खेती में मशीनों का इस्तेमाल कितना? किसानों की पहुंच से क्यों है दूर
खेती में मशीनों का इस्तेमाल कितना? किसानों की पहुंच से क्यों है दूर
खेती में मशीनों का इस्तेमाल अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है. यह कई कारणों पर निर्भर करता है, जैसे- सामाजिक-आर्थिक स्थिति, भौगोलिक परिस्थितियां, उगाई जाने वाली फसलें और सिंचाई की सुविधाएं.
भारत में खेती को आधुनिक बनाने और छोटे किसानों तक मशीनों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सरकार ‘कृषि मशीन बैंक’ और ‘कस्टम हायरिंग सेंटर’ की योजना चला रही है. इसका मकसद है कि छोटे और सीमांत किसान जो महंगी कृषि मशीनें नहीं खरीद सकते, वे इन्हें किराए पर लेकर अपनी खेती को आसान बना सकते हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ये मशीन बैंक सच में किसानों की पहुंच में हैं या फिर यह योजना केवल सरकारी रिपोर्ट्स तक ही सीमित है?
खेती को आसान बनाने के लिए सरकार ने ‘फार्म मशीनरी बैंक (FMB)/फार्म मशीनरी हब (FMH)’ योजना की शुरुआत 2023 में की थी. यह योजना फार्म मशीनीकरण अम्ब्रेला स्कीम के तहत लाई गई थी. इसका मकसद है किसानों को खेती की मशीनें किराए पर देना.
मशीनों पर सरकारी मदद कितनी मिलती है?
मशीन बैंक खोलने के लिए सरकार 8 लाख रुपये तक की मदद देती है, जो कुल खर्चे का 80% होना चाहिए. लेकिन कुल खर्चा कम से कम 10 लाख रुपये होना चाहिए. इस 10 लाख में मशीनें, शेड, देखभाल और बीमा का खर्चा शामिल है. बाकी का 20% पैसा खुद लगाना होगा. शेड बनाने पर कुल खर्चे का 5% से ज्यादा और बाकी छोटे-मोटे खर्चों पर 10% से ज्यादा नहीं लगा सकते.
आवेदक को कुल खर्च (TFO) का कम से कम 25% मार्जिन मनी के रूप में बैंक में जमा करना होता है. बाकी राशि बैंक लोन के रूप में मिलेगी. सरकार कोई मशीन या उपकरण खुद नहीं खरीदेगी, बल्कि लाभार्थी द्वारा खरीदी गई मशीनों पर ही सब्सिडी देती है. सब्सिडी सीधे बैंक के सब्सिडी रिजर्व फंड/लोन खाते में DBT के जरिए ट्रांसफर की जाती है. सिर्फ सरकारी पोर्टल पर दिए गए मशीन निर्माताओं और डीलरों से खरीदी गई मशीनों पर ही सब्सिडी मिलती है. एक लाभार्थी या उसके जीवनसाथी को पिछली सब्सिडी मिलने के 4 साल बाद ही नई सब्सिडी के लिए आवेदन करने की अनुमति है.
सरकार खेतों में मशीनों का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए क्या कर रही है?
सरकार ने 2014-15 से कृषि मशीनीकरण उप-मिशन (SMAM) नाम की एक योजना शुरू की है. ये योजना केंद्र सरकार की है, लेकिन राज्य सरकारों के जरिए चलाई जा रही है. इस योजना में किसानों को खेती की मशीनें और औजार खरीदने के लिए पैसे की मदद दी जाती है. मतलब, सरकार किसानों को कुछ पैसे देती है ताकि वो अपनी मशीनें खरीद सकें.
इसके अलावा, सरकार ‘कस्टम हायरिंग सेंटर’ (CHC) और ‘गांव स्तर पर फार्म मशीनरी बैंक’ (FMB) भी बनवा रही है. ये वो जगहें हैं जहां से किसान अपनी जरूरत के हिसाब से किराए पर मशीनें ले सकते हैं. 2018-19 से सरकार ने ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ (CRM) योजना भी शुरू की है. इसका मुख्य उद्देश्य है पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में हवा को प्रदूषण से बचाना है. इन राज्यों में किसान फसल काटने के बाद बची हुई पराली को जला देते हैं, जिससे बहुत धुआं होता है. सरकार इन किसानों को पराली को सही तरीके से संभालने के लिए मशीनें खरीदने के लिए पैसे देती है.
