सरकार ने हमसे बात नहीं की, किसानों से सलाह करनी चाहिए… कृषि बिलों पर क्या-क्या बोले सुखबीर सिंह बादल

किसानों से जुड़े विधेयकों के खिलाफ मोदी सरकार से अलग होने वाली शिरोमणी अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने हिन्दुस्तान टाइम्स की सुनेत्रा चौधरी से खास बातचीत की। इस खास बातचीत में उन्होंने बताया है कि आखिर उनकी पार्टी से एक मात्र मंत्री ने इस्तीफा क्यों दिया और आगे उनकी क्या रणनीति है। सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल ने इन बिलों के खिलाफ बीते दिनों खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री के रूप में इस्तीफा दिया था।

सवाल : अब आप राष्ट्रपति के पास जाने वाले हैं और उनसे अनुरोध करेंगे कि वह कृषि बिलों पर हस्ताक्षर न करें। क्या आपको नहीं लगता कि अब थोड़ी देर हो गई है?
जवाब : हमने इसे रोकने की पूरी कोशिश की। जब तक राष्ट्रपति का हस्ताक्षर नहीं हो जाता, तब तक यह बिल एक अधिनियम नहीं बनेगा। हम किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और उनकी ओर से हम राष्ट्रपति से अनुरोध कर रहे हैं कि कृपया विधेयक पर हस्ताक्षर करने पर पुनर्विचार करें। कृपया, इसे वापस संसद में भेजें और इसे वहां ठीक से बहस करने दें … संसद में कोई मतदान नहीं हुआ।

सवाल : हमने आज सुबह भी संसद में कुछ असाधारण दृश्य देखे हैं। इससे क्या स्पष्ट होता है?
जवाब : मुझे लगता है कि सरकार को किसानों से बात करनी चाहिए। मंत्रियों को टीवी पर स्पष्टीकरण देने का कोई मतलब नहीं है। उन्हीं मंत्रियों को किसानों से मिलने और उनकी बात सुनने के लिए प्रतिनियुक्त किया जाना चाहिए।

सवाल : क्या आपको लगता है कि विधेयकों के साथ कोई दिक्कत है या क्या कानून के लाभों को सही से प्रचारित-प्रसारित करने में कमी है, जो बिचौलिए को काट रहा है?
जवाब : चाहे आप इसे निजी बना दें या नहीं, बिचौलिए बने रहेंगे। आपको लगता है कि {मुकेश} अंबानी या {गौतम} अडानी सीधे खेतों में जाएंगे और इसे {कृषि उपज} खरीदेंगे? जाहिर है कि उनके पास बिचौलियों की नीचे से ऊपर तक परत होगी। दूसरी बात यह है कि मंडी की व्यवस्था जिस तरह से मौजूद है कोई भी आ सकता है और वहां से खरीद सकता है … किसानों को लगता है कि बड़े कॉर्पोरेट घराने अपने हाथों में ले लेंगे। वे {सरकार} कहते हैं कि किसान कानूनी सहारा ले सकते हैं … एक किसान बड़े कॉरपोरेट घराने से नहीं लड़ सकता … वे गरीब लोग हैं जो सुरक्षा की भावना चाहते हैं जो उन्हें सरकारी मंडी प्रणाली से मिलती है … मुझे लगता है कि हितधारकों के साथ बिना परामर्श के तर्क दिए जा रहे हैं। हम एनडीए का हिस्सा हैं, वे हमसे कम से कम सलाह ले सकते थे।

सवाल : उन्होंने आपसे सलाह नहीं ली?
जवाब : इस बारे में हमें कभी नहीं बताया गया। जब यह कैबिनेट में आया तो हमें अध्यादेश के बारे में पता चला। वहां खुद हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि कृपया इसे पास न कराएं, क्योंकि यह किसानों को दिक्कत पहुंचांएगी। लेकिन उन्होंने इसे पास करते हुए कहा कि एक्ट आने तक हमें तीन महीने का समय मिलेगा और इस बीच हम उनसे बात करेंगे …

सवाल: जब सरकार ने कहा कि एमएसपी बना रहेगा और एपीएमसी जारी रहेगा, तो क्या यह आश्वासन संतोषजनक नहीं है?
जवाब : उन्होंने सरकारी APMC के अधिकार क्षेत्र को 5-7 एकड़ तक घटा दिया है। उन्होंने कहा कि एपीएमसी के समानांतर, निजी लोग अपने दम पर मंडियां खोल सकते हैं, उन्हें कर नहीं देना होगा। सरकारी मंडियों पर 7-8% टैक्स लगता है … मूल रूप सेव उन्हें {कॉर्पोरेट घरानों} खरीदने के लिए कर-मुक्त प्रोत्साहन दिया गया है।

सवाल: ध्वनि मत से बिल पास करने के तरीके के बारे में आपका क्या विचार है?
जवाब : संसद के बाहर किसानों के अधिकारों पर बुलडोजर चला और संसद के भीतर सांसदों के अधिकारों पर बुलडोजर चला।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *