लव जिहाद में गई अन्जली की जान, आयशा बनाने की कोशिश हुई नाकाम

नई दिल्ली.   देश भर में एक सुनियोजित तरीके से ये जिहादी साजिश चल रही है जिसमें हिन्दू लड़कियों को पहले फंसाया जाता है और फिर शादी का नाटक करके मुसलमान बनाया जाता है. एक नहीं अनेकों इस तरह की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं और इसी सिलसिले में लखनऊ से आई है एक दर्द भरी खबर जिसने बताया किस तरह लव जिहाद ने ले ली फिर एक और महिला की जान जो मुसलमान बनने से लगातार इंकार कर रही थी. सवाल ये है कि सैकड़ों की संख्या में पहले भी मारी गई हिन्दू महिलाओं की तरह इस बार अन्जली ने भी इस घृणित षडयन्त्र में जान गंवा दी किन्तु क्या इस देश के कानून बनाने वालो् के कानों में कोई जूं रेंगेगी?

लव जिहाद का हुई थी शिकार 

अंजली ने आखिर हार मान ली और अपने ऊपर होने वाले अत्याचार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन इस आत्मसमर्पण की कीमत उसे जान दे कर चुकानी पडी. लव जिहाद के मुद्दे की आवाज़ उठाते हुए जब उसने खुद को इस लड़ाई में नाकाम पाया तो उसने जिंदगी को अलविदा कह दिया. मंगलवार 13 अक्टूबर को अंजली ने लखनऊ विधानसभा के पास भाजपा कार्यालय गेट के सामने आत्मदाह कर लिया और देश में जिहादियों द्वारा इस तरह मारी गई हिन्दू लड़कियों की सूची में एक और दर्दनाक नाम बन गई.

महाराजगंज की रहने वाली थी अंजली 

अंजली लखनऊ के महराजगंज इलाके की रहने वाली थी और घटना वाले दिन अर्थात मंगलवार से उसका इलाज स्थानीय सिविल अस्पताल के बर्न विभाग में चल रहा था जो आखिरकार अफसोसनाक नाकामी में बदल गया और अंजली ने दम तोड़ दिया.

पहले अखिलेश तिवारी से हुई थी शादी 

35 वर्षीया अंजली की ये दूसरी शादी थी जिसमें उसके साथ जानलेवा धोखा हुआ था. इसके पहले महाराजगंज के रहने वाले अखिलेश तिवारी से अंजली टिवफी का विवाह हुआ था जिसकी परिणीति किन्ही कारणोंवश करीब चार साल बाद विवाह विच्छेद में हुई. उसके बाद  पता ये चला की अंजली ने  आसिफ नाम के एक  युवक से  शादी कर ली है. शादी के कुछ महीनों बाद ही आसिफ बिना अंजली  को बताए  सउदी अरब चला गया. यहां से अंजली पर प्रताड़ना का दौर शुरू हुआ और आसिफ तथा उसके घरवाले उस मुसलमान बन जाने के लिए लगातार दबाव बनाने लगे.

हार मान ली जिंदगी से 

अंजली ने तब तक इस प्रताड़ना से लड़ाई लड़ी जब तक उसे लगा कि वो जीत जायेगी, आसिफ और उसके घरवाले मान जाएंगे और सारे हालात ठीक हो जाएंगे. किन्तु जब उसे लगा कि उसकी तकलीफों का कोई अंत नहीं है तो उसने अपने जीवन का ही अंत कर लिया और अंत करने का उसका तरीका इतना दर्दनाक था कि न कोई आत्मदाह के समय घटनास्थल पर देख पाने की हिम्मत जुटा पा रहा था न ही अस्पताल में.

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