यमन के हूती कौन हैं और क्यों उन पर हमला कर रहा है अमेरिका?
यमन के हूती कौन हैं और क्यों उन पर हमला कर रहा है अमेरिका?
ती यमन के अल्पसंख्यक शिया ‘ज़ैदी’ समुदाय का एक हथियारबंद समूह है. जिसकी स्थापना साल 1990 के अंत में शिया मुस्लिमों ने की थी.
इसी पोस्ट में ट्रंप लिखते हैं कि यह कार्रवाई रेड सी यानी लाल सागर में अमेरिकी जहाजों पर किए गए हूती हमलों के जवाब में की गई है. दरअसल ठीक चार महीने पहले हूती विद्रोहियों ने रेड सी में अमेरिकी वॉरशिप पर कई हमले किए थे.
इतना ही नहीं ट्रंप ने ईरान को भी चेतावनी देते हुए कहा कि ईरान को अब हूती आतंकियों को समर्थन देना बंद कर देना चाहिये. उन्होंने पोस्ट में लिखा कि अमेरिका के राष्ट्रपति को धमकाने की कोशिश मत करो. अगर तुमने ऐसा किया तो हम इसे हल्के में नहीं लेंगे!
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर यमन के हूती कौन हैं और उन पर अमेरिका हमला क्यों कर रहा है?
हूती कौन हैं?
हूती यमन के अल्पसंख्यक शिया ‘ज़ैदी’ समुदाय का एक समूह है. जिसकी स्थापना साल 1990 के अंत में शिया मुस्लिमों ने की थी. ज़ैदी समुदाय शिया इस्लाम का एक हिस्सा है, जो यमन के उत्तर में प्रचलित है और इस समुदाय का यमन के इतिहास में काफी अहम रोल रहा है. हूती परिवार ने सबसे पहले धार्मिक पुनरुत्थान आंदोलन शुरू किया था, जिसका मकसद ज़ैदी शिया इस्लाम को फिर से जागरूक करना था. यमन के उत्तर में जो ज़ैदी बहुल इलाके हैं, वहां गरीबी और असमानता की समस्याएं बहुत ज्यादा थीं, और यही वजह थी कि इन इलाकों में हूथी आंदोलन को काफी समर्थन मिला.
साल 2004 में हूती आंदोलन ने यमनी सरकार के खिलाफ खुलकर संघर्ष करना शुरू किया था. इसके बाद, सरकार के साथ लगातार टकराव होते रहे और इनमें कई लोगों की जान भी गई. वक्त के साथ-साथ, यह आंदोलन सिर्फ एक छोटा सा विद्रोह नहीं रहा, बल्कि एक मजबूत सेना बन गई, जिसने अब यमन के अधिकांश उत्तर हिस्से पर कब्जा कर लिया है.
हूती आंदोलन का उभार और संघर्ष
यमन में हूती विद्रोह की शुरुआत 2004 में हुई थी, जब अब्दुल मलिक अल-हूती ने सरकार के खिलाफ संघर्ष की अगुआई की. शुरू में अल-हूती का नेतृत्व काफी सीमित था, लेकिन बाद में उन्होंने इस संघर्ष को बढ़ाया और इसे एक बड़ी सेना में बदल दिया. साल 2014 में, हूती आंदोलन ने यमन की राजधानी साना पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद पूरे देश में गृहयुद्ध छिड़ गया.
साना पर कब्जा करने के बाद, हूथियों ने यमन के अन्य बड़े शहरों में भी अपना नियंत्रण स्थापित करना शुरू कर दिया. इसके बाद यमनी सरकार ने अपनी राजधानी अदन में बनाई और सऊदी अरब के नेतृत्व में एक गठबंधन ने हूती समूह को हराने के लिए सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी. इस युद्ध ने यमन को एक गंभीर गृहयुद्ध में बदल दिया, जिसमें लाखों लोग मारे गए और करोड़ों लोग बेघर हो गए.
अमेरिका का हूतियों के खिलाफ हमला क्यों?
अमेरिका का हूती विद्रोहियों पर हमला करना उस समय शुरू हुआ जब इस समूह ने रेड सी यानी लाल सागर में शिपिंग मार्गों पर हमले किए. इस घटना ने वैश्विक शिपिंग उद्योग को प्रभावित किया, जिससे व्यापारिक मार्गों पर खतरा उत्पन्न हुआ. हूतियों ने दावा किया कि वे केवल उन जहाजों पर हमला कर रहे थे, जो इजराइल से जुड़े हुए थे, लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन का कहना है कि अब ये हमले वैश्विक शिपिंग को प्रभावित कर रहे हैं और सभी जहाजों के लिए खतरा बन गए हैं.
