बच्चों की गुमशुदगी का केंद्र क्यों बन गया है मध्य प्रदेश, हर रोज गायब होते हैं 30 बच्चे
मध्य प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से जनवरी 2014 से दिसंबर 2019 तक 52,272 बच्चे लापता हुए जो कि पूरे देश में लापता हुए बच्चों का 20 फीसदी है.
हाथरस में शनिवार रात पुलिस को एक नाबालिग बच्ची बस स्टैंड पर मिली. पूछताछ में पता चला कि ये बच्ची दिल्ली से भागकर हाथरस तक पहुंची थी. इस बच्ची ने बताया कि वह मध्य प्रदेश के मंडला जिले से है, जहां से इसे सिलाई कढ़ाई सिखाने के लिए एक महिला दिल्ली लेकर गई और वहां उसे पता चला कि उसे बेचा जा रहा है तो बच्ची वहां से भाग निकली.
मंडला एसपी दीपक कुमार ने जानकारी दी कि बच्ची के परिवार के लोग हाथरस पहुंच चुके हैं और वहां पर पुलिस के संपर्क में हैं. वहीं मंडला से भी एक पुलिस टीम हाथरस पहुंची है और वहां पर केस की तहकीकात कर रही है. महिला पुलिस ने इस मामले में जांच के बाद कार्रवाई की बात कही.
हैरानी की बात ये है की बच्ची वीडियो में खुद को बेचे जाने की आशंका जता रही है, लेकिन इसके बावजूद मंडला पुलिस ने इस इसे ह्यूमन ट्रैफिकिंग का मामला नहीं माना है. इस पूरे मामले में हमने जब आंकड़ों पर नजर डाली तो ये चौंकाने वाले थे. गौरतलब है कि पूरे देश में सबसे ज्यादा बच्चों के गुम होने के मामले मध्य प्रदेश में ही दर्ज होते हैं.
जनवरी से अभी तक मंडला जिले में 85 बच्चों के गायब होने की FIR दर्ज हुई है. इन बच्चों को भी बहला-फुसलाकर ले जाया गया था. कुछ बच्चों के परिवार वालों को भी बहला-फुसलाया गया और उसके बाद उनके बच्चे का कोई अता पता नहीं है. मामले में जब हमने तहकीकात की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.
आदिवासी इलाकों की बच्चियां हो रही हैं गायब
दरअसल मंडला, बालाघाट, डिंडौरी जैसे जिलों में बेतहाशा बेरोजगारी और गरीबी है. ये मध्य प्रदेश के कोर आदिवासी इलाके हैं. यहां साक्षरता भी काफी कम है. पैसों के लिए बच्चों को ये लोग बाहर काम करने के लिए भेजते हैं. इसके लिए एक पूरा सिंडिकेट काम करता है, इस तरह के मामलों के जानकार प्रशांत दुबे बताते हैं कि बच्चियों को बाहर ले जाने के बाद कुछ दिनों तक पैसा मिलता है, लेकिन बाद में पैसे की आवक बंद हो जाती है.
इसके बाद परिवार के लोग पुलिस के पास जाकर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराते हैं. जब तक रिपोर्ट दर्ज होती है, तब तक बच्चियां बेच दी जाती हैं. हाल ही में एक केस में जानकारी सामने आई कि मंडला के बिछिया थाना इलाके में एक बच्ची की गुमशुदगी दर्ज हुई. बच्ची के गुम होने की FIR 19 मार्च 2020 को लिखी गई. बच्ची को 16 अगस्त 2020 को सागर में एक घर से बरामद किया गया, जहां इसकी शादी कर दी गई थी.
परिवार ने एक अनीता नाम की महिला पर आरोप लगाए, लेकिन पुलिस ने सिर्फ गुमशुदगी का प्रकरण दर्ज किया. एक सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत और उसके साथियों ने पुलिस के साथ मिलकर बच्ची को खोजा और उसे वापस लेकर आए, लेकिन पुलिस ने मामले में जांच को आगे नहीं बढ़ाया. सागर में इस बच्ची को बेचा गया, बच्ची की शादी करवा दी गई. पुलिस ने इसे ह्यूमन ट्रैफिकिंग का केस नहीं माना.
2016 में 7 बच्चियों को बरामद किया गया था, जिन्हें गोवा ले जाया जा रहा था. आरोप लगे थे कि इनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है. साल 2019 में गढ़ी इलाके में 7 बच्चियां एक साथ लापता हुई थीं, बाद में जांच हुई तो पता चला कि ये बच्चियां कानपुर के एक नाचघर में मिलीं. मंडला के अलावा डिंडोरी, बालाघाट, अलीराजपुर, झाबुआ सरीखे आदिवासी इलाकों से बच्चियां लापता हो रही हैं.
मध्य प्रदेश में रोजाना 30 बच्चे होते हैं लापता
आंकड़ों के मुताबिक पूरे मध्य प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से जनवरी 2014 से दिसंबर 2019 तक 52,272 बच्चे लापता हुए जो कि पूरे देश में लापता हुए बच्चों का 20 फीसदी है. मध्य प्रदेश में बच्चों की गुमशुदगी देश में सबसे ज्यादा होती है. जनवरी 2019 से नवंबर 2019 के बीच 7891 बच्चे लापता हुए. सरकारी आंकड़ों की मानें तो रोजाना 30 बच्चे लापता होते हैं, जिसमें 16 बच्चियां होती हैं, इसमें से औसतन 9 बच्चियों का अता-पता नहीं चलता. ज्यादातर बच्चियां आदिवासी और निचली बस्तियों से लापता होती हैं.
यानि मध्य प्रदेश में सालाना औसतन 3221 बच्चियां गायब हो रही हैं. 2010 में एक मामला सामने आया था, जहां एक बच्ची ईरान तक पहुंच गई थी. वहां एक सिख परिवार ने बच्ची को सुरक्षित भारत पहुंचाया था. ये बच्ची दिल्ली में बेची गई थी फिर दिल्ली से इसे एक मुस्लिम परिवार को बेचा गया, जो इसे ईरान ले गया.
10 मई 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन्स जारी की थी कि अगर बच्चा गुमशुदा हो और 4 महीने तक पता न चले तो इसे ह्यूमन ट्रैफिकिंग मानकर केस की जांच की जाए, लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं होता. इसके लिए AHTU (एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग युनिट) बनाने का आदेश हुआ था, कुछ जिलों में ये है लेकिन कई जिलों में ये यूनिट बनी तक नहीं है और अगर है भी तो केस उसे ट्रांसफर नहीं किए जा रहे.
इस मामले में जब कांग्रेस विधायक अशोक मर्सकोले से बात की गई तो उन्होंने कहा कि ये मामला वाकई गंभीर है, लेकिन परिवार की सहमति से बच्चे को बाहर ले जाया जाता है इसीलिए परिवार की ओर से सूचना पुलिस को नहीं मिलती. जब भी मामला गर्माता है तो परिवार सामने नहीं आता. जब गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा से हमने इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि इस तरह के मामले गंभीर हैं और इसे लेकर जल्दी ही वरिष्ठ अफसरों की एक बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें सभी विषयों पर चर्चा होगी.