बिहार में फ्री कोरोना वैक्सीन का वादा आचार संहिता का उल्लंघन है? क्या कहते हैं जानकार
बिहार चुनाव में कोरोना वैक्सीन की एंट्री हो गई है. बिहार की देखा-देखी में अन्य प्रदेशों ने भी अपने चुनावी वादे में फ्री कोरोना वैक्सीन का ऐलान जोड़ दिया है. पार्टियों को पता है कि कोरोना के खौफ में लोग परेशान हैं, डर के साये में सांस ले रहे हैं. ऐसे में मुफ्त टीकाकरण का नारा किसे पसंद नहीं आएगा. सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस ‘मुफ्त’ के नारे की शुरुआत बिहार से की. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को पटना में घोषणा पत्र का ऐलान करते हुए कहा कि बिहार में एनडीए की सरकार बनते ही सभी लोगों को मुफ्त में कोरोना का टीका लगेगा. इस ऐलान को मध्यप्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने भी झटके से लपक लिया क्योंकि वहां भी उपचुनाव है. आगे देखने वाली बात होगी कि कोरोना काल में फ्री वैक्सीन का वादा वोटर्स को कितना लुभा पाता है लेकिन इससे पहले सवाल यह खड़ा हुआ है कि क्या फ्री टीके का ऐलान ‘फ्रीबीज’ (मुफ्त की चीजें बांटना) में नहीं आता? क्या इसे आचार संहिता का उल्लंघन नहीं कहेंगे? जानकारों की मानें तो यह संभव है कि इसे आचार संहिता का उल्लंघन नहीं माना जाए.
वैक्सीन का मुद्दा क्या है
सबसे पहले समझते हैं कि मुद्दा क्या है. दरअसल, गुरुवार को पटना में बीजेपी ने अपना घोषणा पत्र जारी किया. इसका ऐलान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किया. हर चुनाव की तरह वादे तो कई किए गए, लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित करने वाला रहा फ्री कोरोना वैक्सीन का वादा. चूंकि पूरी दुनिया में कोरोना का कोहराम मचा हुआ है. स्कूल-कालेज, कल-कारखाने से लेकर सिनेमा, थिएटर आदि लगभग बंद चल रहे हैं. लोग घरों से निकलते हैं लेकिन सहम कर. सरकार ने कई गाइडलाइंस बनाई हैं जिसका अनुपालन अनिवार्य है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं. ऐसे में कोई पार्टी अगर फ्री में ‘दवाई’ (कोरोना वैक्सीन) देने का ऐलान करती है, तो इससे बड़ा वादा क्या होगा. बीजेपी ने यह ऐलान तो कर दिया लेकिन सवाल ये खड़े हो गए कि बीच चुनाव कोई पार्टी फ्रीबीज का ऐलान करती है, तो यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं होगा?
फ्री वैक्सीन के वादे पर सवाल
यह सवाल इसलिए भी उठा है क्योंकि बीजेपी की विरोधी पार्टियों ने इस पर हंगामा शुरू कर दिया है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने फ्री कोरोना वैक्सीन के ऐलान पर विरोध जताया है. उन्होंने केंद्र सरकार पर तंज कसते हुए कहा है कि कोरोना के लिए चुनावों का इंतजार करें. राहुल गांधी ने इस बात पर नाराजगी जताई कि बीजेपी ने चुनावी राजनीति को कोविड से जोड़ दिया. कांग्रेस ने फ्री कोरोना वैक्सीन के ऐलान पर विरोध जताते हुए ट्वीट में लिखा, बिहार में चुनाव है, इसलिए बीजेपी ने अपने जुमला पत्र में मुफ्त वैक्सीन देने का ख्वाब दिखाया है. देश बीजेपी की हकीकत जानता है- बीजेपी के जुमला पत्र में लिखित सभी वादे काल्पनिक होते हैं. वैक्सीन के नाम पर वोट मांगने वाली बीजेपी ने बिहार के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई है. कांग्रेस ने कहा, क्या अन्य राज्यों को वैक्सीन का पैसा देना पड़ेगा? क्या केंद्र सरकार यह कह रही है कि देश के लोगों को अपनी जिंदगी बचाने के लिए पैसे चुकाने होंगे?
कुछ ऐसी ही बात कांग्रेस की सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने कही और बताया कि कोरोना वैक्सीन देश का संसाधन है न कि बीजेपी का. पार्टी ने कहा कि कोरोना वैक्सीन के ऐलान से साफ है कि बीजेपी देश के लोगों के साथ डर का सौदा करना चाहती है. शिवसेना ने इस ऐलान पर हमला बोलते हुए कहा कि यह अनैतिक है और कोरोना वैक्सीन का टीकाकरण यूनिवर्सल इम्युनाइजेशन प्रोग्राम का हिस्सा होना चाहिए. शिवसेना ने पूछा कि क्या वैक्सीन अब प्रदेशों के चुनावों से तय होगी. क्या वैक्सीन के आधार पर बीजेपी और गैर-बीजेपी राज्यों में बंटवारा होगा? ऐसे कई विरोधी स्वर लेफ्ट और जम्मू-कश्मीर की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी उठाए हैं. लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल यह खड़ा हुआ है कि क्या यह ऐलान आचार संहिता के उल्लंघन की श्रेणी में नहीं आएगा?
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों की मानें तो यह ऐलान आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में नहीं आता. जानकारों ने समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (2) के तहत, ‘सार्वजनिक नीति की घोषणा, या प्रकाशन का वादा, बिना चुनाव में दखल देने की मंशा के कानूनी अधिकार का इस्तेमाल करने को हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता है.’ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त विक्रम संपत ने कहा, “राजनीतिक दलों को इस तरह के वादे करने का अधिकार है.” “यह अनुचित प्रभाव है या नहीं, यह मतदाता को तय करना है. चुनावी वादे करने वाली पार्टियों को अपवाद में नहीं लिया जा सकता है. ” 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने न्याय योजना की घोषणा की थी जिसमें सबको 72,000 रुपये हर साल देने का वादा किया गया था. इसे चुनाव आयोग ने आचार संहिता का उल्लंघन नहीं माना था. विशेषज्ञों के अनुसार, घोषणा पत्र राजनीतिक दलों को ऐसे ऐलान करने की स्वतंत्रता देता है जो वे सरकार के रूप में नहीं कर सकते.