क्या किसानों को फायदा हुआ?
SMAM योजना की शुरुआत से लेकर 28 फरवरी 2025 तक सरकार ने अलग-अलग राज्यों को 8110.24 करोड़ रुपये दिए हैं. राज्यों ने किसानों को 19.51 लाख से ज्यादा मशीनें और औजार दिए हैं, जो किसानों ने अपने लिए खरीदे हैं. 52,000 से ज्यादा कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC), हाई-टेक हब और फार्म मशीनरी बैंक (FMB) भी अलग-अलग राज्यों में खोले गए हैं.
पराली प्रबंधन योजना (CRM) के लिए 2018-19 से 28 फरवरी 2025 तक 3607.88 करोड़ की राशि जारी की गई है. 41,900 से अधिक कस्टम हायरिंग सेंटर खास तौर से फसल अवशेष प्रबंधन के लिए स्थापित किए गए हैं. 3.23 लाख से ज्यादा पराली प्रबंधन मशीनें इन CHC और व्यक्तिगत किसानों को दी गई हैं.
देश में खेती में मशीनों का इस्तेमाल कितना?
देश में खेती में मशीनों का इस्तेमाल कितना हो रहा है और किसान किराए पर मशीनें कैसे ले रहे हैं, इसके लिए सरकार एक सर्वे करवा रही है. जुलाई 2024 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत आने वाले सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग (CIAE), भोपाल (मध्य प्रदेश) को ये सर्वे करने का काम सौंपा है.
इस सर्वे से सरकार को ये पता चलेगा कि किसानों को मशीनों की कितनी जरूरत है और वो उन्हें कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं. सर्वे के नतीजों के आधार पर खेती में मशीनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं बनायी जा सकती हैं.
मशीनों की जांच कहां होती है?
भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने कृषि मशीनरी के लिए 296 नए मानक तय किए हैं. इनका उद्देश्य अच्छी, सुरक्षित और भरोसेमंद मशीनें देना है. इन नियमों के हिसाब से मशीनों की जांच और सर्टिफिकेट देने का काम भी होता है. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (DA&FW) के तहत चार फार्म मशीनरी ट्रेनिंग और टेस्टिंग इंस्टीट्यूट (FMTTI) काम कर रहे हैं. सरकार सिर्फ उन्हीं मशीनों को बढ़ावा देती है जिनकी इन संस्थानों में जांच हो चुकी है.
खेती में मशीनों का इस्तेमाल कितना?
खेती में मशीनों का इस्तेमाल अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है. यह कई कारणों पर निर्भर करता है, जैसे- सामाजिक-आर्थिक स्थिति, भौगोलिक परिस्थितियां, उगाई जाने वाली फसलें और सिंचाई की सुविधाएं.
- खेत तैयार करना (बीज बोने के लिए): 70%
- बीज बोना/पौधे लगाना: 40%
- खरपतवार निकालना और निराई-गुड़ाई: 32%
- फसल काटना और दाना निकालना: 34%
अगर सभी कृषि कार्यों को मिलाकर देखा जाए, तो भारत में औसतन 47% कृषि कार्य मशीनों से किए जा रहे हैं.
किसानों के लिए खेती में मशीनीकरण क्यों है मुश्किल?
भारत में खेती को आधुनिक बनाने के लिए मशीनों का इस्तेमाल बहुत जरूरी है, लेकिन इसमें कई मुश्किलें आती हैं. छोटे किसानों को लगता है कि आधुनिक मशीनें बहुत महंगी होती हैं और उन्हें चलाना मुश्किल है. किसानों को मशीनों को सही तरीके से इस्तेमाल करना और सही मशीन का चुनाव करना नहीं आता. मशीनों की मरम्मत और रखरखाव के बारे में जानकारी की कमी के कारण वे इनका सही से इस्तेमाल नहीं कर पाते.
ग्रामीण इलाकों में अच्छी सड़कें, बिजली और मशीनों के पुर्जों की उपलब्धता जैसी सुविधाओं की कमी है. मशीनों की मरम्मत और जानकारी देने वाले तकनीशियनों की कमी है. किसानों के लिए मशीनें खरीदना एक बड़ा निवेश होता है, इसलिए उन्हें सस्ते कर्ज की जरूरत होती है. भारत में ज्यादातर खेती के कामों में मशीनीकरण का स्तर 50 प्रतिशत से भी कम है.