अमेरिका ने इन हमलों को गंभीरता से लिया और हूथी समूह के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी. इस हमले का उद्देश्य था, शिपिंग मार्गों को सुरक्षित करना और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रवाह को सुनिश्चित करना. इसके अलावा अमेरिका ने यह भी माना कि हूती आंदोलन का समर्थन ईरान द्वारा किया जा रहा है और ईरान का बढ़ता प्रभाव अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय है.
हूतियों और ईरान के रिश्ते
हूती आंदोलन को कई बार ईरान का सहयोग प्राप्त होने का आरोप लगा है. अमेरिका और सऊदी अरब का कहना है कि ईरान हूथी विद्रोहियों को हथियार, ट्रेनिंग और अन्य सैन्य सहायता प्रदान कर रहा है. इन आरोपों के अनुसार ईरान हूथियों को अपने हितों के लिए इस्तेमाल कर रहा है, ताकि वह सऊदी अरब के खिलाफ एक शक्तिशाली मोर्चा खड़ा कर सके और अपनी ताकत को पश्चिमी देशों के खिलाफ बढ़ा सके. हालांकि, ईरान इन आरोपों को नकारता है और कहता है कि हूती अपने देश के भीतर एक स्वतंत्र संघर्ष कर रहे हैं और ईरान का उनकी गतिविधियों से कोई संबंध नहीं है.
ईरान और हूती समूह के बीच ‘एंटी-इस्राइल’ और ‘एंटी-अमेरिका; विचारधारा का साझा होना भी इन दोनों के रिश्तों को मजबूत करता है. हूती आंदोलन का प्रमुख नारा है ‘अमेरिका से मौत, इस्राइल से मौत’, जो उनके ईरान के साथ विचारधारात्मक समानताओं को दर्शाता है. इस्लामिक दुनिया में, ईरान को शिया मुसलमानों का प्रमुख समर्थन प्राप्त है और हूती आंदोलन भी शिया इस्लाम से जुड़ा हुआ है.
अमेरिका के हमले और वैश्विक प्रतिक्रिया
अमेरिका के हूथी विद्रोहियों के खिलाफ हमले ने न केवल यमन में बल्कि समग्र मध्य पूर्व क्षेत्र में तनाव को बढ़ा दिया है. हूथियों के हमलों ने रेड सी में शिपिंग मार्गों को खतरे में डाल दिया था, जो यूरोप और एशिया के बीच व्यापार का एक महत्वपूर्ण मार्ग है. इन हमलों के कारण कई देशों को अपनी शिपिंग को फिर से दिशा बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिससे आर्थिक नुकसान हुआ. इन घटनाओं के बाद, अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर हूथी विद्रोहियों के खिलाफ हवाई हमले किए.
अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए, हूथी समूह का बढ़ता प्रभाव और ईरान से उनका समर्थन एक गंभीर सुरक्षा खतरा है. इससे क्षेत्रीय राजनीति पर असर पड़ रहा है और वैश्विक शक्ति संतुलन को भी प्रभावित किया है. पश्चिमी देशों का मानना है कि हूथी विद्रोहियों की सफलता से ईरान का क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ेगा, जो उनके लिए अस्वीकार्य है.
मध्य पूर्व भी हो रहा इससे प्रभावित
हूती आंदोलन और अमेरिकी हमलों के बीच संघर्ष केवल यमन की सीमाओं तक ही सीमित नहीं है. यह संघर्ष मध्य पूर्व में ईरान, सऊदी अरब और पश्चिमी देशों के बीच की राजनीति को भी प्रभावित कर रहा है. यमन के हूथी विद्रोही समूह ने एक तरफ वैश्विक शिपिंग को प्रभावित किया, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने ईरान के साथ अपने संबंधों को और मजबूत किया है. इस संघर्ष में लाखों लोगों की जानें गई हैं और पूरे क्षेत्र में एक स्थिरता की कमी है.
आने वाले समय में यह देखना होगा कि क्या अमेरिका के हमलों से हूथी विद्रोहियों की ताकत में कोई कमी आएगी, या फिर यह संघर्ष और भी बढ़ेगा. सबसे बड़ी चिंता यह है कि यमन का आम नागरिक इस संघर्ष का सबसे बड़ा शिकार बन रहा है. चाहे यह संघर्ष शांति की ओर बढ़े या नहीं, लेकिन इसकी जड़ें केवल क्षेत्रीय राजनीति में नहीं, बल्कि वैश्विक ताकतों के संघर्ष में भी हैं.
यमन का संकट सुलझाने के लिए वैश्विक समुदाय को एक सशक्त और समावेशी प्रयास करना होगा, ताकि शांति स्थापित हो सके और यमनी लोग एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकें.