इसके बाद सरकार का इस दिशा में सक्रिय होना स्वाभाविक है, लेकिन यह आसान काम नहीं, क्योंकि इसे लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप की आवाज उठ सकती है। सच तो यह है कि वह उठने भी लगी है। खुद को सोशल मीडिया कहने वाले इंटरनेट प्लेटफार्म मुक्त विचारों के मंच के तौर पर जाने जाते हैं।

ये प्लेटफार्म लोगों को कुछ भी कहने की अनुमति देते हैं, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीम नहीं। इसकी अपनी कुछ सीमाएं हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर फूहड़ता, नग्नता और नफरत फैलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। दुर्भाग्य से कुछ लोग यह समझ बैठे हैं कि उन्हें ऑनलाइन प्लेटफार्म पर कुछ भी कहने की छूट मिली हुई है।

इनमें प्रमुख हैं कामेडियन और इन्फ्लुएंसर्स। ये खुलकर गालियों का तो इस्तेमाल करते ही हैं, शालीनता और नैतिकता की भी धज्जियां उड़ाते हैं। चूंकि इस सबसे उन्हें प्रचार और पैसा मिलता है, इसलिए वे और अधिक बेलगाम हो जाते हैं। इसी का नतीजा है कि अश्लील ऑनलाइन सामग्री बढ़ती जा रही है।

इसका ही उदाहरण इंडियाज गाट लेटेंट नामक यूट्यूब कार्यक्रम पर देखने को मिला। इससे लोगों का आक्रोशित होना स्वाभाविक था। इसे लेकर पुलिस ने भी अपने स्तर पर कार्रवाई शुरू की। इस पर ऐसे तर्कों के आधार पर आपत्तियां उठीं कि क्या अभद्र टिप्पणी करने वालों को जेल में डाल देने से देश की सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा?

प्रश्न यह है कि क्या ऑनलाइन अभद्रता से मुंह मोड़ लेने से सब कुछ सही हो जाएगा? यदि देश में कुछ गंभीर समस्याएं हैं तो इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि ऑनलाइन फूहड़ता को बेरोक-टोक चलने दिया जाए। स्पष्ट है कि सरकार को यह देखना ही होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बहाने ऑनलाइन फूहड़ता अनियंत्रित न होने पाए।

इसके लिए उसे प्रभावी दिशानिर्देश बनाने और उनके पालन के उपाय करने के साथ ऑनलाइन प्लेटफार्म का संचालन करने वाली कंपनियों को भी जवाबदेह बनाना होगा। वे यह कहकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकतीं कि वे तो माध्यम भर हैं।

इन कंपनियों को यह संदेश देना ही होगा कि उनका काम पोस्टमैन सरीखा नहीं है। जब यह स्पष्ट है कि वे अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रही हैं, तब सरकार के साथ समाज को भी चेतना होगा, क्योंकि आखिर ये आम लोग ही हैं, जो अश्लील सामग्री देखते, सुनते और पसंद करते हैं।