभिन्न भाषाओं की साढ़े चार लाख से ज्यादा किताबें हैं। थीम पर आधारित उनके बुक फेयर बेहद लोकप्रिय होते हैं, जहां वे विभिन्न भाषाओं की एक लाख से ज्यादा किताबों को डिसप्ले करते हैं और रीडर्स खासतौर पर 23 अप्रैल को वर्ल्ड बुक डे के दिन इस फेयर की राह देखते हैं।
यूनेस्को रीडिंग हैबिट को बढ़ावा देने के लिए यह सालाना इवेंट आयोजित करता है, जिसे वर्ल्ड बुक एंड कॉपीराइट डे या इंटरनेशनल डे ऑफ द बुक के नाम से भी जाना जाता है। इस लाइब्रेरी की गतिविधियां इस सप्ताह फ्लैशबैक के रूप में तब याद आ गईं जब 18 देशों में किए गए एजुकेशन टेस्टिंग सर्विस (ईटीएस) की मानव प्रगति रिपोर्ट जारी की गई।
दुनिया में केवल 30% उत्तरदाताओं ने अपने देश की वर्तमान शिक्षा स्थिति के बारे में आशावादी रुख व्यक्त किया, वहीं 70% भारतीयों ने सकारात्मक दृष्टिकोण रखा। इसी तरह, भविष्य में सुधारों के प्रति भारत में विश्वास 76% है, जो वैश्विक औसत 64% की तुलना में अधिक है।
विडंबना यह है कि उसी सर्वे में 74% उत्तरदाताओं ने शिक्षकों की कमी की ओर इशारा किया, जो भारत की शैक्षिक प्रगति में प्रमुख बाधा को दर्शाता है। सोशल मीडिया पर मैंने एक वीडियो देखा, जिसमें एक व्यक्ति कह रहा था कि भारत को आईएएस, आईपीएस की तर्ज पर आईटीएस (इंडियन टीचर सर्विस) होनी चाहिए।
अब जब सरकार इस दिशा में सोचने में समय ले सकती है, लेकिन हम युवाओं में रीडिंग हैबिट बढ़ाने के लिए पै जैसे नए आइडिया लाकर व्यक्तिगत तौर पर अपने देश को सपोर्ट कर सकते हैं। पहले जब हम “सोने की चिड़िया’ कहलाते थे, तब ज्ञान भारत की सबसे बड़ी संपदा हुआ करता था, अब फिर से ज्ञान भविष्य में सबसे बड़ी संपदा बनने जा रहा है, डेटा और अन्य चीजों से भी ज्यादा। भारत में शिक्षकों के लिए एक अच्छा करिअर बनाने का बड़ा अवसर है। यह राष्ट्र निर्माण में सबसे संतोषजनक पेशों में से एक है।